हनुमान जी की लंबाई कितनी थी

  1. हनुमान जी को शंकर सुवन क्यों कहते हैं? – ElegantAnswer.com
  2. हनुमान जी संजीवनी बूटी वाला पाठ जाए तो उसकी लंबाई कितनी थी? » Hanuman Ji Sanjeevani Buti Vala Path Jaaye Toh Uski Lambai Kitni Thi
  3. हनुमानजी के 10 रहस्य जानकर आप रह जाएंगे हैरान
  4. ‘आरती कीजै हनुमान लला की...’ कौन हैं इन पक्तियों के रचियता? जानें ये कब लिखी गईं


Download: हनुमान जी की लंबाई कितनी थी
Size: 7.1 MB

हनुमान जी को शंकर सुवन क्यों कहते हैं? – ElegantAnswer.com

हनुमान जी को शंकर सुवन क्यों कहते हैं? इसे सुनेंरोकें’‘हनुमान चालीसा’ में भी तुलसीदास ने हनुमानजी को ‘संकर सुवन’ कहकर रुद्रावतार घोषित किया। एक तरफ भगवान शंकर रामचंद्र जी को अपना आराध्य मानते हैं, वहीं दूसरी ओर श्रीराम ‘रामेश्वर’ के रूप में उनका पूजन करते है। शिवजी पर चढ़ने वाले बिल्वपत्रों पर राम-नाम लिखने का तात्पर्य भी हरि-हर की एकरूपता है। तत्वत: ये दोनों एक ही है। हनुमान जी कैसे मरे? इसे सुनेंरोकेंयाद होने की वजह से कई लोग हनुमान चा‍लीसा को मन ही मन दोहरा कर पूजा कर लेते हैं। ऐसे लोगों को पूरी हनुमान चालीसा दोहराने में मात्र 2-3 मिनट ही लगते हैं। हनुमान चालीसा में कौन सा छंद है? इसे सुनेंरोकेंयह अत्यन्त लघु रचना है जिसमें पवनपुत्र श्री हनुमान जी की सुन्दर स्तुति की गई है। इसमें बजरग बली‍ की भावपूर्ण वन्दना तो है ही, श्रीराम का व्यक्तित्व भी सरल शब्दों में उकेरा गया है। ‘चालीसा’ शब्द से अभिप्राय ‘चालीस’ (40) का है क्योंकि इस स्तुति में 40 छन्द हैं (परिचय के 2 दोहों को छोड़कर)। शंकर सुवन केसरी नंदन का अर्थ क्या है? इसे सुनेंरोकेंशंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥ अर्थ- शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वन्दना होती है। सुवन का क्या अर्थ है? इसे सुनेंरोकेंहिन्दीशब्दकोश में सुवन की परिभाषा सूर्य । २. अग्नि । हनुमान जी की स्पीड कितनी थी? इसे सुनेंरोकेंहनुमान जी 11 किलोमीटर प्रति सेकंड की स्पीड से उड़ते थे, विज्ञान के प्रमाण पढ़िए – GK IN HINDI. हनुमान जी को घमंड कब हुआ था? इसे सुनेंरोकेंकहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा के अनुरुप बजरंगबली अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान रहे। इससे जुड़ा एक प्रसंग आनंद...

हनुमान जी संजीवनी बूटी वाला पाठ जाए तो उसकी लंबाई कितनी थी? » Hanuman Ji Sanjeevani Buti Vala Path Jaaye Toh Uski Lambai Kitni Thi

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। आपका प्रश्न हनुमान जी संजीवनी बूटी वाला पर्वत लाए तो उसकी लंबाई कितनी थी तो मैं आपको यह बताना चाहता हूं बाल्मीकि रामायण में फर्स्ट विकेट मिला है मंजिल दूर से उसको शब्द पर्वत को देखा जो कैलाश पर्वत के समीप स्थित था कैलाश और ऋषभ पर्वत के बीच में स्थित था और दिव्य औषधियां देखकर हनुमान जी प्रसन्न हुए लेकिन जैसे ही हनुमान जी उस औषध पर्वत पर उतरी तो दिव्य औषधियां उस पर्वत व शक्तियों को यह जानकर कि उन्हें कोई लेने आया है अध्यक्ष कर दिया तब हनुमान जी ने पर्वत से बहुत प्रार्थना की कि दिव्य औषधियां पलट कर दो मैं राम के काम से आया हूं लेकिन पर्वत ने कोई ध्यान नहीं दिया तो हनुमान जी ने उसको चेतावनी की कीमत में चूर चूर कर दूंगा तब हनुमानजी ने औषधियों की यहां पर अशुद्धियां उन्हें दूर से देखी थी उसने भाग को फाड़कर इस्तर पर दिया और शेष बची पर्वत को बकरीद की चौथी पर्वत था उसको उन्होंने अपने गुणों से तू दादा छाती के भाग 10 मिन पर्वत सप्तमी विद्यार्थना मायामतम तत्वों जगनूर दर्शन औषधियां हनुमान जी को देखकर हमें कोई लेना आया ही समाज का प्रदर्शन किया और एक चौथाई भाग कि वह अपने बाएं हाथ में धारण करके भगवान राम के पास लाए तो आपकी प्रश्न का उत्तर यही है उस पर्वत की लंबाई जो है वह लंबाई तो काफी थी लेकिन पर्वत का हिस्सा उसका कम था पर्वत की लंबाई करीब 304 फुट भरी होगी उसकी जांघों से दी aapka prashna hanuman ji sanjeevani buti vala parvat laye toh uski lambai kitni thi toh main aapko yah batana chahta hoon balmiki ramayana me first wicket mila hai manjil dur se usko shabd parvat ko de...

हनुमानजी के 10 रहस्य जानकर आप रह जाएंगे हैरान

होई है वही जो राम रची राखा।। को करी तर्क बढ़ावहि शाखा।। हनुमानजी इस कलियुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे। वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं। वे कहां रहते हैं, कब-कब व कहां-कहां प्रकट होते हैं और उनके दर्शन कैसे और किस तरह किए जा सकते हैं, हम यह आपको बताएंगे अगले पन्नों पर। और हां, अंतिम दो पन्नों पर जानेंगे आप एक ऐसा रहस्य जिसे जानकर आप सचमुच ही चौंक जाएंगे... चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥ संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥ अंतकाल रघुवरपुर जाई, जहां जन्म हरिभक्त कहाई॥ और देवता चित्त ना धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥ चारों युग में हनुमानजी के ही परताप से जगत में उजियारा है। हनुमान को छोड़कर और किसी देवी-देवता में चित्त धरने की कोई आवश्यकता नहीं है। द्वंद्व में रहने वाले का हनुमानजी सहयोग नहीं करते हैं। हनुमानजी हमारे बीच इस धरती पर सशरीर मौजूद हैं। किसी भी व्यक्ति को जीवन में श्रीराम की कृपा के बिना कोई भी सुख-सुविधा प्राप्त नहीं हो सकती है। श्रीराम की कृपा प्राप्ति के लिए हमें हनुमानजी को प्रसन्न करना चाहिए। उनकी आज्ञा के बिना कोई भी श्रीराम तक पहुंच नहीं सकता। हनुमानजी की शरण में जाने से सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इसके साथ ही जब हनुमानजी हमारे रक्षक हैं तो हमें किसी भी अन्य देवी, देवता, बाबा, साधु, ज्योतिष आदि की बातों में भटकने की जरूरत नहीं। हनुमान इस कलियुग में सबसे ज्यादा जाग्रत और साक्षात हैं। कलियुग में हनुमानजी की भक्ति ही लोगों को दुख और संकट से बचाने में सक्षम है। बहुत से लोग किसी बाबा, देवी-देवता, ज्योतिष और तांत्रिकों के चक्कर में भटकते रहते हैं और अंतत: वे अपना जीवन नष्ट ही कर लेते हैं... क्योंकि वे हनुमान की भक्ति-शक्ति ...

‘आरती कीजै हनुमान लला की...’ कौन हैं इन पक्तियों के रचियता? जानें ये कब लिखी गईं

इन पक्तियों की रचना सदियों पहले की गोस्वामी तुलसीदासजी ने थी तुलसीदासजी ने ही 40 पक्तियों वाली हनुमान चालीसा भी लिखी थी हनुमानजी के मंदिरों में इन पंक्तियों का पाठ जरूर होता है Hanuman Aarti: ‘आरती कीजै हनुमान लला की…’ ये पंक्तियां आपने भी बोली होंगी. पूजा के समय इन्‍हीं पक्तिंयों से हनुमानजी की आरती उतारने की परंपरा है. पुराणों में वैसे तो हनुमान को प्रसन्न करने के लिए कई स्त्रोतों व स्तुतियों का उल्‍लेख है, लेकिन आरती सिर्फ एक ही है. इसकी रचना गोस्वामी तुलसीदासजी ने 15वीं सदी में की थी. उन्‍होंने ही हनुमान चालीसा भी रची. ये रचनाएं अब भारतीय जनमानस में हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए भक्तों द्वारा की जाने वाली प्रार्थना हैं. भारत-भूमि में हनुमानजी के लाखों छोटे-बड़े मंदिर हैं, जहां हनुमान चालीसा व हनुमानजी की आरती का पाठ जरूर होता है. हनुमान जी को बजरंगबली, पवनपुत्र, मारुतीनन्दन, केसरी नन्दन, महावीर आदि नामों से भी पुकारा जाता है. यहां प्रस्‍तुत है हनुमानजी की संपूर्ण आरती आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥ जाके बल से गिरवर काँपे। रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥ अंजनि पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई ॥ आरती कीजै हनुमान लला की ॥ दे वीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाये ॥ लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई ॥ आरती कीजै हनुमान लला की॥ लंका जारि असुर संहारे। सियाराम जी के काज सँवारे ॥ लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे। लाये संजिवन प्राण उबारे ॥ यह भी पढ़ें: पढ़ाई में पीछे रह जाता है बच्चा, तो वास्तु के अनुसार स्टडी रूम में करें बदलाव आरती कीजै हनुमान लला की ॥ पैठि पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखारे ॥ बाईं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन...