जयपुर चित्रकला शैली का स्वर्णकाल

  1. राजस्थान में चित्रकला
  2. ढूँढाड़ स्कूल
  3. जयपुर चित्रकला शैली {Jaipur Painting Style} राजस्थान GK अध्ययन नोट्स
  4. राजस्थान की चित्र शैली
  5. राजस्थान की चित्रकला : चित्र शैली
  6. राजस्थान की चित्रकला (भाग
  7. कैनवास पर शुरू किया चित्र बनाना, पहली बार राजस्थान ललित कला अकादमी ने दिया मंच


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राजस्थान में चित्रकला

राजस्थान की चित्रकला शैलियां- पृष्ठभूमि- ● राजस्थान चित्रकला का सर्वप्रथम वैज्ञानिक वर्गीकरण 'डॉ. आनन्द कुमार स्वामी' ने 1916 में किया। जिसके आधार पर उन्होंने राजस्थान चित्रकला को राजपूत शैली नाम दिया। ● एन.सी.मेहताने राजस्थानी चित्रशैली को 'हिन्दू चित्रकला शैली' नाम दिया। ●’रामकृष्ण दास’ ने सर्वप्रथम इस शैली को’राजस्थान चित्रशैली’ नाम दिया। ● कोटा जिले के अलनिया व दर्रा, आहड (उदयपुर), बैराठ (जयपुर) व दर (भरतपुर) के शैलाश्रयों में आदिम मानव के द्वारा उकेरे गये रेखांकन व चित्र प्रारंभिक चित्रण के उदाहरण मिलते है। इन्हें’’ अकारद चित्र’’कहा जाता है। ★ चित्रकला का उद्भव व विकास- ● राजस्थान में सर्वप्रथम चित्रण की शुरूआत ’ मेदपाट’(मेवाड़) में 15वीं सदी मे अपभ्रंश शैली में हुई। या गुर्जर प्रतिहार। ● राजस्थान में ताड़ पत्र पर चित्रित प्रथम ग्रंथ ’’ श्रावक प्रतिक्रमण सूत्रचूर्णि’’ है, जिले कमलचंद्र के द्वारा रचा गया जो 1260 में गुहिल वंशीय शासक तेजसिंह के समय रचा गया। ● राजस्थानी चित्रकला का उद्भव ’’अपभ्रंश शैली’’ से माना गया है। ● राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णकाल 17वीं-18वींसदी माना गया है। ★ राजस्थानी चित्रकला की प्रमुख विशेषताएं:- 1. लोक जीवन का सानिध्य, भाव प्रवणता का प्राचुर्य, विषय वस्तु का वैविध्य, विविध रंगों का प्रयोग, देश काल की अनुरूपता व प्राकृतिक परिवेश का चित्रण। 2. विभिन्न ऋतुओं का श्रृंगारिक चित्रण कर उनके मानव जीवन पर प्रभाव का अंकन। 3. प्रकृति का मानवीकरण, प्रकृति को जड़ न मानकर चेतन मानना। 4. नारी सौंदर्य का अद्भुत चित्रण। ★ राजस्थानी चित्रकला शैली का वर्गीकरण - अध्ययन की दृष्टि से राजस्थान की चित्रकला शैली को निम्न भागों में बांटकर अध्ययन किया जा सकता है- 1. मेवाड़...

