कबीर दास के 20 दोहे

  1. Kabir Ke Dohe : संत कबीर दास जी के 20 प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित
  2. कबीर दास के 101 प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित
  3. कबीर दास के 50 लोकप्रिय दोहे
  4. 400+ कबीर दास के दोहे अर्थ सहित हिंदी में | Kabir Das Ke Dohe in Hindi


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Kabir Ke Dohe : संत कबीर दास जी के 20 प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित

Kabir Ke Dohe with Hindi Meaning : कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित : कबीर के 20 प्रसिद्ध दोहे हिंदी में अर्थ सहित संत कबीर दास (Sant Kabirdas) 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। हिंदी साहित्य के भक्तिकाल (Bhaktikal) के निर्गुण शाखा के ज्ञानमर्गी उपशाखा के महानतम कवि हैं। कबीर पंथ (Kabir Panth) नामक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी (Hazari Prasad Dwivedi) ने इन्हें मस्तमौला (Mast Maula) कहा। कबीर के दोहे अपनी सरलता के लिए जाने जाते हैं। इनके दोहे आम बोलचाल के सरल शब्दों में लिखे गए हैं कि इसे पढ़कर आसानी से कोई भी समझ सकता है। ज्यादातर कबीर दास जी के दोहे सांसारिक व्यावहारिकता को दर्शाते हैं। कबीर के दोहे आज भी प्रासंगिक है। Kabir Ke Dohe : Kutil Vachan Sabse Bura Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya - Best of Kabir Das कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार। साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।। अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि अपमानजनक भाषा या कटु शब्द बहुत बुरे होते हैं उन शब्दों के वजह से पूरा शरीर जलने लगता है। जबकि मधुर वाणी (मधुर वचन) शीतल जल की तरह है जब मधुर वचन बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि अमृत वर्ष बरस रहा है। इसलिए हमेशा मधुर वचन का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। Kabir Amritwani in Hindi : Bura jo Dekhan me chala Bura na Milya koye Dohe ka Hindi Arth Evam Vyakhya - Hindi Dohe Kabir Das बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥ अर्थ: कबीर दास जी इस दोहे में यह कहते हैं कि जब मैंने इस संसार में (दुनियां) में बुराई को ढूंढा तो मुझे कहीं भी बुराई नहीं दिखाई दिया पर जब मैंने अपने मन के अंदर झाँका तो मु...

कबीर दास के 101 प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित

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कबीर दास के 50 लोकप्रिय दोहे

कबीर दास जी की वाणी में अमृत है। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर प्रहार करने का कार्य किया है। कबीर दास जी मुख्य भाषा पंचमेल खिचड़ी है जिसकी वजह से सभी लोग उनके दोहों को आसानी से समझ पाते हैं। जब भी दोहे शब्द सुनाई देता है, तो सबसे ऊपर हमारे जेहन में कबीरदास जी का नाम ही आता है। कबीर दास जी ने सभी धर्मों की बुराइयों और पाखंडों पर व्यंग्य किया है। सभी धर्मों के लोग कबीर दास के मतों को मानते आये हैं और उनके दोहों में जो सीख है, वह हर व्यक्ति को प्रभावित करती है। इस लेख में हम संत कबीर के 50 सबसे लोकप्रिय दोहे (kabir das ke dohe) पढ़ेंगे और साथ ही उन दोहों के हिंदी अर्थ भी जानेंगे – बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर | पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर || अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूर(ऊँचाई ) पे लगता है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है। संत कबीर दास के दोहे अर्थ सहित कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह। देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।। अर्थ – संत कबीर कहते हैं कि जब तक ये शरीर सही सलामत है, तब तक दूसरों को दान करते रहिये, दूसरों के लिए अच्छे कार्य करते रहिए| जब यह देह राख हो जाएगी फिर इस सुन्दर शरीर को कोई नहीं पूछेगा, तुम्हारी देह शव बन जाएगी| अतः अच्छे कार्य करने का यही सही समय है| दोहा(Dohe) – चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ॥ अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि जब से पाने चाह और चिंता मिट गयी है, तब से मन बेपरवाह हो गया है| इस संसार में जिसे कुछ नहीं चाहिए बस वही सबसे बड़ा शहंशाह है| दोह...

400+ कबीर दास के दोहे अर्थ सहित हिंदी में | Kabir Das Ke Dohe in Hindi

कवि कबीर दास का जन्म वर्ष 1440 में और मृत्यु वर्ष 1518 में हुई थी। कबीर एक बहुत बड़े अध्यात्मिक व्यक्ति थे जो कि साधू का जीवन व्यतीत करने लगे और उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण उन्हें पूरी दुनिया की प्रसिद्धि प्राप्त हुई। कबीर शब्द का अर्थ इस्लाम के अनुसार महान होता है। कबीर हमेशा जीवन के कर्म में विश्वास करते थे। वह कभी भी अल्लाह और राम के बीच भेद नहीं करते थे। उनके द्वारा हमेशा अपने उपदेश में इस बात का जिक्र किया गया कि ये दोनों एक ही भगवान के दो अलग अलग नाम है। उन्होंने लोगों को उच्च जाति और नीच जाति या किसी भी धर्म को नकारते हुए भाईचारे के एक धर्म को मानने के लिए प्रेरित किया। कबीर दास ने अपने लेखन से भक्ति आन्दोलन को चलाया है। कबीर पंथ नामक एक धार्मिक समुदाय है, जो कबीर के अनुयायी है उनका ये मानना है कि उन्होंने संत कबीर सम्प्रदाय का निर्माण किया है। इस सम्प्रदाय के लोगों को कबीर पंथी कहा जाता है जो कि पूरे देश में फैले हुए हैं। संत कबीर के लिखे कुछ महान रचनाओं में बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, सखी ग्रंथ आदि है। Kabir Das Ke Dohe– गुरु-महिमा / कबीर दासके दोहे / Kabir Ke Dohe गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान। बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥१॥ भावार्थ: अपने सिर की भेंट देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करो | परन्तु यह सीख न मानकर और तन, धनादि का अभिमान धारण कर कितने ही गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय। कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥२॥ भावार्थ: व्यवहार में भी साधु को गुरु की आज्ञानुसार ही आना – जाना चाहिए | सद् गुरु कहते हैं कि संत वही है जो जन्म – मरण से पार होने के लिए साधना करता है | गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त। वह लोहा कंचन करे, ये करि लय...