खानवा का युद्ध

  1. खानवा युद्ध के कारण और परिणाम , महत्व क्या है
  2. 50+ भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध और लड़ाइयां
  3. खानवा युद्ध के परिणाम
  4. खानवा का युद्ध
  5. खानवा का युद्ध
  6. खानवां के युद्ध के परिणाम,युद्ध में राणा सांगा के पराजय के कारण और सम्पूर्ण युद्ध से जुड़ी जानकारी
  7. खानवा का युद्द
  8. खानवा का युद्ध कारण और परिणाम
  9. खानवा का युद्द
  10. खानवा युद्ध के परिणाम


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खानवा युद्ध के कारण और परिणाम , महत्व क्या है

युद्ध की घटनाएँ : खानवा युद्ध में कर्नल टॉड के अनुसार राणा की सेना में 7 उच्च श्रेणी के राजा , 9 राव और 104 बड़े सरदार शामिल हुए। 17 मार्च 1527 ईस्वी को प्रात: साढ़े नौ बजे के लगभग युद्ध आरम्भ हो गया। युद्ध के मैदान में राणा सांगा घायल हो गया जिससे युद्ध का मंजर ही बदल गया। अंतिम रूप से विजय बाबर की हुई। राणा की पराजय के कारण : खानवा के युद्ध में राणा सांगा की पराजय के अग्रलिखित कारण थे – बाबर के पास तोपखाना होना। बाबर की तुलुगमा पद्धति और रणकौशल। राजपूत सेना का एक नेता के अधीन न होना। रायसीन के सलहदी तंवर और नागौर के खानजादा के युद्ध के अंतिम दौर में बाबर से मिल जाना। राजपूत पक्ष के इतिहासकार टॉड तथा वीर विनोद के अनुसार राणा की पराजय का कारण सिलहन्दी तंवर का शत्रुओं से मिलना था परन्तु यह भी सत्य है कि तीर गोली का जवाब नहीं दे सकते थे। खानवा के युद्ध का महत्व : इससे राजसत्ता राजपूतों के हाथों से निकल कर मुगलों के साथ में आ गयी जो लगभग 200 वर्ष से अधिक समय तक उनके पास बनी रही। यहाँ से उत्तरी भारत का राजनितिक सम्बन्ध मध्य एशियाई देशों से पुनः स्थापित हो गया। युद्ध शैली में भी एक नए सामंजस्य का मार्ग खुल गया। सांस्कृतिक समन्वय स्थापित हुआ। प्रश्न : मालदेव के हुमायूँ तथा शेरशाह के साथ सम्बन्धों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिये। उत्तर : अपने पिता राव गंगा राठोर की मृत्यु के बाद राव मालदेव 5 जून 1532 को जोधपुर की गद्दी पर बैठा। उनका राज्याभिषेक सोजत में संपन्न हुआ। राव मालदेव गंगा का ज्येष्ठ पुत्र थे। जिस समय उसने मारवाड़ के राज्य की बागड़ोर अपने हाथ में ली उस समय उसका अधिकार सोजत तथा जोधपुर के परगनों पर ही था। राव मालदेव राठोड वंश का प्रसिद्ध शासक हुआ। उस समय दिल्ली पर मुग़ल बादशाह हुमा...

50+ भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध और लड़ाइयां

सर्वप्रथम यहां पर सभी युद्ध के बारे में संक्षिप्त में पूरी लिस्ट दी है, जहां पर युद्ध का नाम, वर्ष और जिनके बीच में युद्ध हुआ उनकी जानकारी दी है | उसके बाद में कुछ प्रमुख युद्ध के बारे में विस्तार से भी जानकारी दी हैं, तो आप पूरा जरूर पढ़ें | इस टॉपिक के साथ सभी विषयों की PDF एक साथ डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके Download कर पाएंगे | महत्वपूर्ण बिंदु - • • • • • • • • • • • • • • • • • • भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध सूची | Itihas Ke Pramukh Yudh List युद्ध का नाम वर्ष युद्ध किनके बीच हुआ हाइडेस्पीज का युद्ध 326 ई.पू. सिकंदर ने राजा पोरस को पराजित किया कलिंग युद्ध 261 ईसा पूर्व अशोक ने कलिंग शासक को हराया रावर का युद्ध 712 ईसवी मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध के राजा दाहिर को हराया पेशावर का युद्ध 1001 ई. मोहम्मद गजनबी ने राजा जयपाल को हराया तराइन का प्रथम युद्ध 1191 पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 मोहम्मद गौरी की पृथ्वीराज पर जीत हुई चंदावर का युद्ध 1194 मोहम्मद गोरी ने जयचंद को हराया पानीपत का प्रथम युद्ध 1526 बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराया खानवा का युद्ध 1527 बाबर ने राणा सांगा को हराया चंदेरी का युद्ध 1528 बाबर के खिलाफ मेदिनीराय की हार हुई घाघरा का युद्ध 1529 बाबर ने महमूद लोदी को हराया दौराह का युद्ध 1532 हुमायूं ने शेर शाह सुरी को हराया चौसा का युद्ध 1539 शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हराया कन्नौज /बिलग्राम का युद्ध 1540 शेर शाह ने हुमायूं को हराकर सूर वंश की स्थापना की मछीवाड़ा का युद्ध 1555 हुमायूं ने अफगान शासक सालार खान को हराया सरहिंद का युद्ध 1555 हुमायूं ने शेरशाह को हराकर मुगल वंश दोबारा स्थापित किया पानीपत का द्वितीय युद्ध 15...

खानवा युद्ध के परिणाम

खानवा युद्ध के परिणाम – खानवा युद्ध के परिणाम अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण और दूरगामी सिद्ध हुए। खानवा का युद्ध देश के निर्णायक युद्धों में माना जाता है। कुछ विद्वानों ने तो इसे भारतीय इतिहास में खानवा में राजपूतों की हार से राजस्थान की सदियों पुरानी स्वतंत्रता तथा उसकी प्राचीन हिन्दू संस्कृति को सफलतापूर्वक अक्षिण्ण बनाये रख सकने वाला अब यहाँ कोई नहीं रह गया। मुगल साम्राज्य ने राजस्थान की स्वतंत्रता का अंत कर दिया, और राजनीतिक शक्ति के पतन के बाद राजस्थान की संस्कृति, यहाँ की विद्या और कला का भी पतन होने लगा। नये-नये प्रभाव उन पर पङने लगे तथा विदेशी भावनाओं से वे अछूते नहीं रह सके, जिससे आगे चलकर उनका मध्यकालीन स्वरूप ही बदल गया। सुदूरस्थ विदेशों से आने वाले इन विधर्मी आक्रमणकारी मुगलों ने राजनीतिक एकता के साथ ही धीरे-धीरे समस्त राजस्थान की संस्कृति तथा साहित्य में एक अनोखी समानता भी उत्पन्न कर दी थी। मुगल साम्राज्य की स्थापना के बाद उत्तरी भारत में उत्पन्न होने वाली नयी सम्मिलित हिन्दू – मुस्लिम संस्कृति का प्रभाव कुछ समय बाद राजस्थान निवासियों के आचार-विचार, रहन-सहन, वेश-भूषा तथा खान पान तक में दिखायी पङने लगा। इन सारी नयी-नयी प्रवृत्तियों तथा महत्त्वपूर्ण क्रांतिकारी प्रभावों का प्रारंभ खानवा के युद्ध के बाद तथा उसी के परिणामों के फलस्वरूप ही हो सका था। References : 1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

खानवा का युद्ध

खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. में मेवाड़ के शासक राणा सांगा तथा मुगल शासक बाबर के बीच लड़ा गया। इसमें बाबर विजयी हुआ। इस युद्ध में बाबर ने राणा सांगा के विरुद्ध जिहाद (धर्मयुद्ध) का नारा दिया था। इस युद्ध में विजय के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की। पानीपत के युद्ध के बाद बाबर द्वारा लड़े गये युद्धों में खानवा का युद्ध सबसे महत्वपूर्ण युद्ध था। पानीपत विजय ने जहां बाबर को दिल्ली का बादशाह बनाया वहीं खानवा विजय ने उसके शासन को स्थायित्व प्रदान किया। खानवा युद्ध के कारण पानीपत के युद्ध से पूर्व राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी के विरुद्ध सैनिक सहायता देने का वचन दिया था, किन्तु बाद में वह मुकर गया। राणा सांगा बाबर को दिल्ली का शासक नहीं मानता था। इस युद्ध का मुख्य कारण बाबर तथा राणा सांगा दोनों की महत्वाकांक्षा थी। बाबर सम्पूर्ण भारत पर अधिकार करना चाहता था जबकि राणा सांगा दिल्ली में हिन्दू साम्राज्य स्थापित करना चाहता था। राणा सांगा ने कुछ अफगान सरदारों को अपने दरबार में शरण दी थी। जबकि बाबर उन्हें समाप्त करना चाहता था। उपर्युक्त कारणों ने खानवा के युद्ध का मार्ग खोल दिया। इस युद्ध में राणा सांगा का साथ मारवाड़, अम्बर, ग्वालियर, अजमेर के शासक तथा अफगान सरदार दे रहे थे। खानवा के युद्ध से पूर्व राणा सांगा ने बयाना पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। राणा सांगा की बयाना विजय तथा विशाल सेना की खबर सुन बाबर के सैनिकों का मनोबल गिरने लगा। किन्तु बाबर का “साहस और धैर्य” भंग नहीं हुआ। उसने अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाने के लिए “जेहाद (धर्मयुद्ध)” का नारा दिया। उसने शराब बेचने और पीने पर प्रतिबन्ध लगा दिया तथा कभी शराब न पीने का वचन दिया। इसके अतिरिक्त बाबर ने अपने राज्य क्षेत्र में मुसलम...

