जाहरवीर बाबा का इतिहास

  1. जाहरवीर गोगा जी की कहानी। Jaharveer Goga Ji Ki Kahani. – HIND IP
  2. जाहरवीर बाबा का इतिहास और कहानी
  3. जाहरवीर गोगा जी मंदिर के दर्शन और इसके पर्यटन स्थल की पूरी जानकारी
  4. गोगाजी मंदिर
  5. काशी विश्वनाथ मन्दिर
  6. Jaharveer Baba 39 s procession came out on a silver horse


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जाहरवीर गोगा जी की कहानी। Jaharveer Goga Ji Ki Kahani. – HIND IP

जाहरवीर गोगा जी की कहानी। जाहरवीर गोगा जी के माता पिता जेवर जी व बाछल दे के कोई संतान नहीं थी। इस किस बात को लेकर वह दोनों बहुत चिंतित रहते थे। एक दिन जब वह गुरु गोरखनाथ जी से मिले और उन्होंने गुरु गोरखनाथ को उनके निसंतान होने की बात कही गोरखनाथ जी उनकी श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद और एक फल दिया जिसे गूगल फल करते हैं और कहा कि आपको जल्द ही एक संतान की प्राप्ति होगी उस गूगल फल के खाने के 9 महीने बाद गोगा जी का जन्म हुआ गूगल फल के कारण ही उनका नाम गोगाजी रखा गया था। गोगाजी का विवाह कैमल दे के साथ हुआ एक दिन सर्प के काटने से कैमल दे की मृत्यु हो गई इस वजह से गोगा जी बहुत अधिक क्रोधित हुए। उन्होंने सभी सांपो को मारने का निश्चय कर लिया। और सर्पों को मारने के लिए यज्ञ करने लगे। उनके यज्ञ करने से सभी देवता घबराने लगे और सोचने लगे कि इस प्रकार तो पृथ्वी से सभी सांपो का अंत हो जाएगा। तभी नारद मुनि भगवान शनिदेव और इंद्र के साथ गोगाजी के पास आए और उन्होंने यज्ञ को रोकने की विनती की और उन्होंने गोगा जी की पत्नी के कैमल दे को जीवनदान दिया और साथ ही यह वरदान भी दिया कि किसी भी व्यक्ति को यदि सांप काट लेता है तो आपके थान पर आने से उसका इलाज हो जाएगा। तभी से जाहरवीर गोगा जी को सांपों का देवता के रूप में जाना जाने लगा। गोगाजी और महमूद गजनवी के मध्य युद्ध गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) गजनी के शासक महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया जब वह गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अपार धन संपदा लूट कर वापस गजनी जा रहा था। तो उसने धन को ले जाने के लिए गोगाजी की गाये चुरा ली जब गोगा जी को यह बात पता चली तो उसने अपने 47 भतीजे और 60 पुत्रों के साथ गजनवी से युद्ध किया। गोगाजी ...

जाहरवीर बाबा का इतिहास और कहानी

अनुक्रम • • • • • जाहरवीर बाबा का इतिहास / बाबा जाहरवीर की कहानी जाहरवीर बाबा जो की राजस्थान में गोगा जी के नाम से प्रसिद्ध है. और लोकदेवता के रूप में उन्हें पूजा जाता हैं. लोग उन्हें जाहरवीर बाबा, गोगाजी, गुग्गा वीर, राजा मंडलिक आदि नामों से भी जानते हैं. गुजरात में रबारी समाज के लोग जाहरवीर बाबा को गोगा महाराज के नाम से बुलाते हैं. जाहरवीर बाबा का जन्म राजस्थान के चुरू के ददरेवा गाँव में चौहान वंश के शासक जेंवरसिंह की पत्नी बाछल के गर्भ से हुआ था. गोगाजी का जन्म गोरखनाथजी के वरदान से हुआ था. गुरु गोरखनाथजी गोगाजी के गुरु थे. गोगाजी का जन्म पृथ्वीराज चौहान के वंश में हुआ था. चौहान वंश में पृथ्वीराज चौहान के बाद सबसे अधिक ख्याति पाने वाले राजा गोगाजी ही थे. जाहरवीर बाबा अपने समय में सतलुज से हांसी (हरियाणा) तक के राज्य के राजा थे. आज के समय में गोगाजी को हिंदू तथा मुसलमान दोनों संप्रदाय के लोग पूजते हैं. राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में मौजूद गोगामेडी नामक शहर हैं. वहां हर साल भादों कृष्णपक्ष नवमी के दिन गोगाजी महाराज का मेला लगता हैं. जहां लाखो की संख्या में भक्त गोगाजी महाराज के दर्शन करने के लिए आते हैं. लोकमान्यता और लोककथाओं के अनुसार गोगाजी महाराज को सांपों के देवता के रूप पूजा जाता हैं. इसकी कहानी इस आर्टिकल में हम आगे बताने वाले हैं. तिल किस कमी से होते है / शरीर पर तिल के फायदे / काला तिल कैसे हटाए जाहरवीर बाबा का जन्म कब और कहा हुआ जाहरवीर बाबा का जन्म विक्रम संवत 1003 में हुआ था. उनका जन्म राजस्थान के चुरू के ददरेवा गाँव में हुआ था. उनका जन्म चौहानवंश में हुआ था. उनकी माता का नाम बाछल देवी तथा पिता का नाम जेंवरसिंह था. जाहरवीर बाबा का जन्म गोरखनाथजी के वरदान से हुआ...

