कबीर दास के 10 दोहे अर्थ सहित

  1. कबीर दास जी के दोहे Kabir Ke Dohe With Meaning in Hindi
  2. Kabir Ke Dohe : संत कबीर दास जी के 20 प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित
  3. कबीर के दोहे अर्थ सहित
  4. कबीर के पद अर्थ सहित
  5. कबीर दास के दोहे अर्थ सहित


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कबीर दास जी के दोहे Kabir Ke Dohe With Meaning in Hindi

संत कबीर दास जी का जन्म लहरतारा (बनारस) में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। पेशे से कबीर दास जी जुलाहे का काम करते थे। कशी घाट के श्री रामानंद जी, संत कबीर दस जी के गुरु थे । संत कबीर ने धर्म के झूठे आडंबरों का भरपूर विरोध किया, फिर चाहे वो हिंदू धर्म हो या मुसलमान धर्म। कबीर दास जी एक धर्मनिरपेक्ष और इसलिए उनके शिष्य और अनुयायी कबीर पंथी कहलाए। हालांकि वह बहुत ज्यादा पढ़े लिखे तो नहीं थे, लेकिन इसके बावजूद भी वे अपने युग के एक बड़े समाज सुधारक माने जाते हैं। संत कबीर दस जी ने हज़ारों दोहे और रचनाएं लिखी जो कबीर वाणी के रूप में प्रसिद्ध हुई। कबीर दास के दोहे बड़े सरल और आम लोगों के समझ में आने वाले थे। और शायद इसलिए कबीर के दोहे इतने प्रसिद्द हुए। और आज भी कबीर के दोहे हमारे घरों में गाए जाते हैं, और हम सब इनसे प्रेरणा पाते हैं। आज हम संत कबीर दास के कुछ प्रसिद्ध दोहे भावार्थ के साथ आप से साझा करने वाले हैं । संत कबीर के दोहे हर परिस्थिति में हमारा पथ प्रदर्शक बन सकती है। तो आइये, कबीर दस के प्रसिद्ध दोहे भावार्थ के साथ (Kabir Das Ke Dohe) पढ़ते हैं और उन से कबीर दास जी के सबसे प्रसिद्ध दोहे हिंदी में अर्थ सहित ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय ।। दोहे का अर्थ: हम सब अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कई बार ऐसा कुछ बोल जाते हैं जो शायद हमें नहीं बोलना चाहिए। अपने दफ्तर में, अपने सहयोगियों के साथ कभी कभार ऐसा कुछ बोल जाते हैं जिससे सामने वाले को तो तकलीफ होती ही है, लेकिन हम खुद भी बहुत पछताते हैं। कबीर दास जी के सबसे चर्चित और प्रसिद्ध दोहों में से एक इस दोहे में इस समस्या का बड़ा आसान सा हल है। कबीर कहते हैं कि – हमें बोलते समय अपने भीतर के अहंकार और ...

Kabir Ke Dohe : संत कबीर दास जी के 20 प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित

Kabir Ke Dohe with Hindi Meaning : कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित : कबीर के 20 प्रसिद्ध दोहे हिंदी में अर्थ सहित संत कबीर दास (Sant Kabirdas) 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। हिंदी साहित्य के भक्तिकाल (Bhaktikal) के निर्गुण शाखा के ज्ञानमर्गी उपशाखा के महानतम कवि हैं। कबीर पंथ (Kabir Panth) नामक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी (Hazari Prasad Dwivedi) ने इन्हें मस्तमौला (Mast Maula) कहा। कबीर के दोहे अपनी सरलता के लिए जाने जाते हैं। इनके दोहे आम बोलचाल के सरल शब्दों में लिखे गए हैं कि इसे पढ़कर आसानी से कोई भी समझ सकता है। ज्यादातर कबीर दास जी के दोहे सांसारिक व्यावहारिकता को दर्शाते हैं। कबीर के दोहे आज भी प्रासंगिक है। Kabir Ke Dohe : Kutil Vachan Sabse Bura Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya - Best of Kabir Das कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार। साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।। अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि अपमानजनक भाषा या कटु शब्द बहुत बुरे होते हैं उन शब्दों के वजह से पूरा शरीर जलने लगता है। जबकि मधुर वाणी (मधुर वचन) शीतल जल की तरह है जब मधुर वचन बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि अमृत वर्ष बरस रहा है। इसलिए हमेशा मधुर वचन का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। Kabir Amritwani in Hindi : Bura jo Dekhan me chala Bura na Milya koye Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya - Hindi Dohe Kabir Das बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥ अर्थ: कबीर दास जी इस दोहे में यह कहते हैं कि जब मैंने इस संसार में (दुनियां) में बुराई को ढूंढा तो मुझे कहीं भी बुराई नहीं दिखाई दिया पर जब मैंने अपने मन के अंदर झाँका तो मु...

कबीर के दोहे अर्थ सहित

सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है कबीर के दोहे अर्थ सहित:- कबीर दास जी ने मनुष्यों को मनुष्यता का पाठ पढ़ाने के लिए दोहों की रचना की। इन दोहों को पढ़कर इंसान में सकारात्मकता आती है। मनुष्य अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित होता है। इसीलिए हमने अपने पाठको के लिए कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित लेके आये है। कबीर दास जी के दोहे के संकलन का ये दूसरा भाग है। पहला भाग यहाँ से पढ़ सकते है- पढ़िए कबीर के दोहे अर्थ सहित भाग 2 – जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल। तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल।। अर्थ :- जो व्यक्ति आपके लिए कांटे बोता है, आप उसके लिए फूल बोइये। आपके आस-पास फूल ही फूल खिलेंगे जबकि वह व्यक्ति काँटों में घिर जाएगा। दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार, तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार। अर्थ :- इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है। यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता। कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार। साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।। अर्थ :- संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कटु वचन बहुत बुरे होते हैं और उनकी वजह से पूरा बदन जलने लगता है। जबकि मधुर वचन शीतल जल की तरह हैं और जब बोले जाते हैं तो ऐसा लगता है कि अमृत बरस रहा है। माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर। आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर।। अर्थ :- कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं। पर नारी पैनी छुरी, विरला बां...

कबीर के पद अर्थ सहित

कहा जाता है कि कबीर नीमा और नीरू की अपनी संतान नहीं थे , उन्हें वो लहरतारा तालाब के पास पड़े हुए मिले थे। उन्हें वो अपने घर ले आए और अपना पुत्र मान लिया। कबीर की रचित पंक्तियों एवं किंवदंतियों से पता चलता है कि वो निरक्षर थे। उन्हें जो भी ज्ञान प्राप्त हुआ वो सब सत्संग और देशाटन आदि से प्राप्त हुआ। और उन्होंने उसी ज्ञान को प्रमुखता दी जो उन्हें आंखो देखे सत्य और अनुभव से प्राप्त हुआ। वे जाति , संप्रदाय , वर्ण आदि द्वारा किए जाने वाले भेदभाव को नहीं मानते थे बल्कि प्रेम , समानता एवं सद्भाव का समर्थन करते थे। कबीर हिन्दू-मुसलमान जैसे धर्म भेद को नहीं मानते थे बल्कि दोनों धर्मों के सत्संग किया करते थे और उनकी अच्छी बातों को आत्मसात कर लिया करते थे। वो कर्मकांड के घोर विरोधी थे और एक ही ईश्वर को मानते थे। कबीर भक्तिकाल की निर्गुणधारा के कवि हैं। कबीर की वाणी के संग्रह को ‘ बीजक ’ नाम से जानते हैं। बीजक के तीन भाग हैं रमैनी , सबद और साखी। कबीर मित्र , माता , पिता आदि में ही परमात्मा को देखते थे। कबीर शान्तिप्रिय थे एवं सत्य और अहिंसा के समर्थक थे। समस्त संत कवियों में कबीर का स्थान अद्वितीय है। कबीर का पूरा जीवन काशी में ही बीता पर अपने अंतिम समय में ना चाहते हुए भी वो मगहर चले गए थे। मगहर में ही 119 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया। कबीर के पद कविता का सारांश – Kabir ke pad poem summary प्रस्तुत पदों में कवि ने संसार में परमात्मा की व्यापकता की व्याख्या की है। वो कहते हैं कि परमात्मा हर एक के हृदय में विद्यमान है , परमात्मा सृष्टि के कण कण में व्याप्त है। परमात्मा उस ज्योति के समान है जिसका प्रकाश सम्पूर्ण संसार में फैला हुआ है और जिसे कोई रोक नहीं सकता। संसार के लोग आत्मा और...

कबीर दास के दोहे अर्थ सहित

संत कबीर दास : -संत कबीर दास जी को भला कौन नही जानता है। इन्होने अपने दोहो से हिन्दी जगत में एक अलग ही छाप छोडकर अपनी एक अलग ही पहचान बनायी। इनके दोहो को पढकर इनकी महानता और गहनता से कोई भी अनछुआ नही रह सकता। इन्होने अपने दोहो के माध्यम से समाज में फैली कुरीतीयो और अंधविश्वास से लोगो को परिचित कराया। लोगो को सदमार्ग पर चलने की सीख दी। इनके द्धारा बोले गये दोहो Dohe of kabir Das in Hindi with Meaning को आप अर्थ सहित नीचे पढ सकते है। Table of Contents • • • • • कबीर दास के दोहे अर्थ सहित दोहा: काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब ।। अर्थ: कबीर कह रहे है कि जो काम कल शुरु करना है उसे आज करो और जो काम आज के दिन करना है उसे इसी समय करो। यदि किसी भी पल में कोई भी विपदा आ गयी तो कब करोगे। इसलिये इसी क्षण करो। दोहा: धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।। अर्थ: हमे सदा धैर्य से काम करना चाहिये। धैर्य से सबकुछ सम्भव हो जाता है। यदि एक माली एक दिन में सौ गमलो को पानी दे देगा । तब भी फल तो समय आने पर ही लगेगे। दोहा: निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय । बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ।। अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि जो व्यक्ति निन्दा करते है उन्हे हमे अपने पास रखना चाहिये। क्योकि इस प्रकार के व्यक्ति बिना साबुन और पानी के हमारे स्वभाव में स्वच्छता लेकर आते है। दोहा: माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख । माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख ।। अर्थ: कबीर जी के अनुसार किसी से कोई चीज मांगना मृत्यु के समान है इसलिये कोई भी भीख मत मांगो। इनके सतगुरु ने भी इन्हे यही सीख दी है कि भीख मांगने से मरना अच्छा है। दोहा: माला फे...