हिंदी पद्य साहित्य का इतिहास pdf

  1. पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२१६
  2. हिंदी साहित्य का इतिहास (Hindi Sahitya Ka Itihas) PDF – InstaPDF
  3. हिन्दी साहित्य का इतिहास
  4. [PDF] Hindi Sahitya Ka Itihas PDF Book (Free Download)
  5. हिंदी गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएँ ― निबंध, नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी
  6. Hindi Sahitya ka Saral Itihas by Vishwanath Tripathi
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( १९७ ) शिवनारायणी संप्रदाय के प्रवर्तक । यह मुहम्मदशाह के शासनकाल ( १७१९-१७४८ ई०) में उपस्थित थे। अपने सिद्धांतों के प्रतिपादनार्थ इन्होंने प्रचुर परिमाण में रचना की है । हिंदी पद्य की ११ पुस्तकें इनकी कही जाती है। ये हैं--(१) लव ग्रंथ, (२) संत विलास, (३) मजन ग्रंथ, (४) सांत सुंदर, (५) गुरुन्यास, (६) सांताचारी, (७) सांतोपदेस, (८) सबदावली, (९) सांत परवान, (१०) सांत महिमा, (११) सांत सागर । एक बारहवीं पुस्तक अमी और है जो संप्रदाय के प्रमुख के एकांत अधिकार में पड़ी हुई है और अभी तक निकल नहीं सकी है। देखिए, विलसन रेलिजस सेक्टस आफ़ द हिंदून, भाग १, पृष्ठ ३५९; गासी द तासी द्वारा उद्धृत भाग १, पृष्ठ ४७५ । ३२२. लाल जी-काँधला, जिला सुजफ्फर नगर के कायस्थ । १७५१ ई० में उपस्थित । इस साल इन्होंने भक्तमाल (सं० ५१) की 'भक्त उरबसी' नामक टीका लिखी। ३२३. जगजीवनदास--कोटवा जिला बाराबंकी के चंदेल । १७६१ ई० में उपस्थित। यह सतनामी संप्रदाय के प्रवर्तक थे और भाषा में कविताएँ भी लिखते थे। इनके उत्तराधिकारियों और शिष्यों में जलालीदास, दूलमदास और देवीदास (सं० ४८७) का नाम लिया जा सकता है। ये सभी कविथे । यह और ये शातरस की कविता में बढ़े चढ़े थे। इनके ग्रंथों में ज्ञान प्रकाश, महा परलै और प्रथम ग्रंथ का उल्लेख किया जा सकता है। देखिए, विलसन, रेलिजस सेक्ट्स आफ़ द हिंदज, पृष्ठ ३५७; गार्सा द तासी, भाग १, पृष्ठ २५६ ।। टि०--जगजीवनदास का जन्मकाल सं० १७२७ माघ सुदी ७ और मृत्युकाळ सं० १८१० वैशाख बदी ७ है। ज्ञान प्रकाश और महा प्रकय का रचनाकार सं० १८१३ है। जिसे ग्रियर्सन ने प्रथम ग्रन्थ समझा है, वह 'परम अंग है। इसका रचना काल १८१२ है। --सर्वेक्षण ३०४ ३२४. दुल्हा राम-१७७६ ई० में उपस्थित। यह १७७६ ई० में राम सनेही हुए...

