खेजड़ी का फल

  1. खेजड़ी के पेड़
  2. खेजड़ी
  3. खेजड़ी और शमी में क्या अंतर है?
  4. राजस्थान का कल्पवृक्ष खेजड़ी – DESI CULTURE
  5. [Solved] एक गांव का नाम वहां उगने वाले कई खेजड़ी पेड़ों
  6. खेजड़ी औषधीय उपयोग


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खेजड़ी के पेड़

जोधपुर जिले की फलोदी तहसील में आठ सौर ऊर्जा संयंत्रों की प्रस्तावित स्थापना ने बिश्नोई कार्यकर्ताओं के साथ एक बड़ा टकराव पैदा कर दिया है, जिन्होंने खेजड़ी के पेड़ों (या प्रोसोपिस सिनेरिया के पेड़) की कटाई का कड़ा विरोध किया है। के बारे में: • खेजड़ी के पेड़, जो राजस्थान का राज्य वृक्ष है, शुष्क मौसम में जीवित रहने की क्षमता के कारण थार क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। • पेड़ का उपयोग विभिन्न तरीकों से किया जाता है, जैसे कि चारे और जलाऊ लकड़ी का स्रोत, और यह मिट्टी के पोषक मूल्य को बनाए रखने और रेगिस्तानी फसलों और खाद्य पौधों की अच्छी उपज सुनिश्चित करने में मदद करता है।इसके फल का उपयोग लोकप्रिय व्यंजन 'सांगरी' बनाने में किया जाता है। Thank You History Notes in Hindi Polity Notes in Hindi Geography Notes in Hindi Art and Culture Notes in Hindi International Organizations Notes in Hindi Internal Security Notes in Hindi Social Justice Notes in Hindi Today in History in Hindi Madhya Pradesh GK in English Static GK in Hindi GK and Current Affairs Quiz in Hindi GK and Current Affairs Quiz in English Agriculture Notes in Hindi This Day in History Social Justice Internal Security Supreme Court Judgments International organizations Polity Psychology Art & Culture Kya Hai Economics Ecology Astronomy what it is Environment Science Animals Fundamentals Aptitude History Operating System Religion Entertainment Stories Legal News Facts Geography Supreme Court Judgments Food General Knowledge • • • • • • GovtVacancy.Net updates latest government v...

खेजड़ी

सूखे व अकाल जैसी विपरीत परिस्थितियों का खेजड़ी पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि ऐसी परिस्थितियों में भी यह मरुक्षेत्र के जन-जीवन की रक्षा करता है। खेजड़ी के पेड़ में सूखा रोधी गुण होने के अलावा इसमें सर्दियों में पड़ने वाले पाले तथा गर्मियों के उच्च तापमान को भी सहजता से सहन कर लेने की क्षमता होती है।वनस्पति विज्ञान के लेग्यूमेनेसी फैमिली (कुल) के इस वृक्ष को ‘ प्रोसोपिस सिनेरेरिया‘ के नाम से जाना जाता है। प्रदेश की शुष्क जलवायु और कठिन परिस्थितियों से सामंजस्य रखने वाले बहुउपयोगी खेजड़ी को वर्ष 1983 में राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया। खेजड़ी राजस्थान के अलावा पंजाब, गुजरात, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र राज्य के शुष्क तथा अर्धशुष्क क्षेत्रों में भी पाया जाता है। भारत के विभिन्न भागों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। दिल्ली क्षेत्र में इसे जांटी, पंजाब व हरियाणा में जांड, गुजरात में सुमरी, कर्नाटक में बनी, तमिलनाडु में बन्नी, सिन्ध में कजड़ी के नाम से पुकारा जाता है। वेदों एवं उपनिषदों में खेजड़ी को शमी वृक्ष के नाम से वर्णित किया गया है। दलहन कुल का होने के कारण खेजड़ी भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाता है। इसकी निरन्तर झड़ती पत्तियां आसानी से जमीन में मिलकर तथा सड़-गल कर भूमि की उर्वरता को बढ़ाती हैं। इसलिए किसान वर्षा आधारित फसलों में एक विशेष घटक के रूप में इन्हें संरक्षण देते हैं। खेजड़ी का वृक्ष मई-जून के महीने में भी हरा-भरा रहता है। भीषण गर्मी में जब रेगिस्तान में पशुओं के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ ही उन्हें छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह उन्हें चारा देता है, जो लूंग (लूम) कहलाता है। खेजड़ी की पत्तियों को पशु बह...

