कबीर दास के मशहूर दोहे

  1. Kabir ke dohe : संत कबीर दास जी के 13 प्रसिद्ध दोहे
  2. कबीर के मशहूर दोहे in Hindi With Meaning
  3. 151+ Kabir Ke Dohe


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Kabir ke dohe : संत कबीर दास जी के 13 प्रसिद्ध दोहे

बाल झड़ने की समस्या के कारण हम कई तरह के प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं। साथ ही यूट्यूब पर कई तरह की होम रेमेडी भी देखते हैं। इन सारे प्रोडक्ट और होम रेमेडी को इस्तेमाल करने के बाद भी हमारी हेयर फॉल की समस्या कम नहीं होती है। आपको अपने शरीर पर ध्यान देने की आवश्यकता है। चलिए जानते हैं कि यंग ऐज में बाल झड़ने के क्या कारण हैं... How to stay young forever : दुनिया में ऐसी कई फूड या खाद्य पदार्थ है जिन्हें खाते रहने से आपके चेहरे पर कभी झुरियां नहीं पड़ेगी। इसी के साथ आप सदा जवां बने रहेंगे। हालांकि एक शोध से यह भी पता चला है कि प्राचीकाल के लोग ऐसे फूड खाते थे जिसमें ओमेगा 3 और जिनसिंग होता था। इसे खाकर वे लंबी उम्र तक ताकतवर बने रहते थे। World Blood Donor Day : हर साल 14 जून को पूरे विश्व में 'रक्तदाता दिवस' मनाया जाता है। रक्त, ब्लड या खून एक ऐसी चीज है, जिसे बनाया ही नहीं जा सकता और इसकी आपूर्ति का कोई और विकल्प भी नहीं है। रक्त इंसान के शरीर में स्वयं ही बनता है। कई बार अचानक किसी रोगी के शरीर में खून की मात्रा इतनी कम हो जाती है...

कबीर के मशहूर दोहे in Hindi With Meaning

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151+ Kabir Ke Dohe

Kabir Ke Dohe : आज इस पोस्ट में आपको कबीर दास के दोहे भावार्थ सहित उपलब्ध कराएँगे कबीरदास 15वीं सदी केभारतीयरहस्यवादी कवि औरसंतथे वेहिन्दू धर्मवइस्लामको मानते हुए धर्म एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे। बहुत सारे छात्र जिनको हिंदी भाषा से लगाव है वे Kabir Ke Dohe in Hindi चाहते है वैसे छात्रो के लिए हम भावार्थ : सद्गुरु ने मुझे राम का नाम पकड़ा दिया है । मेरे पास ऐसा क्या है उस सममोल का, जो गुरु को दूँ ?क्या लेकर सन्तोष करूँ उनका ? मन की अभिलाषा मन में ही रह गयी कि, क्या दक्षिणा चढ़ाऊँ ? वैसी वस्तु कहाँ से लाऊँ ? (2) सतगुरु लई कमांण करि, बाहण लागा तीर । एक जु बाह्या प्रीति सूं, भीतरि रह्या शरीर ॥2॥ भावार्थ : सदगुरु ने कमान हाथ में ले ली, और शब्द के तीर वे लगे चलाने । एक तीर तो बड़ी प्रीति से ऐसा चला दिया लक्ष्य बनाकर कि, मेरे भीतर ही वह बिंध गया, बाहर निकलने का नहीं अब । (3) सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार । लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत-दिखावणहार ॥3॥ भावार्थ : अन्त नहीं सद्गुरु की महिमा का, और अन्त नहीं उनके किये उपकारों का , मेरे अनन्त लोचन खोल दिये, जिनसे निरन्तर मैं अनन्त को देख रहा हूँ । (4) बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाड़ी कै बार । जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार ॥4॥ भावार्थ : हर दिन कितनी बार न्यौछावर करूँ अपने आपको सद्गुरू पर, जिन्होंने एक पल में ही मुझे मनुष्य से परमदेवता बना दिया, और तदाकार हो गया मैं । (5) गुरु गोविन्द दोऊ खड़े,काके लागूं पायं । बलिहारी गुरु आपणे, जिन गोविन्द दिया दिखाय ॥5॥ भावार्थ : गुरु और गोविन्द दोनों ही सामने खड़े हैं ,दुविधा में पड़ गया हूँ कि किसके पैर पकडूं !सद्गुरु पर न्यौछावर होता हूं कि, जिसने गोविन्द को सामने खड़ाकर दिया, गोवि...