लिखित भजन डायरी

  1. हिंदी भजन
  2. श्री यमुनाजी के 41 पद हिंदी में लिखित
  3. हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया / hamko odave esi chadariya
  4. हिंदी डायरी साहित्य और लेखक
  5. Diary writing in Hindi


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हिंदी भजन

हिंदी भजन हिंदी भजन-Hindi Bhajan Literature Under This Category - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड पथ से भटक गया था राम नादानी में हुआ ये काम छोड़ गए सब संगी साथी संकट में प्रभु तुम लो थाम तू सबके दुःख हरने वाला बिगड़े संवारे सबके काम तेरा हर पल ध्यान धरुं मैं ऐसा पिला दे प्रेम का जाम - रैदास | Ravidas चल मन! हरि चटसाल पढ़ाऊँ।। गुरु की साटी ग्यान का अच्छर, बिसरै तौ सहज समाधि लगाऊँ।। प्रेम की पाटी, सुरति की लेखनी, ररौ ममौ लिखि आँक लखाऊँ।। येहि बिधि मुक्त भये सनकादिक, ह्रदय बिचार प्रकास दिखाऊँ।। कागद कँवल मति मसि करि निर्मल, बिन रसना निसदिन गुन गाऊँ।। कहै रैदास राम भजु भाइ, संत राखि दे बहुरि न आऊँ।। - कबीरदास | Kabirdas उमरिया धोखे में खोये दियो रे। धोखे में खोये दियो रे। पांच बरस का भोला-भाला बीस में जवान भयो। तीस बरस में माया के कारण, देश विदेश गयो। उमर सब .... चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो। धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।। बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो। लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।। बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो। वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो। न हरि भक्ति न साधो की संगत, न शुभ कर्म कियो। कहै कबीर सुनो भाई साधो, चोला छुट गयो।। - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए दूं परीक्षा लंबी कितनी, कुछ तो करुणा कीजिए। हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए ।। - सहजो बाई राम तजूँ पै गुरु न बिसारूँ, गुरु के सम हरि कूँ न निहारूँ ।। हरि ने जन्म दियो जग माहीं। गुरु ने आवा गमन छुटाहीं ।। हरि ने पाँच चोर दिये साथा। गुरु ने लई छुटाय अनाथा ।। हरि ने रोग भोग उरझायो। गुरु जोगी करि सबै छुटायो ।। हरि ने कर्म मर्म भरमायो।...

श्री यमुनाजी के 41 पद हिंदी में लिखित

श्री यमुनाजी के 41 पद, पद संख्या 1 पिय संग रंग भरि करि कलोले, सबन को सुख देन, पिय संग करत सेन, चित्त में तब परत चेन जबही बोले। अतिहि विख्यात, सब बात इनके हाथ, नाम लेत ही कृपा करी अतोले, दरस करी परस करी ध्यान हिय में धरे, सदा ब्रजनाथ इन संग में डोले। अतिही सुख करन दुख सबन के हरन, यही लीनो परन दे जु कोले, ऐसी ‘रसिक’ प्रितम पाये नग अमोले।। पद संख्या 2 श्याम सुखधाम जहां नाम इनके, निशदिना प्राणपति आय हिय में बसे, जोई गावे सुजस भाग्य तिनके। यही जग मे सार कहत वारंवार, सबन के आधार धन निर्धनन के, लेत श्री यमुने नाम, देत अभय पद दान, ‘रसिक’ प्रितम-पिया बस जु इनके।। पद संख्या 3 कहत श्रुति सार निर्धार करके, इन बिना कौन, ऐसी करे हे सखी, हरत दुख द्वन्द सुखकन्द बरखे। ब्रह्मसम्बन्ध जब होत या जीव को, तब ही इनकी भुजा वाम फरके, दोरकर सोर कर जाय पिय सो कहे, अतिही आनंद मन में जु हरखे। नाम निरमोल नग ले कोउ न सके, भक्त राखत हिये हार करके, ‘रसिक’ प्रितम जु कि होत जा पर कृपा, सोई श्री यमुनाजी को रुप परखे।। पद संख्या 4 नेन भर देख, अब भानु तनया, केलि पिय सो करे, भ्रमर तब हि परे, श्रमजल भरत, आनंद मनया। चलत टेढी होय, लेत पिय को मोही, इन बिना रहत नही एक छीनया, ‘रसिक’ प्रितम रास, करत श्री यमुना पास, मानो निर्धनन कि हे जु धनया।। पद संख्या 5 स्याम संग स्याम, वे रही श्री यमुने, सूरत श्रम बिंदुते, सिन्धु सी बही चली, मानो आतुर अली, रही न भवने। कोटि कामही वारो,रुप नैनन निहारो, लाल गिरिधरन, संग करत रमने, हरखि ‘गोविंद’ प्रभु निरखी इनकि ओर, मानो नव दुल्हनी आई गोने।bd। पद संख्या 6 चरण पंकज रेणु श्री यमुने जु देनी, कलियुग जीव उधारन कारन, काटत पाप अब धार पेनी। प्राणपति प्राण-सुत,आये भक्तन हित, सकल सुख कि तुम हो जु श...

हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया / hamko odave esi chadariya

' हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया ' साखी 1- चलती चाकी देखिके , दिये कबीरा रोय दो पाटन के बीच में , साबुत बचा न कोय।। 2- आसे पासे जो फिरे निपट पिसावे सोय लिपट रहो उस कीलसे , ताका विघन न होय।। भजन टेक- हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया चलती बिरिया , चलती बिरिया , हमको ओढ़ावे.. 1- प्राण राम जब निकसन लागे उलट गई दोनों नैन पुतरियाँ॥ हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया चलती बिरिया , चलती बिरिया , हमको ओढ़ावे.. 2- भीतर से जब बाहर लाये छूट गए सब महल अटरिया।। हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया चलती बिरिया , चलती बिरिया , हमको ओढ़ावे.. 3- चार जने मिले खाट उठैया रोवत से चले डगर डगरियाँ। हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया चलती बिरिया , चलती बिरिया , हमको ओढ़ावे.. 4- कहत कबीर सुणो भाई साधो संग चलेगी वही सूखी लकरिया॥ हमको ओढ़ावे ऐसी चदरिया चलती बिरिया , चलती बिरिया , हमको ओढ़ावे.. . आपको भजन अच्छा लगा हो या कोई त्रुटि दिखाई देती हो तो कमेंट करके जरूर बताये और blogको follow जरूर करे और आपको लिखित भजन एवं वीडियो social siteपर भी मिल जायेंगे तो आप हमें वहाँ भी followकर सकते है। YOU TUBE - भजन वीडियो FACEBOOK- INSTAGRAM - TELEGRAM - TELEGRAM GROUP - TWITTER-

हिंदी डायरी साहित्य और लेखक

हिंदी डायरी साहित्य और लेखक Dayri Sahity ( डायरी साहित्य) नित्य प्रति के व्यक्तिगत लिखित अनुभवों को Dayri (डायरी) की संज्ञा दी गई है। इसीलिए माना जाता है की डायरी आत्मगत विधा है, वस्तुगत नहीं। अंग्रेजी का ‘डायरी’ शब्द लैटिन भाषा ‘डायस’ से निर्मित है जिसके संस्कृत में दिवस शब्द प्रयुक्त होता है। इसे दैनंदिनी, दिनचर्या, रोजनामचा और दैनिकी के नाम से भी जाना जाता हैं। हिंदी साहित्य में डायरी विधा भी अन्य गद्य विधाओं की तरह आधुनिक विधा है जिसकी शुरुआत श्रीराम शर्मा की सेवाग्राम की डायरी से माना जाता है जो 1946 ई. में प्रकाशित हुई थी। इस तरह प्रथम डायरी लेखक श्रीराम शर्मा हैं। हिंदी में प्रकाशित प्रमुख डायरियों (hindi dayri sahity) की सूची नीचे दी गई है। डायरी विधा की प्रमुख कृतियाँ हिंदी डायरी विधा की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं- लेखक डायरी घनश्यामदास बिड़ला डायरी के पन्ने, 1940 ई. सुन्दरलाल त्रिपाठी दैनन्दिनी, 1945 ई. श्रीराम शर्मा सेवाग्राम की डायरी, 1946 ई. सियारामशरण गुप्त दैनिकी, 1947 ई. धीरेन्द्र वर्मा मेरी कालिज डायरी, 1954 ई. उपेन्द्रनाथ अश्क ज़्यादा अपनी कम पराई, 1959 ई. अज्ञेय बर्लिन की डायरी(एक बूंद सहसा उछली में संकलित,1960ई.) प्रभाकर माचवे पश्चिम में बैठकर पूर्व की डायरी, 1964 ई. मुक्तिबोध एक साहित्यिक की डायरी, 1965 ई जमनालाल बजाज जमनालाल बजाज की डायरी, 1966ई. हरिवंशराय बच्चन प्रवासी की डायरी, 1971 ई. सीताराम सेक्सरिया एक कार्यकर्ता की डायरी(भाग 1 & 2, 1972ई.) त्रिलोचन शास्त्री रोज़नामचा, 1972ई. रामधारी सिंह दिनकर दिनकर की डायरी, 1973 ई. रघुवीर सहाय दिल्ली मेरा परदेश, 1976 ई. राजेन्द्र अवस्थी सैलानी की डायरी, 1976 ई. शान्ता कुमार एक मुख्यमंत्री की डायरी, 1977 ई....

Diary writing in Hindi

‘डायरी’ अर्थात ‘जो प्रतिदिन लिखी जाए’। हर दिन की विशेष घटनाएँ-प्रिय अथवा अप्रिय, जिन्होंने भी मन पर प्रभाव छोड़ा हो, डायरी में लिखी जाती हैं। डायरी लेखन व्यक्ति के द्वारा लिखे गए व्यक्तिगत अनुभवों, सोच और भावनाओं को लिखित रूप में अंकित करके बनाया गया एक संग्रह है। विश्व में कई महान व्यक्ति डायरी लेखन करते थे. उनके निधन के बाद भी डायरी से प्राप्त उनके अनुभवों से कई लोगों को प्रेरणा मिलती है। डायरी लेखन हिन्दी साहित्य में मुख्यतः छायावादोत्तर युग ( छायावाद के बाद का समय ) की आत्मपरक विधा है। किसी भी घटना के प्रति व्यक्ति की तात्कालिक उद्वेग या अभिव्यक्ति का माध्यम डायरी बनती है वैसे तो डायरी एक निजी सम्पत्ति मानी जाती है जो किसी व्यक्ति की अपनी मानसिक सृष्टि और अंतर्जगत है परन्तु व्यापक कलेवर धारण करके डायरी एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक विधा के रूप में सामने आई है | मानव के समस्त भावों मानसिक उद्वेगों,अनुभूति विचारों को अभिव्यक्त करने में साहित्य का सर्वोच्च स्थान है। समीक्षकों ने डायरी को साहित्य की कोटि में इसलिए रखा है क्योंकि वह किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के व्यक्तित्व का उदघाटन करती है या मानव समाज के विभिन्न पक्षों का सूक्ष्म और जीवंत चित्र उपस्थित करती हैं। डायरी लेखक अपनी रूचि और आवश्यकतानुसार राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, साहित्यिक विभिन्न पक्षों के साथ निजी अनुभूतियों का चित्रण कर सकता है। प्राचीन काल में राजा महाराजाओं के समय भी एक रोजनामचातैयार किया जाता था जो रोजाना के कार्य और घटनाओं का विवरण देता था। व्यापारियों दुकानदारों द्वारा भी हिसाब-किताब और लेन-देन का ही विवरण सुरक्षित रखने हेतु बही-खाते का प्रयोग किया जाता है यह भी डायरी लेखन माना जाता है। अतः डायर...