कालक्रम की दृष्टि से प्रेमचंद के उपन्यासों का सही अनुक्रम कौन–सा है?

  1. प्रेमचंद
  2. Hindi Sahitya Vimarsh
  3. Setu 🌉 सेतु: हिंदी उपन्यास परंपरा में प्रेमचंद का स्थान
  4. प्रेमचन्द युग के हिन्दी उपन्यास, उपन्यासकार और उनकी रचनाएँ । Premchan Yug Ke Upnyaskar aur Rachna
  5. मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय
  6. UGC NET Hindi old Question Paper Quiz 7
  7. [Solved] कालक्रम की दृष्टि से न�
  8. net hindi solved paper december 2018
  9. प्रेमचंद :: :: :: रंगभूमि :: उपन्यास


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प्रेमचंद

डाक टिकट पर प्रेमचंद जन्म 31 जुलाई 1880 लमही, वर्तमान - लमही, मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 ( 1936-10-08) (उम्र56) व्यवसाय अध्यापक, लेखक, पत्रकार राष्ट्रीयता अवधि/काल विधा कहानी और उपन्यास विषय साहित्यिक आन्दोलन , उल्लेखनीय कार्य हस्ताक्षर धनपत राय श्रीवास्तव ( ३१ जुलाई १८८० – ८अक्टूबर १९३६ जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, वो जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 2 साहित्यिक जीवन • 3 रचनाएँ • 3.1 उपन्यास • 3.2 कहानी • 3.3 नाटक • 3.4 कथेतर साहित्य • 3.5 अनुवाद • 3.6 विविध • 4 संपादन • 5 विशेषताएँ • 6 विचारधारा • 7 विरासत • 8 प्रेमचंद संबंधी रचनाएँ • 8.1 जीवनी • 8.2 आलोचनात्मक पुस्तकें • 8.3 प्रेमचंद और सिनेमा • 9 स्मृतियाँ • 10 विवाद • 11 हिन्दी विकिस्रोत पर उपलब्ध प्रेमचन्द साहित्य • 12 सन्दर्भ • 12.1 सहायक पुस्तकें जीवन परिचय प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई इस बात की पुष्टि रामविलास शर्मा के इस कथन से होती है कि- "सौतेली माँ का व्यवहार, बचपन में शादी, पण्डे-पुरोहित का कर्मकाण्ड, किसानों और क्लर्कों का दुखी जीवन-यह सब प्रेमचंद ने सोलह साल की उम्र में ही देख लिया था। इसीलिए उनके ये अनुभव एक जबर्दस्त सचाई लिए हुए उनके कथा-साहित्य में झलक उठे थे।" प्रेमचंद घर में शीर्षक पुस्तक भी लि...

Hindi Sahitya Vimarsh

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Setu 🌉 सेतु: हिंदी उपन्यास परंपरा में प्रेमचंद का स्थान

भारतेंदु युग में हिंदी-उपन्यास का प्रारंभ बंगला उपन्यासों के अनुवाद के रूप में हुआ। भारतेंदु का‘पूर्णप्रकाश’ और ‘चंद्रप्रभा’ उपन्यास अनुवाद ही है। हिंदी का प्रथम मौलिक उपन्यास लाला श्रीनिवास दास कृत ‘परीक्षा-गुरु’ माना जाता है, लेकिन आचार्य रामचंद्र शुक्ल श्रद्धाराम फिल्लौरी कृत ‘भाग्यवती’ को हिंदी का प्रथम उपन्यास मानते हैं। ये दोनों सामाजिक उपन्यास हैं। इनके बाद भारतेंदु की अधूरी कृति‘आपबीती-जगबीती’ को मौलिक उपन्यास माना जाता है। भारतेंदु युग के प्रतिष्ठित उपन्यासकारों में जगमोहन सिंह (श्यामा स्वप्न), बालकृष्ण भट्ट (नूतन ब्रह्मचारी, सौ अजान एक सुजान), देवी प्रसाद उपाध्याय (सुन्दर सरोजिनी), राधाकृष्ण दास (निः सहाय हिन्दू), किशोरीलाल गोस्वामी (लवंगलता, कुसुम कुमारी), बालमुकुंद्गुप्त (कामिनी) आदि का नाम उल्लेखनीय है। इन सामाजिक उपन्यासों के अतरिक्त इस युग में कुछ ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखे गए, पर इनमे इतिहास कम ऐयारी अधिक है। ब्रजनंदन सहायकृत ‘लालचीन’ और मिश्रबंधुओं का‘वीरमणि’ इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। लालचीन गयासुद्दीन बलबन के एक गुलाम की कहानी है और वीरमणि, अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़ पर की गयी चढ़ाई का कल्पना-मंडित विवरण है। इस युग में मौलिक उपन्यासों से कही अधिक अनुदित उपन्यासों की भरमार रही। मौलिक और अनूदित उपन्यासों की यह परम्परा भारतेंदु युग से द्विवेदी युग तक फैली चली आती है। इन उपन्यासों के बाद हिंदी में तिलिस्मी और जासूसी उपन्यासों की धूम-सी मच गयी। देवकीनंदन खत्री ने चंद्रकांता, चंद्रकांतासंतति तथा भूतनाथ (अपूर्ण) जैसे जासूसी और ऐयारी से भरे उपन्यास लिखे। इन अद्भुत उपन्यासों को पढ़ने के लिए कितने ही लोगो ने हिंदी पढ़ी। देवकीनंदन खत्री के पुत्र दुर्गाप्रसाद ने अपन...

प्रेमचन्द युग के हिन्दी उपन्यास, उपन्यासकार और उनकी रचनाएँ । Premchan Yug Ke Upnyaskar aur Rachna

प्रेमचन्द युग के हिन्दी उपन्यास • हिन्दी उपन्यास के क्षेत्र में ' प्रेमचन्द ' के आगमन से एक नयी क्रान्ति का सूत्रपात हुआ। इस युग के उपन्यासकारों ने जीवन के यथार्थ को प्रस्तुत करने कार्य किया। • इस युग का प्रारम्भ प्रेमचन्द के ' सेवा सदन ' नामक इस उपन्यास से हुआ जिसे सन् 1918 में लिखा गया था। वैसे तो पूर्व में मुंशी प्रेमचन्द ने आदर्शवादी उपन्यास लिखे लेकिन बाद में ये यथार्थवादी उपन्यास लिखने लगे। इन्होंने अपने उपन्यासों में सामाजिक समस्याओं को स्थान दिया। • इस युग के प्रतिनिधि उपन्यासकार होने के कारण मुंशी प्रेमचन्द से प्रेरणा पाकर कई उपन्यासकार हिन्दी उपन्यास विधा को आगे बढ़ाने लगे। इनमें कुछ यथार्थवादी उपन्यासकार थे तो कुछ आदर्शवादी। प्रेमचन्द युग के उ पन्यासकार और उनकी रचनाएँ 1. उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द (सन् 1881-1936) • हिन्दी में चरित्र प्रधान उपन्यास लिखने में मुंशी प्रेमचन्द की चर्चा सबसे पहले होती है। • हिन्दी उपन्यास का क्रमबद्ध और वास्तविक विकास प्रेमचन्द के उपन्यास साहित्य से ही होता है। इससे पूर्व के उपन्यास या तो मराठी-बंगला और अंग्रेजी के अनुदित उपन्यास थे या तिलिस्मिी , एय्यारी और जासूसी उपन्यास। लेकिन प्रेमचन्द के उपन्यासों में इन सबसे हटकर जो सामाजिक परिदृश्य उत्पन्न हुए उनसे हिन्दी उपन्यास विधा को एक नई दिशा मिली। मुंशी प्रेमचन्द ने अपने जीवन काल में तीन प्रकार के उपन्यास लिखे। • इनकी पहली श्रेणी में आने वाले उपन्यास ' प्रतिज्ञा ' और ' वरदान ' है जिन्हें इन्होंने प्रारम्भिक काल में लिखा। • दूसरी श्रेणी के उपन्यास ' सेवा सदन ', निर्मला और गबन है। इस श्रेणी के उन्यासों में मुंशी प्रेमचन्द द्वारा सामाजिक समस्याओं को उभारा गया है। • तीसरी श्रेणी के उपन्...

मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय कलम का सिपाही, कलम का जादूगर एवं उपन्यास सम्राट कहलाने वाले मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं, कहानियाँ और उपन्यास, महत्त्वपूर्ण तथ्य, एवं मान सरोवर आदि के बारे संपूर्ण जानकारी। मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय जन्म- 31 जुलाई 1880 लमही, वाराणसी, उत्तरप्रदेश मृत्यु- 8 अक्टूबर 1936 (56 वर्ष की आयु में ) वाराणसी, उत्तरप्रदेश व्यवसाय- अध्यापक, लेखक, पत्रकार राष्ट्रीयता― भारतीय अवधि/काल- आधुनिक काल विधा- कहानी और उपन्यास विषय- सामाजिक और कृषक-जीवन साहित्यिक आन्दोलन-आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक परिचय उपन्यास सेवा सदन― 1918 प्रेमाश्रय― 1922 रंगभूमि― 1925 कायाकल्प― 1926 निर्मला― 1927 गबन― 1931 कर्मभूमि― 1933 गोदान― 1935 मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय उपन्यासों को कालक्रम अनुसार याद करने के लिए अचूक सूत्र प्रेमचंद की सेवा और प्रेम का लोगों पर ऐसा रंग चढ़ा कि उनकी काया निर्मल हो गई और उन्होंने गबन का कर्म छोड़कर गोदान करके पूरा न सही पर अधूरा मंगल अवश्य किया। सेवा- सेवा सदन-1918 प्रेम-प्रेमाश्रय-1922 रंग-रंगभूमि-1925 काया-कायाकल्प-1926 निर्मल-निर्मला-1927 गबन-गबन-1931 कर्म-कर्मभूमि-1933 गो दान- गोदान-1935 मंगल-मंगलसूत्र (यह इनका अधूरा उपन्यास है जिसे इनके पुत्र ‘अमृतराय’ ने पूरा कर 1948 मे प्रकाशित करवाया) उपन्यास संबंधी विशेष तथ्य : मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय सेवा सदन यह उपन्यास पहले ‘बाज़ारे- हुस्न’ नाम से उर्दू में लिखा गया। इसमें विवाह से जुड़ी समस्याएं दहेज प्रथा, कुलीनता, विवाह के बाद पत्नी का स्थान, समाज में वेश्याओं की स्थिति का चित्रण किया गया है। प्रेमचंद ने स्वयं इसे ‘...

UGC NET Hindi old Question Paper Quiz 7

NTA UGC NET Hindi Mock Test दोस्तों यह हिंदी quiz 7 है। यहाँ पर nta ugc net jrf की परीक्षा में क्रम आधारित hindi quiz का सातवां भाग दिया जा रहा है। जो 2004 से लेकर 2019 तक के 1. कालक्रम की दृष्टि से प्रेमचंद के उपन्यासों का सही अनुक्रम कौन – सा है ? (जून, 2010, II) (A)सेवासदन,रंगभूमि,कर्मभूमि,गोदान ✅ (B)कर्मभूमि,गोदान,सेवासदन,रंगभूमि (C)गोदान,कर्मभूमि,रंगभूमि,सेवासदन (D)रंगभूमि,कर्मभूमि,गोदान,सेवासदन अनुक्रम- 1. सेवासदन-1918ई. 2. रंगभूमि-1925ई. 3. कर्मभूमि-1932ई. 4. गोदान- 1936ई. 2. रचनाकाल की दृष्टि से प्रेमचन्द के उपन्यासों का सही अनुक्रम है: (जून, 2012, III) (A)गबन,गोदान,सेवासदन,रंगभूमि (B)रंगभूमि,गोदान,गबन,सेवासदन (C)गोदान,गबन,सेवासदन,रंगभूमि (D)सेवासदन,रंगभूमि,गबन,गोदान✅ अनुक्रम- 1. सेवासदन-1918ई. 2. रंगभूमि-1925ई. 3. गबन-1931ई. 4. गोदान-1936ई. 3: प्रकाशन वर्ष के अनुसार प्रेमचंद के निम्नलिखित उपन्यासों का सही अनुक्रम बताइए:(जून, 2013, III) (A)वरदान,प्रेमाश्रम,रंगभूमि,निर्मला✅ (B)प्रेमाश्रम,रंगभूमि,निर्मला,वरदान (C)रंगभूमि,निर्मला,वरदान,प्रेमाश्रम (D)निर्मला,वरदान,प्रेमाश्रम,रंगभूमि अनुक्रम- 1. वरदान- 1921ई. 2. प्रेमाश्रम- 1922 ई. 3. रंगभूमि-1925ई. 4. निर्मला-1927ई. 4. प्रकाशन काल की दृष्टि से प्रेमचंद के उपन्यासों का सही अनुक्रम है: (जून, 2014, II) (A) सेवासदन,प्रतिज्ञा,वरदान,रंगभूमि (B)सेवासदन,वरदान,रंगभूमि,प्रतिज्ञा✅ (C)रंगभूमि,वरदान,प्रतिज्ञा,सेवासदन (D)सेवासदन,प्रतिज्ञा,रंगभूमि,वरदान अनुक्रम- 1. सेवासदन-1918ई. 2. वरदान- 1921ई. 3. रंगभूमि, 1925ई. 4. प्रतिज्ञा- 1929ई. 5. प्रकाशन वर्ष की दृष्टि से प्रेमचंद के उपन्यासों का सही क्रम है : (दिसम्बर, 2014, II) (A)गोदान,नि...

[Solved] कालक्रम की दृष्टि से न�

सही उत्तर - सरहपा, पुष्पदंत,अद्दहमाण, हेमचन्द्र Key Points सरहपा 769 ई. पुष्पदंत 10 वीं शती अद्दहमाण 12 वीं शती हेमचन्द्र 12 वीं शती Important Points • सरहपा 84 सिद्धों में से एक हैं और राहुल सांकृत्यायन ने इन्हेंहिंदी काप्रथम कवि माना हैI • पुष्पदंत अपभ्रंश के मुख्य कवि हैंI • अद्दहमाण को अब्दुल रहमान भी कहा जाता हैI इन्होंनेमहत्वपूर्ण ग्रन्थ सन्देशरासक की रचना की हैI • हेमचन्द्र जैन आचार्यों में से एक हैंI Additional Information विभिन्न इतिहासकारों के अनुसार हिंदी का पहला कवि • राहुल सांकृत्यायन के अनुसार – सरहपा (769 ई.) • शिवसिंह सेंगर के अनुसार – पुष्प या पुण्ड (10 वीं शताब्दी) • गणपति चंद्र गुप्त के अनुसार – शालिभद्र सूरि (1184 ई.) • रामकुमार वर्मा के अनुसार – स्वयंभू (693 ई.) • हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार- अब्दुल रहमान (13 वीं शताब्दी) • बच्चन सिंह के अनुसार – विद्यापति (15 वीं शताब्दी) • चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ के अनुसार- राजा मुंज (993 ई.) • रामचंद्र शुक्ल के अनुसार- राजा मुंज व भोज (993 ई.)

net hindi solved paper december 2018

(1) मैं हार गई (2) बादलों के घेरे (3) सुहागिनें (4) ज़िन्दगी और गुलाब • हरिदासीसम्प्रदाय के राधा-कृष्ण हैं : . (1) आत्मनिष्ठ (2) लोकनिरपेक्ष (3) जीवनसापेक्ष (4) लोकहितरक्षक • निम्नलिखित में से कौन-सी रचना गयाप्रसाद शुक्ल सनेही की नहीं है? . (1) प्रेमपचीसी (2) कृषक क्रन्दन (3) स्वप्न (4) कुसुमांजलि • ‘मुरारी और नर्गिस’के प्रेम पर आधारित उपन्यास है : . (1) पाप और पुण्य (2) सत्याग्रह (3) आदर्श दम्पत्ति (4) चन्द हसीनों के ख़ुतूत (चन्द हसीनों के ख़ुतूत उपन्यास के पात्र : नर्गिस-मुरारी कृष्ण, असगरी-गोविन्द)) • किआरे यौवन अभिरामा। जत देखल तत कहए न पारिअ, छओ अनुपम एक ठामा। ౼ उक्त काव्य-पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि : . (1) रूप-वर्णन करने में असमर्थ है। (2) रूप-वर्णन करने में संभ्रम की स्थिति में है। (3) रूप-वर्णन करने में समर्थ है। (4) आंशिक रूप से रूप-वर्णन करने में समर्थ है। • ”नारी आकर्षण पुरुष को पुरुष बनाता है, तो उसका अपकर्षण उसे गौतमबुद्ध बना देता है।”౼यह संवाद किस नाटक का है? . (1) आधे-अधूरे (2) आषाढ़ का एक दिन (3) पैर तले की ज़मीन (4) लहरों के राजहंस • ”संस्कृतका कोई भी शब्द मनचाहे ढंग से तोड़-मरोड़ कर तद्भव नहीं बनाया जा सकता।” उपर्युक्त विचार किस विद्वान का है? . (1) जॉर्ज ग्रियर्सन (ii) रामविलास शर्मा (iii) नामवर सिंह (iv) सुनीति कुमार चटर्जी • राही मासूम रज़ा के द्वारा रचित उपन्यास नहीं है: . (i) दिल एक सादा कागज (ii) कटरा बी आर्ज़ू (iii) समर शेष है (iv) टोपी शुक्ला • भारत में अंग्रेजों के बढ़ते प्रभाव के प्रति ध्यान आकर्षित करते हुए पद्माकर ने किस राजा के दरबार में कविता पड़ा था? मीनागढ़ बंबई सुमन्द मंदराज बंग, बंदर को बंद करि बंदर बसावैगो। कहै पद्माकर कसकि कास्...

प्रेमचंद :: :: :: रंगभूमि :: उपन्यास

उपन्यास रंगभूमि प्रेमचंद अनुक्रम • अध्याय 1 • अध्याय 2 • अध्याय 3 • अध्याय 4 • अध्याय 5 • अध्याय 6 • अध्याय 7 • अध्याय 8 • अध्याय 9 • अध्याय 10 • अध्याय 11 • अध्याय 12 • अध्याय 13 • अध्याय 14 • अध्याय 15 • अध्याय 16 • अध्याय 17 • अध्याय 18 • अध्याय 19 • अध्याय 20 • अध्याय 21 • अध्याय 22 • अध्याय 23 • अध्याय 24 • अध्याय 25 • अध्याय 26 • अध्याय 27 • अध्याय 28 • अध्याय 29 • अध्याय 30 • अध्याय 31 • अध्याय 32 • अध्याय 33 • अध्याय 34 • अध्याय 35 • अध्याय 36 • अध्याय 37 • अध्याय 38 • अध्याय 39 • अध्याय 40 • अध्याय 41 • अध्याय 42 • अध्याय 43 • अध्याय 44 • अध्याय 45 • अध्याय 46 • अध्याय 47 • अध्याय 48 • अध्याय 49 • अध्याय 50 शहर अमीरों के रहने और क्रय-विक्रय का स्थान है। उसके बाहर की भूमि उनके मनोरंजन और विनोद की जगह है। उसके मध्‍य भाग में उनके लड़कों की पाठशालाएँ और उनके मुकद़मेबाजी के अखाड़े होते हैं, जहाँ न्याय के बहाने गरीबों का गला घोंटा जाता है। शहर के आस-पास गरीबों की बस्तियाँ होती हैं। बनारस में पाँड़ेपुर ऐसी ही बस्ती है। वहाँ न शहरी दीपकों की ज्योति पहुँचती है, न शहरी छिड़काव के छींटे, न शहरी जल-खेतों का प्रवाह। सड़क के किनारे छोटे-छोटे बनियों और हलवाइयों की दूकानें हैं, और उनके पीछे कई इक्केवाले, गाड़ीवान, ग्वाले और मजदूर रहते हैं। दो-चार घर बिगड़े सफेदपोशों के भी हैं, जिन्हें उनकी हीनावस्था ने शहर से निर्वासित कर दिया है। इन्हीं में एक गरीब और अंधा चमार रहता है, जिसे लोग सूरदास कहते हैं। भारतवर्ष में अंधे आदमियों के लिए न नाम की जरूरत होती है, न काम की। सूरदास उनका बना-बनाया नाम है, और भीख माँगना बना-बनाया काम है। उनके गुण और स्वभाव भी जगत्-प्रसिध्द हैं-गाने-बजाने में वि...