Kabir ji ke dohe

  1. संत कबीर दास जी के 350+ प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित
  2. संत कबीर के दोहे अर्थ सहित
  3. [100] कबीर के दोहे
  4. 25 Kabir Dohe On Life
  5. Couplets of Kabir in Hindi
  6. Kabir Das Ke Dohe with Meaning in Hindi
  7. कबीर दास के 101 प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित


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संत कबीर दास जी के 350+ प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित

कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित KABIR DAS JI KE DOHE कबीर दास जी के दोहे उन तमाम कुरीतियों और असमानताओं पर कड़ा प्रहार है जिसने हमारे समाज को बुरी तरह जकड़ कर रखा है। Sant Kabir Das Ji ke Dohe हर युग मे प्रासंगिक हैं। Sant Kabir ke Dohe उस युग में लिखे गए थे जब समाज में धार्मिक एवं सामाजिक भेदभाव के अतिरिक्त बहुत तरह की भेदभावना व्याप्त थी, जैसे अमीर-गरीब, ब्राह्मण-शूद्र, जमींदार-किसान, आस्तिक-नास्तिक, शैव-सन्यासी, योगी-भोगी उस समय इनके झगड़े चरम पराकाष्ठा पर थी। कबीर साहेब के दोहे समाज को आईना दिखाने का काम करते रहे हैं। संत कबीर के दोहे (sant kabir ke dohe) लोगों मे व्याप्त हीन भावना को समझने और समाप्त करने का सफल प्रयास है। Kabir Saheb ke Dohe की गहराई मे गोता लगाने वाले को ज्ञानरूपि अमृतफल प्राप्त हो जाता है। kabir das ji ke dohe और पदों मे लौकिक और पारमार्थिक दो अर्थ निकलते हैं। संत कबीर दास जी के दोहे के गूढ़ अर्थ को समझने के लिए लौकिक और पारमार्थिक दोनों दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। संत कबीर दास जी ने अपने दोहे में यह स्वयं कहा है- हरिजी यहै विचारिया, साखी कहौ कबीर । भवसागर मे जीव है, जो कोई पकड़े तीर॥ कबीर दास जी के दोहे से स्पष्ट है की साखी (दोहे) की मूल आत्मा वह साक्षात्कृत आध्यात्मिक तत्व है जिसके समझने पर जीव का कल्याण हो जाता है। मुझे विश्वास है की कबीर दास जी दोहों के इस ज्ञान गंगा में सामान्यजन से लेकर विद्वतजन गोता लगा सकेंगे। अगर आपको भी चाहिए अमेज़न पर heavy डिस्काउंट तो इस लेख को जरूर पढ़ें । संत कबीर के दोहे दुख में सुमिरन सब करे , सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे , दुख कहे को होय ।। कबीर दास जी कहते हैं की दु :ख में तो परमात्मा को सभी याद करते हैं लेकिन सुख...

संत कबीर के दोहे अर्थ सहित

Top Kabir Das Ke Dohe Sakhi Pad in Hindi On Life, Love, Friendship, Guru And Death : कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है। अर्थ :- जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते। - 19 - दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत। अर्थ :- कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो। - 22 - धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय। अर्थ :- बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थ ात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा। - 26 - कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ। जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ। अर्थ :- जब मैं अपने अहंकार में डूबा था– तब प्रभु को न देख पाता था– लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया– ज्ञा...

[100] कबीर के दोहे

स्पष्ट रूप से उनके जन्म के माता-पिता के बारे में नहीं पता है, लेकिन यह ध्यान दिया जाता है कि वे मुस्लिम बुनकरों के बहुत गरीब परिवार द्वारा बड़े हुए हैं। वह बहुत ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और एक महान साधु बने। उन्हें अपनी प्रभावशाली परंपराओं और संस्कृति के कारण दुनिया भर में प्रसिद्धि मिली। यह माना जाता है कि उन्होंने बचपन में अपने गुरु रामानंद नाम के गुरु से आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था। एक दिन, वह गुरु रामानंद के जाने-माने शिष्य बन गए। एक महान रहस्यवादी कवि, कबीर दास, भारतीय में अग्रणी आध्यात्मिक कवियों में से एक हैं । उन्होंने लोगों के जीवन को बढ़ावा देने के लिए अपने दार्शनिक विचार दिए हैं।भगवान और कर्म में एक वास्तविक धर्म के रूप में उनकी पवित्रता के दर्शन ने लोगों के मन को अच्छाई की ओर बदल दिया है।भगवान के प्रति उनका प्रेम और भक्ति मुस्लिम सूफी और हिंदू भक्ति दोनों की अवधारणा को पूरा करती है। आइये देखते हैं कुछ ज्ञानवर्धक Sant Kabir Ke Dohe (Dohas of Kabir Das) हिंदी अर्थ सहित. Kabir Das Ke Dohe PDF में download करने के लिए नीचे जाएँ. Kabir ke Dohe – कबीर दास के दोहे (1-10) Kabir ke Dohe – कबीर के दोहे Kabir ka Doha कबीर कूता राम का…, मुटिया मेरा नाऊ | गले राम की जेवड़ी…, जित खींचे तित जाऊं || Hindi Meaning: कबीर राम के लिए काम करता है जैसे कुत्ता अपने मालिक के लिए काम करता है। राम का नाम मोती है जो कबीर के पास है। उसने राम की जंजीर को अपनी गर्दन से बांधा है और वह वहाँ जाता है जहाँ राम उसे ले जाता है। कामी क्रोधी लालची… इनसे भक्ति ना होए | भक्ति करे कोई सूरमा… जाती वरण कुल खोय || Doha Meaning: आप कामुक सुख, क्रोध या लालच के आदमी से किस तरह की भक्ति की उम्मीद कर स...

25 Kabir Dohe On Life

Kaal kare so aaj kar… It wasn’t just a random saying your mum used to get you to fold the laundry after you said, “In 10 minutes, Ma.” Our history has blessed us with the sage advice of Kabir. And we’ve decided to pay tribute to the poet and saint whose rhymes gave us enough wisdom for an entire lifetime. Behold, some of Kabir’s most cherished gems. 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. May his resounding words inspire you to live life the way that sages meant it to be lived. May Kabir’s words never go to waste.

Couplets of Kabir in Hindi

We provide कबीर के दोहे (Couplets of kabir / kabir ke dohe /Couplets of Kabir in Hindi), कबीरदास के दोहे (kabir das ke dohe in hindi). महात्मा कबीर एक ऐसी शख्शियत (personality) थे जो जात पात, ऊँच-नीच, छोटा बड़ा, अमीर गरीब जैसी चीजों से, समाज में व्याप्त कुरीतियों (curiosities) से, सामाजिक विसंगतियों (anomalies) से बहुत दूर थे। वह ना तो हिन्दू थे और न ही मुसलमान। वो राम की भक्ति भी करते थे और रहीम की भी। कबीर ने आज से लगभग 600 साल पहले ही सामाजिक विसंगतियों, कुरीतियों, धर्म के नाम पर होने वाली लडाई, हिन्दुओं के कर्मकांडों, पाखंडों, मुसलमानों की धर्मान्धता पर अपने विचारों के जरिये कुठराघात किया था। इसे भी पढ़ें :- कबीरदास ने अपने विचारों को (kabir thoughts in hindi), अपने चिंतन को, अपने उपदेशों को दोहों के रूप में प्रस्तुत किया था। 600 साल बाद आज भी उनके द्वारा कही गयी बातें, उनके विचार , उनके दोहे उतने ही प्रभावशाली है (repeat the teachings), उतने ही सच्चे हैं, उतने ही ज्ञानवर्धक है (Knowledgable sant kabir thoughts), और उतने ही ज़रूरी हैं जितने तब थे। उन्होंने अपने दोहों के जरिये समाज को एक ऐसा आइना दिखाया है, एक ऐसा सन्देश दिया है जिससे लोग अपने मन के अंधकार को दूर करके, अपने आप को एक सच्चा, निर्मल, निश्छल और एक बेहतर इन्सान बना सकते हैं। उनके दोहों को पढ़कर, उनके विचारों को पढ़कर मन का अंधकार ख़त्म होता है, जीने की नयी राह मिलती है, हर मुश्किल आसान लगने लगती है, मन निर्मल (pure/sincere/clear mind) हो जाता है। आज मैं Gyan Versha पर आपको कबीर के संकलन में से छाँटकर ऐसे ही 15 दोहों के बारे में बता रहा हूँ जो आपके सोचने के तरीके को, जिन्दगी जीने के नज़रिये को पूरी तरह बदल देंगे। दु...

Kabir Das Ke Dohe with Meaning in Hindi

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे (Kabir Das Ke Dohe in Hindi with Meaning): संत कबीर दास जी के दोहे समाज को एक नई दिशा देने का कार्य करते हैं। कबीर ने अपने दोहों के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार किया एवं समाज का मार्गदर्शन किया है। कबीर का प्रत्येक दोहा अपने अंदर अथाह अर्थ समाया हुआ है। उनके दोहे के एक-एक शब्द का वास्तविक, आध्यात्मिक एवं भावनात्मक अर्थ बहुत गहरा होता है। इस पोस्ट में आपको मिलेंगे संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे ( Kabir Das Ke Dohe, Kabir Dohe, Kabir Das Ji Ke Dohe, Kabir Ke Dohe in Hindi, Kabir Das Dohe, Kabir Doha, Kabir Dohe in Hindi, Sant Kabir ke Dohe, Kabir Dohe in Hindi, Kabir Das ke dohe with explanation in hindi)। जो आपको जिंदगी जीने का एक नया रास्ता दिखाते हैं। कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे (Famous Dohe of Kabir Das) दोहा – 01 साई इतना दीजिये, जामें कुटुंब समाय। मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि हे परमात्मा मुझे बस इतना दीजिये जिससे कि मेरे परिवार का भरण पोषण हो सके। जिससे मैं अपना भी पेट भर सकूं और मेरे द्वार पर आया हुआ कोई भी साधु-संत कभी भूखा न जाये। Kabir Ke Dohe with meaning in Hindi दोहा – 02 गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पायं। बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मेरे सम्मुख गुरु और ईश्वर दोनों खड़े हैं और मैं इस दुविधा में हूँ की पहले किसके चरण स्पर्श करूँ। लेकिन इस स्थिति में पहले गुरु के चरण स्पर्श करना ही उचित है क्योंकि गुरु ने ही ईश्वर तक जाने का मार्ग बताया है। द...

कबीर दास के 101 प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित

• Related: Name Kabir Das / कबीर दास Born ठीक से ज्ञात नहीं (1398 या 1440) लहरतारा , निकट वाराणसी Died ठीक से ज्ञात नहीं (1448 या 1518) मगहर Occupation कवि, भक्त, सूत कातकर कपड़ा बनाना Nationality भारतीय कबीर दास जी के प्रसिद्द दोहे हिंदी अर्थ सहित –1– बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। अर्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है। –2– पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। अर्थ: बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा। –3– साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय। अर्थ: इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे। –4– तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय। अर्थ: कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है ! –5– धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय। अर्थ: मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा ! • ये भी पढ़ें: –6– माला फेरत जुग भया, फि...

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