हनुमान जी महाराज के भजन

  1. सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए भजन लिरिक्स
  2. आज हनुमान जयंती है भजन लिरिक्स
  3. हनुमान बाहुक लिरिक्स


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सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए भजन लिरिक्स

सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए भजन लिरिक्स फ़िल्मी तर्ज - सात समुंदर पार मै तेरे पीछे पीछे आ गयीसात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए हनुमत लंकानगरी आ गए ऐसा किया कमाल देखकर लंकावासी डर गए सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए लँकापुर पहुंचे हनुमत जी, किया प्रभु का ध्यान मात सिया को खोजे पवनसुत लंका में अनजान असुरों संग बैठी असुरों संग बैठी मेरी माँ ये देख क्रोध में आ गए सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए राम निशानी लिए पवनसुत पहुंचे माँ के पास देख निशानी जनकनन्दिनी व्याकुल भई उदास हनुमत मेरे प्राण हनुमत मेरे प्राणनाथ को छोड़ कहाँ तुम आ गए सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए भूख लगी ले आज्ञा पवनसुत चले बगिया की और तोड़ तोड़ फल खाने लगे और फेंके चारों और देख तबा$$ही देख तबाही बगिया की रावण के सैनिक आ गए सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए बनाके बंदी रावण सन्मुख खूब किया अपमान सहन हुआ नही रावण से लगवा दी पूंछ में आग क्रोधित बजरंगी क्रोधित बजरंगी लंका में आग लगाके आ गए सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए हनुमत लंकानगरी आ गए ऐसा किया कमाल देखकर लंकावासी डर गए सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए

आज हनुमान जयंती है भजन लिरिक्स

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हनुमान बाहुक लिरिक्स

स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन । उर बिसाल भुज-दंड चंड नख-बज्र बज्र-तन । पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन । कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन ।। कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट । संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ।।२।। पंचमुख-छमुख-भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो । बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ।। जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो । दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ।।३।। भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन- अनुमानि सिसु-केलि कियो फेरफार सो । पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रम को न भ्रम, कपि बालक बिहार सो ।। कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो। बल कैंधौं बीर-रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो ।।४।। भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो । कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ।। बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूँतें घाटि नभतल भो । नाई-नाई माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ।।५ गो-पद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो । द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ।। संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो । साहसी समत्थ तुलसी को नाह जाकी बाँह, लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो ।।६ कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो । जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बास तिमि तोमनि को थल भो ।। कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल ...