केदारनाथ सिंह की कविताएं

  1. Hindisamay.com: केदारनाथ सिंह की कविता :: Poem by Kedar Nath Singh
  2. केदारनाथ सिंह: दुनिया से मिलने को निकला एक कवि
  3. केदारनाथ सिंह की कविताएं: जाना, यह पृथ्वी रहेगी, सूर्य, अंत महज एक मुहावरा है
  4. केदारनाथ सिंह
  5. केदारनाथ सिंह की कविता
  6. केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय
  7. पढ़ें, केदारनाथ सिंह की 4 मशहूर कविताएं
  8. Kedarnath Singh passed away, read his three famous poems : Outlook Hindi


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Hindisamay.com: केदारनाथ सिंह की कविता :: Poem by Kedar Nath Singh

केदारनाथ सिंह हिंदीसमयडॉटकॉम पर उपलब्ध कविताएँ जन्म : 1934, चकिया, बलिया, उत्तर प्रदेश भाषा : हिंदी विधाएँ : कविता, आलोचना प्रमुख कृतियाँ : कविता : अभी बिल्कुल अभी, ज़मीन पक रही है, यहाँ से देखो, बाघ, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ, तालस्ताय औरसाइकिल आलोचना : कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता मेंबिंबविधान, मेरे समय के शब्द, कब्रिस्तान में पंचायत, मेरे साक्षात्कार संपादन : ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएँ, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका), शब्द (अनियतकालिक पत्रिका) सम्मान : मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान संपर्क : A-88\3, एस.एफ.एस. फ्लैट, साकेत, नई दिल्ली-110017 टेलीफोन : 09868637566 विशेष : केदारनाथ सिंह चर्चित कविता संकलन ‘तीसरा सप्तक’ के सहयोगी कवियों में से एक हैं। इनकी कविताओं के अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, स्पेनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं। कविता पाठ के लिए दुनिया के अनेक देशों की यात्राएँ की हैं। मंच और मचान पत्तों की तरह बोलते तने की तरह चुप एक ठिंगने से चीनी भिक्खु थे वे जिन्हें उस जनपद के लोग कहते थे चीना बाबा कब आए थे रामाभार स्तूप पर यह कोई नहीं जानता था पर जानना जरूरी भी नहीं था उनके लिए तो बस इतना ही बहुत था कि वहाँ स्तूप पर खड़ा है चिड़ियों से जगरमगर एक युवा बरगद बरगद पर मचान है और मचान पर रहते हैं वे जाने कितने समय से अगर भूलता नहीं तो यह पिछली सदी के पाँचवें दशक का कोई एक दिन था जब सड़क की ओर से भोंपू की आवाज आई 'भाइयो और बहनो, प्रधानमंत्री आ रहे हैं स्तूप को देखन...

केदारनाथ सिंह: दुनिया से मिलने को निकला एक कवि

कविता का पूरा अर्थ हासिल कर पाना और संप्रेषणीयता का प्रश्न, हर कवि को इन दो कसौटियों पर अनिवार्यतः कसा जाता था. केदारनाथ सिंह की कविता, हर खरी कविता की तरह इन दोनों के प्रलोभन से बचती थी. केदारनाथ सिंह. (फोटो साभार: दूरदर्शन/यू ट्यूब) गद्य अगर चीज़ों को उनके सही नाम से पुकारने की कला है तो फिर कविता क्या है? कविता संभवतः मनुष्य को भाषा की तरफ से दी गई चुनौती है, उसकी उस आदत को और उस अहंकार को कि हर चीज़ का ठीक-ठीक अर्थ किया जा सकता है. अर्थ करने का अर्थ ही है उस चीज़ को पकड़ लेना या उसकी व्याख्या करने बैठ जाना. कविता व्याख्या के इस प्रलोभन का संवरण करने का अनुरोध है. कविता देखने, सुनने और महसूस करने के लिए धैर्य का सृजन करने का अवसर है. मनुष्य की भूल इस समझ में है कि सोचना उसके लिए स्वाभाविक है और महसूस करना भी. कविता, अच्छी कविता यह बतलाती है कि जैसे सोचना सरल नहीं है, वैसे ही महसूस करने के नए तरीके हो सकते हैं. कविता संवेदनाओं की परिपाटीबद्धता को तोड़ते हुए उनकी नवीन संरचनाएं गढ़ती है. सोचने का अभ्यास करना होता है, वैसे ही संवेदनाओं का भी. परिवार के मुताबिक केदारनाथ सिंह की वास्तविक जन्मतिथि 19 नवंबर ही है, सो उनके जन्मदिन की आहट मिलने पर उस मुश्किल का ध्यान हो आया, जो हर सच्ची कविता एक पाठक के सामने खड़ी करती है. अर्थ करने, व्याख्या करने, उससे अधिक ज़रूरी है देखना, सुनना, उस रूप को ग्रहण करना जोकि कविता है और जीवन भी. यह भी पढ़ें: ‘कथाओं से भरे इस देश में… मैं भी एक कथा हूं’ 40 साल हुए जब केदारनाथ सिंह से, उनकी कविताओं से पहला परिचय हुआ था. वह अशोक वाजपेयी के मुताबिक़ कविता की वापसी का समय था. ‘ज़मीन पक रही है’ संग्रह लंबे अंतराल के बाद छपकर आया उनका दूसरा संग्रह था. पाठकों में उन...

केदारनाथ सिंह की कविताएं: जाना, यह पृथ्वी रहेगी, सूर्य, अंत महज एक मुहावरा है

Kedarnath Podcast: न्यूज18 हिंदी के इस स्पेशल पॉडकास्ट में आपका स्वागत करती हूं. स्वीकार करें पूजा प्रसाद का नमस्कार. दोस्तो, जिसके पास कहने के लिए कुछ न हो, सोचने के लिए कुछ न हो और जो, कुछ सुनने को भी तैयार न हो, उसे कोई भी उम्र बोझ लग सकती है. ऐसे लोगों के बारे में सोचने पर उदय प्रकाश की कविता याद आ जाती है. वे लिखते हैं – आदमी मरने के बाद कुछ नहीं सोचता. आदमी मरने के बाद कुछ नहीं बोलता. कुछ नहीं सोचने और कुछ नहीं बोलने पर आदमी मर जाता है. लेकिन ठीक इसके उलट जब कोई शख्स लगातार बोल रहा हो, सटीक बोल रहा हो, सार्थक बोल रहा हो, सुनने वाले उसे दम साधे सुन रहे हों, सुनते हुए लगातार गुन रहे हों, तो ऐसे आदमी का अपने बीच न रहना बेहद सालने लगता है. भले ही वह तिरासी साल की उम्र में क्यों न गया हो. जी हां, मैं बात कर रही हूं कवि, आलोचक केदारनाथ सिंह की. आज से पांच बरस पहले 83 साल की उम्र में वे चले गए थे. इस ‘जाने’ को वे हिंदी की सबसे डरावनी क्रिया मानते थे. उनकी एक बेहद छोटी सी मगर असरदार कविता है ‘जाना’. सुनें. मैं जा रही हूँ-उसने कहा जाओ- मैंने उत्तर दिया यह जानते हुए कि जाना हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है. सुनें पॉडकास्ट- दिवंगत हो चुके मंगलेश डबराल हिंदी के असरदार कवियों में शुमार किए जाते हैं. उन्होंने अपने एक लेख में केदारनाथ सिंह को याद करते हुए लिखा था कि वे हिंदी के ऐसे अनोखे कवि थे, जिन्होंने लोक संवेदना, ग्रामीण संवेदना और कस्बाई संवेदना, इन तीनों के लिए आधुनिक हिंदी काव्य भाषा के बीच जगह बनाई और उसे विकसित किया. मंगलेश डबराल की यह बात वह सिरा है, जिसे थामकर हम केदारनाथ सिंह की कविताओं के मर्म तक पहुंच सकते हैं. उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गांव में जन्मे थे केदा...

केदारनाथ सिंह

अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 2 योगदान • 3 मुख्य कृतियाँ • 4 पुरस्कार • 5 सन्दर्भ • 6 बाहरी कड़ियाँ जीवन परिचय [ ] केदारनाथ सिंह का जन्म ०७ जुलाई १९३४ ई॰ को योगदान [ ] केदारनाथ सिंह की प्रमुख काव्य कृतियां ‘जमीन पक रही है', ‘यहां से देखो’, ‘उत्तर कबीर’, ‘टालस्टॉय और साइकिल’ और ‘बाघ’ हैं। उनकी प्रमुख गद्य कृतियां ‘कल्पना और छायावाद’, ‘आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान’ और ‘मेरे समय के शब्द’ हैं। मुख्य कृतियाँ [ ] कविता संग्रह • अभी बिल्कुल अभी (1960) • जमीन पक रही है • यहाँ से देखो • बाघ • अकाल में सारस • उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ • तालस्ताय और साइकिल • सृष्टि पर पहरा (2014) आलोचना • कल्पना और छायावाद • आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान • मेरे समय के शब्द • मेरे साक्षात्कार संपादन • ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन) • समकालीन रूसी कविताएँ • कविता दशक • साखी (अनियतकालिक पत्रिका) • शब्द (अनियतकालिक पत्रिका) पुरस्कार [ ] 2013 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार,1989 में उनकी कृति ‘अकाल में सारस’ को सन्दर्भ [ ]

