जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित नाटक नहीं है

  1. चन्द्रगुप्त नाटक
  2. चन्द्रगुप्त (नाटक)
  3. जयशंकर प्रसाद का 'गुंडा' अपराधी नहीं था
  4. प्रायश्चित्त (नाटक)
  5. [Solved] 'चन्‍द्रगुप्‍त' ना
  6. Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay In Hindi
  7. जयशंकर प्रसाद
  8. चन्द्रगुप्त by जयशंकर प्रसाद
  9. प्रायश्चित्त (नाटक)
  10. जयशंकर प्रसाद


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चन्द्रगुप्त नाटक

चन्द्रगुप्त नाटक का प्रकाशन 1931 में हुआ। चंद्रगुप्त के जन्म के पहले तक मौर्य वंश ने कोई भी ऐतिहासिक कार्य नहीं किया था। तब तक मौर्य शब्द का कोई नामोनिशान नहीं था। चंद्रगुप्त के कारण मौर्य वंश का नाम सर्वत्र फैला केवल भारतवर्ष ही नहीं बल्कि ग्रीस आदि समस्त देशों से परिचित करा दिया। नाटक के पात्र चाणक्य ( विष्णुगुप्त) – मौर्य साम्रज्य का निर्माता। मुख्य पात्र। नाटक पूरा इसी पात्र के ऊपर निर्भर है। चंद्रगुप्त – मौर्य-सम्राट। नाटक का नायक है। जो कि निर्भीक, दृढ़ और आत्मविश्वास से परिपूर्ण है नंद – मगध का सम्राट। राक्षस – मगध का अमात्य। वररुचि (कात्यायन) – मगध का अमात्य। शकटार –मगध का मंत्री। आम्भीक – तक्षशिला का राजकुमार। पर्वतेश्वर– पंजाब का राजा (पोरस)। सिंहरण – मालव गण-मुख्य का कुमार। जो कि एक गौण पात्र है। लेकिन चाणक्य, चन्द्रगुप्त, अलका, आम्भीक इन सभी पात्रों पर इसका प्रभाव है। नाटक को प्रचालित करने का कार्य करता है। सिकंदर – ग्रीक-विजेता। फिलिप्स – सिकंदर का क्षत्रप। मौर्य सेनापति – चंद्रगुप्त का पिता। एनिसाक्रिटीज़ – सिकंदर का सहचर। देवबल, नागदत्त, गण-मुख्य – मालव-गणतंत्र के पदाधिकारी। साइबर्टियस, मेगास्थनीज – यवन दूत। गांधार-नरेश – आम्भीक का पिता। सिल्यूकस – सिकंदर का सेनापति। दण्डयायन – एक तपस्वी। अलका – मुख्य नारी पात्र। गांधार नरेश की पुत्री। तक्षशिला की राजकुमारी। आम्भीक की बहन। राजकुमारी दयालु, गुणी और साहसी थी। सुवासिनी – शकटार की कन्या। कल्याणी –मगध-राजकुमारी। नीला, लीला – कल्याणी की सहेलियाँ। मालविका – सिंधु-देश की कुमारी। मुख्य नारी पात्र। यह एक संघर्षशील, स्वाभिमानी स्त्री है। जो कि अशिक्षित भी है। कार्नेलिया – सिल्यूकस की कन्या। मौर्य-पत्नी – चंद्रगुप्त की म...

चन्द्रगुप्त (नाटक)

चन्द्रगुप्त (सन् 1931 में रचित) हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार जयशंकर प्रसाद का प्रमुख नाटक है। इसमें विदेशियों से भारत का संघर्ष और उस संघर्ष में भारत की विजय की थीम उठायी गयी है। प्रसाद जी के मन में भारत की गुलामी को लेकर गहरी व्यथा थी। इस ऐतिहासिक प्रसंग के माध्यम से उन्होंने अपने इसी विश्वास को वाणी दी है। शिल्प की दृष्टि से इसकी गति अपेक्षाकृत शिथिल है। इसकी कथा में वह संगठन, संतुलन और एकतानता नहीं है, जो ‘स्कंदगुप्त’ में है। अंक और दृश्यों का विभाजन भी असंगत है। चरित्रों का विकास भी ठीक तरह से नहीं हो पाया है। फिर भी ‘चंद्रगुप्त’ हिंदी की एक श्रेष्ठ नाट्यकृति है, प्रसाद जी की प्रतिभा ने इसकी त्रुटियों को ढंक दिया है। ‘चन्द्रगुप्त’, जय शंकर प्रसाद जी द्वारा लिखित नाटक है जो हिंदी-साहित्य के क्षेत्र में बहुत ही नामी-गिरामी पुस्तक है। यह नाटक मौर्य साम्राज्य के संस्थापक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ के उत्थान की कथा नाट्य रूप में कहता है। यह नाटक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ के उत्थान के साथ-साथ उस समय के महाशक्तिशाली राज्य ‘मगध’ के राजा ‘धनानंद’ के पतन की कहानी भी कहता है। यह नाटक ‘चाणक्य’ के प्रतिशोध और विश्वास की कहानी भी कहता है। यह नाटक राजनीति, कूटनीति, षड़यंत्र, घात-आघात-प्रतिघात, द्वेष, घृणा, महत्वाकांक्षा, बलिदान और राष्ट्र-प्रेम की कहानी भी कहता है। यह नाटक ग्रीक के विश्वविजेता सिकंदर या अलेक्सेंडर या अलक्षेन्द्र के लालच, कूटनीति एवं डर की कहानी भी कहता है। यह नाटक प्रेम और प्रेम के लिए दिए गए बलिदान की कहानी भी कहता है। यह नाटक त्याग और त्याग से सिद्ध हुए राष्ट्रीय एकता की कहानी भी कहता है। ‘चन्द्रगुप्त’ और ‘चाणक्य’ के ऊपर कई विदेशी और देशी लेखकों ने बहुत कुछ लिखा है। अलग-अलग प्रका...

जयशंकर प्रसाद का 'गुंडा' अपराधी नहीं था

आपने स्कूल की पढ़ाई सीबीएसई बोर्ड से की हो, आईसीएससी बोर्ड से की हो या फिर किसी स्टेट बोर्ड से. हिंदी की किताबों को पलटते समय आपने प्रेमचंद का नमक का दरोगा और जयशंकर प्रसाद की कामायनी, गुंडा, आंसू जैसी किसी न किसी कहानी को जरूर पढ़ा होगा. बीसवीं सदी की शुरुआत में जब देश में अग्रेंजी हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद की जा रही थी, उस समय तमाम लेखक और कवि अपने शब्दों में क्रांति भर कर लोगों को जागरूक करने का काम कर रहे थे. इन जोशीली कहानियों को पढ़कर लोगों के अंदर राष्ट्रवाद की भावना ओत-प्रोत होने लगती थी. उसी दौर में छायावाद और राष्ट्रवाद को एक सूत्र में बांधते हुए आम जनमानस के दिलों में जयशंकर प्रसाद अपनी अमिट छाप छोड़ रहे थे. यह हमारी विडंबना है कि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा के साथ हिंदी साहित्य के छायावाद के चौथे स्तंभ के रूप में प्रसिद्ध जयशंकर प्रसाद को आजतक हिंदी साहित्य का कोई बड़ा पुरस्कार नहीं दिया गया. जबकि कहानी लेखन में प्रेमचंद के नाम पर तो अनगिनत सम्मान और पुरस्कार दिए गए लेकिन उनके समकालीन रहे प्रसाद के नाम पर किसी पुरस्कार की घोषणा तक नहीं हुई. जयशंकर प्रसाद के पोते किरन प्रसाद बताते हैं, ‘यह हिंदी साहित्य का दुर्भाग्य है कि उसने इस महाकवि की प्रतिभा को सही मुकाम नहीं दिया और उन्हें सबसे ज्यादा अनदेखा किया गया. हमारे दादा भारत रत्न से भी ऊपर मानवरत्न के हकदार हैं.’ केंद्र या राज्य में किसी भी पार्टी की सरकार सत्ता में आई हो किसी ने भी जयशंकर प्रसाद के सम्मान लिए कोई कार्य नहीं किया. किरन प्रसाद बड़े दुखी मन से आगे कहते हैं,’जयशंकर प्रसाद बनारस में पैदा हुए और सारी जिंदगी उन्होंने यहीं बिता दी, लेकिन उनको सभी सरकारों ने उपेक्षित किय...

प्रायश्चित्त (नाटक)

"यह नाटक प्रसाद जी का पहला नाटक है जिसमें 'राष्ट्रप्रेम' को मूल्य मानकर 'देशद्रोह' का प्रायश्चित्त 'आत्मवध' माना गया है। इसमें भावना का एकांगीपन अधिक है। नाटक में उस प्रकार की बौद्धिकता नहीं है जैसी स्कन्दगुप्त, चन्द्रगुप्त आदि में मिलती है। चरित्रों में अन्तर्द्वन्द्व और आत्मसंघर्ष की शुरुआत अवश्य है।" इन्हें भी देखें [ ] • सन्दर्भ [ ]

[Solved] 'चन्‍द्रगुप्‍त' ना

'चन्‍द्रगुप्‍त' नाटक के रचयिता जयशंकर प्रसाद है,अन्य विकल्प असंगत है। अत: विकल्प 2 ' जयशंकर प्रसाद' सही उत्तर होगा। Key Points ' चन्द्रगुप्त ', जय शंकर प्रसाद जी द्वारा लिखित नाटक है जो हिंदी-साहित्य के क्षेत्र में बहुत ही नामी-गिरामी पुस्तक है। इसमें विदेशियों से भारत का संघर्ष और उस संघर्ष में भारत की विजय की थीम उठायी गयी है। प्रसाद जी के मन में भारत की गुलामी को लेकर गहरी व्यथा थी।यह नाटक मौर्य साम्राज्य के संस्थापक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ के उत्थान की कथा नाट्य रूप में कहता है। यह नाटक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ के उत्थान के साथ-साथ उस समय के महाशक्तिशाली राज्य ‘मगध’ के राजा ‘धनानंद’ के पतन की कहानी भी कहता है। यह नाटक ‘चाणक्य’ के प्रतिशोध और विश्वास की कहानी भी कहता है। यह नाटक राजनीति, कूटनीति, षड़यंत्र, घात-आघात-प्रकांक्षा तिघात, द्वेष, घृणा, महत्वा , बलिदान और राष्ट्र-प्रेम की कहानी भी कहता है। यह नाटक ग्रीक के विश्वविजेता सिकंदर या अलेक्सेंडर या अलक्षेन्द्र के लालच, कूटनीति एवं डर की कहानी भी कहता है। यह नाटक प्रेम और प्रेम के लिए दिए गए बलिदान की कहानी भी कहता है। यह नाटक त्याग और त्याग से सिद्ध हुए राष्ट्रीय एकता की कहानी भी कहता है। ‘चन्द्रगुप्त’ और ‘चाणक्य’ के ऊपर कई विदेशी और देशी लेखकों ने बहुत कुछ लिखा है। Additional Information • जयशंकर प्रसाद(30 जनवरी 1889 - 15 नवंबर 1937),हिन्दीकवि, नाटककार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। • वे हिन्दी केछायावादी युगके चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। • उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह सेछायावादकी स्थापना की जिसके द्वाराखड़ी बोलीके काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के...

Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay In Hindi

इसमें आप पढ़ेंगे। • • • • • • • • • • • • जयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह एक महान कवि, नाटककार, दार्शनिक एवं सच्चे देशप्रेमी थे। उनका नाम छायावादी काव्य-धारा के प्रवर्तक के रूप में लिया जाता है। जयशंकर प्रसाद ने हिन्दी साहित्य में नूतन काल की चेतना का प्रादुर्भाव किया। जयशंकर प्रसाद जी ने अपने रचना के वलबूते काव्य के विषय क्षेत्र में अमूल्य परिवर्तन किए। इस कारण से जय शंकर प्रसाद को छायावाद काव्य के जन्मदाता भी कहा जाता है। जयशंकर प्रसाद जी को बचपन से ही काव्य रचना में रुचि थी। प्रारंभ में उन्होंने ब्रजभाषा में कविता लिखना शुरू किया। उन्होंने मात्र 9 साल की अवस्था में ही व्रजभाषा में ‘कलाधर’ नामक एक सवैया की रचना की थी। . जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय(Jaishankar prasad ka jivan parichay in Hindi) उन्हें काव्य के साथ नाटक, उपन्यास और कहानी लिखने में भी निपुणता हासिल थी। कहानीकार के रूप में भी जयशंकर प्रसाद अपना विशेष स्थान रखते हैं। जयशंकर प्रसाद ने इंदु नामक मासिक पत्रिका का भी सम्पादन किया। हिंदी के प्रख्यात लेखक जयशंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय पढ़ने से पता चलता है की उन्हें महिलाओं के प्रति अपार श्रद्धा था। यह बात उनके काव्य के कुछ पंक्ति से भी मालूम पड़ता है। “नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पद तल में। पीयूस स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।।“ jayshankar prasad इस लेख में जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय हिंदी में पूरा नाम (Full Name) जयशंकर प्रसाद (English – Jaishankar Prasad) जन्म तिथि – 30 जनवरी 1890 ईस्वी जन्म स्थान – वाराणसी के पास, उत्तरप्रदेश माता का नाम श्रीमती मुन्नी देवी पिता का नाम बाबू देवीप्रसाद साहू पत्नी का नाम कमला देवी पेशा कवि और लेख...

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) का Jaishankar Prasad जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं पर प्रकाश डालिए। जयशंकर प्रसाद आधुनिक छायावाद के प्रवर्तक, उन्नायक तथा प्रतिनिधि कवि होने के साथ ही युग-प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रसिद्ध सुघनी साहू नामक वैश्य परिवार में सन 1889 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा तो ठीक प्रकार हुई, परन्तु अल्पायु में ही माता-पिता का देहान्त हो जाने के कारण उसमें बाधा पड़ गई और व्यवसाय तथा परिवार का समस्त उत्तरदायित्व प्रसाद जी पर आ गया। परिवार का जिम्मेदारी होते हुए भी श्रेष्ठ साहित्य लिखकर प्रसाद जी ने अनेक अमूल्य रत्न हिन्दी साहित्य को प्रदान किए। परन्तु प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे ऋणग्रस्तता, मुकदमेबाजी, परिजनों की मृत्यु, आदि ने इन्हें रोगग्रस्त कर दिया और 48 वर्ष की अल्पायु में ही 1937 ई. में इनका निधन हो गया। रचनाएँ प्रसाद जी एक श्रेष्ठ कवि, नाटककार, निबन्धकार और आलोचक थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं- • काव्य –‘चित्राधार’, ‘लहर’, ‘झरना’, ‘प्रेम पथिक’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’। • नाटक –‘चन्द्रगुप्त’, ‘स्कन्दगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘अजातशत्रु’, ‘राज्यश्री, ‘विशाख’, ‘कल्याणी परिणय’ और ‘जनमेजय का नागयज्ञ’। • उपन्यास –‘कंकाल’, ‘तितली’ एवं ‘इरावती’। • ‘काव्यकला और अन्य निबन्ध’ नामक निबन्ध संग्रह में आपके लिखे निबन्ध संकलित है। • इसके अतिरिक्त आपने 69 कहानियाँ लिखकर हिन्दी साहित्य का श्री वृद्धि की है। ‘ पुरस्कार‘, ‘ देवरथ‘, ‘ आकाशदीप‘ आपकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं। प्रसाद जी के महाकाव्य ‘ कामायनी‘ में मनु, श्रद्धा और इड़ा की कथा है, लेकिन सूक्ष्म रू...

चन्द्रगुप्त by जयशंकर प्रसाद

Play by Jaishankar Prasad विलासिता, पारिवारिक कलह, ईष्या आदि की भी कमी नहीं रही है, जिन के कारण यहां शकों, हूणों, मुगलों आदि के हमले होते रहे और हम सदियों तक गुलाम रहे. मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त ने अपनी सूझबूझ और बाहुबल पर, भारत की ओर बढ़ते विदेशी हमलावर सिकंदर को रोका था. इसी चन्द्रगुप्त को केंद्र में रखकर जयशंकर 'प्रसाद' ने 'चन्द्रगुप्त' शीर्षक से नाटक की रचना की है, जिस में भारतीय, दर्शन एवं संस्कृति की झलक मिलती है. प्रसंगवश, प्रेम, सौंदर्य आदि सरस अनुभूतियों से परिपूर्ण यह नाटक इतिहास एवं साहित्य प्रेमियों और छात्रों के लिए ही नहीं, प्रत्येक भारतीय पाठक के लिए भी उपयोगी, पठनीय एवं संग्रहनीय है. Jaishankar Prasad, a most celebrated personality related to the modern Hindi literature and Hindi theatre, was born at 30th January in the year 1889 and died at 14th January in the year 1937. He was a great Indian poet, novelist and dramatist, born in the simple madheshiya Teli Vaisya family of the Varanasi, UP, India. His father (named Babu Devki Prasad, also called as the Sunghani Sahu) has his own business related to the tobacco dealing. Jaishankar Prasad had to face some financial problems in his family as he has lost his father in his young age. Because of such financial problems, he could not study further than 8th class. However, he was so keen to know many languages, past histories and Hindi literature, that’s why he continued his study at home. As he continued his study, he was influenced much from the Vedas which imitated him in the deep philosophical ri...

प्रायश्चित्त (नाटक)

"यह नाटक प्रसाद जी का पहला नाटक है जिसमें 'राष्ट्रप्रेम' को मूल्य मानकर 'देशद्रोह' का प्रायश्चित्त 'आत्मवध' माना गया है। इसमें भावना का एकांगीपन अधिक है। नाटक में उस प्रकार की बौद्धिकता नहीं है जैसी स्कन्दगुप्त, चन्द्रगुप्त आदि में मिलती है। चरित्रों में अन्तर्द्वन्द्व और आत्मसंघर्ष की शुरुआत अवश्य है।" इन्हें भी देखें [ ] • सन्दर्भ [ ]

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) का Jaishankar Prasad जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं पर प्रकाश डालिए। जयशंकर प्रसाद आधुनिक छायावाद के प्रवर्तक, उन्नायक तथा प्रतिनिधि कवि होने के साथ ही युग-प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रसिद्ध सुघनी साहू नामक वैश्य परिवार में सन 1889 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा तो ठीक प्रकार हुई, परन्तु अल्पायु में ही माता-पिता का देहान्त हो जाने के कारण उसमें बाधा पड़ गई और व्यवसाय तथा परिवार का समस्त उत्तरदायित्व प्रसाद जी पर आ गया। परिवार का जिम्मेदारी होते हुए भी श्रेष्ठ साहित्य लिखकर प्रसाद जी ने अनेक अमूल्य रत्न हिन्दी साहित्य को प्रदान किए। परन्तु प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे ऋणग्रस्तता, मुकदमेबाजी, परिजनों की मृत्यु, आदि ने इन्हें रोगग्रस्त कर दिया और 48 वर्ष की अल्पायु में ही 1937 ई. में इनका निधन हो गया। रचनाएँ प्रसाद जी एक श्रेष्ठ कवि, नाटककार, निबन्धकार और आलोचक थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं- • काव्य –‘चित्राधार’, ‘लहर’, ‘झरना’, ‘प्रेम पथिक’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’। • नाटक –‘चन्द्रगुप्त’, ‘स्कन्दगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘अजातशत्रु’, ‘राज्यश्री, ‘विशाख’, ‘कल्याणी परिणय’ और ‘जनमेजय का नागयज्ञ’। • उपन्यास –‘कंकाल’, ‘तितली’ एवं ‘इरावती’। • ‘काव्यकला और अन्य निबन्ध’ नामक निबन्ध संग्रह में आपके लिखे निबन्ध संकलित है। • इसके अतिरिक्त आपने 69 कहानियाँ लिखकर हिन्दी साहित्य का श्री वृद्धि की है। ‘ पुरस्कार‘, ‘ देवरथ‘, ‘ आकाशदीप‘ आपकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं। प्रसाद जी के महाकाव्य ‘ कामायनी‘ में मनु, श्रद्धा और इड़ा की कथा है, लेकिन सूक्ष्म रू...