खेजड़ी और शमी में क्या अंतर है?

विषयसूची Show • • • • ऐसी मान्यता है कि घर में शमी का पेड़ लगाने से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्ध‍ि आती है. साथ ही यह वृक्ष शनि के कोप से भी बचाता है. किस ओर लगाएं शमी का वृक्ष शमी का वृक्ष घर के ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में लगाना लाभकारी माना गया है. इसमें प्राकृतिक तौर पर अग्न‍ि तत्व पाया जाता है. शनि के कोप से बचाता है शमी न्याय के देवता शनि को खुश करने के लिए शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं, जिनमें से एक है शमी के पेड़ की पूजा. शनिदेव की टेढ़ी नजर से रक्षा करने के लिए शमी के पौधे को घर में लगाकर उसकी पूजा करनी चाहिए. नवग्रहों में शनि महाराज को न्यायाधीश का स्थान प्राप्त है, इसलिए जब शनि की दशा आती है, तब जातक को अच्छे-बुरे कर्मों का पूरा फल प्राप्त होता है. यही कारण है कि शनि के कोप से लोग भयभीत रहते हैं. राजस्थान की शुष्क जलवायु के कारण यहां की वनस्पतियां पारिस्थितिकी के अनुकूल विशिष्टता लिए हुए होती हैं। प्रदेश का एक बड़ा भू-भाग मरुस्थलीय होने का कारण यहां कम पानी में पनपने वाले पेड़-पौधे अधिक पाये जाते हैं। खेजड़ी एक ऐसा ही पेड़ है जो यहां बहुतायत से पाया जाता है। इस बहुउद्देश्यीय वृक्ष का प्रत्येक भाग किसी न किसी रूप में यहां के प्राणियों के लिए उपयोगी है। इसीलिए इस वृक्ष को मरु प्रदेश का कल्पवृक्ष भी कहा जाता है। सूखे व अकाल जैसी विपरीत परिस्थितियों का खेजड़ी पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि ऐसी परिस्थितियों में भी यह मरुक्षेत्र के जन-जीवन की रक्षा करता है। खेजड़ी के पेड़ में सूखा रोधी गुण होने के अलावा इसमें सर्दियों में पड़ने वाले पाले तथा गर्मियों के उच्च तापमान को भी सहजता से सहन कर लेने की क्षमता होती है।वनस्पति विज्ञान के ले...

राजस्थान का कल्पवृक्ष खेजड़ी – DESI CULTURE

वेदों एवं उपनिषदों में खेजड़ी को शमी वृक्ष के नाम से वर्णित किया गया है|दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा भी है। रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं। इसी प्रकार लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है। खेजडी वृक्ष का महत्त्व: शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है।खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। छाल को खांसी, अस्थमा, बलगम, सर्दी व पेट के कीड़े मारने के काम में लाते हैं। इसकी पत्तियां राजस्थान में पशुओं का सर्वश्रेष्ठ चारा हैं। इसमें पेटूलट्रिन एवं खुशबुदार गलाकोसाइड (एम. पी. 252-53)पाया जाता हैं। इसकी फलियां सीने में दर्द व पेट की गर्मी शांत करने मे उपयोगी रहती हैं। इसके फुलों को चीनी में मिलाकर लेने से गर्भपात नही होता हैं। इसकी उम्र सैंकड़ो वर्ष आंकी गयी हैं। इसकी जड़ो के फैलाव से भूमि का क्षरण नही होता हैं उल्टे जड़ों में रेत जमी रहती हैं जिससे रेगिस्तान के फैलाव पर अंकुश लगा रहता हैं। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसकी लकडी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है। अकाल ...

