जैविक खेती का विकास

  1. किसानों को जैविक खेती के प्रति किया जागरुक
  2. जैविक खेती (organic farming) क्या होती है और इसके कितने प्रकार होते है?
  3. वंदना शिवा : जैविक खेती से सतत विकास की ‘अगुवा’
  4. Contract agreement for skill development of students
  5. किसानों को जैविक खेती के प्रति किया जागरुक
  6. जैविक खेती (organic farming) क्या होती है और इसके कितने प्रकार होते है?
  7. वंदना शिवा : जैविक खेती से सतत विकास की ‘अगुवा’
  8. Contract agreement for skill development of students


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किसानों को जैविक खेती के प्रति किया जागरुक

इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में अखिल भारतीय जैविक प्रमुख भारतीय किसान संघ के पद्मश्री हुक्म चंद पाटीदर पहुंचे। पद्मश्री हुक्म चंद पाटीदर ने कहा कि जैव विविधता का विघटन चिंतनीय है और इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। अखिल भारतीय बीज प्रमुख कृष्ण मुरारी व अन्य ने कहा कि आज किसान आधुनिक खेती के तौर तरीकों को अपना रहा है और जो रासायनिक छिड़काव किए जा रहे हैं उससे बीमारियां फैल रही हैं व पर्यावरण संतुलन प्रभावित हुआ है। इस मौके संपूर्ण एग्री वैंचर के एमडी इंजीनियर संजीव नागपाल ने बताया कि उनकी ओर से पराली व गोबर को मिक्स करके, स्टरलाइज व डी-कम्पोज द्वारा तैयार की गई खाद को भारत सरकार ने मान्यता दी है। जिससे फसलों की पैदावार तो बढ़ेगी ही साथ ही जीव जंतुओं व मनुष्यों के स्वास्थ्य का भी कोई नुकसान नहीं होगा। इससे धरती में नाइट्रोजन व फासफोरस एवं माइक्रो न्यूट्रिएंट्स जैसे पोषक तत्व और धरती की प्राकृतिक उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। कार्यक्रम के दौरान इंजी. संजीव नागपाल ने कहा कि फाजिल्का में कई जगहों से पानी एकत्रित होकर यहां आता है। यहां का काफी पानी खारा है, जिसके चलते यहां मछली पालन सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है। उन्होंने गांव सुरेशवाला का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर हम सेम प्रभावित क्षेत्रों में मछली पालन करेंगे तो वहां का पानी भाप बनकर ऊपर की ओर उठेगा और जमीनी पानी का लेवल नीचे चला जाएगा। जिससे यह जमीन फिर से अन्य फसलों के लिए लाभदायक बन जाएगी।

जैविक खेती (organic farming) क्या होती है और इसके कितने प्रकार होते है?

हमारा देश शरू से ही कृषि प्रधान देश रहा है। भारतीय अर्थतंत्र व्यवस्था में कृषि क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान है। समय के साथ साथ देश की बढ़ती वस्ती से अनाज और अन्य खाद्य चीज़े की माग भी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है जो मुख्यत: कृषि क्षेत्र से हमें मुहिया होती है।आपकी थाली में जो तरह तरह के पकवान होते है, तरह तरह की सब्जियां होती है सभी कृषि की ही तो देन है! जैविक खेती (organic farming) क्या होती है Table of Contents • • • • • • • आईये हम जैविक खेती से पहले आजेविक खेती क्या होती है उसके बारे में जाने: कृषि उत्पादन बढ़ाने की इस होड़ में “अजैविक खेती” (inorganic farming) के तहत आज की आधुनिक तकनीक, रासायानिक खाद और कीटनाशक दवाईयां के इस्तेमाल से किसानों ने कृषि उत्पादन में काफी अच्छी बढ़ोत्तरी हासिल की है। लेकिन यह रासायानिक खाद और जहरीले कीटनाशक दवाओं की वजह से फसल की गुणवत्ता में काफी गिरावट आयी है। इतना ही नहीं यह कुत्रिम खाद और कीटनाशकों के उपयोग से पर्यावरण का प्रदूषण बढ़ा है। साथ ही साथ मानव प्रजाती के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड रहा है और कई तरह की बीमारियां भी पाई गई है। हमारे देश में आज कल विभिन्न तरीके से खेती की जाती है। और अजैविक खेती के नकारात्मक परिणाम की वजह से कृषि क्षेत्र मे अब “जैविक खेती” ( जैविक खेती क्या होती है: जैविक खेती को हम प्राकृतिक या परंपरागत कृषि प्रणाली भी कह सकते है जो प्रकृति, जानवरो और मनुष्य को नुक़सान पहुंचाये बिना किया जाता है। organic farming मै कोई रासायनिक खाद या कीटनाशक दवाओं का उपयोग नई होता है। इसमें गाय का गोबर-मूत्र,कंपोज खाद,जैविक खाद,वर्मी खाद तथा हरी खाद का उपयोग होता है। जो कि पर्यावरण अनुकूलित एवम् खेती के लिए फायदेमंद है। आईये जानत...

