Kartik maas ki kahani

  1. KARTIK MAAS KI KAHANI IN HINDI
  2. कार्तिक मास की पौराणिक कथा
  3. कार्तिक माह माहात्म्य पैंतीसवाँ अध्याय
  4. Kartik Snan Katha 2022: पढ़ें कार्तिक स्नान की कथा
  5. कार्तिक माह की पाँच की एक कहानी
  6. Popa Bai Ki Kahani


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KARTIK MAAS KI KAHANI IN HINDI

नमस्कार दोस्तों , मेरा नाम श्वेता है और में हमारे वेबसाइट के मदत से आप के लिए एक नयी कार्तिक मॉस की कहानी लेके आई हु और ऐसी अच्छी अच्छी कहानिया लेके आते रहती हु। वैसे आज मै कार्तिक मॉस की कहानी और कार्तिक मास क्यों मनाया जाता है? की कहानी लेके आई हु कहानी को पढ़े आप सब को बहुत आनंद आएगा । कार्तिक मास हिंदू कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण महीना है, जो अपने आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह हिंदू कैलेंडर का आठवां चंद्र महीना है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर और नवंबर के महीनों के बीच पड़ता है। कार्तिक मास को सबसे शुभ महीनों में से एक माना जाता है, और ऐसा माना जाता है कि इस महीने के दौरान किया गया कोई भी धार्मिक कार्य या दान कार्य अत्यधिक आशीर्वाद और लाभ लाता है। इस महीने का नाम भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय के नाम पर रखा गया है। कार्तिक मास कई लोकप्रिय किंवदंतियों और कहानियों से भी जुड़ा हुआ है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही हैं। ये कहानियाँ दूसरों के बीच भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान ब्रह्मा और देवी लक्ष्मी के इर्द-गिर्द घूमती हैं। इन किंवदंतियों का धार्मिक और नैतिक दोनों महत्व है और लोगों को एक धर्मी और सदाचारी जीवन जीने के लिए प्रेरित करने के लिए कहा जाता है। इस निबंध में, हम कार्तिक मास के महत्व के बारे में गहराई से जानेंगे और इस शुभ महीने से जुड़ी कुछ लोकप्रिय कहानियों का पता लगाएंगे। कार्तिक मास, जिसे कार्तिक के महीने के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू कैलेंडर में सबसे शुभ महीनों में से एक है। यह भगवान विष्णु को समर्पित महीना है और इसे महान आध्यात्मिक महत्व का समय माना जाता है। कार्तिक मास अक्टूबर और नवंबर के महीनों के दौरान आता ह...

कार्तिक मास की पौराणिक कथा

21 अक्टूबर 2021 से कार्तिक का महीना प्रारंभ हो चुका है। इस माह को बहुत ही पवित्र माना गया है। इस माह में ही भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जाग जाते हैं और तब सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इसी कार्तिक मास में दीपावली का महापर्व आता है। पुराणों में कार्तिक मास की महीमा का वर्णन मिलता है। इस माह में दीपदान, स्नान, विष्णु पूजा और तुलसी पूजा के साथ ही पौराणिक कथा सुनने का बहुत ही खास बहुत होता है। आओ पढ़ते हैं कार्तिक मास की कथा। कार्तिक मास की कथा ( kartik maas ki katha )– एक नगर में एक ब्राह्मण दंपत्ति रहते थे। वे दोनों प्रतिदिन 7 कोस दूर गंगा और यमुना नदी में स्नान करने जाते थे। इतनी दूर आने-जाने से ब्राह्मण की पत्नी थक जाती थी। एक दिन उसने अपने पति से कहा कि हमारा एक पुत्र होता तो कितना अच्छा रहता। पुत्र के बहू आती तो हमें घर वापस जाने पर खाना बना हुआ मिलता और बहू घर का काम भी कर देती। जब वह लड़की जाने लगी तो ब्राह्मण भी उसके पीछे-पीछे उसके घर तक चला गया। वहां जाकर ब्राह्मण ने उस लडूकी से कहा- बेटी, कार्तिक मास चल रहा है इसलिए मैं किसी के घर खाना नहीं खाता। मैं अपने साथ आटा लेकर आया हूं। तुम अपनी माता से पूछो कि क्या वह मेरे लिए आटा छानकर चार रोटी बना देगी? यदि वह मेरा आटा छानकर रोटी बनाएगी तो ही मैं रोटी खा लूंगा। लड़की ने जाकर अपनी मां को ये सारी बात बताई। मां ने कहा– उचित है। जाकर ब्राह्मणदेव से कह दो कि वह अपना आटा दे देल मैं रोटी बना दूंगी। जब वह आटा छानने लगी तो आटे में से मोहरे निकली। वह सोचने लगी कि जिस के आटे में इतनी मोहरे हैं। उसके घर में कितनी मोहरे होंगी। जब ब्राह्मण खाना खाने बैठा तो लड़की की मां ने उस ब्राह्मण से पूछा– क्या आपका कोई लड़का है औ...

कार्तिक माह माहात्म्य पैंतीसवाँ अध्याय

कार्तिक माह के माहात्म्य का पैंतीसवाँ अध्याय Chapter – 35 Click Here For Download Now अनुपम कथा कार्तिक, होती है सम्पन्न। इसको पढ़ने से, श्रीहरि होते हैं प्रसन्न।। इतनी कथा सुनकर सभी ऋषि सूतजी से बोले – हे सूतजी! अब आप हमें तुलसी विवाह की विधि बताइए। सूतजी बोले – कार्तिक शुक्ला नवमी को द्वापर युग का आरम्भ हुआ है। अत: यह तिथि दान और उपवास में क्रमश: पूर्वाह्नव्यापिनी तथा पराह्नव्यापिनी हो तो ग्राह्य है। इस तिथि को, नवमी से एकादशी तक, मनुष्य शास्त्रोक्त विधि से तुलसी के विवाह का उत्सव करे तो उसे कन्यादान का फल प्राप्त होता है। पूर्वकाल में कनक की पुत्री किशोरी ने एकादशी तिथि में सन्ध्या के समय तुलसी की वैवाहिक विधि सम्पन्न की। इससे वह किशोरी वैधव्य दोष से मुक्त हो गई। अब मैं उसकी विधि बतलाता हूँ – एक तोला सुवर्ण की भगवान विष्णु की सुन्दर प्रतिमा तैयार कराए अथवा अपनी शक्ति के अनुसार आधे या चौथाई तोले की ही प्रतिमा बनवा ले, फिर तुलसी और भगवान विष्णु की प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठा कर के षोडशोपचार से पूजा करें। पहले देश-काल का स्मरण कर के गणेश पूजन करें फिर पुण्याहवाचन कराकर नान्दी श्राद्ध करें। तत्पश्चात वेद-मन्त्रों के उच्चारण और बाजे आदि की ध्वनि के साथ भगवान विष्णु की प्रतिमा को तुलसी जी के निकट लाकर रखें । प्रतिमा को वस्त्रों से आच्छादित करना चाहिए। उस समय भगवान का आवाहन करें :- भगवान केशव! आइए, देव! मैं आपकी पूजा करुंगा। आपकी सेवा में तुलसी को समर्पित करुंगा। आप मेरे सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करें। इस प्रकार आवाहन के पश्चात तीन-तीन बार अर्ध्य, पाद्य और विष्टर का उच्चारण कर के इन्हें बारी-बारी से भगवान को समर्पित करें, फिर आचमनीय पद का तीन बार उच्चारण कर के भगवान को आचमन कर...

Kartik Snan Katha 2022: पढ़ें कार्तिक स्नान की कथा

Kartik Snan ki Kahani : आज से ईश्वर के प्रिय मास कार्तिक की शुरुआत हुई है। मोक्ष का महीना कहे जाने वाले इस मास में लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान-पुण्य करते हैं। कहते हैं ऐसा करने से इंसान के सारे कष्टों का अंत हो जाता है और उसे सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। वैसे तो इस महीने के बारे में बहुत सारी कहानियां हैं, लेकिन एक कहानी काफी रोचक है, जिसे हर किसी को जानना चाहिए। कहते हैं एक गांव में गरीब बुढ़िया रहती थी। उसका अपना सगा कोई नहीं करती थी। वो दिन-रात कान्हा जी की भक्ति में लीन रहा करती थी और रोज सुबह गंगा स्नान करने जाती थी। उस निर्धन बुढ़िया की भक्ति से भगवान कृष्ण बहुत ज्यादा खुश थे और वो खुद उसकी कुटिया की खिड़की पर एक कटोरे में खिचड़ी रखकर रोज चले जाते थे, जिसे कि वो बुढ़िया नहाकर आने के बाद खा लेती थी। बरसों तक ये सिलसिला चलता रहा लेकिन उसकी पड़ोसन को इस बात की काफी जलन थी। एक दिन जब बुढ़िया नहाने गई थी और कृष्ण जी उसके घर की खिड़की पर खिचड़ी रखकर गए तो वो दुष्ट पड़ोसन ने वो खिचड़ी का कटोरा घर के पिछवाड़े फेंक दिया। जब गंगास्नान के बाद बुढ़िया घर लौटी तो उसे वहां कटोरा मिला नहीं, बुढ़िया बहुत दुखी हुई और भूखी ही रह गई। पड़ोसन ये सब देखकर बहुत खुश हुई लेकिन जहां उसने खिचड़ी फेंकी थी वहां पर एक पौधा उग आया और उसमें दो सुंदर फूल खिल गए, जिनकी सुंगध काफी अलग थी। एक बार राजा उधर से गुजरे तो उन्हें वो सुगंध काफी अच्छी लगी, वो दोनों फूल तोड़कर रानी के लिए ले आए, जिसे सुंघते ही रानी गर्भवती हो गईं और उन्होंने 9 महीने बाद दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। दोनों राजकुमार जब बड़े हुए तो किसी से बात नहीं करते थे लेकिन अक्सर जंगल में शिकार करने चले जाते थे।...

कार्तिक माह की पाँच की एक कहानी

कार्तिक माह में बहुत सी कहानियाँ कही जाती हैं लेकिन अब जो कहानी बताई जा रही है वह एक ही कहानी की जाती है. एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी थे, वो सात कोस दूर गंगा जमुना स्नान करने जाते थे. रोज इतनी दूर आने-जाने से ब्राह्मणी थक जाती थी. एक दिन ब्राह्मणी कहती है कि कोई बेटा होता तो बहु आ जाती. घर वापिस आने पर खाना बना हुआ तो मिलता, कपड़े धुले मिलते.ब्राह्मण कहता है कि तूने भली बात चलाई! चल, मैं तेरे लिए बहु ला ही देता हूँ. ब्राह्मण फिर बोला कि एक पोटली में थोड़ा सा आटा बाँध दे उसमें थोड़ी सी मोहर-अशरफी डाल दे. उसने पोटली बाँध दी और ब्राह्मण पोटली लेकर चल दिया. चलते-चलते कुछ ही दूर एक गाँव में जमुना जी के किनारे बहुत सारी सुन्दर लड़कियाँ अपने घर बनाकर खेल रही थी. उनमें से एक लड़की बोलती है कि मैं तो अपना घर नहीं बिगाड़ूँगी, मुझे तो रहने के लिए ये घर चाहिए. उसकी बात सुन ब्राह्मण के मन पर वही लड़की छा गई और मन ही मन सोचने लगा कि बहु बनाने के लिए यही लड़की ठीक रहेगी. जब वह लड़की जाने लगी तो ब्राह्मण भी उसके पीछे चला और जब वह लड़की अपने घर पहुँचती है तब बूढ़ा ब्राह्मण बोला – बेटी! कार्तिक का महीना है, मैं किसी के यहाँ खाना नहीं खाता, तुम अपनी माँ से पूछो कि मेरा आटा छानकर चार रोटी बना देगी क्या? यदि वह मेरा आटा छानकर रोटी बनाएगी तभी मैं खाऊंगा. लड़की अपनी माँ को सारी बात बताती है, माँ कहती है कि बेटी, बाबा से कह दे कि रोटी में चार रोटी वह भी खा लेगें लेकिन लड़की कहती है कि नही माँ! बाबा ने कहा है कि मेरा आटा छानकर बनाओगी तभी वह खाएंगे. तब उसकी माँ कहती है कि ठीक है जा बाबा से कह दे कि अपना आटा दे दें. उसने आटा छाना तो उसमें से मोहर अशर्फी निकलती है. वह सोचती है कि जिसके आटे में इतनी मोहर...

Chida

इस कहानी को कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन पड़वा को कहते हैं। आटे से घर बनाते हैं और आटे के चिड़ा–चिड़ी बनाकर घर के बीचों बीच रखते हैं, उन्हे कपड़े पहनाते हैं और आटे के घर में घर का सारा सामान रखते हैं। चिड़ा और चिड़ी को खील, बताशे का भोग लगाते हैं। इस दिन खिचड़ी बनाते हैं और आम का आचार रखकर ठाकुर जी को भोग लगाकर खुद भी प्रसाद खाते हैं। चार चिड़िया थीं। चारों कार्तिक मास में कार्तिक नहाती थीं। पड़वा के दिन चारों चिड़ियों ने सोचा कि चलो खिचड़ी बनाते हैं। एक चिड़िया चावल ले आई, एक चिड़िया दाल ले आई, एक चिड़िया घी ले आई और एक चिड़िया नमक ले आई। सबने मिलकर खिचड़ी बनाई। सबने सोचा कि पहले नहा लिया जाए तब खिचड़ी खाते हैं। सब चिड़ियां नहाने चली गई। पहले एक चिड़िया आई, उसे बहुत जोर की भूख लगी थी, बाकी चिड़ियां अभी आई नहीं थीं तो उसने खिचड़ी की भाप खा ली। दूसरी चिड़िया आई तो उसने पानी पी लिया। तीसरी चिड़िया ने खिचड़ी खा ली। चौथी चिड़िया आई तो उसने खुरचन खा ली। चारों चिड़िया मर गईं। जिस चिड़िया ने भाप खाई थी वह राजा के घर राजकुमारी बनीं। जिस चिड़िया ने पानी पिया था वो कुम्हार के घर पैदा हुई। जिस चिड़िया ने खिचड़ी खाई थी उसने ब्राह्मण के घर जन्म लिया और जिस चिड़िया ने खुरचन खाई थी वो हथिनी बनी। कुम्हार की लड़की राजा के यहां दासी बनी। ब्राह्मण की लड़की राजकुमारी की सहेली बनी। हथिनी भी राजा के यहां ही थी। राजकुमारी को अपने पिछले जन्म की सारी बातें याद थीं। जब राजकुमारी की शादी हुई और वह विदा होने लगी तो राजा से बोली कि पिताजी मैं अपने साथ अपनी सहेली और दासी को भी ले जाऊंगी, राजा ने ठीक है ले जाना। राजकुमारी ने कहा कि पिताजी मुझे हथिनी भी चाहिए, राजा ने कहा अच्छा ठीक है ले जाओ। राजा ने अपन...

Popa Bai Ki Kahani

किसी नगर में एक भाई–बहन रहा करते थे। बहन का नाम पोपा बाई था। भाई की शादी हो गई थी। पोपा बहुत ज्यादा नियम व्रत करती थी। एक दिन उसने अपने भाई व भाभी से कहा कि मैं शादी नहीं करूंगी, मेरे रहने के लिये गांव के बाहर एक झोपड़ी बनवा दो, मैं उसी में रहकर अपना जीवन व्यतीत कर लूंगी। पोपा बाई ने गांव के सभी लोगों से कहा कि आप लोग अपने-अपने गाय-बछड़े को मेरे झोपड़े के पास घास चरने के लिये छोड़ दिया करो। मैं सभी के गाय-बछड़ों की देखभाल किया करूंगी, उसके बदले जो भी बचा खुचा खाना हो वह मुझे भेज देना मैं वही खा कर रह लूंगी। एक दिन उस नगर का राजा शिकार खेलने जंगल में आया और गांव के बाहर जंगल के पास बनी झोपड़ी देखकर रुक गया। झोपड़ी के पास जाकर उसने आवाज लगाई कि कौन है? लेकिन भीतर से कोई आवाज ना आने पर वह लगातार दरवाजा खटखटाता रहा तब पोपा बाई उठी और कहने लगी कि कौन हो तुम? जो बार-बार दरवाजा खटखटा रहे हो? राजा ने कहा कि मैं यहां का राजा हूं और तुम्हारे साथ विवाह करना चाहता हूं। पोपा बाई ने कहा कि जहां से आए हो वहीं चले जाओ! मैं किसी पराए आदमी का मुंह नहीं देखती हूं। राजा ने पोपा बाई की एक नहीं सुनी और उसे जबर्दस्ती उठाकर ले गया तब पोपा बाई ने राजा को श्राप दे दिया कि उसका सारा राज-पाट नष्ट हो जाएगा। महल में आने पर राजा की रानियों ने सारी बात सुनकर राजा से अनुरोध किया कि इसे वहीं वापस छोड़ आओ। राजा जब पोपा बाई को वापस झोपड़ी में छोड़ने जाने लगा तो रास्ते में पाप की नदी आई जिसमें वह डूब गया। पोपा बाई धर्मराज जी के यहां पहुंची और धर्मराज जी ने उन्हें स्वर्ग का राज दे दिया। एक बार एक सेठ व सेठानी मृत्यु लोक से स्वर्ग लोक आए तो उसके द्वार बंद देखकर वह धर्मराजी जी से द्वार खोलने का आग्रह करने लगे। धर...