केदारनाथ सिंह की कविता

इस घर से सटे हुए बहुत-से घर हैं जैसे एक पत्थर से सटे हुए बहुत-से पत्थर और धूप हो की वर्षा यहाँ नियम यह कि हर घर अपने में बंद अपने में खुला पर बगल के घर में अगर पकता है भात तो उसकी ख़ुशबू घुस आती है मेरे किचन में मेरी चुप्पी उधर के फूलदानों तक साफ़ सुनाई पड़ती है और सच्चाई यह है कि हम सबकी स्मृतियाँ अपने-अपने हिस्से की बारिश से धुलकर इतनी स्वच्छ और ऐसी पारदर्शी कि यहाँ किसी का नम्बर किसी को याद नहीं ! विद्वानों की इस बस्ती में जहाँ फूल भी एक सवाल है और बिच्छू भी एक सवाल मैंने एक दिन देखा एक अधेड़-सा आदमी जिसके कंधे पर अंगौछा था और हाथ में एक गठरी ‘अंगौछा’- इस शब्द से लम्बे समय बाद मेरे मिलना हुआ और वह भी जे. एन. यू. में ! वह परेशान-सा आदमी शायद किसी घर का नम्बर खोज रहा था और मुझे लगा-कई दरवाज़ों को खटखटा चुकने के बाद वह हो गया था निराश और लौट रहा था धीरे-धीरे ज्ञान की इस नगरी में उसका इस तरह जाना मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी पीठ पर कुछ गिर रहा हो सपासप् कुछ देर मैंने उसका सामना किया और जब रहा न गया चिल्लाया फूटकर-- ‘विद्वान लोगो ! दरवाज़ा खोलो वह जा रहा है कुछ पूछना चाहता था कुछ जानना चाहता था वह रोको.. उस अंगौछे वाले आदमी को रोको... और यह तो बाद में मैंने जाना उसके चले जाने के काफ़ी देर बाद कि जिस समय मैं चिल्ला रहा था असल में मैं चुप था जैसे सब चुप थे और मेरी जगह यह मेरी हिंदी थी जो मेरे परिसर में अकेले चिल्ला रही थी । आगे पढ़ें विशेष • Kavya Cafe: Rachit Dixit Poetry- ब्रेक अप के बाद लड़के • Hindi Kavita: नवीन सागर की कविता 'अपना अभिनय इतना अच्छा करता हूँ' • Urdu Poetry: नसीर तुराबी की ग़ज़ल 'दिया सा दिल के ख़राबे में जल रहा है मियाँ' • Parveen Shakir Poetry: वो कहीं भी गया लौ...

केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय

के दारनाथ सिंह का जीवन परिचय केदारनाथ सिंह की कविताएं केदारनाथ सिंह की भाषा शैली केदारनाथ सिंह की रचनाएं kedarnath singh poems in hindi kedarnath singh in hindi kedarnath singh poems kedarnath singh ka jeevan parichay - नयी कविता के सशक्त हस्ताक्षर एवं हिन्दी के भावुक एवं सरस कवि केदार नाथ सिंह जी का जन्म सन 1934 मे चकिया ,जिला बलिया उत्तर प्रदेश मे हुआ था। साधारण कृषक परिवार मे जन्में केदार जी की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा गाँव मे खुले ,स्निग्ध वातवारण मे हुई । बी. ए की परीक्षा आपने उदय प्रताप कॉलेज से पास की और काशी विश्वविद्यालय से आपने एम. ए किया।' आधुनिक हिंदी कविता में बिम्ब विधान का विकास' विषय पर आपने शोध कार्य कर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आपने अध्यापन कार्य अपनाया और उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी ,सेंट एंडरस कॉलेज ,गोरखपुर ,उदित नारायण कॉलेज ,पडरौना तथा गोरखपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया। सन १९७६ में आपने दिल्ली में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य आरम्भ किया। विधिवत काव्य लेखन आपने १९५३ से प्रारम्भ किया। सन १९५४ में एलुअर की प्रसिद्ध कविता "स्वतंत्रता " का अनुवाद किया ,जिनके जरिये नयी सौन्दर्य दृष्टि और समकालीन काव्य चेतना से पहला परिचय हुआ। कुछ समय तक बनारस से निकलने वाली पत्रिका ,"हमारी पीढ़ी ' से सम्बद्ध रहे। पहला कविता संग्रह सन १९६० में छपा जिसका शीर्षक था ,"अभी बिलकुल अभी। " इसके पश्चात जमींन पक रही है (१९८० ) तथा यहाँ से देखो (१९८३ ) में प्रकाशित हुए। १९८९ में उनका काव्य संग्रह अकाल में सारस प्रकाशित हुआ।"कल्पना और छायावाद ' आपकी आलोचनात्मक पुस्तक है। आपकी चुनी हुई कविताओं का संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है।1989 में प्रमुख कृति‘ अकाल में...

पढ़ें, केदारनाथ सिंह की 4 मशहूर कविताएं

Kedarnath Singh Poems: अगर आप हिंदी साहित्य के प्रेमी हैं तो आपने केदारनाथ सिंह की कविताएं जरूर सुनी या पढ़ी होंगी. इन्हें समकालीन कविता के प्रमुख हस्ताक्षर के तौर पर भी याद किया जाता है. जानकारी के मुताबिक केदारनाथ सिंह का जन्म साल 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गांव में हुआ था. इन्होंने कई कविताओं, गद्य और ढेर सारी पुस्तकों की रचना की. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि साल 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, इसके अलावा कुमार आशान पुरस्कार (केरल), जीवनभारती सम्मान (उड़ीसा), मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, दिनकर पुरस्कार और व्यास सम्मान समेत कई प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित केदारनाथ सिंह ने 2010 में दिल्ली की हिंदी अकादमी का लाखों का शलाका सम्मान ठुकरा दिया था. आज पढ़ेंगे केदारनाथ सिंह की 4 चुनिंदा कविताएं- ‘ चट्टान को तोड़ो वह सुंदर हो जायेगी‘, ‘ पानी में घिरे हुए लोग‘, ‘ जाना‘ और ‘ छोटे शहर की एक दोपहर‘ चट्टान को तोड़ो वह सुंदर हो जायेगी अब उसे उठालो रख लो कन्धे पर ले जाओ शहर या कस्बे में डाल दो किसी चौराहे पर तेज़ धूप में तपने दो उसे जब बच्चे हो जायेंगे उसमें अपने चेहरे तलाश करेंगे अब उसे फिर से उठाओ अबकी ले जाओ उसे किसी नदी या समुद्र के किनारे छोड़ दो पानी में उस पर लिख दो वह नाम जो तुम्हारे अन्दर गूंज रहा है वह नाव बन जायेगी अब उसे फिर से तोड़ो फिर से उसी जगह खड़ा करो चट्टान को उसे फिर से उठाओ डाल दो किसी नींव में किसी टूटी हुई पुलिया के नीचे टिको दो उसे उसे रख दो किसी थके हुए आदमी के सिरहाने अब लौट आओ तुमने अपना काम पूरा कर लिया है अगर कन्धे दुख रहे हों कोई बात नहीं यक़ीन करो कन्धों पर कन्धों के दुखने पर यक़ीन करो यकीन करो और खोज लाओ कोई नई चट्टान! Pod...

Kedarnath Singh passed away, read his three famous poems : Outlook Hindi

‘अंत महज एक मुहावरा है’ लिखने वाले कवि केदारनाथ सिंह (86) अब इस दुनिया में नहीं रहे। आधुनिक कविता के सशक्त हस्ताक्षर केदारनाथ सिंह का सोमवार रात एम्स में निधन हो गया। सांस की तकलीफ के कारण उन्हें 13 मार्च को एम्स के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में भर्ती किया गया था। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गांव में 1934 को जन्मे सिंह को 2013 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ‘ब्रह्मांड को एक छोटी-सी सांस की डिबिया में भर लो’ कहने का साहस रखने वाले सिंह ने बीएचयू से 1956 में हिंदी में एमए और 1964 में पीएचडी किया। वे ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले हिंदी के 10वें लेखक हैं। इसके अलावा उन्हें मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। पढ़िए, केदारनाथ सिंह की तीन कविताएं... अंत महज एक मुहावरा है अंत में मित्रों, इतना ही कहूंगा कि अंत महज एक मुहावरा है जिसे शब्द हमेशा अपने विस्फोट से उड़ा देते हैं और बचा रहता है हर बार वही एक कच्चा-सा आदिम मिट्टी जैसा ताजा आरंभ जहां से हर चीज फिर से शुरू हो सकती है बनारस इस शहर में वसंत अचानक आता है और जब आता है तो मैंने देखा है लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से उठता है धूल का एक बवंडर और इस महान पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है जो है वह सुगबुगाता है जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ आदमी दशाश्‍वमेध पर जाता है और पाता है घाट का आखिरी पत्‍थर कुछ और मुलायम हो गया है सीढि़यों पर बैठे बंदरों की आँखों में एक अजीब सी नमी है और एक अजीब सी चमक से भर उठा है भिखारियों के कटरों का निचाट खालीपन तुमने कभी देखा है खाली कटोरों में वसंत का उतरना...