काँसे का प्रयोग लगभग कबसे होने लगा

  1. Sarvanam in Hindi सर्वनाम
  2. भारत में प्रागैतिहासिक काल
  3. NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core
  4. ताम्रपाषाण संस्कृतियाँ ( Chalcolithic Cultures ) प्राचीन भारतीय इतिहास
  5. freeze मे प्रयोग होने वाली गैसों की जानकारी विस्तार से
  6. The History Pandit: कांस्य युग
  7. Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन – Bihar Board Solutions
  8. सा प्रथम संस्कृति विश्ववारा


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Sarvanam in Hindi सर्वनाम

In this page we are providing all Sarvanam in Hindi Examples – सर्वनाम Sarvanam (Pronoun) in Hindi Grammar सर्वनाम संज्ञा के स्थान पर जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें ‘सर्वनाम’ कहते हैं। “राजीव देर से घर पहुंचा, क्योंकि उसकी ट्रेन देर से चली थी।” इस वाक्य में ‘उसकी’ का प्रयोग ‘राजीव’ के लिए हुआ है, अतः ‘उसकी’ शब्द सर्वनाम कहा जाएगा। हिन्दी में सर्वनामों की संख्या 11 हैं, जो निम्न हैं- मैं, तू, आप, यह, वह, जो, सो, कोई, कुछ, कौन, क्या। सर्वनाम के भेद व्यावहारिक आधार पर सर्वनाम के निम्नलिखित छ: भेद हैं- परिभाषा प्रकार प्रयोग अभ्यास सर्वनाम संज्ञाओं की पुनरावृत्ति को रोककर वाक्यों को सौंदर्ययुक्त बनाता है। नीचे लिखे वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें • पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के दरम्यान ऑक्सीजन मुक्त करते हैं। • पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित बनाए रखते हैं। • पेड़-पौधे विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं। • पेड़-पौधे भू-क्षरण को रोकते हैं। • पेड़-पौधों से हमें फल-फूल, दवाएँ, इमारती लकड़ियाँ आदि मिलते हैं। अब इन वाक्यों पर गौर करें- • पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के दरम्यान ऑक्सीजन मुक्त करते हैं। • वे पर्यावरण को संतुलित बनाए रखते हैं। • वे विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं। • वे भू-क्षरण को रोकते हैं। • उनसे हमें फल-फूल, दवाएँ, इमारती लकड़ियाँ आदि मिलते हैं। आपने क्या देखा? प्रथम पाँचों वाक्यों में संज्ञा ‘पेड़-पौधे’ दुहराए जाने के कारण वाक्य भद्दे हो गए जबकि नीचे के पाँचों वाक्य सुन्दर हैं। आपने यह भी देखा कि ‘वे’ और ‘उनसे’ पद ‘पेड़-पौधे’ की ओर संकेत करते हैं। अतएव, सर्वनाम वैसे शब्द हैं, जो संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होते हैं। ‘उक्त वाक्यों में...

भारत में प्रागैतिहासिक काल

Table of Contents • • • • • • • भारत में प्रागौतिहासिक काल के इतिहास प्रागैतिहासिक काल मानव-प्रगति का वह काल है जिसके इतिहास का ज्ञान हमें नहीं है। भारत में मानव-अस्तित्व के प्रारम्भ से ही मानव का अस्तित्व स्वीकार किया गया है। इस कारण भारत में मानव-प्रगति का यह अत्यधिक लम्बा समय ही प्रागैतिहासिक काल माना जाता है। मनुष्य की उस प्रगति को जिसके इतिहास का ज्ञान हमें नहीं है परन्तु जिसका ज्ञान हम पुरातत्व सम्बन्धी खोजों के आधार पर कर सके हैं, हम प्रागैतिहासिक काल में सम्मिलित करते हैं। इस दृष्टि से मनुष्य की प्रगति के समय को निम्नलिखित विभिन्न भागों में बाँटा गया है- • पुरापाषाण काल ( Palaeolithic Age) सम्भवतया 500000 वर्ष पूर्व द्वितीय हिम-युग के आरम्भ-काल में पुरापाषाण-काल को भी अब तीन भागों में विभक्त किया गया है- • पूर्व-पुरापाषाण काल ( Lower Palaeolithic Age)- के अवशेष उत्तर-पश्चिम के सोहन क्षेत्र (सोहन सिन्धु नदी की एक सहायक नदी थी) में प्राप्त हुए हैं। इस काल के अवशेष नर्मदा नदी तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियों में प्रायः आधे दर्जन स्थानों से प्राप्त हुए हैं। नर्मदा नदी की घाटी में नरसिंहपुर और नर्मदा नदी के निकट ही मध्य-प्रदेश में भीमवेटका की गुफाओं में इस समय के अवशेष पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध किये जा चुके हैं; • मध्य-पुरापाषाण काल ( Middle Palaeolithic Age)- इस काल के अवशेष सिन्ध, राजस्थान, मध्य-भारत, उड़ीसा, उत्तरी आन्ध्र, उत्तरी महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों में पाये गये हैं; और • उत्तर पुरापाषाण काल ( Upper Palaeolithic Age)- इस समय के अवशेष हाल ही में इलाहाबाद की बेलनघाटी, आन्ध्र प्रदेश में बेटमचेली तथा कर्नाटक के शोरापुर और बीजापुर जिलों में...

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core – पूरक पाठ्यपुस्तक – राजस्थान की रजत बूँदें लेखक परिचय अनुपम मिश्र अनुपम मिश्र का जन्म 1948 ई. में महाराष्ट्र के वर्धा में हुआ। ये पर्यावरण प्रेमी हैं तथा पर्यावरण संबंधी कई आंदोलन से घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे हैं। इन्होंने लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का अभियान भी छेड़ा है। ये 1977 ई. से गाँधी शांति प्रतिष्ठान के पर्यावरण कक्ष से संबद्ध रहे हैं। इन्होंने पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर कई पुस्तकें लिखी हैं। पाठ का सारांश यह रचना राजस्थान की जल-समस्या का समाधान मात्र नहीं है, बल्कि यह जमीन की अतल गहराइयों में जीवन की पहचान है। यह रचना धीरे-धीरे भाषा की ऐसी दुनिया में ले जाती है जो कविता नहीं है, कहानी नहीं है, पर पानी की हर आहट की कलात्मक अभिव्यक्ति है। लेखक राजस्थान की रेतीली भूमि में पानी के स्रोत कुंई का वर्णन करता है। वह बताता है कि कुंई खोदने के लिए चेलवांजी काम कर रहा है। वह बसौली से खुदाई कर रहा है। अंदर भयंकर गर्मी है। गर्मी कम करने के लिए बाहर खड़े लोग बीच-बीच में मुट्ठी भर रेत बहुत जोर से नीचे फेंकते हैं। इससे ताजी हवा अंदर आती है और गहराई में जमा दमघोंटू गर्म हवा बाहर निकलती है। चेलवांजी सिर पर काँसे, पीतल या अन्य किसी धातु का बर्तन टोप की तरह पहनते हैं, ताकि चोट न लगे। थोड़ी खुदाई होने पर इकट्ठा हुआ मलवा बाल्टी के जरिए बाहर निकाला जाता है। चेलवांजी कुएँ की खुदाई व चिनाई करने वाले प्रशिक्षित लोग होते हैं। कुंई कुएँ से छोटी होती है, परंतु गहराई कम नहीं होती। कुंई में न सतह पर बहने वाला पानी आता है और न भूजल। मरुभूमि में रेत अत्यधिक है। यहाँ वर्षा का पनी शीघ्र भूमि में समा जाता है। रेत की सतह से दस पंद्रह हाथ से पचास-साठ ...

ताम्रपाषाण संस्कृतियाँ ( Chalcolithic Cultures ) प्राचीन भारतीय इतिहास

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • भूमिका इसका नाम ताम्रपाषाण संस्कृति इसलिए कहते हैं क्योंकि मानव ने इस चरण में पाषाण व ताँबे का प्रयोग एक साथ किया अर्थात् ताँबे और पत्थर के उपयोग की अवस्था ( the copper-stone phase )। ताम्रपाषाण को अँग्रेजी में Chalcolithic कहा जाता है; यह दो यूनानी ( Greek ) शब्दों से मिलकर बना है :- Chalcolithic = khalkos + lithos : Khalkos = ‘copper’ और Lithos = ‘stone’। इसको ताम्रकाल ( Copper age ) भी कहते हैं। भारतीय उप-महाद्वीप के आन्तरिक भू-भागों में विकसित ये ताम्रपाषाण संस्कृतियाँ धातु का प्रयोग करती थीं, परन्तु वह नागर-संस्कृति के स्तर तक कभी नहीं पहुँची। तकनीकी रूप से नवपाषाणकाल के बाद धातुकाल आता है। इस धातु में क्रमशः ताँबा, काँसा व लौह युग आया। दूसरे शब्दों में कहें तो तकनीकी दृष्टि से ताम्रपाषाण अवस्था हड़प्पा की काँस्ययुगीन संस्कृति से पूर्ववर्ती और नवपाषाणकाल से पश्चातवर्ती है। भारतीय उप-महाद्वीप में इस समयक्रम के पालन में बड़ी विचित्र दशा पायी गयी है। भारतवर्ष अत्यंत विशाल है और यह सांस्कृतिक विकास-क्रम यहाँ पर सरल रेखीय नहीं पाया जाता है। जहाँ पश्चिमोत्तर में नवपाषाणकाल के बाद ताम्रपाषाण युग आया और आगे उसी पर काँस्य युगीन सैन्धव-नागर सभ्यता का विकास हुआ। वहीं भारतीय भू-भाग के आन्तरिक क्षेत्रों में ताम्रकाल तो आया पर काँस्यकाल या तो आया ही नहीं अथवा बहुत सीमित प्रयोग देखने को मिलता है। अर्थात् ये ताम्रपाषाण संस्कृति प्राक्-हड़प्पा भी है, हड़प्पा की समकालीन भी है और कुछ क्षेत्रों में पश्चातवर्ती भी। ताम्रपाषाण युग के लोग अधिकांशतः पत्थर और ताँबे की वस्तुओं का प्रयोग करते थे, किंतु कभी-कभी वे घट...

freeze मे प्रयोग होने वाली गैसों की जानकारी विस्तार से

‌‌‌आप लोग भी अपने घर के अंदर फ्रीज का यूज करते होंगे और आपके दिमाग मे कभी ना कभी यह प्रश्न आया होगा कि freeze me konsi gas hoti hai । जिसकी वजह से हम जो कुछ भी फ्रीज के अंदर रख देते हैं वह आसानी से ठंडा हो जाता है। दोस्तों पदार्थ को ठंडा करने के लिए वैसे तो फ्रीज के अंदर अनेक प्रकार की गैस यूज ‌‌‌की जाती हैं ।लेकिन साथ ही यूज की जाने वाली गैस की प्रक्रति के बारे मे भी पहले देखा जाता है। कुछ गैसों की खास प्रक्रति होती है उन्हीं को फ्रीज मे यूज किया जाता है। Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • रेफ्रिजरेंट गैस क्या होती है? दोस्तों फ्रीज के अंदर यूज की जाने वाली गैस एक रसायनिक गैस होती है। वाष्पीकरण के बहुत कम बिंदु होते हैं और आसपास की हवा को ठंडा करने के लिए इसको दबाव मे संघनित किया जाता है।वाष्पीकरण और संघनन प्रक्रिया से गुजरती हैं तो सारी गर्मी बाहर खींच लेती हैं और अंदर का तापमान ‌‌‌कम कर देती हैं। 20 वीं शताब्दी में के अंदर जो फ्रीज आते थे , उनके अंदर क्लोरोफ्लोरोकार्बन का उपयोग किया जाता था। लेकिन वैज्ञानिक रिसर्च के अंदर यह साबित हो गया कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन बहुत घटिया गैस होती है और इसके उपयोग से हमारी ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है। हालांकि अब इसका प्रयोग बंद हो चुका है। ‌‌‌फ्रीज मे प्रयोग की जाने वाली गैसों का संक्षिप्त इतिहास 1920 तक 1800 के शुरुआती दौर के अंदर फ्रीज मे केवल जहरीली गैसों का प्रयोग किया जाता था ।उसके बाद सन 1970 के आस पास वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया कि क्लोरीन, फ्लोरीन और कार्बन्स का मिश्रण वाली यह गैंसे वायुमंडल के लिए बहुत अधिक खतरनाक ‌‌‌होती हैं । ‌‌‌जब यह गैंसे वायुमंडल के अंदर रिसाव करती हैं तो यह हमारी ओजोन परत को क्षति...

The History Pandit: कांस्य युग

कांस्य युगीन सभ्यता में नगरों का उदय हुआ था | इस कारण इसे नगरीय सभ्यता भी कहते हैं | विश्व में कांस्य युग लगभग 2500 ई.पू. के आस - पास रहा है | मनुष्य अपनी प्रारंभिक अवस्था अर्थात पाषण काल में पत्थरों का प्रयोग करता था , उसी के हथियार बनाता था | किन्तु यह हथियार मजबूत नहीं होते थे , जल्दी टूट जाया करते थे | किन्तु आगे चलकर मनुष्य को ताम्बा नामक धातु से परिचय हुआ | ताम्बा व पत्थरों से मनुष्य ओजार व हथियार बनाने लगा | इस कारण इस काल को '' ताम्र - पाषण काल '' कहा गया | सबसे पहले ताम्बे का प्रयोग लगभग 5000 ई.पू. में किया गया | प्रारम्भ में मनुष्य नदी घाटी के किनारे जो ताम्बा मिलता था , उसका प्रयोग करता था | बाद में उसने खानों से ताम्बा निकालना सीख लिया | जिस सभ्यता में ताम्बा नहीं मिलता था , उन सभ्यताओं ने दूसरी सभ्यताओं से ताम्बा आयात करना प्रारम्भ किया | इस प्रकार विश्व - व्यापार का विकास हुआ | आगे चलकर ताम्बे के साथ टीन या जस्ता मिलाकर कांसा नमक धातु बनाना भी मनुष्य ने सीख लिया | कांसा , ताम्बे से अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ | इसका कारण है यह था कि ताम्बा अधिक कठोर होने से हथियार , औजार आदि मजबूत नहीं बनते थे | जबकि कांसे से औजार या हथियार मजबूत बना करते थे | अतः इस समय इसका अत्यधिक प्रयोग होना प्रारम्भ हुआ | इस कारण इस समय या युग को '' कांस्य युग '' कहा गया | इस समय विश्व में चार कांस्य युगीन सभ्यताएँ थीं - ( 1 ) - सिन्धु घाटी की सभ्यता , जो कि सिन्धु नदी के किनारे और उसके आस - पास विकसित हुई | ( 2 ) - चीन की सभ्यता , जो कि ह्वांग - हो नदी के किनारे व उसके आस - पास विकसित हुई | ( 3 ) - मैसोपोटामिया की सभ्यता , जो कि दजला और फरात नदी के आस - पास विकसित हुई | यह क्षेत्र वर्तमान में...

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन – Bihar Board Solutions

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे? उत्तर: यह बात निःसंकोच कही जा सकती है कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे। इस बात के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं • प्राकृतिक उर्वरता उन्नत खेती का आधार बनी। • प्राकृतिक उर्वरता के कारण घास-भूमियाँ अस्तित्व में आईं जिससे पशुपालन करने को बल मिला। • खेती तथा पशुपालन से मनुष्य का जीवन स्थायी बना क्योंकि अब यह खाद्य-उत्पादक बन गया था। अब उसे भोजन की तलाश में स्थान-स्थान घूमने की जरूरत नहीं थी। • जीवन के स्थायी बनने पर कृषक समुदाय अस्तित्व में आए जो झोपड़ियाँ बनाकर साथ-साथ रहने लगे। इस प्रकार गाँव अस्तित्व में आए। • खाद्य उत्पादन बढ़ने पर वस्तु-विनिमय की प्रक्रिया आरंभ हो गई। परिणामस्वरूप गाँवों का आकार बढ़ने लगा। • नये-नये व्यवसाय भी आरंभ हो गए जो शहरीकरण के प्रतीक थे। प्रश्न 2. आपके विचार से निम्नलिखित में से कौन-सी आवश्यक दशाएँ थीं जिनकी वजह से प्रारम्भ में शहरीकरण हुआ था और निम्नलिखित में से कौन-कौन सी बातें शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न हई? • अत्यंत उत्पादक खेती • जल-परिवहन • धातु और पत्थर की कमी • श्रम विभाजन • मुद्राओं का प्रयोग • राजाओं के सैन्य-शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया। उत्तर: शहरीकरण के लिए आवश्यक दशाएँ – • अत्यंत उत्पादक खेती • जल परिवहन • श्रम विभाजन। शहरों के विकास के फलस्वरूप विकसित दशाएँ – • धातु और पत्थर की कमी • मुद्राओं का प्रयोग • राजाओं की सैन्य शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बनाया। प्रश्न 3. यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रू...

सा प्रथम संस्कृति विश्ववारा

भारतीय संस्कृति प्राचीन समय में विश्वव्यापी थी, इसके प्रमाण समय-समय पर मिलते रहे है और अब भी यत्र-यत्र उपलब्ध होते रहते है। वहाँ के रहन-सहन, भाषा, देवी-देवताओं, स्थानों, पदवियों आदि के नामों से भी यह स्पष्ट आभास मिलता है कि किस कदर एक समय भारतीय संस्कृति विश्व संस्कृति के रूप में प्रतिष्ठित थी। मलेशिया यों तो अब एक मुस्लिम राष्ट्र है, पर वहाँ की भाषा एवं स्थानों के नामकरण में संस्कृत शब्दावली की बहुलता अब भी देखी जा सकती है। वहाँ की भाषा में ‘सिरापह’ एक ऐसा शब्द है, जो संस्कृत के ‘शाप’ और हिंदी अपभ्रंश ‘श्राप’ के समानार्थक है। किसी के अनिष्ट के संदर्भ में बोले गए वचन के लिए वहाँ इसी शब्द का प्रयोग होता है, जो संस्कृत और हिंदी के उपर्युक्त शब्दों का ही अर्थबोधक है। ‘सियार’ को संस्कृत में ‘शृंगाल’ कहते है। मलय भाषा में इसे ‘सरीगाल’ कहा जाता है। संस्कृत में ‘श्री’ सौंदर्य के अर्थ में प्रयुक्त होता है। मलय भाषा में इसके लिए ‘सेरी’ शब्द का प्रयोग होता है। इस तरह वहाँ का ‘सरीमुख’ संस्कृत के ‘श्रीमुख’ का ही पर्याय है। ‘संतोष’ जिसका अर्थ धैर्य है, मलय में इसे ‘संतेजा’ कहते है। ‘सरज’ दोनों में ही कमल को कहते है। ‘पुर’ प्रत्यय संस्कृत और हिंदी शब्दों के साथ मिलकर अक्सर स्थानवाचक हो जाता है, यथा-जमशेदपुर, खड़गपुर, नागपुर। इसी परिप्रेक्ष्य में ‘क्वालालंपुर’ को भी लिया जा सकता है, जो मलेशिया की राजधानी है। वहाँ का एक शहर ‘सीराम बन’ है, जो स्पष्टतः ‘श्रीराम वन’ का बिगड़ा रूप है। ‘सुँगई पट्टणी’ वहाँ का एक अन्य नगर है, जो संस्कृत शब्दावली के ‘श्रृंग‘ और ‘पट्टण’ शब्दों के मेल से बना लगता है। ‘श्रृंग पट्टण’ अर्थात् पर्वतीय नगर। मलेशिया के ‘पेतालिंग जय’ नगर में एक मस्जिद है, जो एक हिंदू मंदि...