ज्योतिष शास्त्र

  1. ज्योतिष शास्त्र का परिचय (Introduction to Astrology)
  2. ज्योतिष सीखें
  3. Jyotish: Astrology in Hindi, ज्योतिष शास्त्र, एस्ट्रोलॉजी
  4. Hindu astrology
  5. कुंडली में प्रथम भाव
  6. भारतीय ज्योतिष


Download: ज्योतिष शास्त्र
Size: 16.41 MB

ज्योतिष शास्त्र का परिचय (Introduction to Astrology)

ज्योतिष शास्त्र का परिचय(Introduction to Astrology or jyotish shastra) :- इंसान के जीवन के भूत काल, भविष्य काल और वर्तमान काल के बारे में ज्ञान करने वाले ज्योतिष शास्त्र के विषय जानकारी होनी चाहिए, जिससे इंसान अपने जीवन काल में होने वाली घटनाओं को जानकर उनके प्रति सही रास्ता अपना सकें। 'ज्योतिष 'शब्द 'ज्योति' से बना है। 'ज्योति का शाब्दिक अर्थ'-:प्रकाश, उजाला, रोशनी, आभा, द्युति आदि हैं। ज्योतिष शब्द का सन्धि-विच्छेद ज्योत+ईशहोता हैं।जिसका अर्थ ईश्वर की रोशनी हैं अर्थात ईश्वर के द्वारा अंधेरे से उजाला की ओर ले जाने का मार्गदर्शन होता हैं। आकाश मंडल के ग्रह एवं नक्षत्र ज्योति प्रदान करते हैं। मेष, वृषभ, मिथुन, सिंह, तुला, मकर, मीन आदि आकार वाले तारक समूह को ज्योतिष में राशियों की संज्ञा दी गई है, यह हमें ज्योति प्रदान करते हैं। धूम्रकेतु, उल्काएं आदि भी ज्योति प्रदान करते हैं। जन्म के समय 'ज्योति रश्मियां' ही व्यक्ति के स्वभाव का निर्माण करती हैं। ' ज्योतिष विज्ञान' या 'ज्योतिर्विज्ञान':-आकाशीय पिण्डों से निकलने वाली ज्योति रश्मियां स्वयं के बल एवं कोणात्मक दूरी या अन्तर के अनुसार व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभावित करती हैं। 'ज्योति रश्मियों के प्रभाव का अध्ययन करने वाले विषय को ही 'ज्योतिष विज्ञान' या 'ज्योतिर्विज्ञान कहते हैं। ज्योतिष के अंग-:आदिकालकी समाप्ति तक ज्योतिष के तीन अंग थे। आधुनिक में इसमें दो अंग जोड़े गये हैं।इस प्रकार ज्योतिष के पाँच अंग बन गये हैं। जो निम्नानुसार हैं: 1.सिद्धान्त ज्योतिष:-ज्योतिष विद्या पूर्णतया शुद्ध गणितीय आकलन व परिमाप पर आधारित है। अतः किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय या किसी घटना के समय आकाश मंडल के ग्रह, नक्षत्र किस गति, स्थित...

ज्योतिष सीखें

ज्योतिष सीखें “ज्योतिष सीखें” नामक इस पाठ्यक्रम में आप केवल 2 मिनट में ज्योतिष ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। ज्योतिष सीखें - पाठ्यक्रम में आपको लगभग 2 मिनट की वीडियो के साथ ज्योतिष शास्त्र के बारे में बताया जाएगा। ज्योतिष सीखने के इस पाठ्यक्रम में आपको बहुत सहज और सरल भाषा में ज्योतिष ज्ञान को सिखाया जाएगा। आइये जानते हैं ज्योतिष विद्या सीखने के कुछ बेहद आसान तरीके… क्यों होती है ज्योतिष विद्या सीखने की आवश्यकता? वैदिक काल में हमारे ऋषि मुनियों ने 4 वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) की रचना की थी। इन वेदों को जानने के लिए उन्होंने 6 वेदांगो की रचना की। इनमें शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छंद, निरूक्त के साथ-साथ ज्योतिष भी आता है। अगर आप ज्योतिष विद्या सीखना चाहते हैं, इनमें यदि आप आजकल इंटरनेट पर कई तरह के ऑनलाइन सॉफ्टवेयर मौजूद हैं जिनकी मदद से जन्म कुंडली बनाई जा सकती है, लेकिन कुंडली में ग्रहों के अध्ययन और उनसे मिलने वाले शुभ और अशुभ फल के बारे में आप तभी जान सकते हैं जब आपको ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान होगा। आप हमारे इस कोर्स में जन्म कुंडली बनाने की आसान विधि तथा उसमें ग्रहों का फल भी ज्ञात कर सकेंगे। ज्योतिष के माध्यम से व्यक्ति के जीवन का सार जाना जा सकता है। यदि ज्योतिष के महत्व की बात करें तो, इस भाग दौड़ भरी दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है। कोई व्यक्ति अपनी पारिवारिक समस्या को लेकर परेशान है तो किसी व्यक्ति का प्रेम उससे रूठ गया है। ऐसे ही किसी जातक को नौकरी नहीं मिल रही है तो कोई अपने विवाह में देरी के कारण परेशान है। ऐसे में लोगों की समस्त परेशानियों का इलाज ज्योतिष ज्ञान के माध्यम से किया जा सकता है। ज्योतिष विद्या के माध्यम से न केवल...

Jyotish: Astrology in Hindi, ज्योतिष शास्त्र, एस्ट्रोलॉजी

कुंडली मिलान कुंडली मिलान हिंदू विवाह परंपरा के अनुसार सफल वैवाहिक जीवन के लिये बहुत आवश्यक माना जाताकुंडली मिलान (Kundli Milan) हिंदू विवाह परंपरा के अनुसार सफल वैवाहिक जीवन के लिये बहुत आवश्यक माना जाता है। मान्यता है कि यदि जातक और जातिका की जन्मकुंडली मैच हो रही है, कुंडली में गुण मिलान (Gun Milan) हो रहे हैं.... • आपके किचन में मौजूद हैं, आयुर्वेदिक दवायें • स्वस्थ रहने के 5 सरल वास्तु उपाय • सभी प्रकार की पीड़ाओं को खत्म कर सकता है बारह मुखी रुद्राक्ष • नवरात्रों में डायबिटीज के रोगियों के लिए आवश्यक बातें • यहाँ भगवान शिव को झाड़ू भेंट करने से, खत्म होते हैं त्वचा रोग • आध्यात्मिकता और आंतरिक संतुलन • मंत्र करते हैं सकारात्मक ऊर्जा का संचार • सूर्य नमस्कार से प्रसन्न होते हैं सूर्यदेव • घर की बगिया लाएगी बहार • आध्यात्मिक शान्ति का स्थान है बोधगया • जानिये, राशि के अनुसार धन प्राप्ति के मंत्र • कुंडली के वह योग, जो व्यक्ति को बनाते हैं धनवान ! • हनुमान यज्ञ से प्राप्त होता है धन और यश • इन 5 वास्तु उपायों की मदद से प्राप्त हो सकता है धन • कुंडली का यह योग व्यक्ति को बना देता है राजा • कुंडली के वह योग जो व्यक्ति को बनाते हैं एक सफल उद्यमी • इन 7 आदतों से दूर हो जाती हैं धन की देवी लक्ष्मी जी • कैंची धाम - बिगड़ी तकदीर बनाने वाला हनुमान मंदिर

Hindu astrology

• অসমীয়া • Bikol Central • Čeština • Deutsch • Eesti • Español • فارسی • Français • ગુજરાતી • 한국어 • हिन्दी • Bahasa Indonesia • Italiano • עברית • Jawa • ಕನ್ನಡ • ქართული • Lietuvių • Македонски • მარგალური • Nederlands • नेपाल भाषा • 日本語 • Norsk bokmål • Polski • Português • Русский • संस्कृतम् • සිංහල • Svenska • தமிழ் • తెలుగు • Українська • 中文 • v • t • e Hindu astrology, also called Indian astrology, Jyotisha or Jyotishya (from jyotiṣa, from jyót “light, heavenly body"), and more recently Vedic astrology, is the traditional The Jyotisha developed independently, although it may have interacted with Following a judgment of the Etymology [ ] Jyotisha, states Monier-Williams, is rooted in the word Jyotish, which means light, such as that of the Jyotisha includes the study of History and core principles [ ] Further information: :376 Early jyotiṣa is concerned with the preparation of a calendar to determine dates for sacrificial rituals, :377 with nothing written regarding planets. :377 There are mentions of :382 The term :381 The Ṛigveda also mentions an eclipse-causing demon, graha was not applied to Svarbhānu until the later :382 The foundation of Hindu astrology is the notion of :383 :384 The first evidence of the introduction of Greek astrology to India is the :383 The Yavanajātaka ( lit. "Sayings of the Greeks") was translated from Greek to Sanskrit by :383 The first Indian astronomical text to define the weekday was the :383 According to Michio Yano, Indian astronome...

कुंडली में प्रथम भाव

लग्न का महत्व और विशेषताएँ जब कोई भी व्यक्ति जन्म लेता है तो उस समय विशेष में आकाश में स्थित ज्योतिष में प्रथम भाव से क्या देखा जाता है? प्रथम भाव का कारक • शारीरिक संरचना: प्रथम भाव से व्यक्ति की शारीरिक बनावट और कद-काठी के बारे में पता चलता है। यदि प्रथम भाव पर जलीय ग्रहों का प्रभाव अधिक होता है तो व्यक्ति मोटा होता है। वहीं अगर शुष्क ग्रहों और राशियों का संबंध लग्न पर अधिक रहता है तो जातक दुबला होता है। • स्वभाव: किसी भी व्यक्ति के स्वभाव को समझने के लिए लग्न का बहुत महत्व है। लग्न मनुष्य के विचारों की शक्ति को दर्शाता है। यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थ भाव का स्वामी, • आयु और स्वास्थ्य: प्रथम भाव व्यक्ति की आयु और सेहत को दर्शाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब लग्न, लग्न भाव के स्वामी के साथ-साथ सूर्य, चंद्रमा, • बाल्यकाल: प्रथम भाव से व्यक्ति के बचपन का बोध भी होता है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार यदि लग्न के साथ लग्न भाव के स्वामी और चंद्रमा पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो व्यक्ति को बाल्यकाल में शारीरिक कष्ट उठाने पड़ते हैं। वहीं शुभ ग्रहों के प्रभाव से बाल्यावस्था अच्छे से व्यतीत होती है। • मान-सम्मान: प्रथम भाव मनुष्य के मान-सम्मान, सुख और यश को भी दर्शाता है। यदि लग्न, लग्न भाव का स्वामी, चंद्रमा, सूर्य, दशम भाव और इनके स्वामी बलवान अवस्था में हों, तो व्यक्ति को जीवन में मान-सम्मान प्राप्त होता है। वैदिक ज्योतिष के पुरातन ग्रन्थों में प्रथम भाव • “उत्तर-कालामृत” के अनुसार, “प्रथम भाव मुख्य रूप से मनुष्य के शरीर के अंग, स्वास्थ्य, प्रसन्नता, प्रसिद्धि समेत 33 विषयों का कारक होता है।” प्रथम भाव को मुख्य रूप से स्वयं का भाव कहा जाता है। यह मनुष्य के शरीर और शारीरिक संरचना का ...

भारतीय ज्योतिष

अनुक्रम • 1 परिचय एवं इतिहास • 2 गणना प्रणाली • 3 कालगणना (Calendar) • 4 मध्य ग्रह गणना • 5 मंद स्पष्ट ग्रह • 6 स्पष्ट ग्रह • 7 ग्रहों की कक्षाएँ • 8 इन्हें भी देखें • 9 बाहरी कड़ियाँ परिचय एवं इतिहास [ ] भारत का प्राचीनतम उपलब्ध साहित्य गणित ज्योतिष के ग्रंथों के दो वर्गीकरण हैं: सिद्धान्त ग्रन्थ तथा करण ग्रंथ। सिद्धांतग्रंथ युगादि अथवा कल्पादि पद्धति से तथा करणग्रंथ किसी शक के आरंभ की गणनापद्धति से लिखे गए हैं। गणित ज्योतिष ग्रंथों के मुख्य प्रतिपाद्य विषय है: मध्यम ग्रहों की गणना, स्पष्ट ग्रहों की गणना, दिक्‌, देश तथा काल, सूर्य और चंद्रगहण, ग्रहयुति, ग्रहच्छाया, सूर्य सांनिध्य से ग्रहों का उदयास्त, चंद्रमा की शृंगोन्नति, पातविवेचन तथा वेधयंत्रों का विवेचन। गणना प्रणाली [ ] पूरे वृत्त की परिधि 360 मान ली जाती है। इसका 360 वाँ भाग एक अंश, उसका 60वाँ भाग एक कला, कला का 60वाँ भाग एक विकला, एक विकला का 60वाँ भाग एक प्रतिविकला होता है। 30 अंश की एक राशि होती है। ग्रहों की गणना के लिये क्रांतिवृत्त के, जिसमें सूर्य भ्रमण करता दिखलाई देता है, 12 भाग माने जाते हैं। इन भागों को मेष, वृष आदि राशियों के नाम से पुकारा जाता है। ग्रह की स्थिति बतलाने के लिये मेषादि से लेकर ग्रह के राशि, अंग, कला, तथा विकला बता दिए जाते हैं। यह ग्रह का भोगांश होता है। सिद्धांत ग्रंथों में प्रायः एक वृत्तचतुर्थांश (90 अंश का चाप) के 24 भाग करके उसकी ज्याएँ तथा कोटिज्याएँ निकाली रहती है। इनका मान कलात्मक रहता है। 90 के चाप की ज्या वृहद्वृत्त का अर्धव्यास होती है, जिसे त्रिज्या कहते हैं। इसको निम्नलिखित सूत्र से निकालते हैं: परिधि = (३९२७ / १२५०) x व्यास इस प्रकार त्रिज्या का मान 3438 कला है, जो वास्तविक...