खानवा का युद्ध

• निर्णायक योद्धा सेनानायक ' कासिम हुसैन खान सैय्यद मेहदी ख्वाजा असद मलिक हस् त Uday Singh of Vagad इदर के रायमल राठौर मेड़ता के रतन सिंह मानिक चंद चौहान चंद्रभान चौहान रतन सिंह चुंडावत राज राणा अजजा राव रामदास गोकलदास परमार शक्ति/क्षमता 50,000 30,000 सिल्हदी के तहत पुरुषों 100,000 सवारों 500 खानवा का युद्ध 16 मार्च 1527 को अनुक्रम • 1 पृष्ठभूमि • 2 प्रारंभिक झड़पें • 3 बाबर के खिलाफ राजपूत-अफगान गठबंधन • 4 बाबर ने अपने सैनिकों को ललकारा • 5 तैयारी • 6 युद्ध • 7 परिणाम • 8 इन्हें भी देखें • 9 संदर्भ पृष्ठभूमि [ ] 1524 तक, हालाँकि, जब बाबर ने लोदी पर हमला किया और दिल्ली और आगरा को अपने कब्जे में ले लिया, तब संघ ने कोई कदम नहीं उठाया, जाहिर तौर पर उसका मन बदल गया। बाबर ने इस पिछड़ेपन का विरोध किया था; अपनी आत्मकथा में, बाबर ने राणा साँगा पर उनके समझौते को तोड़ने का आरोप लगाया। इतिहासकार प्रारंभिक झड़पें [ ] जल्द से जल्द पश्चिमी विद्वानों के खाते में बाबर के खिलाफ राजपूत-अफगान गठबंधन [ ] राणा साँगा ने बाबर के खिलाफ एक दुर्जेय सैन्य गठबंधन बनाया था। वह राजस्थान के लगभग सभी प्रमुख राजपूत राजाओं में शामिल थे, जिनमें हरौटी, जालोर, सिरोही, डूंगरपुर और ढुंढार शामिल थे। मारवाड़ के गंगा राठौर मारवाड़ व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं हुए, लेकिन अपने पुत्र मालदेव राठौर के नेतृत्व में एक दल भेजा। मालवा में चंदेरी की राव मेदिनी राय भी गठबंधन में शामिल हुईं। इसके अलावा, सिकंदर लोदी के छोटे बेटे महमूद लोदी, जिन्हें अफगानों ने अपना नया सुल्तान घोषित किया था, भी उनके साथ अफगान घुड़सवारों की एक टुकड़ी के साथ गठबंधन में शामिल हो गए। मेवात के शासक खानजादा हसन खान मेवाती भी अपने आदमियों के साथ गठबंधन...

खानवां के युद्ध के परिणाम,युद्ध में राणा सांगा के पराजय के कारण और सम्पूर्ण युद्ध से जुड़ी जानकारी

(2) राणा सांगा और बबर की महत्वाकांक्षाओं का पालन – बबर और राणा सांगा दोनों ही अत्यधिक महत्वाकांक्षी मानसिकता वाले थे। राणा सांगा ने अपमान में ही नहीं अपितु पूरे उत्तरी भारत में अपनी शूरवीरता और पराक्रम की धाक स्थापित कर रखी है।] अत: बाबर राणा सांगा की शक्ति का दमन किए बिना उत्तरी भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित नहीं कर सकता था। दूसरी ओर राणा सांगा भी बाबर के उत्तरी भारत में बढ़ते हुए प्रभाव से चिन्तित था। डॉ.जी.एन.शर्मा का कथन है कि दोनों शत्रु एक-दूसरे की शक्ति के परिवर्द्धन से भयभीत थे। दोनों का उत्तरी भारत में एक साथ रहना वैसा ही था जैसे एक म्यान में दो तलवारें। (3) राजपूत अफगान संगठन – राजपूत और अफगान बाबर के प्रबल प्रतिद्वन्द्वी थे। राणा सांगा अफ़ग़ानों के साथ मिलकर बाबर को भारत से खदेड़ देना चाहता था। इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी राणा सांगा की शरण में पहुँच चुका था। हसनखाँ मेवाती भी अपने योद्धाओं को लेकर राणा साँगा के शिविर में सम्मिलित हो गया था। बाबर राजपूत-अफगान संगठन को अपने लिए खतरनाक मानता था। अत:उसने राजपूतों की शक्ति को नष्ट करने का निश्चय कर लिया। (4) बाबर द्वारा जिहाद का नारा देना –बाबर अपने आपको इस्लाम धर्म का पोषक मानता था। उसने राणा सांगा के विरुद्ध इस युद्ध को जिहाद का रूप दिया और घोषित किया कि वह इस्लाम धर्म के गौरव के लिए युद्ध लड़ रहा था। दूसरी ओर राणा सांगा हिन्दू-धर्म एवं संस्कृति का प्रबल पोषक था। वह हिन्दू-धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने को तैयार था। अतः इस स्थिति में दोनों पक्षों में युद्ध होना स्वाभाविक था। Telegram Group (91k+) मार्च,1527 में बाबर ने खानवा पहुँच कर अपनी सेना की व्यूह-रचना की। यहाँ खाइयाँ खोदी ग...

खानवा का युद्द

पानीपतकीऐतिहासिकलड़ाईलड़नेकेबादमुगलबादशाहबाबरद्धाराखानवाकायुद्धभारतमेंलड़ेगएसबसेमहत्वपूर्णयुद्धोंमेंसेएकथा।इसयुद्धमेंभीबाबरनेपानीपतकेयुद्धकीतरहकीचक्रव्यूहरचकरसबसेशक्तिशालीमेवाड़नरेशराणासांगाकोबलपूर्वकपरास्तकरदियाथा। वहींइसयुद्धमेंराणासांगाकीहारकेबादराजपूतोंकाभारतमेंहिन्दूसाम्राज्यस्थापितकरनेकासपनाचकनाचूरहोगयाथाऔरराजपूतोंकीशक्तिबहुतकमजोरपड़गईथी, तोवहींदूसरीतरफमुगलबादशाहबाबरद्धाराएकबहादुरऔरप्रबलशासकराणासांगाकोहरानेकेबादउसकीशक्तिऔरभीअधिकमजबूतहोगईथी, एवंमुगलवंशकोइसकेबादकाफीमजबूतीमिलगईथीऔरभारतमेंमुगलसाम्राज्यकाविस्तारकरनाबेहदआसानहोगयाथा। वहींखानवाकायहऐतिहासिकयुद्दहोनेकेपीछेइतिहासकारोंद्धाराकईतर्कदिएजातेहैं, आइएजानतेहैंइतिहासकीइसमहत्वपूर्णखानवाकीलड़ाईकेबारेमें– खानवाकायुद्द– Khanwa Ka Yudh खानवाकेयुद्धकासारांशएकनजरमें– Khanwa War Summary खानवाकायुद्धकबहुआ 17 मार्च, 1527 ईसवीमें। खानवाकायुद्धकहांलड़ागया राजस्थानमेंभरतपुरकेपासऔरफतेहपुरसीकरीसेकुछमीलोंकीदूपीपरस्थित“खानवा”नामकजगहपरहुआ। खानवाकायुद्धकिन-किनकेबीचलड़ागया राजपूतशासकराणासांगाऔरमुगलबादशाहबाबरकेबीचलड़ागया। आखिरक्योंहुआखानवाकायुद्ध? – Battle of Khanwa History in Hindi सत्तासीनहोनेकेलालचमेंइतिहासमेंकईयुद्धहुएहैंउन्हींयुद्धोंमेंसेएकहैखानवाकाप्रसिद्धयुद्ध, जोकिशक्तिशालीराजपूतशासकराणासांगाऔर दरअसल, उससमयराजपूतनरेशराणाशासकदिल्लीमेंलोदीवंशकाखात्माकरखुददिल्लीमेंअपनाकब्जाजमानाचाहताथा, वहींलोदीवंशकाखात्माकरनेकेलिएराणासांगाऔरदौलतखानलोदीनेबाबरकोभारतमेंआनेकान्योतायहसोचकरदियाथाकि, अन्यमुस्लिमशासकोंकीतरहबाबरभीभारतमेंलूटपाटमचाकरवापसचलाजाएगा, औरवेदिल्लीकेराजसिंहासनपरबैठसकेंगे। लेकिनबादमेंजबबाबरनेभारतमेंहीराजकरनेकाफैसलालियाऔरवापसनहींलौटातबराज...

खानवा का युद्ध कारण और परिणाम

Khanwa ka Yudh खानवा का युद्ध कारण और परिणाम | 1527 Battle Of Khanwa In Hindi: मेवाड़ व महाराणा सांगा के इतिहास में खानवा के युद्ध Khanwa Battle 1527 का महत्वपूर्ण योगदान हैं. भारत में मुगलों और मेवाड़ के राजपूतों के मध्य यह पहला युद्ध था. जिनके लिए कई कारण थे जिसका परिणाम राणा सांगा को इस युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा था. युद्ध में राणा का साथ देने वाले चंदेरी के राजा मेदिनी राव के राज्य पर बाबर ने आक्रमण भी किया, जिसमें राजपरिवार की समस्त महिलाओं ने जौहर किया. खानवा का युद्ध कारण और परिणाम | 1527 Battle Of Khanwa In Hindi जब मध्य एशिया में बाबर अपना राज्य स्थापित करने में असफल रहा तो लोदी सरदारों के आमंत्रण पर वह भारत आया और उसने यहाँ अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहा. इस क्रम में उसने दिल्ली को जीत लिया. बाबर के लिए दिल्ली पर अधिकार करना सरल था. किन्तु अपनी शक्ति को दृढ़ बनाये रखना कठिन था. उत्तर पश्चिम भारत की विजय और पानीपत में इब्राहिम लोदी की हार ने बाबर को केन्द्रीय हिंदुस्तान का स्वामी बना दिया था. खानवा राजस्थान के भरतपुर के साथ स्थित स्थान है जहाँ यह युद्ध लड़ा गया था. 2 लाख की सेना के साथ बाबर ने अफगान सरदार की मदद और आधुनिक तोपखाने के चलते सांगा के खिलाफ निर्णायक लड़ाई जीतकर भारत में मुगल वंश की नींव डाली. अगली कई शताब्दियों तक इस वंश ने भारत पर शासन किया, मगर सांगा के वंशजों ने मेवाड़ की आजादी के परचम की लड़ाई जारी रखी. लेकिन अब भी उसके समक्ष दो प्रतिद्वंदी थे राजपूत और अफगान. युद्ध परिषद ने अफगान शक्ति का सामना करने को सुझाया फिर भी इस बीच घटनाक्रमों ने बाबर का ध्यान सांगा की ओर केन्द्रित कर दिया. सांगा व मुगल सम्बन्धों में युद्ध के निम्न लिखित कारण थे. खानवा यु...

खानवा का युद्द

पानीपतकीऐतिहासिकलड़ाईलड़नेकेबादमुगलबादशाहबाबरद्धाराखानवाकायुद्धभारतमेंलड़ेगएसबसेमहत्वपूर्णयुद्धोंमेंसेएकथा।इसयुद्धमेंभीबाबरनेपानीपतकेयुद्धकीतरहकीचक्रव्यूहरचकरसबसेशक्तिशालीमेवाड़नरेशराणासांगाकोबलपूर्वकपरास्तकरदियाथा। वहींइसयुद्धमेंराणासांगाकीहारकेबादराजपूतोंकाभारतमेंहिन्दूसाम्राज्यस्थापितकरनेकासपनाचकनाचूरहोगयाथाऔरराजपूतोंकीशक्तिबहुतकमजोरपड़गईथी, तोवहींदूसरीतरफमुगलबादशाहबाबरद्धाराएकबहादुरऔरप्रबलशासकराणासांगाकोहरानेकेबादउसकीशक्तिऔरभीअधिकमजबूतहोगईथी, एवंमुगलवंशकोइसकेबादकाफीमजबूतीमिलगईथीऔरभारतमेंमुगलसाम्राज्यकाविस्तारकरनाबेहदआसानहोगयाथा। वहींखानवाकायहऐतिहासिकयुद्दहोनेकेपीछेइतिहासकारोंद्धाराकईतर्कदिएजातेहैं, आइएजानतेहैंइतिहासकीइसमहत्वपूर्णखानवाकीलड़ाईकेबारेमें– खानवाकायुद्द– Khanwa Ka Yudh खानवाकेयुद्धकासारांशएकनजरमें– Khanwa War Summary खानवाकायुद्धकबहुआ 17 मार्च, 1527 ईसवीमें। खानवाकायुद्धकहांलड़ागया राजस्थानमेंभरतपुरकेपासऔरफतेहपुरसीकरीसेकुछमीलोंकीदूपीपरस्थित“खानवा”नामकजगहपरहुआ। खानवाकायुद्धकिन-किनकेबीचलड़ागया राजपूतशासकराणासांगाऔरमुगलबादशाहबाबरकेबीचलड़ागया। आखिरक्योंहुआखानवाकायुद्ध? – Battle of Khanwa History in Hindi सत्तासीनहोनेकेलालचमेंइतिहासमेंकईयुद्धहुएहैंउन्हींयुद्धोंमेंसेएकहैखानवाकाप्रसिद्धयुद्ध, जोकिशक्तिशालीराजपूतशासकराणासांगाऔर दरअसल, उससमयराजपूतनरेशराणाशासकदिल्लीमेंलोदीवंशकाखात्माकरखुददिल्लीमेंअपनाकब्जाजमानाचाहताथा, वहींलोदीवंशकाखात्माकरनेकेलिएराणासांगाऔरदौलतखानलोदीनेबाबरकोभारतमेंआनेकान्योतायहसोचकरदियाथाकि, अन्यमुस्लिमशासकोंकीतरहबाबरभीभारतमेंलूटपाटमचाकरवापसचलाजाएगा, औरवेदिल्लीकेराजसिंहासनपरबैठसकेंगे। लेकिनबादमेंजबबाबरनेभारतमेंहीराजकरनेकाफैसलालियाऔरवापसनहींलौटातबराज...

खानवा युद्ध के परिणाम

खानवा युद्ध के परिणाम – खानवा युद्ध के परिणाम अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण और दूरगामी सिद्ध हुए। खानवा का युद्ध देश के निर्णायक युद्धों में माना जाता है। कुछ विद्वानों ने तो इसे भारतीय इतिहास में खानवा में राजपूतों की हार से राजस्थान की सदियों पुरानी स्वतंत्रता तथा उसकी प्राचीन हिन्दू संस्कृति को सफलतापूर्वक अक्षिण्ण बनाये रख सकने वाला अब यहाँ कोई नहीं रह गया। मुगल साम्राज्य ने राजस्थान की स्वतंत्रता का अंत कर दिया, और राजनीतिक शक्ति के पतन के बाद राजस्थान की संस्कृति, यहाँ की विद्या और कला का भी पतन होने लगा। नये-नये प्रभाव उन पर पङने लगे तथा विदेशी भावनाओं से वे अछूते नहीं रह सके, जिससे आगे चलकर उनका मध्यकालीन स्वरूप ही बदल गया। सुदूरस्थ विदेशों से आने वाले इन विधर्मी आक्रमणकारी मुगलों ने राजनीतिक एकता के साथ ही धीरे-धीरे समस्त राजस्थान की संस्कृति तथा साहित्य में एक अनोखी समानता भी उत्पन्न कर दी थी। मुगल साम्राज्य की स्थापना के बाद उत्तरी भारत में उत्पन्न होने वाली नयी सम्मिलित हिन्दू – मुस्लिम संस्कृति का प्रभाव कुछ समय बाद राजस्थान निवासियों के आचार-विचार, रहन-सहन, वेश-भूषा तथा खान पान तक में दिखायी पङने लगा। इन सारी नयी-नयी प्रवृत्तियों तथा महत्त्वपूर्ण क्रांतिकारी प्रभावों का प्रारंभ खानवा के युद्ध के बाद तथा उसी के परिणामों के फलस्वरूप ही हो सका था। References : 1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास