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  1. The Kerala Story
  2. ​First Engineering College Of Asia Know Name And How To Apply
  3. आज का शब्द:उदार और मैथिलीशरण गुप्त की कविता
  4. मिलिए विराली मोदी से, जो भारत की पहली व्हीलचेयर मॉडल होने के साथ


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The Kerala Story

Running time 138 minutes Country India Language Budget est. ₹15–20 (US$1.8–2.4 million) Box office est. ₹300.13 The Kerala Story is a 2023 Indian The Kerala Story was released in theatres on 5 May 2023. With a worldwide gross of ₹3 billion (US$38million), it became the Plot Shalini Unnikrishnan, a woman who converted to Islam, shares her journey of aspiring to become a nurse, only to be coerced by extremist Muslims in her college who posed as friends. She was eventually manipulated into joining the ISIS and ended up imprisoned in Afghanistan. Cast • • • • • • Vijay Krishna as Ishak • Pranay Pachauri as Rameez • Production and release The film was produced by Vipul Amrutlal Shah, who is also the Premise and factual accuracy The teaser released on 3 November 2022, While the events portrayed in the film are loosely based on the accounts of three women from Later, in response to litigation, the film-makers removed all promotional materials, including the teaser, that had the erroneous figure. Response Promotion by Ruling Party The ruling Political Opposition In Kerala, both the Public Protests The film has attracted public protests in Kerala and Tamil Nadu. Bans and Litigation On the eve of release, several petitions were filed at the On 8 May, the Reception Critical reception The film was critically panned. On the Deepanjana Pal, reviewing for Box office On its opening day, the film grossed ₹8.03 crore in India, ₹275.86 crore (US$35million) in India and ₹11.93 crore (US$1.5mi...

​First Engineering College Of Asia Know Name And How To Apply

​First Engineering College of Asia: आज के समय में देश में बहुत से इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, पूरे एशिया की बात करें तो यहां हजारों की संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज मौजूद हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एशिया का पहले इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम क्या था और आज वह कहां स्थित है? यदि आप को इस सवाल का जवाब नहीं पता है तो आज हम आपको बताएंगे. आइए जानते हैं, एशिया का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज किस जगह खुला था. बीते कई सालों में इंजीनियरिंग क्षेत्र ने देश ही नहीं दुनिया में एक नया बूम ला दिया है. आज के समय में इंजीनियरों ने हैरतअंगेज काम किए हैं. चाहे फिर वह सिविल इंजीनियरिंग, कंप्यूटर इंजीनियरिंग, मैकेनिकल इंजीनियरिंग आदि कोई भी फील्ड हो. इंजीनियरों के कारनामों के चलते रोजमर्रा की जिंदगी भी काफी सुविधाजनक हो गई है. देश के ही जम्मू कश्मीर में चिनाब ब्रिज बनाया गया है, जो अद्भुत इंजीनियरिंग की गवई दे रहा है. क्या था कॉलेज का नाम अब बात करते हैं एशिया के पहले इंजीनियरिंग कॉलेज की. एशिया का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज कहीं और नहीं बल्कि भारत में ही खुला था. जो कि साल 1847 में स्थापित किया गया था. कॉलेज की स्थापना 'थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग' के रूप में हुई थी. इस कॉलेज को आज के समय में विश्व प्रसिद्ध भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की यानी आईआईटी रुड़की के रूप में जाना जाता है. इस कॉलेज ने दुनिया भर को काफी बड़ी संख्या में इंजीनियर दिए हैं. लाखों छात्र देते हैं परीक्षा आईआईटी की तैयारी करने वाले छात्रों का सपना होता है कि उन्हें आईआईटी रुड़की में दाखिला मिल जाए. आईआईटी रुड़की सहित अन्य आईआईटी में दाखिला लेने के लिए हर साल लाखों की संख्या में छात्र-छात्राएं आईआईटी जेईई परीक्षा में शामिल होते हैं. लेकि...

आज का शब्द:उदार और मैथिलीशरण गुप्त की कविता

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी, मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी। हुई न यों सु–मृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिये, मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए। यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे, वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।। उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती, उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती। उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती; तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती। अखण्ड आत्मभाव जो असीम विश्व में भरे¸ वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिये मरे।। क्षुधार्थ रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी, तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी। उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया, सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर-चर्म भी दिया। अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे? वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।। सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है वही; वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही। विरुद्धवाद बुद्ध का दया–प्रवाह में बहा, विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहा? अहा ! वही उदार है परोपकार जो करे, वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।। रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में अनाथ कौन हैं यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, दयालु दीनबन्धु के बड़े विशाल हाथ हैं अतीव भाग्यहीन है अधीर भाव जो करे, वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।। अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े, समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े–बड़े। परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी, अभी अमर्त्य-अंक में अपंक हो चढ़ो सभी। रहो न यों कि एक से न काम और का सरे, वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।। "मनुष्य मात्र बन्धु है" यही बड़ा विवेक है, पुराणपुरुष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है। फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है, परंतु अंतरैक्य मे...

मिलिए विराली मोदी से, जो भारत की पहली व्हीलचेयर मॉडल होने के साथ

नई दिल्ली: अधिक समावेशी और सुलभ समाज के निर्माण के लिए संवेदनशीलता और जागरूकता महत्वपूर्ण हैं. ये विकलांगता से जुड़ी रूढ़ियों और मिथकों को तोड़ने में मदद करते हैं. इनसे एक ऐसे समाज का निर्माण होता है जहां विकलांग लोगों के महत्व और योगदान को हर कोई पहचानता है. विराली मोदी, एक विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता और व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाली भारत की पहली मॉडल हैं. वह एक ऐसे समाज के निर्माण में मदद करने के लिए काम कर रही हैं, जो विविधता का सम्मान और समर्थन करता है. दिव्यांग कहने पर विराली मोदी ने कहा, क्या मैं आपको एक बात बोल सकती हूं? कृपया आप मुझे ‘विशेष रूप से सक्षम (Specially Abled)’ न कहें, चाहें तो आप मुझे विकलांग कह सकते हैं. विराली की सकारात्मकता ने ही उन्हें अपने जीवन के कठिन दौर से निकाला है. एनडीटीवी टीम से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि वह नहीं चाहती कि उनको कोई खास दर्जा दिया जाए और यह उनकी लड़ाई है, एक सरल लक्ष्य के साथ सीधी सी लड़ाई. जिसमें वह चाहती हैं कि कोई उन्हें अलग तरीके से न देखे और न ही उनके साथ ऐसा बर्ताव करे. विराली इस बात की पुरजोर वकालत करती हैं कि सबको सम्मिलित करने वाले सुरक्षित समाज बनाने की जिम्मेदारी केवल विकलांगों की नहीं बल्कि सभी की होनी चाहिए. ठीक इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए उनका अभियान #MyTrainToo भी है. रेल यात्रा सबकी पहुंच में हो, इस लक्ष्य को पाने के लिए उनकी याचिका पर छह लाख से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं. इसे भी पढ़ें: अपने अभियान #MyTrainToo के बारे में बात करते हुए विराली ने कहा, मैंने ये अभियान #MyTrainToo 2017 में शुरू किया था और कारण यह था कि जब मैं 2008 में भारत आई थी, तो ट्रेन में चढ़ते समय कुलियों ने मेरे साथ बुरा बर्ताव ...