हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा pdf

  1. ba hindi sahity ka itihas
  2. हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा
  3. हिंदी साहित्य के लेखक, भारत के बेहतरीन लेखक और उनकी रचनाएँ
  4. हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)/हिंदी साहित्येतिहास लेखन की परंपरा


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ba hindi sahity ka itihas

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हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा

हिंदी साहित्य इतिहास लेखन की परंपरा हिंदी साहित्य इतिहास लेखन की परंपरा pdf हिंदी साहित्य इतिहास लेखन की परंपरा Hindi Sahitya Itihas Lekhan Ki Parampara Itihaas lekhan ki parampara Hindi sahitya itihas notes - यद्यपि उन्नीसवीं सदी से पूर्व ही 'चौरासी वैष्णवन की वार्त्ता', 'दो सौ बावन वैष्णवन की वार्त्ता', 'भक्तमाल', 'गुरुग्रन्थसाहब', 'गोसाईं चरित्र', 'भक्तनामावली', 'कविमाला', 'कालिदास हजारा' तथा 'सत्कविगिरा विलास' जैसे अनेक ग्रन्थों का प्रणयन हो चुका था, जिनमें हिन्दी के विभिन्न कवियों के जीवनवृत्त एवं कृतित्व का परिचय दिया गया है।किन्तु इनमें कालक्रम, सन्-संवत् आदि का अभाव होने के कारण इन्हें 'इतिहास' की संज्ञा नहीं दी जा सकती। ज्ञात तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन का सर्वप्रथम प्रयास एक फ्रेंच विद्वान् गार्सा द तॉसी ने किया है। इनके ग्रन्थ का नाम है- ' इस्त्वार द ला लितरेत्युर ऐंदुई ऐ ऐंदुस्तानी'। यह ग्रन्थ फ्रेंच भाषा में लिखा गया है। इसमें हिन्दी और उर्दू के अनेक कवियों का विवेचन वर्णक्रमानुसार किया गया है। इसका प्रथम भाग 1839 ई. में तथा द्वितीय भाग 1847 ई. में प्रकाशित हुआ था। इसके द्वितीय संस्करण को संशोधित एवं परिष्कृत करके 1871 ई. में प्रकाशित कराया गया। इसमें 3 खण्ड हैं। तॉसी की परम्परा को प्रवर्द्धित करने का प्रयास शिवसिंह सेंगर ने किया। इनके ग्रन्थ का नाम 'शिवसिंह सरोज' है। यह हिन्दी साहित्येतिहास-लेखन-परम्परा का द्वितीय महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह 1883 ई. में प्रकाशित हुआ था। इसमें लगभग एक हजार भाषा-कवियों का जीवन-चरित उनकी कविताओं के उदाहरण सहित प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इस ग्रन्थ में प्रयुक्त सामग्री विश्वसनीय नहीं ...

