Kabir dohe in hindi

  1. गुरु के दोहे अर्थ सहित
  2. कबीर दास जी के प्रसिद्द दोहे अर्थ सहित ~Kabir ke Dohe with Hindi Meaning
  3. संत कबीर दास के 10 प्रसिद्ध दोहे, जो सिखाते है ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा
  4. कबीर दास के 50 लोकप्रिय दोहे
  5. Couplets of Kabir
  6. Top 40 Kabir Ke Dohe in Hindi


Download: Kabir dohe in hindi
Size: 65.71 MB

गुरु के दोहे अर्थ सहित

सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है गुरु के दोहे अर्थ सहित गुरु का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है। आइये जानते हैं कबीर दास जी के लिखे ( Kabir Dohe On Guru In Hindi ) गुरु के दोहे अर्थ सहित में :- Kabir Dohe On Guru In Hindi गुरु के दोहे अर्थ सहित 1. जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु है मैं नाहिं। प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समांही।। अर्थ :- जब अहंकार रूपी मैं मेरे अन्दर समाया हुआ था तब मुझे गुरु नहीं मिले थे, अब गुरु मिल गये और उनका प्रेम रस प्राप्त होते ही मेरा अहंकार नष्ट हो गया। प्रेम की गली इतनी संकरी है कि इसमें एक साथ दो नहीं समा सकते अर्थात गुरु के रहते हुए अहंकार नहीं उत्पन्न हो सकता। 2. गुरु गोविन्द दोऊ एक हैं, दुजा सब आकार। आपा मैटैं हरि भजैं, तब पावैं दीदार।। अर्थ :- गुरु और गोविंद दोनो एक ही हैं केवळ नाम का अंतर है। गुरु का बाह्य(शारीरिक) रूप चाहे जैसा हो किन्तु अंदर से गुरु और गोविंद मे कोई अंतर नही है। मन से अहंकार कि भावना का त्याग करके सरल और सहज होकर आत्म ध्यान करने से सद्गुरू का दर्शन प्राप्त होगा। जिससे प्राणी का कल्याण होगा। जब तक मन में मैलरूपी “मैं और तू” की भावना रहेगी तब तक दर्शन नहीं प्राप्त हो सकता। 3. गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष। गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।। अर्थ :- कबीर दास जी कहते है – हे सांसारिक प्राणीयों। बिना गुरु के ज्ञान का मिलना असंभव है। तब टतक मनुष्य अज्ञान रुपी अंधकार मे भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनो मे जकडा राहता है जब तक कि गुरु की कृपा नहीं प्राप्त होती। मोक्ष रुपी मार्ग दिखलाने वाले गुरु हैं। बिना गुर...

कबीर दास जी के प्रसिद्द दोहे अर्थ सहित ~Kabir ke Dohe with Hindi Meaning

भक्ति काल के महान कवि, संत एवं समाजसुधारक कबीर दास जी जिनके दोहे ‘ Kabir Ke Dohe‘ उस अमृत कलश के समान हैं जिसकी बूँद बूँद में ज्ञान का महासागर है। संत शिरोमणि कबीरदासजी भक्तिकाल की निर्गुण भक्ति धारा से प्रभावित थे। उनके मुख से निकले दोहे ”Sant Kabir Ke Dohe’ बृज, राजस्थानी, पंजाबी, अवधी हरियाणवी और हिंदी खड़ी बोली में थे, जिनका गूढ़ अर्थ समाज में परोपकार, जात पात के भेद भाव को मिटाना था। वो कहते थे ” हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना, आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना” आइये जानते हैं संत कबीर दास जी के प्रसिद्द दोहे और उनके अर्थ – Kabir Ke Dohe with meaning ‘Kabeer Daas Ke Lokapriy Dohe Hindi Arth Sahit” Sant Kabir Ke Dohe with Meaning in Hindi Sant Kabir Ke Dohe 1 to 10 “जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ । मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ ।।” अर्थ : जो लोग कोशिश करते हैं, वे कुछ न कुछ तो वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता ही है। लेकिन कुछ ऐसे बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते। भावार्थ : लोग इसलिए मेहनत नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है किस यदि मैं सफल नहीं हुआ तो मेरी मेहनत बेकार जायगी। आप असफलता के डर से प्रयास ही नहीं करेंगे. तो आप सफल कैसे होंगें। कोशिश न करके और बिना मेहनत के आप कुछ भी हांसिल नहीं कर सकते लेकिन मेहनत और प्रयास से आप कुछ न कुछ तो हांसिल कर ही लेंगे। किसी ने बहुत खूब कहा है “तक़दीर की किताब योहीं नहीं बदला करते, मेहनत की कलम से पन्ने लिखने पड़ते हैं। “संत ना छाडै संतई, कोटिक मिले असंत । चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटत र...

