जनगण मन

  1. Jana Gana Mana
  2. भारतीय राष्ट्रगान का अर्थ उसके इतिहास तथा नियमों की जानकारी
  3. 'जन गण मन' और रवीन्द्रनाथ टैगोर का पत्र
  4. भारतीय राष्ट्रगान का अर्थ उसके इतिहास तथा नियमों की जानकारी
  5. 'जन गण मन' और रवीन्द्रनाथ टैगोर का पत्र
  6. Jana Gana Mana


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संगीत

राष्ट्रीय गीत जनगण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता। पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्रविड़ उत्कल बंगा। विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा-उच्छल जलधि तरंगा। तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मांगे, गावें तव जय गाथा! जन गण मंगल दायक जय हे भारत भाग्य विधाता, जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय हे! अहरह तव आह्वान-प्रचारित सुनि नव उदार वाणी। हिन्दु-बौद्ध-सिख -जैन-पारसिक-मुसलमान क्रिस्तानी । पूरब-पच्छिम आसे तव सिहासन पासे, प्रेमहार हिय गाथा! जनगण ऐक्य विधायक जय हे भारत भाग्य विधाता! जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय है । पतन अभ्युदय बन्धुर पंधा युग-युग धावित यात्री, तुमि चिर-सारथि तव रथ चक्रे मुग्धरित पंथ दिनरात्री। दारुण विप्लव मांझे , तव शंख ध्वनि बाजे, संकट दुख, त्राता। [ जनगण-पथ परिचायक जय हे, भारत भाग्य विधाता! जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय हे! घोर तिमिर घन निविड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे। जाग्रत छिल तव अविचल मंगल नतनयने अनिमेशे। दुःस्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके। स्नेहमयी तुम माता। जनगण दु:खत्रायक जय हे, भारत भाग्य विधाता! जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय हे! रात्रि प्रभातिल उदिल रविच्छवि पूर्व उदयगिरि भाले! गाहे विहंगम पुण्य समीरण तव जोवन रस ढाले! तव करुणारुण रागे, निद्रित भारत जागे । तव चरणे नत माथा! जय जय जय हे जय राजेश्वर, भारत भाग्य विधाता! जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय हे । [ ताल कहरवा x — — स रे — — ज न ⁠ म — — — हे — — — ⁠ — — स — — — पं — ⁠ प ध म — रा — ठा — ⁠ — — — — — — — — ⁠ म — म — गं — गा — ⁠ — — स रे — — त व ⁠ — — ग म — — त व ⁠ — — म — — — गा — ⁠ — — सं नी — — — जय ⁠ — — ध प — — — जय ⁠ रे ग म — जय हे — — x ग ग ग ग गण मन ⁠ ग — ग ग भा — र त ⁠ प — प प जा — ब सि ⁠ म — म म ...

Jana Gana Mana

जन गण मन अधिनायक जयहे, भारत भाग्य विधाता! पञ्जाब, सिन्धु, गुजरात, मराठा, द्राविड, उत्कल, वङ्ग! विन्ध्य, हिमाचल, यमुना, गङ्ग, उच्चल जलधितरङ्ग! तव शुभनामे जागे! तव शुभ आशिष मागे! गाहे तव जय गाथा! जनगण मङ्गलदायक जयहे भारत भाग्यविधाता! जयहे! जयहे! जयहे! जय जय जय जयहे! Browse Related Categories: • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • •

भारतीय राष्ट्रगान का अर्थ उसके इतिहास तथा नियमों की जानकारी

गुरुदेव “जन-गण-मन” भारत का राष्ट्रगान है जिसे उन्होंने मूलतः बंगाली में लिखा था। जिसे बाद में आबिद अली ने हिन्दी और उर्दू में अनुवाद किया। भारतीय राष्ट्रगान में संस्कृत जिसे साधु भाषा भी कहते है की अधिकता हैं। भारतीय राष्ट्रगान को गाते समय राष्ट्रगान गाने के नियमों का पालन करना आवश्यक हैं। हमारे देश भारत का राष्ट्र-गान कहीं-कहीं प्रतिदिन तो कहीं कुछ विशिष्ट अवसरों पर गाया जाता हैं। इसे पूरी तरह से संज्ञा का इस्तेमाल कर लिखा गया है जो क्रिया की तरह भी कार्य करता हैं। राष्ट्र-गान “जन गण मन” के बोल तथा संगीत दोनों ही रवीन्द्रनाथ टैगोर ने तैयार किये हैं। • जरूर पढ़े: भारतीय राष्ट्रगान का अर्थ व इतिहास संविधान सभा ने जन-गण-मन को 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान के रुप में स्वीकार किया। इसे पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था। राष्ट्रगान को गाने में 52 सेकेंड का समय लगता है तथा कई अवसरों पर जब इसके लघु संस्करण(प्रथम तथा अंतिम पंक्ति) को गाया जाता है तब 20 सेकेंड का समय लगता हैं। • जरूर पढ़े: राष्ट्रगान का पूर्ण तथा लघु संस्करण पूर्ण संस्करण जन-गण-मन अधिनायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता पंजाब-सिन्धु-गुजरात-मराठा, द्राविड़-उत्कल-बंग विन्ध्य-हिमाचल, यमुना-गंगा उच्छल जलधि तरंग, तव शुभ नामें जागे तव शुभ आशिष माँगे, गाहे तव जय गाथा जन-गण-मंगलदायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। लघु संस्करण जन-गण-मन अधिनायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। राष्ट्रगान का अर्थ जन गण के मनों के उस अधिनायक की जय हो, जो भारत के भाग्य-विधाता हैं। उनका नाम सुनते ही पंजाब, सिन्धु, गुजरात और मराठा, द्राविड़ उ...

'जन गण मन' और रवीन्द्रनाथ टैगोर का पत्र

कल जॉर्ज पंचम की जयंती पर यह जिक्र आया था कि महाकवि टैगोर ने उनको भारत भाग्य विधाता लिखा था. टैगोर साहित्य के मर्मज्ञ उत्पल बैनर्जी ने पुलिन विहारी सेन को टैगोर का लिखा यह पत्र उपलब्ध करवाया जिसमें उन्होंने साफ़ साफ़ लिखा है कि ‘जन गण मन’ का उद्देश्य वह नहीं था जो प्रचारित किया गया- मॉडरेटर ============================================ प्रियवर, तुमने पूछा है कि ‘जनगण मन’ गीत मैंने किसी ख़ास मौक़े के लिए लिखा है या नहीं। मैं समझ पा रहा हूँ कि इस गीत को लेकर देश में किसी-किसी हलक़े में जो अफ़वाह फैली हुई है, उसी प्रसंग में यह सवाल तुम्हारे मन में पैदा हुआ है। फ़ासिस्टों से मतभेद रखने वाला निरापद नहीं रह सकता, उसे सज़ा मिलती ही है, ठीक वैसे ही हमारे देश में मतभेद को चरित्र का दोष मान लिया जाता है और पशुता भरी भाषा में उसकी निन्दा की जाती है — मैंने अपने जीवन में इसे बार-बार महसूस किया है, मैंने कभी इसका प्रतिवाद नहीं किया। तुम्हारी चिट्ठी का जवाब दे रहा हूँ, कलह बढ़ाने के लिए नहीं। इस गीत के संबंध में तुम्हारे कौतूहल को दूर करने के लिए। एक दिन मेरे परलोकगत मित्र हेमचन्द्र मल्लिक विपिन पाल महाशय को साथ लेकर एक अनुरोध करने मेरे यहाँ आए थे। उनका कहना यह था कि विशेष रूप से दुर्गादेवी के रूप के साथ भारतमाता के देवी रूप को मिलाकर वे लोग दुर्गापूजा को नए ढंग से इस देश में आयोजित करना चाहते हैं, उसकी उपयुक्त भक्ति और आराधना के लिए वे चाहते हैं कि मैं गीत लिखूँ। मैंने इसे अस्वीकार करते हुए कहा था कि यह भक्ति मेरे अंतःकरण से नहीं हो सकेगी, इसलिए ऐसा करना मेरे लिए अपराध-जैसा होगा। यह मामला अगर केवल साहित्य का होता तो फिर भले ही मेरा धर्म-विश्वास कुछ भी क्यों न हो, मेरे लिए संकोच की कोई वजह नहीं ...

संगीत

राष्ट्रीय गीत जनगण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता। पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्रविड़ उत्कल बंगा। विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा-उच्छल जलधि तरंगा। तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मांगे, गावें तव जय गाथा! जन गण मंगल दायक जय हे भारत भाग्य विधाता, जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय हे! अहरह तव आह्वान-प्रचारित सुनि नव उदार वाणी। हिन्दु-बौद्ध-सिख -जैन-पारसिक-मुसलमान क्रिस्तानी । पूरब-पच्छिम आसे तव सिहासन पासे, प्रेमहार हिय गाथा! जनगण ऐक्य विधायक जय हे भारत भाग्य विधाता! जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय है । पतन अभ्युदय बन्धुर पंधा युग-युग धावित यात्री, तुमि चिर-सारथि तव रथ चक्रे मुग्धरित पंथ दिनरात्री। दारुण विप्लव मांझे , तव शंख ध्वनि बाजे, संकट दुख, त्राता। [ जनगण-पथ परिचायक जय हे, भारत भाग्य विधाता! जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय हे! घोर तिमिर घन निविड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे। जाग्रत छिल तव अविचल मंगल नतनयने अनिमेशे। दुःस्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके। स्नेहमयी तुम माता। जनगण दु:खत्रायक जय हे, भारत भाग्य विधाता! जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय हे! रात्रि प्रभातिल उदिल रविच्छवि पूर्व उदयगिरि भाले! गाहे विहंगम पुण्य समीरण तव जोवन रस ढाले! तव करुणारुण रागे, निद्रित भारत जागे । तव चरणे नत माथा! जय जय जय हे जय राजेश्वर, भारत भाग्य विधाता! जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय हे । [ ताल कहरवा x — — स रे — — ज न ⁠ म — — — हे — — — ⁠ — — स — — — पं — ⁠ प ध म — रा — ठा — ⁠ — — — — — — — — ⁠ म — म — गं — गा — ⁠ — — स रे — — त व ⁠ — — ग म — — त व ⁠ — — म — — — गा — ⁠ — — सं नी — — — जय ⁠ — — ध प — — — जय ⁠ रे ग म — जय हे — — x ग ग ग ग गण मन ⁠ ग — ग ग भा — र त ⁠ प — प प जा — ब सि ⁠ म — म म ...

भारतीय राष्ट्रगान का अर्थ उसके इतिहास तथा नियमों की जानकारी

गुरुदेव “जन-गण-मन” भारत का राष्ट्रगान है जिसे उन्होंने मूलतः बंगाली में लिखा था। जिसे बाद में आबिद अली ने हिन्दी और उर्दू में अनुवाद किया। भारतीय राष्ट्रगान में संस्कृत जिसे साधु भाषा भी कहते है की अधिकता हैं। भारतीय राष्ट्रगान को गाते समय राष्ट्रगान गाने के नियमों का पालन करना आवश्यक हैं। हमारे देश भारत का राष्ट्र-गान कहीं-कहीं प्रतिदिन तो कहीं कुछ विशिष्ट अवसरों पर गाया जाता हैं। इसे पूरी तरह से संज्ञा का इस्तेमाल कर लिखा गया है जो क्रिया की तरह भी कार्य करता हैं। राष्ट्र-गान “जन गण मन” के बोल तथा संगीत दोनों ही रवीन्द्रनाथ टैगोर ने तैयार किये हैं। • जरूर पढ़े: भारतीय राष्ट्रगान का अर्थ व इतिहास संविधान सभा ने जन-गण-मन को 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान के रुप में स्वीकार किया। इसे पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था। राष्ट्रगान को गाने में 52 सेकेंड का समय लगता है तथा कई अवसरों पर जब इसके लघु संस्करण(प्रथम तथा अंतिम पंक्ति) को गाया जाता है तब 20 सेकेंड का समय लगता हैं। • जरूर पढ़े: राष्ट्रगान का पूर्ण तथा लघु संस्करण पूर्ण संस्करण जन-गण-मन अधिनायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता पंजाब-सिन्धु-गुजरात-मराठा, द्राविड़-उत्कल-बंग विन्ध्य-हिमाचल, यमुना-गंगा उच्छल जलधि तरंग, तव शुभ नामें जागे तव शुभ आशिष माँगे, गाहे तव जय गाथा जन-गण-मंगलदायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। लघु संस्करण जन-गण-मन अधिनायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। राष्ट्रगान का अर्थ जन गण के मनों के उस अधिनायक की जय हो, जो भारत के भाग्य-विधाता हैं। उनका नाम सुनते ही पंजाब, सिन्धु, गुजरात और मराठा, द्राविड़ उ...

'जन गण मन' और रवीन्द्रनाथ टैगोर का पत्र

कल जॉर्ज पंचम की जयंती पर यह जिक्र आया था कि महाकवि टैगोर ने उनको भारत भाग्य विधाता लिखा था. टैगोर साहित्य के मर्मज्ञ उत्पल बैनर्जी ने पुलिन विहारी सेन को टैगोर का लिखा यह पत्र उपलब्ध करवाया जिसमें उन्होंने साफ़ साफ़ लिखा है कि ‘जन गण मन’ का उद्देश्य वह नहीं था जो प्रचारित किया गया- मॉडरेटर ============================================ प्रियवर, तुमने पूछा है कि ‘जनगण मन’ गीत मैंने किसी ख़ास मौक़े के लिए लिखा है या नहीं। मैं समझ पा रहा हूँ कि इस गीत को लेकर देश में किसी-किसी हलक़े में जो अफ़वाह फैली हुई है, उसी प्रसंग में यह सवाल तुम्हारे मन में पैदा हुआ है। फ़ासिस्टों से मतभेद रखने वाला निरापद नहीं रह सकता, उसे सज़ा मिलती ही है, ठीक वैसे ही हमारे देश में मतभेद को चरित्र का दोष मान लिया जाता है और पशुता भरी भाषा में उसकी निन्दा की जाती है — मैंने अपने जीवन में इसे बार-बार महसूस किया है, मैंने कभी इसका प्रतिवाद नहीं किया। तुम्हारी चिट्ठी का जवाब दे रहा हूँ, कलह बढ़ाने के लिए नहीं। इस गीत के संबंध में तुम्हारे कौतूहल को दूर करने के लिए। एक दिन मेरे परलोकगत मित्र हेमचन्द्र मल्लिक विपिन पाल महाशय को साथ लेकर एक अनुरोध करने मेरे यहाँ आए थे। उनका कहना यह था कि विशेष रूप से दुर्गादेवी के रूप के साथ भारतमाता के देवी रूप को मिलाकर वे लोग दुर्गापूजा को नए ढंग से इस देश में आयोजित करना चाहते हैं, उसकी उपयुक्त भक्ति और आराधना के लिए वे चाहते हैं कि मैं गीत लिखूँ। मैंने इसे अस्वीकार करते हुए कहा था कि यह भक्ति मेरे अंतःकरण से नहीं हो सकेगी, इसलिए ऐसा करना मेरे लिए अपराध-जैसा होगा। यह मामला अगर केवल साहित्य का होता तो फिर भले ही मेरा धर्म-विश्वास कुछ भी क्यों न हो, मेरे लिए संकोच की कोई वजह नहीं ...

Jana Gana Mana

जन गण मन अधिनायक जयहे, भारत भाग्य विधाता! Thou art the ruler of the minds of all people, Dispenser of India's destiny. पंजाब, सिंधु, गुजरात, मराठा, द्राविड, उत्कल, वंग! Thy name rouses the hearts of Punjab, Sindhu, Gujarat and Maratha, Of the Dravida and Odisha and Bengal; विंध्य, हिमाचल, यमुना, गंग, उच्चल जलधितरंग! It echoes in the hills of Vindhya and the Himalayas, Mingles in the music of Ganga and Yamuna and is chanted by The waves of the Indian sea. तव शुभनामे जागे! तव शुभ आशिष मागे! गाहे तव जय गाथा! They pray for thy blessings and sing thy praise. जनगण मंगलदायक जयहे भारत भाग्यविधाता! जयहे! जयहे! जयहे! जय जय जय जयहे! The saving of all people waits in thy hand, Thou dispenser of India's destiny. Victory, victory, victory to thee. Browse Related Categories: • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • •