काव्य की दृष्टि से रीतिकाल को बांटा गया है

  1. रीति काल
  2. रीतिकाल की विशेषताएँ कौन कौन सी हैं किन्हीं तीन को स्पष्ट कीजिए?
  3. hindsablog.हिंदसा by @ Dr. Anita Devi: रीतिकाल
  4. Class 10th hindi abhyas prashn Patra solution 2023 PDF
  5. रीतिकाल किसे कहते है? रीतिकाल विशेषताएं
  6. रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ
  7. रीतिकाल का नामकरण, विभाजन एवं प्रवर्तक
  8. हिन्दी साहित्य में रीतिकाल के प्रमुख काव्यशास्त्री (इकाई


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रीति काल

रीतिकाल या मध्यकालीन साहित्य रीतिकाल साहित्य (Reetikaal Hindi Sahitya) का समयकाल 1650 ई० से 1850 ई० तक माना जाता है। नामांकरण की दृष्टि से उत्तर-मध्यकाल हिंदी साहित्य के इतिहास में विवादास्पद है। इसे मिश्र बंधु ने- ‘ अलंकृत काल‘, तथा रामचंद्र शुक्ल ने- ‘ रीतिकाल‘, और विश्वनाथ प्रसाद ने- ‘ श्रृंगार काल‘ कहा है। रीतिकाल के उदय के संबंध में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का मत है- इसका कारण जनता की रुचि नहीं, आश्रय दाताओं की रूचि थी, जिसके लिए वीरता और अकर्मण्यता का जीवन बहुत कम रह गया था। रीतिकालीन कविता में लक्ष्मण ग्रंथ, नायिका भेद, श्रृंगारिकता आदि की जो प्रवृतियां मिलती है उसकी परंपरा संस्कृत साहित्य से चली आ रही थी। हिंदी में “ रीति” या “ काव्यरीति” शब्द का प्रयोग काव्यशास्त्र के लिए हुआ था। इसलिए काव्यशास्त्रबद्ध सामान्य सृजनप्रवृत्ति और रीतिकाव्य” कहा गया। इस काव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों की पुरानी परंपरा के स्पष्ट संकेत आदिकाव्य तथा कृष्णकाव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों में मिलते हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार संस्कृत के प्राचीन साहित्य विशेषता रामायण और महाभारत से यदि इस काल में कई कवि ऐसे हुए हैं जो आचार्य भी थे और जिन्होंने विविध काव्यांगों के लक्षण देने वाले ग्रंथ भी लिखे। इस युग में शृंगार रस की प्रधानता रही। यह युग मुक्तक-रचना का युग रहा। मुख्यतया कवित्त, सवैये और दोहे इस युग में लिखे गए। कवि राजाश्रित होते थे इसलिए इस युग की कविता अधिकतर दरबारी रही जिसके फलस्वरूप इसमें चमत्कारपूर्ण व्यंजना की विशेष मात्रा तो मिलती है परंतु कविता साधारण जनता से विमुख भी हो गई। रीतिकाल के कवियों का इतिहास रीतिकाल के अधिकांश कवि दरवारी थे अर्थात राजाओ के दरवार में अपनी कविता किया करते ...

रीतिकाल की विशेषताएँ कौन कौन सी हैं किन्हीं तीन को स्पष्ट कीजिए?

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया है- वीरगाथाकाल, भक्तिकाल, रितिकाल तथा आधुनिक काल। और आज हम रीतिकालीन काव्यों की प्रमुख विशेषताएँ, रचनाएँ और प्रवृत्तियों के बारे में बात करेंगे, जो हिंदी साहित्य के इतिहास के विभाजन के अनुसार संवत् 1700 से 1900 तक का समय रीतिकाल में आता है। Table of Contents Show • • • • • • • • • इसके पूर्व भक्ति काव्य लिखा गया था, जिसमें श्रृंगार और भक्ति का ऐसा सम्मिश्रण हो गया था कि एक-दूसरे से पृथक् नहीं हो सकते थे। भक्ति काल के कवियों का श्रृंगार वर्णन उनकी प्रगाढ़ भक्ति का परिचायक था। बहुत-सी वस्तुएँ साधन रूप में अच्छी होती हैं, परंतु जब वे ही साध्य बन जाती हैं, तब उनमें सारहीनता आ जाती है। • हिन्दी साहित्य में रीतिकाल का इतिहास • रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ • रीतिकालीन काव्यों की प्रवृत्तियाँ • रीतिकाल की परिस्थितियाँ • रीतिकालीन काव्यों की विशेषताएँ हिन्दी साहित्य में रीतिकाल का इतिहास भक्तिकाल में श्रृंगार की मदिरा ने रसायन का काम किया था, परंतु बाद के समय में वही व्यसन बन गई। राजा और कृष्ण विभिन्न नायक और नायिकाओं के रूप में दिखलाए जाने लगे। भक्तिकाल की रचनाएँ “स्वांतः सुखाय” के उद्देश्य से होती थीं, परंतु बाद में कविता राजदरबार की वस्तु बन गई। अपनी विद्वता, कलाकौशल से अपने आश्रयदाता को प्रसन्न करना ही कवियों का एकमात्र उद्देश्य रह गया था। एक विशेष रीति पर लोग चल रहे थे, रीति का अर्थ- मार्ग या शैली। कविता में विषय वैविध्य कम था, कविता अर्थ एक बंधी हुई लकीट पर चलना रह गया था। सिंह और सपूत की भाँति लोग लीक छोड़कर चलना पसंद नहीं करते थे। कवियों की समस्य शक्ति अलंकार, रस, ध्वनि, नायिका, भेद आदि के निरूपण ...

hindsablog.हिंदसा by @ Dr. Anita Devi: रीतिकाल

हिंदी साहित्य के इतिहास को विभिन्न विद्वानों ने मुख्यतः चार भागों में बांटा है- आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल| रीतिकाल संवत 1700 से 1900 विक्रमी तक माना गया है| इसे उत्तर मध्य काल भी कहा गया है| आदिकाल की तरह ही इस कालखंड के नामकरण को लेकर भी विद्वानों में मतभेद है| उन्होंने रीतिकाल को कई नाम दिए हैं, अलंकरण की प्रधानता के कारण मिश्र बंधुओं ने इसे‘अलंकृत काल’ नाम दिया है, पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने ‘श्रृंगार काल’ ,रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’ ने‘कला काल’ और आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे रीतिकाल कहा है| इन सभी नामों के पीछे विद्वानों ने अपने-अपने तर्क दिए हैं| मिश्र बंधुओं का तर्क था- “ इस युग में कविता को अलंकृत करने की परिपाटी अधिक थी|”१ रीतिकालीन प्रवृतियों को देखते हुए यह तर्क बिलकुल सही है| परन्तु यह भी सत्य है कि यह नाम रीतिकाल की सभी विशेषताओं को इंगित नहीं करता| बच्चन सिंह लिखते हैं- “यह तर्क अपने आप में निर्मूल नहीं है जिसे सहसा अस्वीकृत कर दिया जाए| रीतिकालीन काव्यों के अनुशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अलंकार की प्रवृत्ति इस युग की प्रमुख प्रवृत्तियों में से एक थी| किंतु यह सर्वप्रमुख नहीं थी| कवियों की दृष्टि रस एवं भाव की ओर भी थी| रीतिमुक्त काव्यों तथा वीर रस की कविताओं में भावों की ही मूल प्रेरणा है, तथा मुख्य लक्ष्य भावाभिव्यक्ति है|”२ पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने रीतिकाल का नाम ‘श्रृंगार काल’ सुझाया है| “ रीतिकाल की काव्य प्रवृत्तियों को देखते हुए यह नाम अधिक वजनदार प्रतीत होता है”३ आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी इस नाम को स्वीकृति दी है| डॉ. नगेन्द्र लिखते हैं“जहां तक शेष दो विशेषणों‘रीति’ और ‘श्रृंगार’ का प्रश्न है- वे दोनों ही अपने-अपने स्थानों पर म...

Class 10th hindi abhyas prashn Patra solution 2023 PDF

Class 10th hindi abhyas prashn Patra solution 2023 PDF | एमपी बोर्ड अभ्यास प्रश्न पत्र परीक्षा पेपर 2023 कक्षा 10वीं हिन्दी Class 10th hindi abhyas prashn Patra solution 2023 PDF-इस बार आपको अभ्यास प्रश्न पत्र दिए जाएंगे वर्ण को आपको सॉल्व करना रहेगा तो इस पर हम अभ्यास प्रश्न पत्र 2023 सेट अ कक्षा 10 वीं का हिंदी विषय कर सेट आ है जो आपका ठीक है इसको हम सॉल्व करेंगे इसलिए देखते हैं सभी प्रश्न और इनके आन्सर तो यहाँ पर देश के काफी की दृष्टि यहाँ पर मैं आपको आगे लिखित उत्तर भी दूंगा तो Mp Board Abhyas prashn Patra 2023 Class 10th Hindi समय 3 घंटा निर्देश- 1. सभी प्रश्न करना अनिवार्य हैं। 2. प्रश्न क्र. 01 से 05 तक वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं। जिनके लिए 1x30=30 अंक निर्धारित है। 3. प्रश्न क्र. 06 से 17 तक प्रत्येक प्रश्न 2 अंक का है। शब्द सीमा लगभग 30 शब्द है। 4. प्रश्न क्र. 18 से 20 तक प्रत्येक प्रश्न 3 अंक का है। शब्द सीमा लगभग 75 शब्द है। 5. प्रश्न क्र. 21 से 23 तक प्रत्येक प्रश्न 4 अंक का है। शब्द सीमा लगभग 120 शब्द है। 6. प्रश्न क्र. 06 से 23 तक सभी प्रश्नों के आंतरिक विकल्प दिए गए हैं।Hindi 10th A set pdf 1. सही विकल्प का चयन कर लिखिए 1. काव्य की दृष्टि से रीतिकाल को बाँटा गया है- (अ) दो भागों में (ब) तीन भागों में (स) चार भागों में (द) सात भागों में ॥ सूर के पदों में तेल की गागरी कहा गया है- (स) गोपियों को (अ) श्रीकृष्ण को (ब) उद्धव को ii. चरणों में निहित मात्राओं के आधार पर दोहा है. अभ्यास प्रश्न पत्र (सेट अ)-2023 कक्षा 10वीं विषय हिन्दी (अ) सममात्रिक छंद (ब) विषममात्रिक छंद (स) अर्द्ध मात्रिक छंद (द) अर्द्धसममात्रिक छंद iv. नेताजी का चश्मा' कहानी का मूलभाव है - (अ) शिक्षा का...

रीतिकाल किसे कहते है? रीतिकाल विशेषताएं

राति का अर्थ है प्रणाली, पद्धति, मार्ग, पंथ, शैली, लक्षण आदि। संस्कृत साहित्य मे "रीति" का अर्थ होता है " विशिष्ट पद रचना। " सर्वप्रथम वामन ने इसे " काव्य की आत्मा " घोषित किया। यहाँ रीति को काव्य रचना की प्रणाली के रूप मे ग्रहण करने की अपेक्षा प्रणाली के अनुसार काव्य रचना करना, रीति का अर्थ मान्य हुआ। यहाँ पर रीति का तात्पर्य लक्षण देते हुए या लक्षण को ध्यान मे रखकर लिखे गए काव्य से है। इस प्रकार रीति काव्य वह काव्य है, जो लक्षण हैं के आधार पर या उसको ध्यान मे रखकर रचा जाता है। रीतिकाल से आश्य हिन्दी साहित्य के उस काल से है, जिसमे निर्दिष्ट काव्य रीति या प्रणाली के अंतर्गत रचना करना प्रधान साहित्यिक प्रवृत्ति बन गई थी। "रीति" "कवित्त रीति" एवं "सुकवि रीति" जैसे शब्दों का प्रयोग इस काल मे बहुत होने लगा था। हो सकता है आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने इसी कारण इस काल को रीतिकाल कहना उचित समझा हो। काव्य रीति के ग्रन्थों मे काव्य-विवेचन करने का प्रयास किया जाता था। हिन्दी मे जो काव्य विवेचन इस काल मे हुआ, उसमे इसके बहाने मौलिक रचना भी की गई है। यह प्रवृत्ति इस काल मे प्रधान है,लेकिन इस काल की कविता प्रधानतः श्रंगार रस की है। इसीलिए इस काल को श्रंगार काल कहने की भी बात की जाती है। "श्रंगार" और "रीति" यानी इस काल की कविता मे वस्तु और इसका रूप एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुए है। रीतिकालीन कवियों के प्रमुख वर्ण्य विषय प्रायः एक से थे। जिनमें राज्य विलास, राज्य प्रशंसा, दरबारी कला विनोद, मुगलकालीन वैभव, अष्टयाम संयोग, वियोग वर्णन, ॠतु वर्णन, किसी सिद्धांत के लक्ष्य लक्षणों का वर्णन, श्रृंगार के अनेक पक्षों के स्थूल एवं मनोवैज्ञानिक चित्रों की अवतारणा आदि विषय प्रायः सभी कवियों के क...

रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ

भक्ति और श्रृंगार की विभाजक रेखा सूक्ष्म है. भक्ति की अनुभूति को व्यक्त करने के लिए बहुत बार राधा-कृष्ण के चरित्र एवं दाम्पत्य जीवन के विविध प्रतीकों का सहारा लिया गया. कबीर जैसे बीहड़ कवि भी भाव-विभोर हो कह उठते हैं: “हरि मोरा पिउ मैं हरि की बहुरिया”. मर्यादावादी तुलसी भी निकटता को व्यक्त करने के लिए “कामिनि नारि पिआरि जिमि” जैसी उपमा देते हैं. कालांतर में राधा-कृष्ण के चरित्र अपने रूप से हट गए और वे महज दांपत्य जीवन के प्रतीक बन कर रह गए. प्रेम और भक्ति की संपृक्त अनुभूति में से भक्ति क्रमश: क्षीण पड़ती गई और प्रेम श्रृंगारिक रूप में केन्द्र में आ गया. भक्ति काल का रीतिकाल में रूपांतरण की यही प्रक्रिया है. रीतिकालीन काव्य की मूल प्रेरणा ऐहिक है. भक्तिकाल की ईश्वर-केन्द्रित दृष्टि के सामने इस मानव केन्द्रित दृष्टि की मौलिकता एवं साहसिकता समझ में आती है. आदिकालीन कवि अपने नायक को ईश्वर के जैसा महिमावान अंकित किया था. भक्त कवियों ने ईश्वर की नर लीला का चित्रण किया तो रीतिकालीन कवियों ने ईश्वर एवं मनुष्य दोनों का मनुष्य रूप में चित्रण किया. भक्त कवि तुलसीदास लिखते हैं: कवि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ मति अनुरूप राम गुन गाउँ. परन्तु भिखारीदास का कहना है: आगे की कवि रीझिहैं तौ कविताई, न तौ राधिका कन्हाई सुमिरन को बहानो हैं. एक के लिए भक्ति प्रधान है, इस प्रक्रिया में कविता भी बन जाए तो अच्छा है. कवि तो राम का गुण-गान करता है. वहीं दूसरे के लिए कविता की रचना महत्त्वपूर्ण है. यदि कविता न बन सके तो उसे राधा-कृष्ण का स्मरण मान लिया जाए. सम्पूर्ण रीति साहित्य को तीन वर्गों में विभक्त किया गया है. रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त. वास्तव में रीतिबद्ध कवि रीतिसिद्ध भी थे और रीतिसिद्ध कवि...

रीतिकाल का नामकरण, विभाजन एवं प्रवर्तक

रीतिकाल का नामकरण, विभाजन एवं प्रवर्तक सामान्यत: 17वीं शती के मध्य से 19वीं शती के मध्य तक रीतिकाल की अवधि मानी जाती है। रीतिकाल के नामकरण, विभाजन और प्रवर्तकों को लेकर विद्वानों में काफ़ी मतभेद रहा है। यहाँ पर उन विवादों एवं मतों को यहाँ पर संक्षेप में दिया जा रहा है। ‘ रीतिकाल ‘ का नामकरण ‘रीतिकाल’ का नामकरण विभिन्न विद्वानों के अनुसार निम्न है- नाम प्रस्तोता रीतिकाव्य जार्ज ग्रियर्सन अलंकृत काल मिश्रबंधु रीतिकाल रामचंद्र शुक्ल श्रृंगार काल विश्वनाथ प्रसाद मिश्र कलाकाल डॉ. रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’ अन्धकार काल त्रिलोचन रीतिकाल का नामकरण रीतिकाल के प्रवर्तक रीतिकाल के प्रवर्तक के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है जो निम्नलिखित हैं- प्रवर्तक रचना काल आधार ग्रंथ प्रस्तोता कारण कृपाराम 1541ई. हिततरंगिणी – कालक्रम की दृष्टि से केशवदास 1555-1617 ई. रसिकप्रिया, कविप्रिया नगेन्द्र रचनाकार–व्यक्तित्व की दृष्टि से चिंतामणि 1643ई. रसविलास,श्रृंगारमंजरी आदि रामचंद्र शुक्ल अखण्ड परमपरा चलाने की दृष्टि से रीतिकाल के प्रवर्तक रीतिकाल का विभाजन रीतिकाल का विभाजन ‘रीति’ को आधार बना कर किया गया है- 1. रीतिबद्ध, 2. रीतिसिद्ध, 3. रीतिमुक्त 1. रीतिबद्ध: इस वर्ग में वे कवि आते हैं जो रीति के बंधन में बंधे हुए हैं, अर्थात जिन कवियों ने शास्त्रीय ढंग पर लक्षण उदाहरण प्रस्तुत कर अपने ग्रंथों की रचना की है। लक्षण ग्रन्थ लिखने वाले इन कवियों में प्रमुख हैं- चिंतामणि, मतिराम, देव, जसवन्त सिंह, कुलपति मिश्र, मंडन, सुराति मिश्र, मारतों में सोमनाथ, भिखारी दास, दूलह, पुनाथ रशिगोविन्द, प्रतापसिंह, दिल्ली के ग्वाल आदि। 2. रीतिसिद्ध: रीतिसिद्ध में वे कवि आते हैं जिन्होंने रीति ग्रन्थ नहीं लिखे किन्तु ‘रीति’ क...

हिन्दी साहित्य में रीतिकाल के प्रमुख काव्यशास्त्री (इकाई

1. कृपाराम- (16 वीं शताब्दी) हिन्दी काव्यशास्त्र के प्रथम काव्यशास्त्री थे। रचना: हित-तरंगिणी (हित-तरंगिणी को रीतिकाल का भी प्रथम रचना माना जाता है।) रचनाकाल: (1541 ई०), इस रचना में 5 तरंग (अध्याय को तरंग कहा गया है) • इसमें 400 सौ छंद है। • यह नायिका भेद से संबंधित रचना है। 2. केशवदास- ( रीतिबद्ध कवि) मूलनाम: वेदांती मिश्र है। जन्म: (1555 ई०) ओरछा बुंदेलखंड में हुआ था। निधन: 1617 ई० में हुआ। • केशवदास ‘ओरछा’ नरेश राव इन्द्रजीत के गुरु और आश्रित कवि थे। • केशवदास हिन्दी के प्रथम काव्यशास्त्री आचार्य माने जाते हैं। • इन्हें रीतिकाल का प्रवर्तक माना जाता है। • डॉ नगेन्द्र, गणपतिचं गुप्त, विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने माना है। (सर्वमान्य मत है।) • इन्हें हिन्दी का प्रथम ‘सर्वांगनिरुपंग’ आचार्य भी माना जाता है। केशवदास के महत्वपूर्ण रचनाएँ: रचनाकार: केशवदास रचना: रसिकप्रिया (1591 ई० प्रथम रचना) है। • इस रचना में 16 अध्याय हैं, जिन्हें ‘प्रकाश’ कहा गया है। • इसमें मुख्यतः ‘रस’ एवं ‘नायिका’ भेद का चित्रण है। • श्रृंगार रस का ‘रस राजत्व’ इस रचना में सिद्ध किया गया है । रचनाकार: केशवदास रचना: कविप्रिया (1601 ई०), • यह हिन्दी की प्रथम ‘काव्यशास्त्रीय’ रचना है। • इसकी रचना केशवदास ने राव इन्द्रजीत की राजनर्तकी ‘रायप्रवीण’ को काव्य की शिक्षा देने के के लिए किया था। • इसमें 16 अध्याय है, जिन्हें ‘प्रभाव’ कहा गया है। • इसमें मुख्यतः अलंकारों की विवेचना की गई है। • इसमें अलंकारों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है- ‘सामान्य अलंकार’ और ‘विशिष्ट अलंकार’। • इसमें कूल 37 अलंकारों की विवेचना है। • ‘उपमा’ अलंकार के 22 भेदों की विवेचना है। • इसमें 22 काव्य दोषों की भी विवेचना है। • इसकी रचना मुख्...