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हिन्दी साहित्य का इतिहास

हिन्दी साहित्य पर अगर समुचित परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यन्त विस्तृत व प्राचीन है। सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक हिन्दी साहित्य का इतिहास वस्तुतः वैदिक काल से आरम्भ होता है। यह कहना ही ठीक होगा कि वैदिक भाषा ही दसवीं शताब्दी के आसपास की सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश-अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही पद्य-रचना प्रारम्भ हो गयी थी। • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • अनुक्रम • 1 हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन का इतिहास • 1.1 हिन्दी साहित्य के इतिहासकार और उनके ग्रन्थ • 2 हिन्दी साहित्य के विकास के विभिन्न काल • 2.1 आदिकाल (1050ई से 1375ई) • 2.2 भक्तिकाल (1375 से 1700 ई.) • 2.3 रीतिकाल (1700 से 1900 ई.) • 2.4 आधुनिक काल (1900 से अब तक) • 2.4.1 उन्नीसवीं शताब्दी • 2.4.2 बीसवीं शताब्दी • 3 हिन्दी एवं उसके साहित्य का इतिहास • 3.1 ब्राह्मी लिपि का विकास • 3.2 अपभ्रंश तथा आदि-हिन्दी का विकास • 3.3 अपभ्रंश का अस्त तथा आधुनिक हिन्दी का विकास • 3.4 आधुनिक हिन्दी • 4 सन्दर्भ • 5 इन्हें भी देखें • 6 बाहरी कड़ियाँ हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन का इतिहास [ ] मुख्य लेख: आरम्भिक काल से लेकर आधुनिक व आज की भाषा में आधुनिकोत्तर काल तक साहित्य इतिहास लेखकों के शताधिक नाम गिनाये जा सकते हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहासकार और उनके ग्रन्थ [ ] हिन्दी साहित्य के मुख्य इतिहासकार और उनके ग्रन्थ निम्नानुसार हैं - 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18 .राजेंद्र प्रसाद सिंह: हिन्दी साहित्य के विकास के विभिन्न काल [ ] आदि...

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Title : हिंदी साहित्य का इतिहास Pages : 653 File Size : 170 MB Author : आचार्य रामचंद्र शुक्ल Category : Literary Theory & History Language : Hindi To read : For support : "हिंदी साहित्य का इतिहास" रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिंदी साहित्य के इतिहास पर अब तक का सबसे प्रामाणिक और सर्वश्रेष्ठ इतिहास लेखन हैं। सबसे पहले रामचंद्र शुक्ल ने इसे हिन्दी शब्दसागर की भूमिका के रूप में लिखा था। जिसे बाद में इसकी उपयोगीता को देखकर शुक्ल जी ने एक स्वतंत्र पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। उन्होंने यह कार्य काफी लंबे समय में पूर्ण किया। जब वे काशी हिन्दू विश्वविघालय में पढ़ाया करते थे तब उन्होंने छात्रों को पढ़ाने के लिए हिंदी साहित्य के इतिहास पर संक्षिप्त नोट तैयार किया था। जिसने आगे जाकर उनके इस कृति को पूर्ण करने में भरपूर मदद की। इसी समय अंतराल में 'हिंदी शब्दसागर' का लेखन भी पूर्ण हो गया और यह फैसला किया गया की भूमिका के रूप में 'हिंदी भाषा का विकास' और 'हिंदी साहित्य का विकास' सम्मलित किया जाएगा। आचार्य शुक्ल ने 'हिंदी साहित्य का विकास' एक निश्चित समय के अंदर लिखा। परंतु इस कार्य से वे संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने आगे चलकर हिंदी साहित्य के इतिहास और विकास पर एक वृहत रचना कि जो शब्द सागर के प्रकाशन के छः महीने बाद 1929 ई. में प्रकाशित किया गया। More: केवल पढ़ने के लिए: आदमी भौतिक पदार्थों को बहुत महत्व देता है जो जीवन की उपरी सतह पर हैं; किन्तु जिसका प्रभाव बराबर मन पर पड़ता है। उस व्यवहार के महत्व को वह समझ नहीं पाता है। इसका परिणाम होता है कि वह व्यवहार को मधुर बनाये रखने के लिए सावधानी नहीें बरतता और साथियों में तनाव करके निरंतर भोगता है। विश्वास और प्रेम पारिवारिक तथा सामाजिक भित्ति ...