[Solved] एक गांव का नाम वहां उगने वाले कई खेजड़ी पेड़ों

खेजड़ीया खेजड़ली राजस्थान के जोधपुर जिले का एक गाँव है। गांवका नाम खेजड़ी के पेड़ों से लिया गया है जो कभी गाँव में प्रचुर मात्रा में थे। Key Points खेजड़ी के पेड़ के बारे में: • इसका वैज्ञानिक नाम प्रोसोपिस सिनेरिया है। • इसे पूरे भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, उदाहरण महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में शमी, तेलंगाना में जम्मी, गुजरात में खिजरो , राजस्थान में खेजड़ी, हरियाणा में जनती और पंजाब में जांद। • यह मटर परिवार फैबेसी में फूल वाले पेड़ की एक प्रजाति है। • खेजड़ी का पेड़ मुख्य रूप से रेगिस्तानी इलाकों में पाया जाता है। • यह ज्यादा पानी के बिना बढ़ सकता है। • इसकी छाल का प्रयोग औषधि बनाने में किया जाता है। • लोग इसके फल पकाकर खाते हैं। • इसकी लकड़ी ऐसी होती है कि यह कीड़ों से प्रभावित नहीं होती है। • क्षेत्र के जानवर खेजड़ी की पत्तियों को खाते हैं। इसलिए, सही उत्तर राजस्थान है। Additional Information खेजड़ली गांव के बारे में: • खेजड़ली गांव में कोई पेड़ नहीं काटा जाता है और न ही किसी जानवर को नुकसान होता है। • खेजड़ली गांव के लोग अपनी संस्कृति के हिस्से के रूप में खेजड़ी के पेड़ों की रक्षा करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हैं। • खेजड़ली गांव के लोग राजा के खिलाफ विद्रोह के लिए जाने जाते हैं, जिन्होंने लकड़ी के लिए इन खेजड़ी पेड़ों को काटने का आदेश दिया है। • लोगों ने पेड़ों को गले लगाया और उन्हें जाने नहीं दिया और उन्हें बचाते हुए मर गए। • आज भी बिश्नोई कहे जाने वाले इस क्षेत्र के लोग पौधों और जानवरों की रक्षा करना जारी रखते हैं। • रेगिस्तान के बीच में भले ही यह इलाका हरा-भरा है और जानवर बेखौफ घूमते हैं।​

खेजड़ी औषधीय उपयोग

शमी के आयुर्वेदिक गुण और कर्म शमी के पत्ते स्वाद में कटु, तिक्त, कषाय व गुण में लघु,-रुक्ष है। स्वभाव से पत्ते शीत (फल उष्ण) और कटु विपाक है। यह शीत है। का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं। शमी का फल भारी, पित्तकारक, रूखे माने गए हैं। इनका सेवन मेधा और केशों का नाश करने वाला बताया गया है। • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त, कषाय • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष • वीर्य (Potency): शीत • विपाक (transformed state after digestion):कटु प्रधान कर्म • पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष पित्तदोषनिवारक हो। antibilious • कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे। • विरेचन: द्रव्य जो पक्व अथवा अपक्व मल को पतला बनाकर अधोमार्ग से बाहर निकाल दे। • कुष्ठघ्न: द्रव्य जो त्वचा रोगों में लाभप्रद हो। • अर्शोघं: द्रव्य जो अर्श में लाभप्रद हो। • कृमिघ्न: द्रव्य जो कृमि को नष्ट कर दे। शमी के पत्तों का चूर्ण 3-5 ग्राम की मात्रा में अकेले ही इन रोगों में लाभप्रद है: • अर्श (piles) • अतिसार (diarrhoea) • बालगृह (psychotic syndrome of children) • भ्रम (vertigo) • कृमि (worm infestation) • कास (cough) • कुष्ठ (Leprosy /diseases of skin) • नेत्ररोग (diseases of the eye) • रक्तपित्त (bleeding disorder) • श्वास (Asthma) • विषविकार (disorders due to poison) शमी की छाल के काढ़े को 50-100 ml की मात्रा में फलों के चूर्ण को 3-6 ग्राम की मात्रा में लेते हैं। शमी के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Shami Tree in Hind...