ढूँढाड़ स्कूल

Table of Contents • • • • • • • • • जयपुर एवं उसके आस-पास का क्षेत्र ढूँढाड़ के नाम से जाना जाता है एवं यहाँ विकसित चित्र शैली को ढूँढाड़ चित्र शैली कहा जाता है। ढूँ ढाड़ स्कूल में आमेर शैली, जयपुर शैली, अलवर शैली, शेखावटी शैली तथा उणियारा उपशैली मुख्यत: शामिल की जाती हैं। आमेर शैली ढूंढाड़ शैली का प्रारम्भिक रूप जिसका विकास दो चरणों में हुआ। आमेर शैली का प्रारम्भिक चित्रित ग्रंथ ‘ आदिपुराण’ है जो 1540 ई. में पुष्पदत्त द्वारा चित्रित किया गया था। 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में ईसरदा ठिकाने में चित्रित ग्रंथ ‘ सचित्र भागवत’ आमेर शैली के प्रारम्भिक स्वरूप का प्रमुख उदाहरण है। रज्मनामा’ में आमेर शैली के 48 चितेरों के नामों का उल्लेख मिलता हैं जिन्होंने इस ग्रंथ को तैयार करने एवं चित्रित करने में सहयोग दिया था। यह ग्रंथ जयपुर के ‘ पोथीखाना’ में सुरक्षित है। आमेर यशोधरा चरित्र’ एवं मोजमाबाद में 1606 ई. में चित्रित ‘ आदिपुराण’ आमेर शैली का एक महत्वपूर्ण सचित्र ग्रंथ है जो आमेर शैली का तिथियुक्त क्रमिक विकास को स्पष्ट करते हैं। आमेर शैली में सचित्र ग्रंथों के अलावा भित्ति चित्रण परम्परा का भी विकास पर्याप्त मात्रा में हुआ है। आमेर शैली में भित्ति चित्र के प्रमाण आमेर शैली के विकास का दुसरा चरण रसिकप्रिया’ एवं ‘ कृष्ण रुक्मणि री वेलि’ आदि ग्रंथों का चित्रांकन करवाया जिसमें कृष्ण एवं गोपियों के युगल स्वरूप का चित्रण लोक शैली में हुआ है। इस शैली में प्राकृतिक रंगों जैसे गेरु, सफेदा, हिरमच, पेवड़ी, कालूस आदि का प्रयोग अधिक हुआ है। जयपुर शैली सन् 1727 ई. में जयपुर शैली’ के रूप में जानी गई। सूरतखाना’ भी एक है। सूरतखाने में जयपुर के चित्रकार चित्रों का निर्माण करते थे। सवाई जयसिंह के समय ...

जयपुर चित्रकला शैली {Jaipur Painting Style} राजस्थान GK अध्ययन नोट्स

• जयपुर शैली का युग 1600 से 1900 तक माना जाता है। जयपुर शैली के अनेक चित्र शेखावाटी में 18 वीं शताब्दी के मध्य व उत्तरार्द्ध में भित्ति चित्रों के रूप में बने हैं। इसके अतिरिक्त सीकर, नवलगढ़, रामगढ़, मुकुन्दगढ़, झुंझुनू इत्यादि स्थानों पर भी इस शैली के भित्ति चित्र प्राप्त होते हैं। • जयपुर शैली का विकास महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय के काल से शुरू होता हैं, जब 1727 ई. में जयपुर की स्थापना हुई। महलों और हवेलियों के निर्माण के साथ भित्ति चित्रण जयपुर की विशेषता बन गयी। => सवाई जयसिंह के उत्तराधिकारी ईश्वरीसिंह के समय साहिबराम नामक प्रतिभाशाली चितेरा था, जिसने आदमकद चित्र बनाकर चित्रकला की नयी परम्परा डाली। • जयपुर शैली के चित्रों में भक्ति तथा शृंगार का सुन्दर समंवय मिलता है। कृष्ण लीला, राग-रागिनी, रासलीला के अतिरिक्त शिकार तथा हाथियों की लड़ाई के अद्भुत चित्र बनाये गये हैं। विस्तृत मैदान, वृक्ष, मन्दिर के शिखर, अश्वारोही आदि प्रथानुरूप ही मीनारों व विस्तृत शैलमालाओं का खुलकर चित्रण हुआ है। जयपुर के कलाकार उद्यान चित्रण में भी अत्यंत दक्ष थे। उद्योगों में भांति-भांति के वृक्षों, पक्षियों तथा बन्दरों का सुन्दर चित्रण किया गया है। • मानवाकृतियों में स्त्रियों के चेहरे गोल बनाये गये हैं। आकृतियाँ मध्यम हैं। मीन नयन, भारी, होंठ, मांसल चिबुक, भरा गठा हुआ शरीर चित्रित किया गया है। नारी पात्रों को चोली, कुर्ती, दुपट्टा, गहरे रंग का घेरादार लहंगा तथा कहीं-कहीं जूती पहने चित्रित किया गया है। पतली कमर, नितम्ब तक झूलती वेणी, पांवों में पायजेब, माथे पर टीका, कानों में बालियाँ, मोती के झुमके, हार, हंसली, बाजुओं में बाजूबन्द, हाथों में चूड़ी आदि आभूषण मुग़ल प्रभाव से युक्त हैं। • स्त्रियो...

राजस्थान की चित्र शैली

राजस्थान की चित्रकला शैली पर गुजरात तथा कश्मीर की शैलियों का प्रभाव रहा है। ?राजस्थानी चित्रकला के विषय? 1. पशु-पक्षियों का चित्रण 2. शिकारी दृश्य 3. दरबार के दृश्य 4. नारी सौन्दर्य 5. धार्मिक ग्रन्थों का चित्रण आदि ??राजस्थानी चित्रकला शैलियों की मूल शैली मेवाड़ शैली है। सर्वप्रथम आनन्द कुमार स्वामी ने सन् 1916 ई. में अपनी पुस्तक “राजपुताना पेन्टिग्स”में राजस्थानी चित्रकला का वैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तुत किया। भौगौलिक आधार पर राजस्थानी चित्रकला शैली को चार भागों में बांटा गया है। जिन्हें स्कूलस कहा जाता है। ? 1.मेवाड़ स्कूल:-उदयपुर शैली, नाथद्वारा शैली, चावण्ड शैली, देवगढ़ शैली, शाहपुरा, शैली। ? 2.मारवाड़ स्कूल:- जोधपुर शैली, बीकानेर शैली जैसलमेर शैली, नागौर शैली, किशनगढ़ शैली। ? 3.ढुढाड़ स्कूल:- जयपुर शैली, आमेर शैली, उनियारा शैली, शेखावटी शैली, अलवर शैली। ? 4.हाडौती स्कूल:-कोटा शैली, बुंदी शैली, झालावाड़ शैली। ?? शैलियों की पृष्ठभूमि का रंग ??हरा – जयपुर की अलवर शैली ??गुलाबी/श्वेत – किशनगढ शैली ??नीला – कोटा शैली ??सुनहरी – बूंदी शैली ??पीला – जोधपुर व बीकानेर शैली ??लाल – मेवाड़ शैली ??पशु तथा पक्षी हाथी व चकोर – मेवाड़ शैली ??चील/कौआ व ऊंठ – जोधपुर तथा बीकानेर शैली ??हिरण/शेर व बत्तख – कोटा तथा बूंदी शैली ??अश्व व मोर:- जयपुर व अलवर शैली ??गाय व मोर – नाथद्वारा शैली वृक्ष ??पीपल/बरगद – जयपुर तथा अलवर शैली ??खजूर – कोटा तथा बूंदी शैली ??आम – जोधपुर तथा बीकानेर शैली ??कदम्ब – मेवाड़ शैली ??केला – नाथद्वारा शैली ??नयन/आंखे खंजर समान – बीकानेर शैली ??मृग समान – मेवाड शैली ??आम्र पर्ण – कोटा व बूंदी शैली ??मीन कृत:- जयपुर व अलवर शैली ??कमान जैसी – किशनगढ़ शैली ??बादाम जैसी...

राजस्थान की चित्रकला : चित्र शैली

राजस्थान की चित्रकला राजस्थानी चित्र शैली का पहला वैज्ञानिक विभाजन आनंद कुमार स्वामी ने किया था। उन्होंने 1916 में राजपूत पेंटिंग नामक पुस्तक लिखी जिसमें राजस्थानी चित्रकला पर प्रारंभ में जैन शैली गुजरात शैली और अपभ्रंश शैली का प्रभाव रहा किंतु 17वीं शताब्दी से मुगल साम्राज्य के प्रसार व राजपूतों के साथ बढ़ते राजनीतिक व वैवाहिक संबंधों के फलस्वरूप राजपूत चित्रकला पर मुगल शैली का प्रभाव बढ़ने लगा। राजस्थानी चित्र शैली विशुद्ध रूप से भारतीय है ऐसा मत विलियम लारेन्स ने प्रकट किया। राजस्थानी चित्रकला के विषय पशु-पक्षियों का चित्रण शिकारी दृश्य दरबार के दृश्य नारी सौन्दर्य धार्मिक ग्रन्थों का चित्रण आदि राजस्थानी चित्रकला शैलियों की मूल शैली मेवाड़ शैली है। राजस्थान की चित्र शैलियां / Painting भौगोलिक और सांस्कृतिक आधार पर राजस्थान की चित्रकला को चार शैलियों (Schools of Painting)में विभक्त कर सकते हैं, जिन्हें स्कूलस कहा जाता है। प्रत्येक शैली में एक से अधिक उपशैलियां है : मारवाड़ शैली: जोधपुर ,बीकानेर ,जैसलमेर ,किशनगढ़, अजमेर, नागौर शैली आदि। मेवाड़ शैली: उदयपुर, चावंड, नाथद्वारा ,देवगढ़ ,शाहपुरा शैली आदि। ढूंढाड़ शैली: आमेर ,जयपुर, शेखावाटी, अलवर ,उणियारा शैली आदि। हाडोती शैली : कोटा ,बूंदी झालावाड़ शैली, आदि। मारवाड़ चित्रकला शैली मारवाड़ शैली के विषय मूल रूप में अन्य शैलियों से भिन्न है। यहां मारवाड़ी साहित्य के प्रेमाख्यान पर आधारित चित्रण अधिक हुआ है। ढोला मारू रा दूहा, वेली कृष्ण रुक्मणी री, वीरमदेव सोनगरा री बात, मृगावती रास ,फूलमती री वार्ता आदि साहित्यिक कृतियों के चरित्र मारवाड़ चित्रकला के आधार रहे हैं। जोधपुर शैली : इस शैली का प्रारम्भिक विकास राव मालदेव (52 युद्धो...

राजस्थान की चित्रकला (भाग

राजस्थान की चित्रकला (भाग – I) Painting of Rajasthan (Part – I) 7-15 वीं सदी में अजंता शैली का प्रभाव था । 15 वीं सदी में मुग़ल शैली का प्रभाव था । 17-18 वीं सदी राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णकाल था । चित्रकला का नामकरण – • हिन्दू शैली –राजस्थानी चित्रकला को एन. सी. मेहता ने हिन्दू शैली कहा है । • राजस्थानी शैली – राजस्थानी चित्रकला को राम कृष्ण दास व कर्नल टॉड ने राजस्थानी शैली कहा है । • राजपूत शैली – राजस्थानी चित्रकला को आनंद कुमार स्वामी, ओ. सी. गाँगुली व हैवेल ने राजपूत शैली कहा है । • राजपूत कला – राजस्थानी चित्रकला को डब्लू. एच. ब्राउन महोदय ने इंडियन पंटिंग्स में राजपूत कला कहा है । • भारतीय चित्रकला का पितामह – रवि वर्मा (केरल) । रवि वर्मा में महाराणा प्रताप का चित्र बनाया था । • प्रथम भारतीय महिला चित्रकार – सुरजीत कुमारी चोयल • आधुनिक चित्रकला का जनक – कुंदन लाल मिस्त्री • राजस्थानी चित्रकला का प्रथम वैज्ञानिक विभाजन – आनंद कुमार स्वामी • एकल चित्रप्रियदर्शनी कला का वर्गीकरण – राम गोपाल विजयवर्गीय • मास्टर ऑफ़ नेचर लिविंग ऑब्जेक्ट (Master of Nature Living Object)– देवकीनंदन शर्मा (अलवर) राजस्थानी चित्रकला का उदभव – • तिब्बती इतिहासकार तारा नाथ भंडारी ने मारवाड़ में मरुप्रदेश में राजा शील के दरबार में शृंगाधर नामक चित्रकार का उल्लेख किया है । • दसेव कालिक सूत्र चूर्णी ,ओध नियुक्ति वृति राजस्थान का 1060 ई. का प्रथम चित्रित ग्रन्थ था। • आलनिया (कोटा) से शैलचित्र प्राप्त हुए थे। इनकी खोज श्रीधर वाकणकर ने की थी। • विराट नगर की पहाड़िया (वर्तमान – बैराट) से कंकाल के चित्र मिले है। इनकी खोज वी. ए. टॉलमी ने की थी। विराट नगर की पहाड़ियों को परयात्र भी कहा जाता है। • पुष्कर में...