जाहरवीर गोगा जी मंदिर के दर्शन और इसके पर्यटन स्थल की पूरी जानकारी

5/5 - (2 votes) Jahar Veer Gogaji Temple In Hindi : गोगाजी का मंदिर मेले के दौरान भक्तों को मंदिर में गोगाजी महाराज के दर्शन करने के लिए लंबी लाइनों में लंबा इंतजार करना पड़ता है। कई कथाओं के अनुसार गोगा जी को सापों का देवता भी कहा जाता है और आज भी यह माना जाता है कि अगर किसी सांप के द्वारा काटे गए व्यक्ति को यहां लाया जाता है तो वह सांप के जहर से मुक्त हो जाता है। बता दें कि लोग गोगा जी को जाहर पीर, गोगाजी चौहान, गुग्गा और जाहिर वीर के नाम से भी जानते हैं। अगर आप गोगा जी मंदिर के बारे में अन्य जानकारी चाहते हैं तो इस लेख को जरुर पढ़ें, जिसमे हम आपको गोगाजी मंदिर और इसके पास के पर्यटन स्थलों के बारे में पूरी जानकारी देने जा रहें हैं – 1. गोगाजी मंदिर की कहानी और धार्मिक महत्व – Gogaji Temple Story In Hindi Image Credit: Lalit Bhardwaj श्री गोगाजी के बारे में ऐसा कहा जाता था कि वे गोरखनाथ जी के परम शिष्य थे। नाथ पंथ में नौ सिद्ध पंथ हैं, उनमें से सबसे प्रमुख श्री गोरख नाथ हैं जो एक कुशल योगी थे। इस स्थान पर श्री गोरखनाथ की पूजा की जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि श्री गोगाजी इस स्थान पर श्री गोरखनाथ जी से मिले से और उनके शिष्य बन गए। गोरख नाथ जी ने उन्हें यहाँ आध्यात्मिक शिक्षा दी थी। श्री गोरख नाथ मंदिर इस स्थान से पश्चिम की ओर केवल 3 किलोमीटर दूर है। 2. जाहरवीर गोगा जी का संपूर्ण इतिहास – Jahar Veer Goga Ji History In Hindi Image Credit: Ajay Kumar गोगाजी का जन्म राजस्थान के चुरू जिले में चौहान राजा ज़ेवर और रानी बाछल के घर हुआ था। माना जाता है कि गोगाजी का जन्म समय लगभग 900 ईस्वी का है। उन्होंने अपना बचपन अपने जन्म स्थल पर ही बिताया था। पौराणिक कथाओं की माने तो रानी बाछल ने...

गोगाजी मंदिर

महत्वपूर्ण जानकारी • Location: Shri Goraknath Teela, Gorkhana, Tehsil Nohar, District Hanumangarh. • Temple Open and Close Timing: • 05:00 am to 10:00 pm. • In special days visiting times can be changed. • Nearest Railway Station: Gogamedi Railway station at a distance of nearly 3 kilometres from Gogaji Temple. • Nearest Airport:Jaipur Airport at a distance of nearly 350 kilometres from Gogaji Temple. • Primary deity: Gogaji. • District: Hanumangarh • Did you know:The temple is believed to be nearly 950 years old. गोगाजी जी का यह मंदिर राजस्थान के लोकप्रियों मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के प्रमुख देवता गोगाजी महाराज है जिन्हें जाहरवीर गोगाजी के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष यहां भादव शुक्लपक्ष की नवमी को मेले का आयोजन किया जाता है जिसको ‘गोगाजी मेला’ नाम से जाना जाता है। यह मंदिर गोगामेड़ी शहर, जिला हनुमानगढ़, राजस्थान, भारत में स्थिति है। गोगा महाराज को सभी धर्मो के लोगों द्वारा पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गोगाजी गुरुगोरखनाथ जी के परम शिष्य थे। नाथ पंथ में नौ सिद्ध हैं, उनमें से सबसे प्रमुख श्री गोरख नाथ हैं जो एक कुशल योगी थे। यह स्थान श्री गोरख नाथ के भक्ति की जगह कहा जाता है जहां उनकी अग्निशाला (धूना) आज भी मौजूद है। यह भी माना जाता है कि श्री गोगाजी श्री गोरख नाथजी से यहां मिले थे और उनके प्रमुख शिष्य बने थे। गोरख नाथजी ने उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा और निर्देश दिए। गोगाजी का मंदिर केवल 3 किलोमीटर दूर है दूर इस जगह से पश्चिम की ओर। इस मंदिर में भगवान शिव और उनके परिवार के साथ भैरवजी और देवी की मूर्ति पूजा की जाती है। गोरख नाथजी की ‘धूना’ आज की पूजा का भाग म...

काशी विश्वनाथ मन्दिर

मुख्य लेख: कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है। जब देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं जहां उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था. देवी पार्वती ने एक दिन भगवना शिव से उन्हें अपने घर ले जाने के लिए कहा. भगवान शिव ने देवी पार्वती की बात मानकर उन्हें काशी लेकर आए और यहां विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया. जिसका जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में धारणा [ ] इस संदूक को: देखें • संवाद • संपादन सम्बन्धित विकिमीडिया कॉमन्स पर परम्परा [ ] धर्म नगरी काशी और सबसे बड़ी बात की आदि देव शंकर की बसायी नगर काशी में सावन महीने का अलग ही महत्व है। यहां सावन महीने में कांवरियों का सैलाब उमड़ता है। सर्वप्रथम काशी के यदुवंशी (Yadav) "चंद्रवंशी गोप सेवा समिति" अपने प्रिय देव बाबा विश्वनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। ये परंपरा करीब 90 साल पुरानी है। पहली बार इस परंपरा की शुरूआत 1932 में हुई जो अब तक निर्विवाद् रूप से जारी है। पिछले दो वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते चंद्रवंशी गोप सेवा समिति ने सांकेतिक रूप से ही सही पर परंपरा को जीवित रखा और सीमित संख्या में ही बाबा का जलाभिषेक किया। चंद्रवंशी गोप सेवा समिति के प्रदेश अध्यक्ष लालजी यादव बताते हैं कि सन 1932 में पड़े अकाल के समय बाबा विश्वनाथ के जलाभिषेक की परम्परा शुरू हुई थी। तब से अब तक इस परम्परा का निर्वहन निरंतरत जारी है। मान्यता है कि यादव(Ahir) बंधुओं के जलाभिषेक से बाबा प्रसन्न होते हैं फिर वर्षा होती है। पूरा साल धन-धान्य से परिपूर्ण होता है। भारत में वर्ष 1932 में घोर अकाल के दौरान यहां के यदुवंशियों ने बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक किया था। जलाभिषेक होते ही वर्षा शुरू हुई और लगातार तीन दिनों त...

Jaharveer Baba 39 s procession came out on a silver horse

चमेली देवी स्कूल के सामने छल्ला मंदिर से प्रारंभ हुई इस शोभायात्रा में आराध्य जाहरवीर बाबा अपने चांदी के घोड़े पर सवार थे। यात्रा वृंदावन गेट, कच्ची सड़क, लाल दरवाजा, चौक बाजार, मंडी रामदास, डीग गेट होते हुए मसानी स्थित चित्रकूट धाम में पहुंचकर संपन्न हुई। उत्सव में कमेटी संस्थापक ओम प्रकाश भगत, सह संस्थापक राजा राम गर्ग, अध्यक्ष श्यामसुंदर, महामंत्री पवन अग्रवाल, कोषाध्यक्ष सुशील वार्ष्णेय, सचिव गौरव गुप्ता, उपाध्यक्ष प्रिंस गोयल, उपाध्यक्ष प्रिंस अग्रवाल, मंत्री योगेश अग्रवाल, प्रचार मंत्री चंद्र प्रकाश गुप्ता, मीडिया प्रभारी उमेश भदौरिया, संगठन मंत्री पवन अग्रवाल, मेला संयोजक दीपक गोयल, रोहित द्विवेदी, भंडार मंत्री राहुल सिसोदिया, शोभायात्रा संयोजक मनीष अग्रवाल, चंदा संयोजक सौरभ गुप्ता, सलाहकार पुनीत भाई, व्यवस्थापक नंदू पंडित, देवेंद्र गोयल, राजेंद्र ठाकुर, जीतू मित्तल , ललित वार्ष्णेय, मनोज खंडेलवाल , मदन वर्मा , विकास दत्त आदि ने योगदान दिया।