वंदना शिवा : जैविक खेती से सतत विकास की ‘अगुवा’

एक छोटे से बीज से इस पूरी दुनिया का विकास हुआ है। पर ये विकास कब तक रहेगा ये इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी प्रकृति से कोई प्रयोग न किया गया हो। अगर उस नन्हें से बीज में किसी तरह का बदलाव कर दिया जाए जो उसकी प्रकृति के विरुद्ध हो तो उस बीज कि क्या दशा होगी? क्या वह अपने स्वरुप को पाएगा और क्या वह उसी तरह से पनप पाएगा जैसा वह बिना किसी बदलाव के बड़ा होता। यह एक सोचने वाली बात है। असल बात तो यह है कि कई लोग इस विषय पर ध्यान नहीं देते हैं। क्योंकि आधुनिकता से युग ने हमें सतत विकास की तरफ़ सोचना बंद सा करवा दिया है। हरित क्रांति के समय से यह कहा जाने लगा था कि बीजों में बदलाव अगर आएगा तो फसल अच्छी होगी। साथ ही अगर पौधों पर कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाए तो फसल में और भी ज्यादा वृद्धि होगी।हालांकि हुआ इससे उल्टा। इससे फसलों को भारी नुकसान हुआ मगर इस बात पर कई लोगों ने ध्यान नहीं दिया। यह भी हो सकता है कि लोगों ने देखकर भी अनदेखा कर दिया होगा मगर बीजों और फसलों की स्थिति वंदना शिवा हरित योद्धा हैं। वे पर्यावरण को बचाने के लिए अनवरत प्रयास कर रहीं हैं। टाइम मैगज़ीन ने साल 2003 वंदना शिवा का जन्म 5 नवंबर 1952 में भारत में देहरादून की घाटी में हुआ था। अपनी मातृभूमि में शिक्षित होकर उन्होंने कनाडा में स्नातक की पढ़ाई की है। वे गुल्फ से एमए और पश्चिमी ओन्टेरियो विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी कर चुकी हैं।उन्होंने साल 1978 में डॉक्टरी शोध निबंध “हिडेन वैरिएबल्स एंड लोकैलिटी इन क्वान्टम थ्योरी” विषय पर अपनी पीएचडी पूरी की है। वे एक समर्पित पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। वंदना ने नेटिव सीड्स (मूल बीज) को बचाने और जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए साल 1987 में नवधान्य नामक संगठन की स्थापना की...

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एसडी कॉलेज ऑफ कॉमर्स के छात्र-छात्राओं के कौशल विकास के लिए मशरूम कल्टीवेशन एवं जैविक खेती के बारे में विस्तारपूर्वक प्रायोगिक रूप से समझाने के लिए एग्रीजंक्शन सेन्टर, थानाभवन, शामली के साथ अनुबंध करार किया। इस मौके पर डॉ. कटार सिंह बर्मन, प्राचार्य डा. सचिन गोयल, डा. मोनिका रूहेला, डा. महेन्द्र सिंह, डा. बुशरा आकिल, डा. नीरज कुमार, डा. ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, रजत धारीवाल, गौरव बालियान, तनु सिंह, शिखा पाल, वंशिखा गुप्ता रहे।

किसानों को जैविक खेती के प्रति किया जागरुक

इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में अखिल भारतीय जैविक प्रमुख भारतीय किसान संघ के पद्मश्री हुक्म चंद पाटीदर पहुंचे। पद्मश्री हुक्म चंद पाटीदर ने कहा कि जैव विविधता का विघटन चिंतनीय है और इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। अखिल भारतीय बीज प्रमुख कृष्ण मुरारी व अन्य ने कहा कि आज किसान आधुनिक खेती के तौर तरीकों को अपना रहा है और जो रासायनिक छिड़काव किए जा रहे हैं उससे बीमारियां फैल रही हैं व पर्यावरण संतुलन प्रभावित हुआ है। इस मौके संपूर्ण एग्री वैंचर के एमडी इंजीनियर संजीव नागपाल ने बताया कि उनकी ओर से पराली व गोबर को मिक्स करके, स्टरलाइज व डी-कम्पोज द्वारा तैयार की गई खाद को भारत सरकार ने मान्यता दी है। जिससे फसलों की पैदावार तो बढ़ेगी ही साथ ही जीव जंतुओं व मनुष्यों के स्वास्थ्य का भी कोई नुकसान नहीं होगा। इससे धरती में नाइट्रोजन व फासफोरस एवं माइक्रो न्यूट्रिएंट्स जैसे पोषक तत्व और धरती की प्राकृतिक उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। कार्यक्रम के दौरान इंजी. संजीव नागपाल ने कहा कि फाजिल्का में कई जगहों से पानी एकत्रित होकर यहां आता है। यहां का काफी पानी खारा है, जिसके चलते यहां मछली पालन सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है। उन्होंने गांव सुरेशवाला का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर हम सेम प्रभावित क्षेत्रों में मछली पालन करेंगे तो वहां का पानी भाप बनकर ऊपर की ओर उठेगा और जमीनी पानी का लेवल नीचे चला जाएगा। जिससे यह जमीन फिर से अन्य फसलों के लिए लाभदायक बन जाएगी।

जैविक खेती (organic farming) क्या होती है और इसके कितने प्रकार होते है?

हमारा देश शरू से ही कृषि प्रधान देश रहा है। भारतीय अर्थतंत्र व्यवस्था में कृषि क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान है। समय के साथ साथ देश की बढ़ती वस्ती से अनाज और अन्य खाद्य चीज़े की माग भी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है जो मुख्यत: कृषि क्षेत्र से हमें मुहिया होती है।आपकी थाली में जो तरह तरह के पकवान होते है, तरह तरह की सब्जियां होती है सभी कृषि की ही तो देन है! जैविक खेती (organic farming) क्या होती है Table of Contents • • • • • • • आईये हम जैविक खेती से पहले आजेविक खेती क्या होती है उसके बारे में जाने: कृषि उत्पादन बढ़ाने की इस होड़ में “अजैविक खेती” (inorganic farming) के तहत आज की आधुनिक तकनीक, रासायानिक खाद और कीटनाशक दवाईयां के इस्तेमाल से किसानों ने कृषि उत्पादन में काफी अच्छी बढ़ोत्तरी हासिल की है। लेकिन यह रासायानिक खाद और जहरीले कीटनाशक दवाओं की वजह से फसल की गुणवत्ता में काफी गिरावट आयी है। इतना ही नहीं यह कुत्रिम खाद और कीटनाशकों के उपयोग से पर्यावरण का प्रदूषण बढ़ा है। साथ ही साथ मानव प्रजाती के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड रहा है और कई तरह की बीमारियां भी पाई गई है। हमारे देश में आज कल विभिन्न तरीके से खेती की जाती है। और अजैविक खेती के नकारात्मक परिणाम की वजह से कृषि क्षेत्र मे अब “जैविक खेती” ( जैविक खेती क्या होती है: जैविक खेती को हम प्राकृतिक या परंपरागत कृषि प्रणाली भी कह सकते है जो प्रकृति, जानवरो और मनुष्य को नुक़सान पहुंचाये बिना किया जाता है। organic farming मै कोई रासायनिक खाद या कीटनाशक दवाओं का उपयोग नई होता है। इसमें गाय का गोबर-मूत्र,कंपोज खाद,जैविक खाद,वर्मी खाद तथा हरी खाद का उपयोग होता है। जो कि पर्यावरण अनुकूलित एवम् खेती के लिए फायदेमंद है। आईये जानत...

वंदना शिवा : जैविक खेती से सतत विकास की ‘अगुवा’

एक छोटे से बीज से इस पूरी दुनिया का विकास हुआ है। पर ये विकास कब तक रहेगा ये इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी प्रकृति से कोई प्रयोग न किया गया हो। अगर उस नन्हें से बीज में किसी तरह का बदलाव कर दिया जाए जो उसकी प्रकृति के विरुद्ध हो तो उस बीज कि क्या दशा होगी? क्या वह अपने स्वरुप को पाएगा और क्या वह उसी तरह से पनप पाएगा जैसा वह बिना किसी बदलाव के बड़ा होता। यह एक सोचने वाली बात है। असल बात तो यह है कि कई लोग इस विषय पर ध्यान नहीं देते हैं। क्योंकि आधुनिकता से युग ने हमें सतत विकास की तरफ़ सोचना बंद सा करवा दिया है। हरित क्रांति के समय से यह कहा जाने लगा था कि बीजों में बदलाव अगर आएगा तो फसल अच्छी होगी। साथ ही अगर पौधों पर कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाए तो फसल में और भी ज्यादा वृद्धि होगी।हालांकि हुआ इससे उल्टा। इससे फसलों को भारी नुकसान हुआ मगर इस बात पर कई लोगों ने ध्यान नहीं दिया। यह भी हो सकता है कि लोगों ने देखकर भी अनदेखा कर दिया होगा मगर बीजों और फसलों की स्थिति वंदना शिवा हरित योद्धा हैं। वे पर्यावरण को बचाने के लिए अनवरत प्रयास कर रहीं हैं। टाइम मैगज़ीन ने साल 2003 वंदना शिवा का जन्म 5 नवंबर 1952 में भारत में देहरादून की घाटी में हुआ था। अपनी मातृभूमि में शिक्षित होकर उन्होंने कनाडा में स्नातक की पढ़ाई की है। वे गुल्फ से एमए और पश्चिमी ओन्टेरियो विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी कर चुकी हैं।उन्होंने साल 1978 में डॉक्टरी शोध निबंध “हिडेन वैरिएबल्स एंड लोकैलिटी इन क्वान्टम थ्योरी” विषय पर अपनी पीएचडी पूरी की है। वे एक समर्पित पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। वंदना ने नेटिव सीड्स (मूल बीज) को बचाने और जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए साल 1987 में नवधान्य नामक संगठन की स्थापना की...

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एसडी कॉलेज ऑफ कॉमर्स के छात्र-छात्राओं के कौशल विकास के लिए मशरूम कल्टीवेशन एवं जैविक खेती के बारे में विस्तारपूर्वक प्रायोगिक रूप से समझाने के लिए एग्रीजंक्शन सेन्टर, थानाभवन, शामली के साथ अनुबंध करार किया। इस मौके पर डॉ. कटार सिंह बर्मन, प्राचार्य डा. सचिन गोयल, डा. मोनिका रूहेला, डा. महेन्द्र सिंह, डा. बुशरा आकिल, डा. नीरज कुमार, डा. ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, रजत धारीवाल, गौरव बालियान, तनु सिंह, शिखा पाल, वंशिखा गुप्ता रहे।