Kabir das ke dohe in hindi

  1. निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाये कबीर के दोहे Kabir ke dohe in hindi
  2. कबीर के 19 दोहे और उनके अर्थ
  3. संपूर्ण कबीर के दोहे अर्थ सहित हिंदी में। Kabir ke dohe in hindi
  4. 800+ Kabir Ke Dohe In Hindi
  5. 15+ Kabir Das Ke Dohe In Hindi: हिन्दी मे अर्थ के साथ


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निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाये कबीर के दोहे Kabir ke dohe in hindi

कबीर के दोहे Kabir ke dohe in hindi निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाये। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए । भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि निंदकहमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले लोगों को हमेशा अपने पास रखना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग अगर आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयाँ आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं। इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक लोग इंसान का स्वभाव शीतल बना देते हैं। nindak niyere raakhiye, aam gan kut ee chhaavaayem . bin paanee saabun bina, nirmal kare suhaae . bhaavaarth: kabeer daas jee kahate hain ki nindakahamesha doosarom kee buraaiyaam karane vaale logom ko hamesha apane paas rakhana chaahie, kyoonki aise log agar aapake paas rahenge to aapakee buraaiyaam aapako bataate rahenge aur aap aasaanee se apanee galatiyaam sudhaar sakate hain. iseelie kabeer jee ne kaha hai ki nindak log imsaan ka svabhaav sheetal bana dete hain. Related Posts: • कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और कबीर के दोहे Kabir ke… • Kabir ke dohe हिरदा भीतर आरसी मुख देखा नहीं जाई संत कबीर के… • गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय - कबीर के दोहे • साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय - Kabir Ke Dohe • Rahim ke dohe रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय। • गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढि़ गढि़ काढ़ै खोट। - Kabir Ke… • कबीर की हाजिरजवाबी - Sant Kabir ka Prerak prasang • निज सुख आतम राम है, दूजा दुख अपार - Kabir Ke Dohe

कबीर के 19 दोहे और उनके अर्थ

• कबीरदास जी ने ऐसे दोहों की रचना की है, जो आज भी प्रासंगिक हैं. और ये दोहे आने वाले समय में भी अपना महत्व नहीं खोने वाले हैं. क्योंकि ये दोहे बहुत हीं सरल और स्पष्ट हैं. छोटे-छोटे इन दोहों में जीवन की बड़ी-बड़ी बातें छिपी हुई है, और ये महान अनुभवों का अद्भुत निचोड़ हैं. ये हर किसी के लिए हर काल में अत्यंत हीं लाभकारी हैं. तो आइए संत कबीर के कुछ दोहों को अर्थ के साथ हम जानते हैं. • चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह। जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥ अर्थात- जिसकी इच्छा खत्म हो गई हो और मन में किसी प्रकार की चिंता बाकी न रही हो. वह किसी राजा से कम नहीं है. सारांश : बेकार की इच्छाओं का त्याग करके हीं आप निश्चिन्त रह सकते हैं. • माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥ अर्थात- मिट्टी कुम्हार से बोलती है कि तुम क्यों मुझे रौंद रहे हो. एक दिन ऐसा आएगा जब मैं तुम्हें रौंदूंगी. सारांश : मृत्यु तो सबको आनी है, इसलिए घमंड नहीं करना चाहिए. • सुख में सुमिरन ना किया,दु:ख में करते याद। कह कबीर ता दास की,कौन सुने फरियाद॥ अर्थात- सुख में जो याद नहीं करता है, और दुःख आने पर याद करता है. तो ऐसे व्यक्ति की बुरे समय में फरियाद कौन सुनेगा. सारांश : सुख में हीं दुःख से निपटने की तैयारी कर लेनी चाहिए. • साईं इतना दीजिये,जा में कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूँ,साधु ना भूखा जाय॥ अर्थात- कबीरदास भगवान से यह प्रार्थना करते हैं कि, हे भगवान आप हमें इतना दीजिए जिससे परिवार की जरूरत पूरी हो जाए. और मैं भी भूखा नहीं रहूँ, और न मेरे दरवाजे पर आया हुआ कोई व्यक्ति भूखा जाए. सारांश : कम से कम इतना कमाइए कि आप, अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को खुद पूरा कर सकें. • धीरे-धीरे रे मना,धीरे स...

संपूर्ण कबीर के दोहे अर्थ सहित हिंदी में। Kabir ke dohe in hindi

संत कबीर का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था परंतु फिर भी उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को मिटाने के लिए जीवन के अंतिम क्षणों तक प्रयत्न किया। संत कबीर समाज में फैले आडंबर और अंधविश्वास को मिटाने के लिए दोहे और पद की रचना करते थे जिनका सीधा उद्देश्य कुरीतियों पर वार करना था। उनके दोहे और साथिया आज के युग में भी समान तरीके से लाभदायक है। क्योंकि आज भी समाज में बहुत से आडंबर और अंधविश्वास फैले हैं जिन्हें मिटाना बहुत जरूरी है। आपको हमारे लिखे गए इस लेख में ना सिर्फ कबीर के दोहे और साखियां पढ़ने को मिलेंगे बल्कि उनकी संपूर्ण व्याख्या भी प्राप्त होगी। Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • कबीर के दोहे व्याख्या सहित यह सभी दोहे क्रमवार लिखे गए है और प्रत्येक दोहे और पद के नीचे आपको निहित शब्द और व्याख्या पढ़ने को मिलेंगे। पहला दोहा पाहन पूजे हरि मिले , तो मैं पूजूं पहार याते चाकी भली जो पीस खाए संसार। । निहित शब्द – पाहन – पत्थर , हरि – भगवान , पहार – पहाड़ , चाकी – अन्न पीसने वाली चक्की। व्याख्या कबीरदास का स्पष्ट मत है कि व्यर्थ के कर्मकांड ना किए जाएं। ईश्वर अपने हृदय में वास करते हैं लोगों को अपने हृदय में हरि को ढूंढना चाहिए , ना की विभिन्न प्रकार के आडंबर और कर्मकांड करके हरि को ढूंढना चाहिए। हिंदू लोगों के कर्मकांड पर विशेष प्रहार करते हैं और उनके मूर्ति पूजन पर अपने स्वर को मुखरित करते हैं। उनका कहना है कि पाहन अर्थात पत्थर को पूजने से यदि हरी मिलते हैं , यदि हिंदू लोगों को एक छोटे से पत्थर में प्रभु का वास मिलता है , उनका रूप दिखता है तो क्यों ना मैं पहाड़ को पूजूँ। वह तो एक छोटे से पत्थर से भी व...

800+ Kabir Ke Dohe In Hindi

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ॥ 3 ॥ गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥ 4 बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार । मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥ 5 ॥ कबीरा माला मनहि की, और संसारी भीख । माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥ 6 ॥ सुख मे सुमिरन ना किया, दुःख में किया याद । कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥ 7 साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय । मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥ 8 ॥ लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट। पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहि जब छूट ॥ 9 ॥ जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान । मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥ 10 ॥ जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप । जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप ॥ 11 ॥ धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥ 12 ॥ कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और। हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥ 13 ॥ पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय । एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥ 14 ॥ कबीरा सोया क्या करे. उठि न भजे भगवान। जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥ 15 शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान | तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ॥ 16 ॥ माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥ 17 || माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय ॥ 18 ॥ रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥ 19 ॥ नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग । और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग ॥ 20 ॥ जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल । तोकू फूल...

15+ Kabir Das Ke Dohe In Hindi: हिन्दी मे अर्थ के साथ

Kabir Das Ke Dohe In Hindi: मतलब के साथ मैं जानू हरि दूर है हरि हृदय भरपूर मानुस ढुढंहै बाहिरा नियरै होकर दूर ॥ अर्थ- प्रायः मनुष्य ईश्वर को बहुत दूर मानता है ,परंतु वो तो हृदय में ही विराजमान है , इंसान उसे बाहर ढूँढता फिरता है , इसलिए पास होकर भी वो बहुत दूर लगते है। मोमे तोमे सरब मे जहं देखु तहं राम राम बिना छिन ऐक ही, सरै न ऐको काम ॥ अर्थ- कबीर कहते है ,मैं खुद में देखु ,या तुझमे देखु मुझे हर किसी में राम दिखाई देते है, एक क्षण ऐसा नही बिताता जो बिना राम के हो ,कोई भी कार्य निष्फल है बिना राम के। हथियार मे लोह ज्यों लोह मध्य हथियार कहे कबीर त्यों देखिये, ब्रहम मध्य संसार ॥ अर्थ- जिस तरह लोहे में हथियार है उसी पर प्रकार हर हथियार में लोहा, कबीर कहते है कि बिना ब्रहम के संसार नही है। ब्रहम के बीच में ही संसार है। घट बढ़ कहूॅं ना देखिये प्रेम सकल भरपूर जानै ही ते निकट है अनजाने तै दूर ॥ अर्थ- परमात्मा कही भी अधिक या ज्यादा नही है सब जगह बराबर है । वो तो प्रेम और स्नेह से परिपूर्ण है। जिसने उसे जान लिया ,समझ लिया वो उसके बहुत करीब है और जो न समझ पाया उससे कोसो दूर। उहवन तो सब ऐक है, परदा रहिया वेश भरम करम सब दूर कर, सब ही माहि अलेख ॥ अर्थ- ईश्वर के दरबार मे सब एक समान है , चाहे आप किसी भी वेशभूषा या पर्दे में रहिये हमें अपने को समस्त भ्रमों को दूर करना चाहिए तब हमें ईश्वर के उपस्थिति की अनुभूति होती है। जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥ अर्थ- किसी भी अच्छे इंसान की जात नही देखनी चाहिए अगर देखना है तो उसका ज्ञान देखिए ये ठीक उसी प्रकार है जैसे,म्यान में पड़े तलवार की कीमत होती है न कि म्यान की ( तलवार के खोल की ) धीरे-धीरे रे मना, ...