हिंदी गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएँ ― निबंध, नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी

Install - vidyarthi sanskrit dictionary app हिंदी गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएँ ― निबंध, नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी | hindi sahitya ki gadya vidhaye ― Essay, Drama, Ekanki, Novel, Story • BY:RF Temre • 9659 • 0 • Copy • Share हिंदी गद्य की प्रमुख विधायें― निबंध, नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी निबंध- निबंध वह गद्य रचना है, जिसमें सीमित आकार में किसी विषय का प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, संगति व संबद्धता के साथ किया जाता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने स्पष्ट किया है― आधुनिक लक्षणों के अनुसार निबंध उसी को कहना चाहिए जिसमें व्यक्तित्व अर्थात् व्यक्तिगत विशेषता है। उन्होंने लिखा है, "यदि गद्य काव्य या लेखकों की कसौटी है, तो निबंध गद्य की कसौटी है।" बाबू गुलाब राय के अनुसार, "निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं, जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव और सजीव तथा आवश्यक संगति और संबद्धता के साथ किया गया हो।" निबंध के प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं― 1. वर्णनात्मक निबंध 2. विचार मूलक निबंध 3. भावात्मक या ललित निबंध 4. कथात्मक निबंध "निबंध को गद्य की कसौटी कहा गया है।" इस कथन का तात्पर्य है कि, पद्य की तुलना में गद्य रचना संपन्न करना दुष्कर कार्य है, क्योंकि अगर आठ पंक्तियों वाली कविता में यदि एक पंक्ति भी भावपूर्ण लिख जाती है तो कवि प्रशंसा का भागी होता है, परंतु गद्य के संदर्भ में ऐसा नहीं देखा जाता। गद्यकार को एक-एक वाक्य सुव्यवस्थित एवं सोच-विचारकर लिखना होता है। उसी स्थिति में गद्यकार प्रशंसनीय है। गद्य में निबंध लेखन बहुत ही दुष्कर कार्य है। निबंध को सुरुचिपूर्ण, आकर्षक एवं व्यवस्थित होना चाहिए। इसी हेतु निबंध की कसौटी कहा गया है। हि...

Hindi Sahitya ka Saral Itihas by Vishwanath Tripathi

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- ३२९, मोहन कवि-१७२० ई० में उपस्थित । यह राजा जयसिंह सवाई (सं० ३२५ ) के दरबार में थे । देखिए सं० २८४ । ३३०. बुद्ध राव-हाड़ा । १७१०-१७४० ई० में उपस्थित । यह बूंदी के राजा थे और आमेर के राजा जयसिंह सवाई (से० ३२५) की बहन से व्याहे गये थे। बादशाह बहादुरशाह ने (१७०७-१७१२ ई०) अपने भाई आलम की प्रतिद्वंदिता के समय इनसे बड़ी सहायता पाई थी। सिंहासन प्राप्ति के लिए यह इनका परम कृतज्ञ था। बुद्ध ने सैयद बुरहाना के विद्रोह में भी १७२४ ई० में बादशाह को बचाया था और पुनः शक्तिशाली बनाया था। शाही सिंहासन प्राप्ति के इस संघर्ष में इनकी विशेष सेवाओं के लिए इन्हें रावराजा की उपाधि मिली थी। यह १७४० ई० के आस-पास अपने साले जयसिंह द्वारा हराए गए और गद्दी से उतार दिए गए। यह स्वयं कवि और कवियों के आश्रयदाता थे। देखिये, टाड भाग २, पृष्ठ ४८२ और आगे; कलकत्ता संस्करण भाग २, पृष्ठ ५२८ और आगे। ____ टि-राव बुद्ध सिंह का जन्म सं० १७४२ में एवं देवाहसान सं० १७९६ में हुमा । यह अपने बहनोई द्वारा सं० १७८७ में गद्दी से उतार दिये गए थे। राव राजा इनकी पुश्तैनी उपाधि थी। बहादुरशाह ने इन्हें महा राव राजा की उपाधि दी थी। -सर्वेक्षण ४९८ ३३१. भोज मिसर कवि-प्राचीन । १७२० ई० में उपस्थित । यह बुद्ध राव (सं० ३३० ) के दरबार में थे और 'मिसर शृङ्गार' नामक ग्रंथ के रचयिता थे। ३३२. गुरदत्त सिङ्घ-अमेठी (अवध ) के राजा, उपनाम भूपति कवि, १७२० ई० के आसपास उपस्थित । । सत्कविगिराविलास, सुन्दरी तिलक । यह स्वयं तो कवि थे ही, कवियों के बड़े आश्रयदाता भी थे। सुन्दरी तिलक में यह छितिपाल कहे गए हैं। गासों द तासी, भाग १, पृष्ठ १२१ एक भूपति या भूदेव का उल्लेख करता है, पर वे कायस्थ हैं और हिंदी पद्य में लिखित श्री भागवत नामक ग्रन्थ के रचयिता है...

हिंदी साहित्य का इतिहास/विषय

अपभ्रंश या लोक-प्रचलित काव्य-भाषा के साहित्य का आविर्भाव-काल, ६; इस काव्य-भाषा के विषय, ६; 'अपभ्रंश' शब्द की व्युत्पत्ति, ६; जैन ग्रंथकारों की अपभ्रंश रचनाएँ, ७; इनके छंद, ७; [ १३-१४; नवनाथ, १५; मुसलमानो और भारतीय योगियों का संसर्ग, १५; गोरखनाथ की हठयोग-साधना, १६; नाथ संप्रदाय' के सिद्धांत, १६-१७; इनका वज्रयानियों से साम्य, १७ 'नाथपंथ' की भाषा, १८; इस पंथ का प्रभाव, १८; इसके ग्रंथ, १८; इन ग्रंथों के विषय १९; साहित्य के इतिहास में केवल भाषा के विकास की दृष्टि से इनका विचार, १९-२०; वैष्णवधर्म आंदोलन के प्रवर्तक श्री वल्लभाचार्य, १५५; इनका दार्शनिक सिद्धांत, १५५; इनकी प्रेम-साधना, १५६; इनके अनुसार जीव के तीन भेद, ३६६; इनके समय की राजनीतिक और धार्मिक परिस्थिति, १५६-५७, इनके ग्रंथ, १५७; वल्लभ-संप्रदाय की उपासना-पद्धति का स्वरूप, १५७; कृष्णभक्ति काव्य का स्वरूप, १५८; वैष्णव धर्म का साप्रदायिक स्वरूप, १५८; देश की भक्ति-भावना पर सूफियों का प्रभाव, १५९, सामान्य परिचय रीतिकाल के पूर्ववर्ती लक्षण-ग्रंथ, २३२; रीति परंपरा का आरंभ, २३२; रीति-ग्रंथों के आधार, २३३; इनकी अखंड परंपरा का प्रारंभ, २३३; संस्कृत रीति-ग्रंथों से इनकी भिन्नता, २३३; इस भिन्नता का परिणाम, २३३; लक्षण ग्रंथकारों के आचार्यत्व पर विचार, २३४; इन ग्रंथों के आधार, २३४; शास्त्रीय दृष्टि से इनकी विवेचना, २३४-२३६; रीति-ग्रंथकार कवि और उनका उद्देश्य, २३६-३७; इनकी कृतियों की विशेषताएँ, २३७; साहित्य-विकास पर रीति-परंपरा का प्रभाव, २३७; रीति ग्रंथों की भाषा, २३७-४०; रीति-कवियों के छंद और रस, २४१। ( शिष्ट समुदाय में खड़ी बोली के व्यवहार का आरंभ, ४०७; फारसी-मिश्रित खड़ी बोली या रेखता में शायरी, ४०८; उर्दू-साहित्य का आरंभ, ४०८; खड़...