कर्म

  1. Karma
  2. कारक की परिभाषा, भेद, और उदहारण
  3. कर्म बंध क्या होते हैं?
  4. कर्म : ये किसके कर्मों का फल है?
  5. Laws of Karma: 12 Laws and Principles Explained
  6. संचित कर्म, प्रारब्ध कर्म और क्रियमाण कर्म क्या है?


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Karma

karma, Sanskrit karman (“act”), Pali kamma, in Indian samsara), belief in which is generally shared among the religious traditions of India. Indian soteriologies (theories of moksha) from the cycle of birth and death. Karma thus serves two main functions within Indian Derived from the karman, meaning “act,” the term karma carried no ethical significance in its earliest specialized usage. In ancient texts (1000–700 bce) of the karma referred simply to ritual and sacrificial action. As the priestly Hinduism: Karma, samsara, and moksha The earliest evidence of the term’s expansion into an ethical domain is provided in the bce, the Vedic theologian bce. Both of these religions embraced The connection between the ritual and moral dimensions of karma is especially evident in the notion of karma as a causal law, popularly known as the “law of karma.” Many religious traditions —notably the Abrahamic religions that emerged in the Once a divine judge is taken out of the equation, a new question arises: within a causal sequence, how can an act produce an effect at a future time far removed from the act’s performance? Different Indian moral philosophies provide different answers, but all acknowledge some kind of karmic residue resulting from the initial act. Jainism, for example, regards jiva) of one who commits immoral actions or has immoral thoughts, making it impure and heavy and miring it in the material world of rebirth. The Vedic ritualistic tradition that preceded apurva, the l...

कारक की परिभाषा, भेद, और उदहारण

प्रस्तुत लेख में कारक की परिभाषा, भेद, और उदहारण आदि का विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे। इसमें कठिनाई स्तर को ध्यान में रखते हुए सरल उदाहरणों का प्रयोग किया गया है। यह लेख हिंदी की सभी परीक्षाओं के लिए कारगर है। अतः आप इसका अध्ययन कर अपनी परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर सकते हैं। कारक की परिभाषा परिभाषा:- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उसका संबंध वाक्य में क्रिया या अन्य संज्ञा,सर्वनाम शब्दों से जाना जाए उसे कारक कहते हैं। कारक के आठ प्रमुख भेद हैं – • कर्ता • कर्म • करण • संप्रदान • अपादान • सम्बन्ध • अधिकरण • संबोधन। कारक किसे कहते हैं उदाहरण सहित 1. सीता रोटी खा रही है 2. राम ने श्याम को बुलाया 3. माता जी ने चाकू से फल काटा। 4. पिताजी मोहन के लिए साइकिल लाए। 5. मां ने कुएं से पानी भरा 6. उसका भाई छत पर बैठा है। पहले वाक्य में खा रही है पद क्रिया है। • कौन खा रही है ? सीता • सीता क्या खा रही है ? रोटी दूसरे वाक्य में बुलाया क्रिया है। • किसने बुलाया ? राम ने • किस को बुलाया ? श्याम को तीसरे वाक्य में काटा क्रिया है। • माताजी ने क्या काटा ? फल • किससे कांटा ? चाकू से चौथे वाक्य में लाए क्रिया है। • पिताजी क्या लाए ? साइकिल • किसके लिए लाए ? मोहन के लिए पांचवें वाक्य में क्रिया है भरा • कहां से भरा ? कुए से छठे वाक्य में बैठा क्रिया है • उसका भाई कहां बैठा है ? छत पर। कारक के भेद और उनके चिन्ह हिंदी व्याकरण के अनुसार कारक के आठ भेद माने गए हैं – • कर्ता कारक (Nominative Case) • कर्म कारक (Objective Case) • करण कारक (Instrumental Case) • संप्रदान कारक(Dative Case) • अपादान कारक (Ablative Case) • संबंध कारक(Possessive Case) • अधिकरण कारक(Locative Case) • संबोधन (Vocative C...

कर्म बंध क्या होते हैं?

