हरसिद्धि माता की कहानी

  1. हरसिद्धि माता मंदिर से हारी थी औरंगजेब की सेना; अछरू माता मंदिर में कुंड दर्शन से पूरी होती है मनोकामना
  2. Harsiddhi Mata Mandir: ‘हरसिद्धि मां’ जिनकी श्री कृष्ण पूजा करते थे, जानें अजब
  3. धरती माता की कहानी
  4. श्री हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर की संपूर्ण जानकारी


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हरसिद्धि माता मंदिर से हारी थी औरंगजेब की सेना; अछरू माता मंदिर में कुंड दर्शन से पूरी होती है मनोकामना

निवाड़ी जिले के पृथ्वीपुर में स्थित अछरू माता मंदिर और ओरछा में विराजमान सिद्धि देवी को लेकर बुंदेलखंड वासियों की विशेष आस्था है। चैत्र नवरात्रि के पर्व पर यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आकर मां के दरबार में मत्था टेकते हैं। दोनों देवियों की अलग-अलग मान्यताएं हैं, अलग-अलग कहानी है। भक्तों की मनोकामना दोनों ही माता पूरी करती हैं। दोनों ही मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराने हैं। कहा जाता है कि यहां देवियां साक्षात विराजमान हैं। चमत्कारिक कुंड आस्था का केंद्र अछरू माता मंदिर पर नौ दिन तक लगने वाले मेले में समूचे बुंदेलखंड से हजारों भक्तों का आना होता हैं। ओरछा से 20 किमी दूर पृथ्वीपुर के पास मां अछरूमात का दरबार भी लगा है, यहां बना कुंड चमत्कारिक होने से लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है। मान्यता है कि मंदिर में आने वाले श्रद्धालु अपनी-अपनी मनोकामना लेकर यहां आते हैं और अपनी झोली भरकर जाते हैं। अछरू माता मंदिर का इतिहास यादव समाज के गोसेवक अछरू से जुड़ा हुआ है, जिन्हें माता रानी ने दर्शन ही दिए, जिसके बाद से आज भी इस मंदिर को अछरू माता के नाम से जाना जाता है। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि लगभग 500 वर्ष पुरानी बात है, अछरू नाम का एक यादव किसान था और उसकी कुछ भैंसें गुम हो गईं थीं, तो उन्हें ढूंढते-ढूंढते लगभग एक महीना हो गया, वो थक हार के एक जगह बैठ गया। प्यास के मारे उनके प्राण निकले जा रहे थे तो देवी मां ने उन्हें एक कुंड में से निकल कर दर्शन दिए और कहा कि इस कुंड में से पानी पी लो। इसके साथ ही माता ने किसान को उसकी भैंसों का पता भी बता दिया। यादव समाज के बंधु करते है देख-रेख अछरू नाम के किसान ने कुंड में से पानी पिया और कुंड की गहराई पता करने के लिए उन्होंने अपनी लाठी कुंड...

Harsiddhi Mata Mandir: ‘हरसिद्धि मां’ जिनकी श्री कृष्ण पूजा करते थे, जानें अजब

भगवान शिव से वरदान प्राप्त कर जब शंखासुर लोगों पर अन्याय करने लगा तब द्वारकापुर के निवासी द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण की शरण में आए। उन्होंने शंखासुर से बचाने की प्रार्थना की। श्री कृष्ण को मालूम था कि जब-जब असुरों का त्रास बढ़ा उस समय माता जी ने उन्हें खत्म किया। श्री कृष्ण ने अपनी सभी पटरानियों के साथ अपनी कुलदेवी ‘हरसिद्धि मां’ की विधिवत पूजा की। मां प्रसन्न होकर बोली- क्या वरदान चाहते हो। श्री कृष्ण ने कहा कि मां मुझे शंखासुर का वध करना है। वह लोगों पर अत्याचार कर समुद्र पार चला जाता है। 1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें Rahu Ketu Transit 2023-24:18 महीने के लिए होने जा रहा है राहु-केतु का गोचर जानें, कन्या राशि का हाल • Guru Pradosh: शत्रु को अपना मित्र बनाने के लिए आज करें यह आसान उपाय मां ने कहा- ठीक है तुम अपनी सेना लेकर आओ। मैं तुम्हारे बल्लम पर कोयल बन कर बैठूंगी। श्री कृष्ण अपने 56 करोड़ यादवों के साथ समुद्र किनारे पहुंचे। मां हरसिद्धि देवी कोयल का रूप लेकर श्री कृष्ण के बल्लम पर बैठ गई। मां की कृपा से सारी सेना समुद्र पार हुई। श्री कृष्ण ने शंखासुर का वध किया। द्वारका पुरी से 14 किलोमीटर दूर सौराष्ट्र के ओखा मंडल में मिलनपुर (मियाणी) गांव है, जहां श्री कृष्ण की कुलदेवी हरसिद्धि माता का मंदिर है। जिस जगह मां कोयल का रूप पकड़ कर श्री कृष्ण के बल्लम पर बैठी थी, उसे कोपला कहा जाता है। समुद्र के किनारे कोपला पहाड़ी पर हरसिद्धि मां का मंदिर है। कहते हैं जब भी किसी विदेशी आक्रांता का जहाज हिन्दुस्तान पर हमला करने के लिए वहां से गुजरता तो देवी उसे समुद्र में डुब...

धरती माता की कहानी

नमस्कार दोस्तों, कहानी की श्रृंखला में आज हम आपको धरती माता की कहानी के विषय मे विस्तार से बताएंगे कि कैसे एक भाई अपनी ही बहन से विवाह करने की योजना बना लेता है, जिसके बाद जो अनर्थ होता है। आप इस कहानी को अंत तक जरूर पढ़कर जानिए। बहुत समय पहले एक बहुत ही पुराना गांव था। उस गांव में एक महिला रहा करती थी, वह महिला बहुत गरीब थी। वह बहुत ही मुश्किलों से अपने घर का लालन पोषण किया करती थी। उस महिला के एक लड़का और एक लड़की थी। महिला अपने बच्चों से बहुत प्रेम किया करती थी। उसने अपने बच्चों की हर जरूरतों को पूरा करने के लिए वह बहुत मेहनत किया करती थी। उसके बच्चे भी अपनी मां से बहुत प्यार करते थे। धीरे-धीरे वक्त बीतता गया और उस महिला के दोनों बच्चे बड़े हो गए। वह महिला भी वक्त के साथ-साथ बुजुर्ग हो गई। तभी एक दिन उस महिला ने अपने बेटे से कहा कि बेटा तुम्हारी बहन की उम्र शादी करने की हो गई है। अब तुम कोई अच्छा सा लड़का जिसका परिवार अच्छा हो, ढूंढ कर अपनी बहन का विवाह कर दो। पर एक बात याद रहे वहीँ एकदम तुम्हारी तरह हो। ऐसे तुम अपनी बहन को खूब प्यार करते हो वैसे वह भी तुम्हारे जैसा होना चाहिए। उसी को अपनी बहन के लिए ढूंढना और यह तुम मुझसे वादा करो कि तुम मेरे बताए हुए ही लड़की से अपनी बहन का विवाह करवाओगे। उस महिला के बेटे ने अपनी मां से वादा किया कि मैं आपके बताए हुए हर एक चीज का पालन करूंगा। जिसके बाद वह लड़का अपनी बहन के लिए वर ढूंढने के लिए निकल पड़ा। कई दिनों तक उसने लड़के की तलाश की, लेकिन उसको कोई लड़का नहीं मिला जैसा उसकी मां ने उससे बोला था। एक दिन मां की तबीयत अचानक से ज्यादा बिगड़ जाने के कारण उसकी मां का निधन हो गया। अपनी मां का अंतिम संस्कार खूब धूमधाम से और पूरे रीति-रिवा...

श्री हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर की संपूर्ण जानकारी

श्री हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर, माता सती के 52 शक्तिपीठों में 13वां शक्तिपीठ कहलाता है। कहा जाता है कि यहां माता सती के शरीर में से बायें हाथ की कोहनी के रूप में 13वां टुकड़ा मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित भैरव पर्वत नामक इस स्थान पर गिरा था। लेकिन कुछ विद्वानों का मत है कि गुजरात में द्वारका के निकट गिरनार पर्वत के पास जो हर्षद या हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर है वही वास्तविक शक्तिपीठ है। जबकि उज्जैन के इस मंदिर के विषय में कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य स्वयं माता हरसिद्धि को गुजरात से यहां लाये थे। अतः दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित शिप्रा नदी के रामघाट के नजदीक भैरव पर्वत पर स्थित श्री हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर प्राचीन रूद्रसागर के किनारे स्थित है। कहा जाता है कि कभी यह पानी से लबालब भरा रहता था ओर इसमें कमल के फूलों की बहार हुआ करती थी और कमल के वही फूल माता के चरणों में अर्पित किये जाते थे। हालांकि रूद्रासगर आज सरकारों की अनदेखी के चलते एक नाममात्र का ही सागर रह गया है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग व हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर श्रद्धालुओं के लिए ऊर्जा का बहुत बड़ा स्त्रोत माना जाता है। इसलिए यह पवित्र स्थान बारहों मास तपस्वियों और भक्तों की भीड़ से भरा रहता है। यहां हरसिद्धि माता के इस शक्तिपीठ मंदिर की पूर्व दिशा में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर एवं पश्चिम दिशा में शिप्रा नदी के रामघाट हैं। हरसिद्धि माता को ‘मांगल-चाण्डिकी’ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि माता हरसिद्धि की साधना करने से सभी प्रकार की दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। राजा विक्रमादित्य जो अपनी बुद्धि, पराक्रम और उदारता के लिए जाने जाते थे इन्हीं देवी की आर...