कबीर दास का जीवन परिचय 300 शब्दों में

  1. कबीर दास का जीवन परिचय हिंदी में
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कबीर दास का जीवन परिचय हिंदी में

भारत के संतों में संत कबीर दास का स्थान बहुत ऊँचा है। इनके जन्म के सम्बन्ध में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कुछ लोगों का कथन है कि जगद्गुरु रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से इनकी उत्पत्ति एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुई। लोक-लाज के भय से वह बालक को लहरतारा तालाब के पास छोड़ गयी। नीरू नामक जुलाहा उस बालक को अपने घर उठा लाया और पाल पोषकर बड़ा किया। यही बालक आगे चलकर कबीर दास के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कबीरपन्थ की मान्यता है कि कबीर का आविर्भाव काशी के लहरतारा नामक तालाब में एक कमल पुष्प के ऊपर बालक रूप में हुआ। कुछ भी हो, यह बात सत्य है कि कबीर जी का पालन-पोषण नीरू और नीमा नामक जुलाहा दम्पति के द्वारा हुआ। कबीर दास जी ने स्वामी रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार किया। ऐसा प्रसिद्ध है कि एक दिन रात्रि के अन्तिम पहर में कबीर पञ्चगङ्गा घाट की सीढ़ियों पर जाकर लेट गये। स्नान करनेके लिये जाते समय श्री रामानन्द जी का पैर कबीर के ऊपर पड़ गया। श्री रामानन्द जी के मुख से उस समय राम राम शब्द का उच्चारण हुआ। कबीरदास जी ने उसे ही दीक्षा मन्त्र मान लिया और श्रीरामानन्द जी को अपना गुरु कहने लगे। कबीर की पत्नी का नाम लोई था। इनके पुत्र का कमाल और पुत्री का नाम कमाली था। ये कपड़ा बुनकर अपने परिवार का पालन-पोषण किया करते थे। इनके घर में कबीर दास जी पढ़े-लिखे नहीं थे, इसलिये ये जो बोलते थे, इनके शिष्य उसे संग्रह कर लिया करते थे। इनके शिष्यों में हिन्दू और मुसलमान दोनों समुदाय के लोग थे। इनको वाणियों का संग्रह बीजक नाम से प्रसिद्ध है, उसके साखी, सबद, रमैनी तीन भाग हैं। इन्होंने अपनी वाणियों में वेदान्त के गूढ़ तत्त्वों का सरल उपदेश दिया है तथा हिन्दू-मुसलमानों में फैले हुए अन्धविश्वास, पाखण्डवाद औ...

कबीर का जीवन परिचय निम्न बिंदुओं के आधार पर लिखिए? – ElegantAnswer.com

कबीर का जीवन परिचय निम्न बिंदुओं के आधार पर लिखिए? इसे सुनेंरोकेंसंत कबीरदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व – प्रेमी का अनुभव था। कबीर का साहित्यिक परिचय दीजिये? इसे सुनेंरोकेंकबीरदास या कबीर साहब जी 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिक्खों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है। कबीर दास का जीवन परिचय 300 शब्दों में? इसे सुनेंरोकेंउन्होंने एक सामान्य गृहस्वामी और एक सूफी के संतुलित जीवन को जीया। ऐसा माना जाता है कि अपने बचपन में उन्होंने अपनी सारी धार्मिक शिक्षा रामानंद नामक गुरु से ली। और एक दिन वो गुरु रामानंद के अच्छे शिष्य के रुप में जाने गये। उनके महान कार्यों को पढ़ने के लिये अध्येता और विद्यार्थी कबीर दास के घर में ठहरते है। कबीर दास का जीवन परिचय कक्षा 11? इसे सुनेंरोकेंएक जनश्रुति के अनुसार इनका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था। कहते हैं कि ये एक विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे, जिसने इन्हें लोक-लाज के भय से काशी के लहरतारा नामक स्थान पर तालाब के किनारे छोड़ दिया था, जहाँ से नीरू नामक एक जुलाहा एवं उसकी पत्नी नीमा नि:सन्तान होने के कारण इन्हें उठा लाये। कबीर दास जी की भाव पक्ष कला पक्ष? इसे सुनेंरोकेंकला पक्ष- कबीर के काव्य में चमत्कार क...

कबीरदास

कबीर हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व हैं। कबीर के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कुछ लोगों के अनुसार वे रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे, जिसको भूल से रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आयी। कबीर के माता- पिता के विषय में एक राय निश्चित नहीं है कि कबीर "नीमा' और "नीरु' की वास्तविक संतान थे या नीमा और नीरु ने केवल इनका पालन- पोषण ही किया था। कहा जाता है कि नीरु जुलाहे को यह बच्चा लहरतारा ताल पर पड़ा पाया, जिसे वह अपने घर ले आया और उसका पालन-पोषण किया। बाद में यही बालक कबीर कहलाया। कबीर ने स्वयं को जुलाहे के रुप में प्रस्तुत किया है - "जाति जुलाहा नाम कबीरा बनि बनि फिरो उदासी।' कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर की उत्पत्ति काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुई। ऐसा भी कहा जाता है कि कबीर जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानन्द के प्रभाव से उन्हें हिंदू धर्म का ज्ञान हुआ। एक दिन कबीर पञ्चगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े थे, रामानन्द ज उसी समय गंगास्नान करने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल `राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। कबीर के ही शब्दों में- `हम कासी में प्रकट भये हैं, रामानन्द चेताये'। अन्य जनश्रुतियों से ज्ञात होता है कि कबीर ने हिंदु-मुसलमान का भेद मिटा कर हिंदू-भक्तों तथा मुसलमान फक़ीरों का सत्संग किया और दोनों की अच्छी बातों को आत्मसात कर लिया। जनश्रुत...

संत कबीर दास का जीवन परिचय

संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Ka Jivan Parichay) कबीर दास ( kabir das ) 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित करने वाले संत थे उनके गीतों और कविताओं को सूफी शैली और रहस्यवाद से जोड़ा गया।कबीर” नाम अरबी शब्द “अल-कबीर” से आया है। शब्द का अर्थ है “महान”; यह कुरान में वर्णित अल्लाह का 36वां नाम है कबीर दास के गीतों कविताओं में सूफी शैली और रहस्यवाद पाया जाता है । कबीर दास के संबंध में जन्म और मृत्यु के लगभग तिथि प्रमाण नहीं पाए जाते हैं। कई लोगों का मानना है कि उनका जन्म लहर तालाब के पास हुआ था। कई लोगों के अनुसार वह मुस्लिम जुलाहा के पुत्र थे। कई लोगों के अनुसार वह विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे जो लोक लाज के भय से उन्हें लहर तालाब के पास छोड़ गई थी। वस्तुतः कबीरदास के जन्म माता पिता के संबंध में स्पष्ट कोई सुराग नहीं मिलता है लेकिन यह बात अवश्य मानी जाती है कि उनका पालन पोषण नीरू और नीमा नामक जुलाहा ने किया था। उनके माता-पिता बेहद गरीब और अशिक्षित हैं। कबीर दास भी अनपढ़ ही थे लेकिन उनके लिखे गए दोहे आज भी एक मिसाल कायम करते हैं। कबीर की रचनाएँ सर्वोच्च कोटि की थीं लोग आजकल भी उनके दोहो का पाठ करते हैं और उनके दोहे को सीखते हैं।उनकी रचनाएँ धर्म, पाखंड, झूठ और हिंसा के विरुद्ध थीं कबीर पंथ के नाम से एक धार्मिक समुदाय जिसे कबीरपंथी कहा जाता है वे लोग कबीर को ईश्वर के रूप में मानते है उत्तर भारत में इनके अनुनाइयों की बहुत बड़ी संख्या है। कबीर दास के दोहे को हर वर्ग आयु के व्यक्ति नैतिक और सामाजिक सबक माना जाता है। कबीर दास ने हिंदू मुसलमान की एकता की बात की कबीरदास ‘निर्गुण ब्रह्म’ के उपासक थे। उनका मानना ​​था कि ईश्वर पूरी दुनिया में म...