सदगुरु:आप जिसे मेरा जीवन कहते हैं, वो एक खास मात्रा की ऊर्जा है जो एक निश्चित मात्रा की जानकारी से नियंत्रित होती है। आजकल की शब्दावली के अनुसार हम इसे सॉफ्टवेयर कह सकते हैं। जीवन ऊर्जा की एक खास मात्रा से सूचना की एक खास मात्रा जुड़ी होती है। इन दोनों के मिलने से जो सूचना तकनीक(इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) बनती है, वही आप हैं। आप में भरी गयी एक खास जानकारी के कारण आप एक विशेष प्रकार के इंसान बन जाते हैं। जिस क्षण में आप पैदा हुए थे, तब से अब तक, आपका परिवार, घर, मित्र, वो सब जो आपने किया और वो जो आपने नहीं किया, ये सब चीजें आप पर असर डाल रही हैं। हर विचार, हर भावना और आप जो कुछ भी करते हैं, वो सब उस पुरानी जानकारी/सूचना की वजह से होता है जो आपके अंदर है। उनसे ये तय होता है कि अभी आप क्या हैं! आप जिस तरह से सोचते, महसूस करते और जीवन को समझते हैं वो सब आपकी इकट्ठा की हुई जानकारी के हिसाब से है। जो प्रभाव अतीत में आपके जीवन पर पड़े हैं वे आपके जन्म से कहीं पुराने हैं, लेकिन अगर आपके वर्तमान के बोध के अनुसार देखें तो आपके जन्म के समय से आज तक, आपके माता पिता कैसे थे, आपका परिवार कैसा था, कैसी शिक्षा आपको मिली, आप पर धार्मिक और सामाजिक रूप से कैसे प्रभाव पड़े, आपके आसपास सांस्कृतिक व्यवस्थायें कैसी थीं - ये सभी प्रभाव आपके भीतर गये हैं। कोई दूसरा व्यक्ति अलग होता है क्योंकि उसके अंदर अलग प्रकार की जानकारी गयी है। ये सूचना, ये जानकारी पारंपरिक रूप से कर्म बंधन, कर्म शरीर या कारण शरीर कहलाती है - वह जो जीवन का कारण बनती है। कर्म बंधन के विभिन्न प्रकार ये सूचनायें कई अलग अलग स्तरों पर होती हैं। इसके चार आयाम हैं, जिनमें से दो अभी प्रासंगिक नहीं हैं। सही ढंग से समझने के लिये हम बाकी के दो...

कर्म : ये किसके कर्मों का फल है?

सद्‌गुरु : यह मत सोचिए कि आपके परिवार के लोगों के कर्म खराब हैं और उन्हें शुद्ध करने की जरूरत है। कौन जानता है कि कौन किसके कर्मों का फल भोग रहा है। हो सकता है कि उनका कहना कुछ और ही हो। अगर आपको लगता है कि आपके परिवार में खराबी है तो हो सकता है कि वे ऐसे हो गए हों, मगर जरूरी नहीं है कि वे आगे भी ऐसे ही रहें। चंद्रमा की तरह उनकी भी अलग-अलग अवस्थाएं होती हैं, वे भी अलग-अलग दशाओं से गुजरते हैं। उनके प्रिय-अप्रिय चेहरे होते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि एक परिवार में बहुत करीबी होती है। आपके जीवन में जो कुछ होता है, उन सबकी जिम्मेदारी आपकी है। इसका मतलब है कि यह सब आपके कर्म हैं। जब आप आध्यात्मिक कर्म सिर्फ आपसे जुड़े हैं आप जैसे ही किसी और के कर्म की चिंता करने लगते हैं, आप एक बुरी शक्ति बन जाते हैं। बुरा का मतलब सिर्फ बुरा इरादा नहीं है। बुरा का मतलब है कि चाहे आप कुछ भी करें, उसका आपके आस-पास मौजूद लोगों के लिए नकारात्मक नतीजा ही निकलेगा। जैसे ही आप किसी और के आध्यात्मिकता में हम इसी चीज को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। आपको समझना चाहिए कि जो कुछ भी होता है, उसका संबंध सिर्फ आपसे है। चाहे आपके आस-पास के लोगों से आपको दुख मिल रहा हो या खुशी, इसकी वजह सिर्फ आपके कर्म हैं। इसलिए अपने परिवार की तरफ से जमा होने वाले कर्म की चिंता मत कीजिए, ऐसा कुछ भी नहीं है। ‘परिवार’ सिर्फ आपके मन की उपज है। कौन आपके परिवार का हिस्सा है और कौन नहीं, कौन आपको प्रिय है, कौन नहीं, यह सब सिर्फ आपके मन में पैदा होता है। अगर आपके पास यह मन नहीं होता, तो आपके पास परिवार जैसी कोई चीज ही नहीं होती। इसका मतलब है कि वे सब आपके ही कर्म से जुड़े हैं। जब आप यह बात जान लेते हैं कि आपके जीवन में जो कुछ घटित ...

Laws of Karma: 12 Laws and Principles Explained

Share on Pinterest Hugh Sitton/Stocksy United In Sanskrit, karma literally means “action.” According to experts, there are often misconceptions about what karma really is and how it applies to our lives. This article will help shed light on what karma is, the philosophy behind it, and its core principles, known as the 12 laws of karma. The true definition of karma can vary depending on who you ask. Some people adhere to the traditional meaning grounded in Eastern religions, while others interpret it from more of a Western view of good and bad. As a result, this can lead to different views on how karma applies to life. For example, the Georgetown University Berkley Center for Religion, Peace, and World Affairs says karma is the Hindu view of causality in which good thoughts, deeds, and words, may lead to beneficial effects, while bad thoughts, deeds, and words, may lead to harmful effects. However, many experts like to look at karma as more than just “good” or “bad.” According to “We are often easily distracted and miss messages which make us believe we have a lot of ‘bad’ karma. But those situations are simply signs for us to course-correct and move forward toward our higher purpose,” Rhodes explains. “The journey is not about being perfect, it’s about undoing what is not us and becoming who we really are,” she adds. “Karma is a philosophy of how to live our lives so we can truly become the best version of ourselves and live the most fulfilling life we desire,” she says. A...

कर्म

जिनकर्मोंकोहमजागृतअवस्थामेंकरतेहैंऔरफलप्राप्तकरतेउन्हें क्रियमाणकर्मकहतेहैं।क्रियमाणकर्मकेवलमनकेद्वाराअथवामनकेसाथमेंइंद्रियोंकासहयोगलेकरकियाजासकताहै।तोवर्तमानपरिस्थितिकोध्यानमेंरखतेहुएकिएगएकिसीकार्यकोक्रियमाणकर्मकहाजाताहै।कुछकर्मोंकाफलहमेंतुरन्तप्राप्तहोजाताहै; उदाहरणतःखानाखानेपरस्वतःपेटभरजाताहै।कुछकर्मोंकाफलइसीजन्ममेंअन्यथाकुछकर्मोंकाफलसंचितकर्मोंकेरूपमेंप्रारब्धबनकरअगलेजन्मोंमेंप्राप्तअवश्यहोताहै।क्रियमाणकर्मधनुषपरसंधानकिएगएउनतीरोंकेसमानहैंजिसकोहमजबचाहे, जहाँचाहे, जिसपरचाहेचलानेकानिर्णयलेसकतेहैं। संचितकर्महमारेद्वाराकिएगएपूर्वजन्मोंकेअनंतकर्मफलोंकाभंडारहैजिसकोअभीतकहमनेभोगानहींहै। भगवानहीहमारेवास्तविकपिताहैंतथावेअत्यंतदयालुहैं।वेक्रियमाणकर्मफलोंकोतुरंतनहींभोगवातेहैं।वोहमारेमनमेंसंचितकर्मकेरूपमेंविद्यमानरहतेहैं।कुछक्रियमाणकर्मोंकाफलइसीजन्ममेंप्राप्तहोजाताहैपरंतुअन्यसभीफलउसीप्रकारसंचितरहतेहैंजैसेतुणीरमेंबाण। संचितकर्मोंमेंसेवर्तमानजीवनमेंभोगनेकेजोकर्मफलनिर्धारितकिएजातेहैंउन्हें प्रारब्धकर्मकहतेहैं। ​ पूर्वजन्मोंमेंकिएगएसमस्तकर्मोंमेंसेकुछकर्मफलवर्तमानजीवनमेंभोगनेकेलिएदिएजातेहैं, जोप्रारब्धकर्मकहलातेहैं।इसीकोहमभाग्यभीकहतेहैं।भाग्यहमारेवर्तमानजीवनकालकेकर्मोंअथवाकिसीएकजीवनकालकेकर्मोंकाफलनहींहोता।वहहमारेपूर्वजन्मोंकेसमस्तकर्मफलोंकाएकछोटासाभागहै। उपर्युक्तपाँचचीज़ेंपूर्वनिर्धारितहैंपरंतुफिरभीहमारेभाग्यमेंक्याहैयहहमेंनहींपतारहताइसलिएजीवकोसदैवअपनेजीवनमेंसर्वोत्कृष्टकर्मकरनेकीचेष्टाकरतेहैं।हमारेजीवनमेंजोअच्छायाबुराफलपूर्वनिर्धारितहैवहबिनाइच्छायामेहनतकेहमेंअवश्यमिलजाएगा।आलसीव्यक्तिअपनेउत्थानहेतुकोईप्रयत्ननहींकरतातथाभाग्यकोकोसताहै।अतःयहजाननेकेपश्चातभाग्यकैसेनिर्धारितहोताहै,कोईभीकभीभी...

संचित कर्म, प्रारब्ध कर्म और क्रियमाण कर्म क्या है?

कर्म के प्रकार वास्तव में‘कर्म’ कर्म ही होता है। कर्म के प्रकार नहीं हुआ करते। परन्तु समय के अनुसार अर्थात् भूत एवं वर्तमान के अनुसार - कर्म के प्रकार कहे गए है। इस प्रकार कर्म तीन प्रकार के होते है - १. संचित कर्म २. प्रारब्ध कर्म और ३. क्रियमाण कर्म। यह संचित कर्म, प्रारब्ध कर्म और क्रियमाण कर्म का निरूपण हमारे संतों ने अपने ग्रंथों में गीता, उपनिषद् आदि का प्रमाण देते हुए किया है। अब ये संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण कर्म क्या है? यह समझ लेते है। संचित कर्म ‘संचित’ का अर्थ है - ‘एकत्रित, संचय, या इकट्ठा किया हुआ।’ इस प्रकार ‘संचित कर्म’ का अर्थ है - ‘कर्म जो एकत्रित है, संचय किए हुए कर्म या इकट्ठा किया हुआ कर्म।’ अतएव संचित कर्म अर्थात् अनेक पूर्व जन्मों से लेकर वर्तमान में किये गए कर्मों के संचय को संचित कर्म कहते हैं। वे अनन्त हैं (क्योंकि हमारे अनन्त जन्म हो चुके है) और उनमें नये-नये कर्म जा-जाकर एकत्र होते रहते हैं। यानी हमारे ही अनेकों जन्मों के पाप और पुण्य कर्मों का संचय संचित कर्म हैं। गीता में‘संचित कर्म’ का संकेत देते हुए कहा गया - श्रीभगवानुवाच- बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन। तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप॥ गीता - ४.५ अर्थात् :- श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! मेरे और तेरे अनेक जन्म हो चुके हैं। उन सबको मैं जानता हूँ, किन्तु तू (उन्हें) नहीं जानता। अर्थात् भगवान अनंत बार जन्म (अवतार) लेते है। साथ ही जीव भी अनंत बार जन्म ले चुका है। क्योंकि अनंत ब्रह्माण्ड है एवं अनादि काल से ब्रह्माण्डों का प्रकट-प्रलय होता रहा है। अतएव जीव के अनंत जन्म के किये गए अनंत कर्मों (संचित कर्म) के बारे में भगवान जानते है। परन्तु जीव को उन कर्मों के बारे में जानकारी नहीं है...