हिंदी साहित्य के लेखक, भारत के बेहतरीन लेखक और उनकी रचनाएँ

हिंदी साहित्य काव्यांश तथा गद्यांशओं का सोने का पिटारा है । जैसे आभूषण के बिना स्त्री अधूरी होती है ठीक उसी प्रकार हिंदी साहित्य के बिना हिंदी भाषा अधूरी है। हिंदी साहित्य को सुनहरा बनाने वाले हैं हिंदी साहित्य के लेखक। हिंदी साहित्य के लेखक ने गद्यांशओ को इतना रुचिकर और आकर्षक लिख दिया है की हिंदी साहित्य को पढ़ना सभी को अच्छा लगने लगा है। हिंदी साहित्य आज से नहीं चला रहा है कहा जाता है कि आदिमानव के द्वारा पहला साहित्य प्राप्त हुआ था। ऐसा लगता है कि हिंदी साहित्य के लेखक द्वारा शब्दों को हिंदी साहित्य में मानों सुनहरे अक्षरों से लिखा हो,तो इसी के साथ आइए जानते हैं हिंदी साहित्य के लेखकों के बारे में। This Blog Includes: • • • • • • • • • • • • • • • • हिन्दी साहित्य का इतिहास हिंदी साहित्य का आरंभ आठवीं शताब्दी से माना जाता है। यह वह समय है जब सम्राट् हर्ष की मृत्यु के बाद देश में अनेक छोटे-छोटे शासन केंद्र स्थापित हो गए थे जो परस्पर संघर्षरत रहा करते थे। विदेशी मुसलमानों से भी इनकी टक्कर होती रहती थी। हिन्दी साहित्य के विकास को आलोचक सुविधा के लिये पाँच ऐतिहासिक चरणों में विभाजित कर देखते हैं, जो क्रमवार निम्नलिखित हैं:- • भक्ति काल (1375-1700) • रीति काल (1700-1900) • आधुनिक काल (1850 ईस्वी के बाद) • भक्ति काल (1375 – 1500) भक्ति काल (1375-1700) हिन्दी साहित्य का भक्ति काल 1375 वि0 से 1500 वि0 तक माना जाता है। यह काल प्रमुख रूप से भक्ति भावना से ओतप्रोत काल है। इस काल को समृद्ध बनाने वाली दो काव्य-धाराएं हैं – • निर्गुण भक्तिधारा • सगुण भक्तिधारा निर्गुण भक्तिधारा को आगे दो हिस्सों में बांटा जा सकता है, संत काव्य (जिसे ज्ञानाश्रयी शाखा के रूप में जाना जाता है, इस शाखा ...

हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)/हिंदी साहित्येतिहास लेखन की परंपरा

हिंदी साहित्येतिहास लेखन की परंपरा पर विचार करें तो हम पाते हैं कि १९वीं शताब्दी से पूर्व भक्तमाल, कालिदास हजारा, कविमाला, चौरासी वैष्णवन की वार्ता, दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता इत्यादि जिन रचनाओं में इतिहास लेखन की आरंभिक झलक दिखायी पड़ती है, वे सभी रचनाएँ इतिहासबोध के स्तर पर प्रभावशून्य हैं। १९वीं सदी में जब इतिहास लेखन की औपचारिक शुरुआत हुई, तो भी पहले कुछ प्रयास जैसे 'गार्सां द तासी' का 'इस्तवार द ला लित्रेत्युर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी', शिवसिंह सेंगर का 'शिवसिंह सरोज' आदि किसी निश्चित इतिहासबोध से युक्त नहीं है। जॉर्ज ग्रियर्सन (मॉडर्न वर्नाकुलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान) और मिश्रबंधु (मिश्रबंधु विनोद) के इतिहास लेखन को आरंभिक प्रयास माना जा सकता है, जिनमें इतिहासबोध के प्रति सजगता दिखाई पड़ती है। हालांकि उन्होंने भी कभी अपने इतिहासबोध की निश्चयात्मक व्याख्या प्रस्तुत नहीं की। सामग्री • १ रामचंद्र शुक्ल • २ हजारी प्रसाद द्विवेदी • ३ राम स्वरूप चतुर्वेदी • ४ रामविलास शर्मा • ४.१ अन्य इतिहास लेखन • ५ निष्कर्ष • ६ संदर्भ रामचंद्र शुक्ल [ ] रामचंद्र शुक्ल का ' हिंदी साहित्य का इतिहास' इतिहासबोध की दृष्टि से हिंदी साहित्येतिहास लेखन की परंपरा में एक सक्रिय परिवर्तन है। उन्होंने अपने इतिहास लेखन में विधेयवादी या प्रत्यक्षवादी इतिहास-दर्शन प्रस्तुत किया जिसके अंतर्गत 'देश, काल और वातावरण' को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया जाता है। देश, काल और वातावरण के प्रभाव को साहित्य में स्वीकार करते हुए रामचंद्र शुक्ल लिखते हैं, " जबकि प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्तियों का संचित प्रतिबिंब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप म...