कैनवास पर शुरू किया चित्र बनाना, पहली बार राजस्थान ललित कला अकादमी ने दिया मंच

राजस्थान ललित कला अकादमी की ओर से सोमवार से राज्य स्तरीय कैम्प की शुरुआत हुई। इसका उद्घाटन मुख्य अतिथि राजस्थान युवा बोर्ड के अध्यक्ष सीताराम लांबा, उपाध्यक्ष सुशील पारीक , पद्मश्री शाकिर अली, कलाविद् सुब्रतों मंडल और अकादमी के चेयरमैन लक्ष्मण व्यास मूर्तिकार ने कैनवास पर पेंट करते हुए किया। अकादमी के उप चेयरमैन डॉ मूलाराम गहलोत, सचिव डॉ रजनीश हर्ष व कला शिविर संयोजक अमित हारित सहित अकादमी के सदस्यों ने कलाकारों का स्वागत किया। राजस्थान ललित कला अकादमी के चेयरमैन मूर्तिकार लक्ष्मण व्यास ने जानकारी देते हुए बताया सोमवार से राजस्थान राज्य के विभिन्न शहरों और गांव के 50 कलाकारो का चित्रकला शिविर शुरू हुआ है । सका उद्घाटन मुख्य अतिथि राजस्थान युवा बोर्ड के अध्यक्ष सीताराम लांबा, उपाध्यक्ष सुशील पारीक , पद्मश्री शाकिर अली, कलाविद् सुब्रतों मंडल और अकादमी के चेयरमैन लक्ष्मण व्यास मूर्तिकार ने कैनवास पर पेंट करते हुए किया। इस युवा चित्रकार प्रोत्साहन कला शिविर में जयपुर सहित उदयपुर, अजमेर, अलवर, चितौड़‌गढ़, टोक, पाली, चूरू, बीकानेर, हनुमानगढ़, कोटा, बांसवाड़ा, झालावाड, किशनगढ़, वनस्थली, सीकर, जोधपुर, दौसा, सरदार शहर, राजगढ, बूंदी सवाईमाधोपुर आदि जगहों के कलाकारों शामिल हुए है । तीन दिन तक कलाकार अकादमी परिसर में रह कर लाइव पेंट करेंगे । अकादमी के उप चेयरमैन डॉ मूलाराम गहलोत, सचिव डॉ रजनीश हर्ष व कला शिविर संयोजक अमित हारित सहित अकादमी के सदस्यों ने कलाकारों का स्वागत किया। ये कलाकार हुए शामिल इसमें कृष्ण कुंडारा, विजय कुमावत, सुरेन्द्र सिंह, दिलीप डामोर, राम खिलाड़ी सैनी, श्रीकृष्ण महर्षि, सुमन जोशी, अजय मिश्रा, विकास मीणा, किर्ति सिंह, शिखा कुमारी, करुणा, अनुप्रिया राजावत, वर्षा झाला...