हरि सिंह नलवा से मुसलमान क्यों डरते थे

  1. एक बहादुर सिपाही हरि सिंह नलवा
  2. Hari Singh Nalwa Commander under Maharaja Ranjit Singh
  3. हरि सिंह नलवा और उनकी दो समाधियां
  4. सरदार हरि सिंह नलवा ,वो महान योद्धा जिनके नाम से थर थर कांपते थे मुग़ल, शौर्यगाथा
  5. हरि सिंह नलवा
  6. हरि सिंह नलवा.... जिनके डर से पठान आज भी स्त्रियों के वस्त्र पहनते हैं...
  7. हरि सिंह नलवा कौन थे?जिसके डर से आज भी पठान सलवार पहनते हैं


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एक बहादुर सिपाही हरि सिंह नलवा

भारत देश हमेशा से ही वीर-बहादुर लोगों का घर रहा है. कहते हैं कि यहाँ की मिट्टी में ही कुछ ऐसा अनोखा है कि यहाँ खराब से खराब स्थिति में भी बहादुर जन्म लेते हैं. आज हम आपके सामने एक ऐसे ही वीर योद्धा की कहानी लेकर आये हैं. बात उन दिनों की है जब अफगान से आने वाले शासकों के पूरा भारत डरता था. लेकिन सरदार हरि सिंह नलवा ने पूरे अफगानिस्तान को ही हिला कर रख दिया था. पठान और अफगानी लोग तो इनके यहाँ पर नौकरी किया करते थे. इतिहासकार और लेखक डॉ. सतीश चन्द्र मित्तल अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि हरि सिंह नलवा का जन्म 1791 ई. में अविभाजित पंजाब के गुजरांवाला में हुआ था. 1805 ई. के वसंतोत्सव पर एक प्रतिभा खोज प्रतियोगिता में, जिसे महाराजा रणजीत सिंह ने आयोजित किया था, हरिसिंह नलवा ने भाला चलाने, तीर चलाने तथा अन्य प्रतियोगिताओं में अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया. इससे प्रभावित होकर महाराजा रणजीत सिंह ने उन्हें अपनी सेना में भर्ती कर लिया था. शीघ्र ही वे महाराजा रणजीत सिंह के विश्वासपात्र सेना नायकों में से एक बन गये थे. एक बार शिकार के समय महाराजा रणजीत सिंह पर अचानक एक शेर के आक्रमण कर दिया, तब हरि सिंह ने उनकी रक्षा की थी, तो इनका नाम सरदार हरि सिंह नलवा रख दिया गया था. जब महाराजा रणजीत सिंह ने सरदार हरि सिंह को अपना सेनाध्यक्ष चुना तो उसके बाद से राजा की सल्तनत देखते ही देखते बढ़ने लगी. ना जाने क्यों हरि सिंह को देश के बाहर जाकर साम्राज्य स्थापित करने की पड़ी थी. प्रारंभ में तो सभी महाराजा रणजीत सिंह को बोलते थे कि वह हरि सिंह को रोकें किन्तु एक समय बाद इन्होनें अपनी जीत से सभी का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दिया. जब अफगान को जीत लिया इस योद्धा ने ऐसा बोला जाता है कि तब अफगान की तरफ आँख ...

Hari Singh Nalwa Commander under Maharaja Ranjit Singh

हरि सिंह नलवा का जन्म 28 अप्रैल 1791 में हुआ था. 14 साल की उम्र में वो महाराजा रणजीत सिंह से मिले और आगे जाकर खालसा सेना के कमांडर बन गए. अपनी जिंदगी में उन्होंने 20 से ज्यादा लड़ाइयों में खालसा सेना को लीड किया. और 1813 में अटक, 1814 में कश्मीर, 1816 में महमूदकोट, 1818 में मुल्तान, 1822 में मनकेरा, 1823 में नौशहरा को सिख साम्राज्य में मिलाया. साल 1837. मार्च का महीना. बसंत बीते महीना हो चुका है. लेकिन लाहौर की धरती लाल-पीली हुई जा रही है. महाराजा रणजीत सिंह के पौत्र नौ निहाल सिंह की शादी है. मौका शादी का है लेकिन जब आप गद्दी पर बैठे हो तो हर मौका पॉलिटिक्स से तारी हो ही जाता है. पूरे पंजाब से सिख सेना को लाहौर बुलाया गया है. एक खास मेहमान के सामने शक्ति प्रदर्शन के लिए. अंग्रेज़ बहादुर आए हैं. महाराजा के खास निमंत्रण पर. इतना ही नहीं काबुल से अमीर दोस्त मुहम्मद खान को भी न्योता भेजा गया है. पूरा लाहौर सजाया गया है, बड़े-बड़े लोग आए हैं. लेकिन फिर भी एक कमी सी है. सिख सेना के कमांडर बाघमार, हरि सिंह नलवा को अमृतसर में होना था. लेकिन ऐन मौके पर उनकी तबीयत ख़राब हो गई. सो वो नहीं आ पाए. कुछ रोज़ में पता चलता है कि असली वजह कुछ और है. लाहौर में मेहमान नवाजी का लुत्फ़ उठा रहे दोस्त मुहम्मद ने पीछे से पूरी बारात भेजी है. उनके पांच बेटे काबुल से पूरी फौज लेकर जमरूद यानी अफ़ग़ानिस्तान के बॉर्डर तक आ पहुंचे हैं. 25 हजार की अफ़ग़ान फौज पूरी तरह से जमरूद के किले को घेर लेती है. दोस्त मुहम्मद का फरमान है. पंजाब के बागों को सिखों से खाली करना है. लेकिन मंजिल के बीच में खड़ा है एक इंसान. रंग हरा हरि सिंह नलवे से आज के ही दिन यानी 28 अप्रैल 1791 को गुजरांवाला में हरि सिंह का जन्म हुआ था. साल 1967 म...

हरि सिंह नलवा और उनकी दो समाधियां

शेर-ए-पंजाब इतने बड़े साम्राज्य की वृद्धि और सफलता में एक शख्स का नाम अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जिन्होंने सिख साम्राज्य को ऊंचाइयों तक पहुँचाया। सन् 1791 में जन्में हरि सिंह नलवा सिख ख़ालसा फौज के कमांडर-इन-चीफ थे, जिनके नेतृत्व में सिख साम्राज्य ने एक के बाद कई युद्ध जीते और सिख साम्राज्य को नई बुलंदियों तक पहुंचाया। हरि सिंह नलवा, महाराजा रणजीत सिंह के साथ उनका तमाम जीवन सैन्य उपलब्धियों से भरा हुआ था, जो जमरौद के निर्णायक युद्ध में, उनके शहीद होने तक जारी रहा। जब भी कहीं सरदार नलवा की शहादत का ज़िक्र होता है, तो उनकी अंतिम यादगार के तौर पर हमेशा पाकिस्तान के मौजूदा प्रांत ख़ैबर पख्तुनखवा के जमरौद किले में मौजूद उनकी समाधि के बारे में ही बात की जाती है। जबकि उसी दौरान उनके परिवारिक सदस्यों द्वारा उनकी गुजरांवाला शहर वाली हवेली में निर्मित उनकी दूसरी समाधि के बारे में कभी बात नहीं की जाती। मानो इतिहास ने भी सरदार नलवा की इस दूसरी समाधि के अस्तित्व और पहचान को भुला-सा दिया है। एक योद्धा नेता हरि सिंह नलवा के सैन्य जीवन की शुरुआत 14 साल की उम्र में सन् 1804 में महाराजा रणजीत सिंह के निजी रक्षक या सहायक के रुप में हुई थी। बहुत जल्द ही उन्होंने तरक्की की और रेजीमेंटल जनरल बन गए। उन्होंने कसूर, सियालकोट, अटक, मुल्तान और कश्मीर जैसे कई युद्ध जीते और सन् 1819 में वे पूरी सेना के कमांडर-इन-चीफ बन गए। सन् 1821 में उन्हें कश्मीर का सूबेदार (गवर्नर) बना दिया गया, जो कुछ ही समय पहले जीता गया था। वे अगले दो साल तक इस पद पर बने रहे। *Terms and Conditions सन् 1822 में उन्हें साम्राज्य के पूर्वी सीमांत प्रांतों की देखरेख के लिए कश्मीर से बुलवा लिया गया। सिख साम्राज्य के पूर्वी सीमांत प्रांतों ...

सरदार हरि सिंह नलवा ,वो महान योद्धा जिनके नाम से थर थर कांपते थे मुग़ल, शौर्यगाथा

वीरों को जन्म देने वाली इस भारत भूमि की गाथा कौन नही जानता , इसने हमेशा ऐसे ऐसे वीर राजाओं और योद्धाओं को जन्म दिया है जिन्होंने इस मिटटी की आन बान और शान के लिए ना केवल अपना पूरा जीवन कुर्बान किया बल्कि भारत विरोधियों के लिए भी हमेशा काल के रूप बनकर रहे | भारत शेरों की तपोस्थली रही है यहाँ एक से बढ़कर एक वीरों ने जन्म लिया है। भारतीय रणबाकुरों ने वीरता के अदम्य साहस के ऐसे ऐसे उदाहरण पेश किये कि जिनको देखकर दुश्मनों ने दांतों तले उगुलियाँ दबा ली। आज हम आपको एक ऐसे ही एक महान योद्धा के विषय में जानकारी दे जिसने अपनी तलवार की धार से वीरता के नए आयाम स्थापित किये थे। Page Contents • • • • वीर योद्धा “सरदार हरि सिंह नलवा” के इतिहास के महत्वपूर्ण परिचय…. सरदार हरि सिंह (1791-1837), महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष थे जिसने पठानों से साथ कई लड़ाईयों का नेतृत्व किया। सिख फौज के सबसे बड़े जनरल हरि सिंह नलवा ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर अपना लौहा मनवाया। यही नहीं, काबुल पर भी सेना चढ़ाकर जीत दर्ज की। खैबर दर्रे से होने वाले अफ़ग़ान आक्रमणों से देश को मुक्त किया। 1837 में जमरौद की जंग में लड़ते हुए मारे गए। नोशेरा के युद्ध में स. हरि सिंह नलवा ने महाराजा रणजीत सिंह की सेना का कुशल नेतृत्व किया था। रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना भारत के श्रेष्ठ सेनानायकों से की जा सकती है। सरदार हरि सिंह नलवा का इतिहास राजा रणजीत सिंह ने सरदार हरि सिंह नलवा के जैसे शौर्य पराक्रम और कुशल सेना नायक के बल बूते पर मुगल साम्राज्य के बीच उस भाग में अपने स्वतंत्र साम्राज्य की स्थापना की जहाँ पर विदेशी आक्रमणकारियों जब तब हमला करते रहते थे | अपने जीवनकाल में सरदार हरि सिंह नलवा इन क्रूर...

हरि सिंह नलवा

पूरा नाम सरदार हरि सिंह नलवा जन्म जन्म भूमि गुजरांवाला, मृत्यु तिथि मृत्यु स्थान जमरूद (अब पिता/माता गुरदयाल सिंह और धर्मा कौर उपाधि 'सरदार' धार्मिक मान्यता प्रसिद्धि युद्ध मुल्तान युद्ध, जमरौद युद्ध, नोशेरा युद्ध अन्य जानकारी एक दिन शिकार के समय जब महाराजा रणजीत सिंह पर अचानक सरदार हरि सिंह नलवा ( Hari Singh Nalwa, जन्म- जीवन परिचय हरि सिंह नलवा का जन्म 1791 में रणजीत सिंह के सेना नायक हरि सिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह के विजय अभियान तथा सीमा विस्तार के प्रमुख नायकों में से एक थे। दृढ़ता और इच्छाशक्ति ऐसा कहा जाता है कि एक बार हरि सिंह नलवा ने पेशावर में वर्षा होने पर अपने किले से देखा कि अनेक अफ़ग़ान अपने-अपने मकानों की छतों को ठोक तथा पीट रहे हैं, क्योंकि छतों की वीरगति हरि सिंह ने अफ़ग़ानिस्तान से रक्षा के लिए जमरूद में एक मजबूत किले का भी निर्माण कराया। यह मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए मौत का कुआं साबित हुआ। अफ़ग़ानों ने पेशावर पर अपना अधिकार करने के लिए बार-बार आक्रमण किये। विशेष योगदान सरदार हरि सिंह नलवा का श्रेष्ठतम सिख योद्धा सरदार हरि सिंह नलवा का नाम श्रेष्ठतम सिक्खी योद्धाओं की गिनती में आता है। वह महाराजा रणजीत सिंह की सिख फौज के सबसे बड़े जनरल (सेनाध्यक्ष) थे। महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य (1799-1849) को 'सरकार खालसाजी' के नाम से भी निर्दिष्ट किया जाता था। सिख साम्राज्य, पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · ...

हरि सिंह नलवा.... जिनके डर से पठान आज भी स्त्रियों के वस्त्र पहनते हैं...

हरि सिंह नलवा…. जिनके डर से पठान आज भी स्त्रियों के वस्त्र , जिसे आज पठानी सूट कहा जाता है वो दरअसल स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाला सलवार कमीज है ! (ये लेख उन सभी के लिए उपयोगी है जो इतिहास और फैशन डिजाइनिंग में रुचि रखते हैं ) • एक बार की बात है दिल्ली के हिंदी भवन में आचार्य धर्मेंद्र जी महाराज का भाषण होने वाला था । मुझे उनके भाषण बहुत पसंद हैं । संयोग से मैं उस वक्त दिल्ली में ही था तो मैं भी हिंदी भवन चला गया । -उसी मंच पर एक वयोवृद्ध सरदार जी ने भाषण दिया… उनकी उम्र 80 साल से ज्यादा थी… और उन्होंने कड़क कर बिजली के समान ध्वनि के साथ कहा… अरे इन कन्वर्टेड मुसल्लों की औकात क्या है ? हमारे पूर्वज हरि सिंह नलवा ने पठानों को सलवार पहना दी… आज भी सिखों के डर से पठान सलवार पहनते हैं… इस बात पर मंच से खूब तालियां बजीं… भाषण बहुत अच्छा था… लेकिन मेरा दिमाग इस बयान की ऐतिहासिक सत्यता और प्रमाण तलाश करने में लग गया । • अभी कुछ दिनों से एक पोस्ट भी सोशल मीडिया पर वायरल थी जिसमें ये बताया गया था कि हरि सिंह नलवा के डर से पठानों ने पंजाबी महिलाओं की सलवार पहनना शुरू कर दिया था । लेकिन इस पोस्ट में भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं दिया गया था । आखिरकार मैंने अपनी रिसर्च शुरू की जिसमें मुझे इस संबंध में कई महत्वपूर्ण तथ्य मिले हैं । • आज से 10 साल पहले पठानों के प्रभाव वाले आतंकवादी संगठन तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने खैबर पख्तूनवां, पेशावर, फाटा के पाकिस्तानी इलाकों में अपनी प्रभुत्व कायम कर लिया था । तब इस आतंकवादी संगठन ने सारे पठानों के लिए एक ड्रेस कोड लागू कर दिया था… और वो ड्रेस कोड ये था कि सभी पठानों को पठानी सूट… यानी सलवार कमीज पहननी होगी… उस वक्त पाकिस्तान की स्वात रियासत के क्...

हरि सिंह नलवा कौन थे?जिसके डर से आज भी पठान सलवार पहनते हैं

यह दिल्ली के हिंदी भवन में आचार्य धर्मेंद्र जी महाराज का भाषण था। बूढ़े सरदार जी का एक भाषण बिजली की तरह आवाज के साथ रोया, “हमारे पूर्वज हरि सिंह नलवा ने पठानों को सलवार पहना था। आज भी पठान सिखों के डर से सलवार पहनते हैं।” इस मामले पर मंच से खूब तालियां बटोरीं. भाषण बहुत अच्छा था, लेकिन मेरा मन इस कथन के ऐतिहासिक सत्य और प्रमाण की तलाश में गया। पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी वायरल हुआ था जिसमें बताया गया था कि हरि सिंह नलवा के डर से पठानों ने पंजाबी महिलाओं की सलवार पहननी शुरू कर दी थी। लेकिन इस पोस्ट में भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं दिया गया है। आखिरकार मैंने अपना शोध शुरू किया जिसमें मुझे इस संबंध में कई महत्वपूर्ण तथ्य मिले हैं। आज से दस साल पहले, तहरीके तालिबान पाकिस्तान, पठानों के प्रभाव से एक आतंकवादी संगठन, ने खैबर पख्तूनवान, पेशावर, फाटा के पाकिस्तानी क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। तब इस आतंकी संगठन ने सभी पठानों के लिए एक ड्रेस कोड लागू किया था… और वह ड्रेस कोड था कि सभी पठानों को पठानी सूट पहनना होता है… यानी सलवार कमीज… उस समय पाकिस्तान की स्वात रियासत का ताज . प्रिंस… पूर्व पाकिस्तानी तानाशाह अयूब खान के दामाद… पाकिस्तान के पूर्व सांसद और बलूचिस्तान के पूर्व गवर्नर मियांगुल औरंगजेब ने एक बहुत ही मशहूर बयान दिया था। मियांगुल औरंगजेब ने तालिबानी ड्रेस कोड की निंदा की थी और कहा था कि तालिबान को अपने इतिहास के बारे में कोई जानकारी नहीं है, वास्तव में तालिबान जो ड्रेस कोड लागू कर रहा है वह पठानों का सही ड्रेस कोड नहीं है… यह ड्रेस कोड सलवार है। कमीज हरि सिंह नलवा की तलवार के डर से पठान पुरुषों ने पहनी थी… और स्वेच्छा से नहीं। उस समय मि...