कूष्माण्डा देवी मंत्र

  1. Navratri 2022 Day 4: मां कूष्माण्डा को चढ़ता है इस फल से बने पेठे का भोग, जानिए प्रिय रंग, पूजा विधि और मंत्र
  2. चतुर्थ देवी
  3. माँ कुष्मांडा की पूजा विधि, कथा, मंत्र और आरती
  4. नवरात्र का चौथा दिन
  5. Maa Kushmanda Ki Upasana


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Navratri 2022 Day 4: मां कूष्माण्डा को चढ़ता है इस फल से बने पेठे का भोग, जानिए प्रिय रंग, पूजा विधि और मंत्र

डीएनए हिंदी : Shardiya Navratri 2022 4th Day Maa Kushmanda: मां कूष्माण्डा आदिशक्ति का चौथा रूप मानी जाती हैं. माना जाता है कि कूष्माण्डा देवी सौर मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं. वे साधक को सभी तरह के रोगों, शोक और तमाम दोष से लड़ने की शक्ति देती हैं. इन देवी की उपासना 29 सितंबर 2022 को की जाएगी. मां कूष्मांडा ( Maa Kushmanda Puja) अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं. इनके आठ हाथों में आठ प्रकार के अस्त्र शस्त्र मसलन धनुष, बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल सुशोभित हैं. माना जाता है कि दुनिया को रचे जाने से पहले जब घोर अंधेरे का बसेरा था, तब कूष्माण्डा देवी की प्रेरणा से ब्रह्माण्ड की रचना हुई थी. कूष्माण्डा अर्थ और पूजा विधि (Maa Kushmanda Puja vidhi) देवी कूष्माण्डा के नाम का शाब्दिक अर्थ वैश्विक ऊर्जा समाहित करने वाली है. इनकी पूजा में पीले रंग का वस्त्र पहना जाता है. पूजा के समय देवी को पीला चन्दन ज़रूर लगाया जाना चाहिए, साथ ही उनकी पूजा कुमकुम, मौली, अक्षत से होनी चाहिए. कूष्माण्डा देवी कीउपासना के लिए पान के पत्ते में थोड़ा सा केसर लेकर देवी के मन्त्र का जाप करना चाहिए. देवी को चौथे रूप को भोग में कुम्हड़े का पेठा अर्पित किया जाना चाहिए. कूष्माण्डा देवी मन्त्र (Maa Kushmanda Mantra) ॐ बृं बृहस्पते नमः मंत्र के पाठ से कूष्माण्डा देवी प्रसन्न होती हैं. उनकी सिद्धि का प्रमुख मन्त्र यह है - सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्‍मांडा शुभदास्तु मे। ध्यान (Maa Kushmanda Dhyan Mantra) वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥ भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्। कमण्डलु, चाप, बाण, पद...

चतुर्थ देवी

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मेघ भगवती दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था। चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था। तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं। इनकी आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमश:कमण्डल, धनुष बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। नवरात्रों में चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरुप की ही उपासना की जाती है। माँ कूष्माण्डा की उपासना से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। ध्यान वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम। भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम। कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्त्र गदा जपवटीधराम्घ पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्। मंजीर हार केयूर किंकिण रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम। प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम। कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् घ् स्तोत्र दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्। जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्घ् जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्। चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्घ् त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दुरूख शोक निवारिणाम्। परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्घ् कवच हसरै मे शिररू पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम। हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्घ् कौमारी पातु सर्वगात्रे वारा...

माँ कुष्मांडा की पूजा विधि, कथा, मंत्र और आरती

माँ कुष्मांडा की तिथि, मां कुष्मांडा का स्वरूप, कुष्मांडा देवी की कथा, मां कुष्मांडा की पूजा विधि, माँ कुष्मांडा मंत्र, माँ कुष्मांडा कवच, माँ कुष्मांडा आरती, Maa Kushmanda Tithi, Maa Kushmanda Swaroop, Maa Kushmanda Vrat Katha, Maa Kushmanda Puja Vidhi, Maa Kushmanda Mantra, Maa Kushmanda Kavach, Maa Kushmanda Aarti नवरात्रि के चौथे दिन मां अंबे का चौथा स्वरूप देवी कुष्मांडा (kushmanda mata) की पूजा की जाती है। माता कुष्मांडा की पूजा करने से रोग दूर होते हैं और आयु यश में वृद्धि होती है। अपने उदर से अंड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न देने के कारण ही इन्हें मां कुष्मांडा कहा जाता है। संस्कृत भाषा में कुष्मांड कुम्हड़े को कहा जाता है इसलिए मां कुष्मांडा को कुम्हड़े की बलि दी जाती है। जब सृष्टि नहीं थी तब इन्होंने अपनी ईश हँसी से ब्रह्मांड की रचना की थी और सृष्टि को बनाया था। माता कुष्मांडा के तेज और प्रभाव से दसों दिशाओं को प्रकाश मिलता है और ब्रह्मांड के सभी प्राणी और वस्तु मां कुष्मांडा की ही देन है। ऐसा कहा जाता है कि मां कुष्मांडा की आराधना करने से भक्तों के समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं और धन वैभव और यश की प्राप्ति होती है। विषयसूची : • • • • • • • माँ कुष्मांडा की तिथि (Maa Kushmanda Tithi) तारीख 25 मार्च 2023 दिन शनिवार देवी माँ कुष्मांडा मंत्र ओम देवी कुष्माण्डायै नमः फूल हरे रंग का फूल रंग हरा मां कुष्मांडा का स्वरूप (Maa Kushmanda Swaroop) मां कुष्मांडा की अष्ट भुजाएं हैं और इनके चेहरे पर मंद मुस्कुराहट है जो देवी का आदि स्वरूप और आदि शक्ति को दर्शाती है। मां कुष्मांडा का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में माना जाता है। माता की अष्ट भुजाओं में कमंडल, धनुष, बाण, कमल, पुष्प, ...

नवरात्र का चौथा दिन

नवरात्र के चौथे दिन अष्टभुजा देवी माता कूष्माण्डा की पूजा का विधान है। देवी दुर्गा के इस दिव्य स्वरूप की पूजा-आराधना करने से भक्तजनों के रोग-शोक मिट जाते हैं, तथा आयु, यश, कीर्ति में वृद्धि होती है। मां दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप मां कूष्माण्डा के भव्य स्वरूप का वर्णन नवरात्रि की चौथी देवी मां कूष्माण्डा आठ भुजाएं हैं। इनकी सात भुजाएँ क्रमशः धनुष, बाण , कमल-पुष्प, कमण्डल,अमृतपूर्ण कलश, गदा और चक्र से सुशोभित हैं। मां की आठवीं भुजा में सभी सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने वाली जप माला है। माता कूष्माण्डा की सवारी सिंह है। इन्हें कुम्हड़ की बलि अत्यधिक प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़ को कूष्माण्डा कहते हैं, इसलिए इस देवी को कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार माता कूष्माण्डा का निवास स्थान सूर्यलोक में है। सूर्यलोक में रहने की क्षमता केवल इन्हीं में है। देवी कूष्माण्डा के ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। धरती, अंबर की सभी वस्तुओं और प्राणियों सहित कण-कण में इन्हीं का तेज व्याप्त है। माता कूष्माण्डा की कहानी और पूजा का महत्व प्राचीन हिन्दू मान्यता के अनुसार देवी कूष्माण्डा की उपासना का विशेष महत्व है। देवी कूष्माण्डा की पूजा अर्चना करने से भक्तों के समस्त रोग मिट जाते हैं, और उसे निरोग काया प्राप्त होती है। इनकी भक्ति से आयु, यश, और बल की वृद्धि होती है। भक्तों को चाहिए कि नवरात्रि के चौथे दिन देवी की पूजा-आराधना निष्ठा से करे। देवी भक्तों की भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन और ध्यान पूर्वक पूजा करने से भक्त परम पद पाते हैं, और उनके जीवन में सुख शांति का वास होता है। सम्बंधित लेख : क्यों पड़ा मां के चौथे अवतार का नाम कूष्माण्डा ? हिन्दू धर्...

Maa Kushmanda Ki Upasana

Navratri Mein kare Maa Kushmanda Ki Upasana नवरात्रि के चौथे दिन करे माँ कूष्माण्डा की उपासना नवरात्रि के चौथे दिन देवी के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा करने का विधान हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माँ कूष्मांडा को ही ब्रह्माण्ड़ की उत्पत्ति का कारक माना जाता हैं। माँ कूष्मांडा देवी का चतुर्थ स्वरूप हैं, इन्हे ही आदिशक्ति भी कहा जाता हैं। माँ कूष्माण्ड़ा अपने भक्तों पर सदा ही कृपा करती हैं, इनकी पूजा करने से साधक को धन-वैभव और सुख-शांति की प्राप्ति होती हैं। पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ पवित्र भाव और स्थिर मन से माँ कूष्माण्ड़ा की उपासना करने से भक्तों के सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्ड़ा की उपासना करें। माँ कूष्माण्ड़ा की उपासना से साधक के रोग-दोष एवं शोक नष्ट हो जाते हैं। आयु, यश और बल में वृद्धि होती हैं। थोड़े प्रयास से ही देवी कूष्माण्ड़ा प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीष प्रदान करती हैं। Maa Kushmanda Ki Katha माँ कूष्माण्डा की पौराणिक कथा पौराणिक कथा के अनुसार जब सभी दिशाओं में सिर्फ अंधकार था, ब्रह्माण्ड़ का भी अस्तित्व नही था, तब माँ कूष्माण्डा ने ही अपनी हल्की सी मुस्कुराहट से सृष्टि की रचना की थी। माँ कूष्माण्डा की कांति सूर्य के समान हैं। ब्रह्माण्ड़ की रचना करने के बाद माँ कूष्माण्डा ने ही सृष्टि के पालन के लिये ब्रह्मा, विष्णु, महेश, महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती (त्रिदेव और त्रिदेवी) को उंपन्न किया। पूरी सृष्टि में माँ कूष्माण्डा का तेज फैला हुआ हैं। माँ कूष्माण्ड़ा का ध्यान मंत्र वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥ भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्। कमण्डलु...