संत कबीर दास के 10 प्रसिद्ध दोहे, जो सिखाते है ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा

संत कबीर दास Sant Kabir दास भारत के महानतम और सर्वश्रेष्ठ रहस्यवादी कवियो में से एक है। कबीर दास की कृतियाँ पढ़कर ज्ञान की एक अद्भुत अनुभूति होती है। कबीर दास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामान्य जनमानस की चेतना को झकझोरने का काम किया उन्होंने उस दौर में वो सब लिख दिया जिसे कहने की हिम्मत शायद ही कोई कर पाता। कबीर दास अपने आप में ही एक परिपूर्ण व्यक्ति थे जिन्होंने जीवन के अनसुलझे रहस्यों को बड़ी बेबाकी से कागज़ पर उतरने का काम किया। कबीर दास अगर न होते तो शायद ही हम कभी ये जान पाते की आडम्बर और सादगी में मौलिक अंतर क्या है। कबीर दास ने अपनी रचनाओं में सारी रूढ़िवादी धारणाओं पर चोट की जिन्हे उस दौर में सामान्य माना जाता था। कबीर दास आज से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व हुए फिर भी उनके द्वारा कही गयी बातें उस दौर में भी सत्य थी और आज भी सत्य है। हमें ये समझना होगा की कबीर क्यों सामाजिक रूढ़िवादी रवैये और आडम्बरो पर चोट करते थे इसके पीछे मुख्य उद्देश्य उनका सामाजिक और आर्थिक परिवेश रहा हो जिसने उन्हें मजबूर किया की वो उन दिखावे भरी चीज़ो पर का खंडन करके वास्विकता को जग के सामने लाये। कबीर ने अपने स्तर वो हर कोशिश की कि, वो लोगो को जनजागृति कि तरफ लेकर जाए और उन्हें वास्तविकता का बोध करवाए। कबीर ने साफ़ साफ़ कहा कि हमें उस ईश्वर में एकाकार होने के लिए सामाजिक आडम्बर करने कि आवश्यकता नहीं है, यदि हमारी आस्था गहरी और साफ़ हो तो हम यु ही ईश्वर कि भक्ति कर सकते है। इस बात कि तस्दीक उनकी ये कृति करती है –” मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे मै तो तेरे पास में —- खोजि होए तुरत मिल जाऊं इक पल की तालास में ” कबीर इस पंक्ति में कह रहे है कि हम अगर भगवन कि सच्ची पूजा करना चाहते है तो हमें इसके लिए सामाजिक आडम्बर...

कबीर दास के 50 लोकप्रिय दोहे

कबीर दास जी की वाणी में अमृत है। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर प्रहार करने का कार्य किया है। कबीर दास जी मुख्य भाषा पंचमेल खिचड़ी है जिसकी वजह से सभी लोग उनके दोहों को आसानी से समझ पाते हैं। जब भी दोहे शब्द सुनाई देता है, तो सबसे ऊपर हमारे जेहन में कबीरदास जी का नाम ही आता है। कबीर दास जी ने सभी धर्मों की बुराइयों और पाखंडों पर व्यंग्य किया है। सभी धर्मों के लोग कबीर दास के मतों को मानते आये हैं और उनके दोहों में जो सीख है, वह हर व्यक्ति को प्रभावित करती है। इस लेख में हम संत कबीर के 50 सबसे लोकप्रिय दोहे (kabir das ke dohe) पढ़ेंगे और साथ ही उन दोहों के हिंदी अर्थ भी जानेंगे – बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर | पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर || अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूर(ऊँचाई ) पे लगता है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है। संत कबीर दास के दोहे अर्थ सहित कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह। देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।। अर्थ – संत कबीर कहते हैं कि जब तक ये शरीर सही सलामत है, तब तक दूसरों को दान करते रहिये, दूसरों के लिए अच्छे कार्य करते रहिए| जब यह देह राख हो जाएगी फिर इस सुन्दर शरीर को कोई नहीं पूछेगा, तुम्हारी देह शव बन जाएगी| अतः अच्छे कार्य करने का यही सही समय है| दोहा(Dohe) – चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ॥ अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि जब से पाने चाह और चिंता मिट गयी है, तब से मन बेपरवाह हो गया है| इस संसार में जिसे कुछ नहीं चाहिए बस वही सबसे बड़ा शहंशाह है| दोह...

Couplets of Kabir

Kabir Das (or Sant Kabir, Bhagat Kabir) was a 15th-century Indian mystic poet and saint, whose writings influenced Bhakti movement and his verses are found in Guru Granth Sahib. While he seemed to have spent his early life in a Muslim family, he was strongly influenced by his teacher, the Hindu bhakti saint Bhagat Ramananda ( Top 10 Dohas of Kabir Kabir wrote this verse to sing the glory of Guru, without whose help, one cannot cross this ocean of worldly life. He asks, “If both, Guru and God in form of Govind were to appear at the door, whose feet will I worship first?” He answers, “It has to be the Guru’s feet first, because without him, how would I have recognized (known) God?” “When I started to look for evil, I couldn’t find any. When I started to look inside my heart, I found no one was worse than me.” This doha tells the reality that whenever we find something wrong being done, we start to point out fingers and blame people for that. If you really start to find someone who is bad, you will not find any but start to look inside yourself. Your inner self is bad and no other one. This Kabir doha tells us the common behaviour of the people who believe in God. It says “everyone remembers God, prays to him and chants hymns to him in bad times but no one remembers him in good times. But, if you will remember him and pray to him in good times as well, you will never ever face bad times in your life.” This couplet portrays the true reality of people nowadays. Everyone is show...

Top 40 Kabir Ke Dohe in Hindi

Kabir Ke Dohe: संत कबीर दास जी ने हिंदी साहित्य जगत में बहुत बड़ा योगदान दिया। उनके द्वारा लिखे दोहे देश भर में प्रसिद्ध हैं। आज हम लेकर आए हैं कबीर दास जी के कुछ ऐसे बेहद ही लोकप्रिय दोहों का एक छोटा सा संग्रह जिनसे आपको जीवन से जुड़े अद्भुत ज्ञान प्राप्त होंगे। प्रत्येक दोहे में आपको बेहद ही गहरा अर्थ देखने को मिलेगा। आशा करते हैं की आपको ये Kabir Ke Dohe पसंद आयेंगे। Kabir Ke Dohe ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।। दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय । क्या भरोसे देह का, बिनस जाय क्षण माही। सांस सांस सुमिरन करो, और जतन कछु नाही॥ गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पाय बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविंद दियो बताय। साईं इतना दीजीए, जामे कुटुंब समाए मै भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए। कबीर के दोहे मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई. पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई. कबीर कुआ एक हे,पानी भरे अनेक। बर्तन ही में भेद है पानी सब में एक ।। बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।। बैद मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार। एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम आधार॥ कबीरा तेरे जगत में, उल्टी देखी रीत । पापी मिलकर राज करें, साधु मांगे भीख । Images for kabir ke dohe माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर। माटी कहे कुमार से, तू क्या रोदे मोहे । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे । चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोए दुई पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए। जब तूं आया जगत में, लोग हंसे तू रोए ऐसी करनी न करी पाछे हंसे सब कोए। धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय...