Lingaraj temple history in hindi

  1. Lingaraja
  2. List of temples in Bhubaneswar
  3. हरिमन्दिर साहिब
  4. भुबनेश्वर का लिंगराज मंदिर
  5. सोमनाथ मन्दिर
  6. लिंगराज मंदिर का इतिहास Lingaraj temple history in hindi
  7. लिंगराज मंदिर
  8. बृहदीश्वर मन्दिर


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Lingaraja

In …Orissan temple architecture is the Lingaraja temple of Bhubaneswar, built about 1000. The largest temple of the region, however, is the famous Black Pagoda, the Sun Temple (Surya Deula) of Konarak, built in the mid-13th century. Its tower has long since collapsed, and only the assembly hall remains. The most… • In …building, however, is the great Liṅgarāja temple (11th century), an achievement of Orissan architecture in full flower. The latina spire soars to a considerable height (over 125 feet [40 metres]); the wall is divided into two horizontal rows, or registers, replete with statuary; and the attached hall is exquisitely and…

List of temples in Bhubaneswar

Map all coordinates using: Download coordinates as: The Name of the temple Deity Picture Architecture/Timeline Notes/Beliefs It is a 13th-century Shiva The temple is surrounded by Bindusagar tank in the east at a distance of 6.40 metres, Markandeya temple in the west and private residential buildings in the southern side. The temple faces south and the presiding deity faces east. 20°14′26.18″N 85°50′8.81″E / 20.2406056°N 85.8357806°E / 20.2406056; 85.8357806 ( Ananta Vasudeva Temple) 13th Century The temple was constructed in the thirteenth century, and the complete murties of 20°15′2″N 85°51′18″E / 20.25056°N 85.85500°E / 20.25056; 85.85500 ( Astasambhu Temples) Shiva 10th Century In the Ashta means eight and Sambhu refers to another name of Lord Shiva. Five of them are arranged in one alignment are also known as Panchu Pandava. Shiva 6th Century Built during 11th Century It is a temple of the Shiva 8th Century The main temple is of late Kalingan style dating back to 15th century. The present temple was built during the Gajapati Rulers. A four-handed black Shiva 13th Century It is a single structure pidha deul without any frontal porch. According to the local people, this temple was built by the Kesaris (Somavamsis). Brahma 15th Century The main temple is of late Kalingan style dating back to 15th century. The present temple was built during the Gajapati Rulers. A four handed black chlorite image of Shiva 11th Century The temple was erected at the end of the 9th century, ...

हरिमन्दिर साहिब

अनुक्रम • 1 इतिहास • 2 स्थापत्य • 3 परिसर • 3.1 द्वार • 3.2 सरोवर • 3.3 अकाल तख्त • 4 लंगर • 5 निकटवर्ती गुरुद्वारे एवं अन्य दर्शनीय स्थल • 6 प्रकाशोत्सव • 7 आवागमन • 7.1 वायु मार्ग • 7.2 रेल व सड़क मार्ग • 8 चित्र दीर्घा • 9 इन्हें भी देखें • 10 सन्दर्भ • 11 बाहरी कड़ियां इतिहास [ ] सिखों के चौथे गुरू रामदास जी ने इसकी नींव रखी थी। कुछ स्रोतों में यह कहा गया है कि गुरुजी ने स्वर्ण मंदिर को कई बार नष्ट किया जा चुका है। लेकिन भक्ति और आस्था के कारण हिन्दूओं और सिक्खों ने इसे दोबारा बना दिया। इसे दोबारा १७वीं सदी में भी महाराज सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया द्वारा बनाया गया था। जितनी बार भी यह नष्ट किया गया है और जितनी बार भी यह बनाया गया है उसकी हर घटना को मंदिर में दर्शाया गया है। अफगा़न हमलावरों ने १९वीं शताब्दी में इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया था। तब हैदराबाद के सातवें स्थापत्य [ ] लगभग ४०० वर्ष पुराने इस गुरुद्वारे का नक्शा खुद गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था। यह गुरुद्वारा शिल्प सौंदर्य की अनूठी मिसाल है। इसकी नक्काशी और बाहरी सुंदरता देखते ही बनती है। गुरुद्वारे के चारों ओर दरवाजे हैं, जो चारों दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण) में खुलते हैं। उस समय भी समाज चार जातियों में विभाजित था और कई जातियों के लोगों को अनेक मंदिरों आदि में जाने की इजाजत नहीं थी, लेकिन इस गुरुद्वारे के यह चारों दरवाजे उन चारों जातियों को यहां आने के लिए आमंत्रित करते थे। यहां हर धर्म के अनुयायी का स्वागत किया जाता है। परिसर [ ] श्री हरिमन्दिर साहिब परिसर में दो बड़े और कई छोटे-छोटे तीर्थस्थल हैं। ये सारे तीर्थस्थल जलाशय के चारों तरफ फैले हुए हैं। इस जलाशय को अमृतसर, अमृत सरोवर और अमृत झील के न...

भुबनेश्वर का लिंगराज मंदिर

भुबनेश्वर का लिंगराज मंदिर | Lingaraj Temple Bhubaneswar history in Hindi यूँ तो भारत सदियों से देश-विदेश सोने की चिड़िया के नाम से विश्व विख्यात है, लेकिन अपनी प्राकृतिक धरोहर के अलावा भारत अपनी पुरातात्विक धरोहर के लिए भी जाना जाता है| हिन्दू देश होने के कारन भारत में असंख्य मंदिर है, जो पुरातात्विक कला का बेजोड़ उधारहण है| आज हम उन्हीं मंदिरों में से एक जाने माने मंदिर के बारे में आपको जानकारी देने जा रहे हैं| जी हाँ दोस्तों, हम बात कर रहे हैं भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर की Lingaraj Temple Bhubaneswar history in Hindi…. भारत के एक पूर्वी राज्य उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर, जो की उड़ीसा का सबसे बड़ा शहर है और जहाँ स्थित है विश्व विख्यात लिंगराज मंदिर| लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर का सबसे प्राचीन मंदिर है, जिसके बारे में छठी शब्ताब्दी के लेखों में भी बताया गया है| लगभग 1400 वर्ष प्राचीन इस मंदिर में भगवान त्रिभुवनेश्वर की अति चमत्कारिक मूर्ति के दर्शन किये जा सकते हैं| लिंगराज मंदिर में गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है| हालाकि मंदिर को देखने के लिए मंदिर के बाहर एक चबूतरा बनाया गया है, जहाँ से गैर हिन्दू मंदिर के अलोकिक सोंदर्य का आनंद ले सकते हैं| कैसे पहुंचे:- लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर शहर के बिल्कुल बिच में स्थित है, इसे शर का लैंडमार्क भी कहा जाता है| भुवनेश्वर पहुँचने के लिए आप बस, रेल या हवाई मार्ग का उपयोग कर सकते हैं| भुवनेश्वर शहर के लिए समय समय पर बस सेवा उपलब्ध है| National Highway 16 (NH 16) से आप सीधे Bhubaneswar पहुँच सकते हैं| अगर आप रेलवे से भुवनेश्वर पहुंचना चाहते हैं तो आप सीधे भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन पहुच सकते हैं| जहाँ से आप रिक्शा से सीधे लिंगराज मंदिर पहुँच सकते है...

सोमनाथ मन्दिर

गुजरात में अवस्थिति 20°53′16.9″N 70°24′5.0″E / 20.888028°N 70.401389°E / 20.888028; 70.401389 20°53′16.9″N 70°24′5.0″E / 20.888028°N 70.401389°E / 20.888028; 70.401389 वास्तु विवरण प्रकार निर्माण पूर्ण 1951 (वर्तमान भवन) वेबसाइट .somnath .org - .bharatvarshgyan .com /2020 /05 /history-of-somnath-temple .html सोमनाथ मन्दिर भूमण्डल में दक्षिण एशिया स्थित यह मन्दिर हिन्दू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यन्त वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् लौहपुरुष सोमनाथजी के मन्दिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबन्ध किया है। यह तीर्थ पितृगणों के अनुक्रम • 1 किंवदन्तियाँ • 2 इतिहास • 2.1 भारत की स्वतन्त्रता के बाद पुनर्निर्माण • 3 तीर्थ स्थान और मन्दिर • 4 बाहरी क्षेत्र के प्रमुख मन्दिर • 5 अन्य दर्शनीय स्थल व मन्दिर • 6 आवागमन • 7 चित्र वीथिका • 8 बाहरी कड़ियाँ • 9 सन्दर्भ किंवदन्तियाँ [ ] प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार में बताये कथानक के अनुसार सोम अर्थात् चन्द्र ने, दक्षप्रजापति राजा की 27 कन्याओं से विवाह किया था। लेकिन उनमें से रोहिणी नामक अपनी पत्नी को अधिक प्यार व सम्मान दिया कर होते हुए अन्याय को देखकर क्रोध में आकर दक्ष ने चन्द्रदेव को शाप दे दिया कि अब से हर दिन तुम्हारा तेज (काँति, चमक) क्षीण होता रहेगा। फलस्वरूप हर दूसरे दिन चन्द्र का तेज घटने लगा। शाप से विचलित और दु:खी सोम ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी। अन्ततः शिव प्रसन्न हुए और सोम-चन्द्र के शाप का निवारण किया। ...

लिंगराज मंदिर का इतिहास Lingaraj temple history in hindi

Lingaraj temple history in hindi Lingaraj temple – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से लिंगराज मंदिर के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस जबरदस्त आर्टिकल को पढ़कर लिंगराज मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं । Lingaraj temple history in hindi लिंगराज मंदिर के बारे में – लिंगराज मंदिर भारत देश के उड़ीसा राज्य में , उड़ीसा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है । जिस मंदिर की सुंदरता देखने लायक है । जहां पर प्रति वर्ष लाखों की संख्या में भक्तगण जाते हैं और लिंगराज मंदिर के दर्शन करके अपने जीवन में आनंद प्राप्त करते हैं । यह मंदिर भुवनेश्वर भगवान को समर्पित है । जहां पर भुवनेश्वर भगवान के दर्शन करने के लिए सभी जाते हैं । यदि हम लिंगराज मंदिर के निर्माण की बात करें तो लिंगराज मंदिर का निर्माण तकरीबन 617 से 657 ईसवी के बीच में कराया गया था । जब इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया था तब इस मंदिर के पट सभी नागरिकों के लिए खोल दिए गए थे । इस मंदिर के निर्माण में ललाटेडु केसरी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । इस मंदिर के निर्माण में सोमवंशी राजा का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है । जिस सोमवंशी राजा का नाम जजाति केसरी था । जिसने 11वीं शताब्दी में इस मंदिर के निर्माण कार्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था । इस मंदिर को बनाने से पहले इसकी सुंदरता और इसकी नक्काशी के लिए दूर-दूर से कारीगरों को बुलवाया गया था और सभी कारीगरों ने मिलकर इस मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा किया था । मंदिर का जो प्रांगण बनाया गया है वह प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार ने बनाया गया है । लिंगराज मंदिर में जो कलश बनाया गया है उस कलश की ऊंचाई तकरीबन 40 मीटर रखी गई...

लिंगराज मंदिर

यह जगत प्रसिद्ध मन्दिर उत्तरी भारत के मन्दिरों में रचना सौंदर्य तथा शोभा और अलंकरण की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। लिंगराज का विशाल मन्दिर अपनी अनुपम स्थापत्यकला के लिए भी प्रसिद्ध है। मन्दिर में प्रत्येक शिला पर कारीगरी और मूर्तिकला का चमत्कार है। इस मन्दिर का शिखर भारतीय मन्दिरों के शिखरों के विकास क्रम में प्रारम्भिक अवस्था का शिखर माना जाता है। पूजा पद्धति [ ] गर्भग्रह के अलावा जगमोहन तथा भोगमण्डप में सुन्दर सिंहमूर्तियों के साथ देवी-देवताओं की कलात्मक प्रतिमाएँ हैं। यहाँ की पूजा पद्धति के अनुसार सर्वप्रथम बिन्दुसरोवर में स्नान किया जाता है, फिर क्षेत्रपति अनंत वासुदेव के दर्शन किए जाते हैं, जिनका निर्माणकाल नवीं से दसवीं सदी का रहा है।। गणेश पूजा के बाद गोपालनीदेवी, फिर शिवजी के वाहन नंदी की पूजा के बाद लिंगराज के दर्शन के लिए मुख्य स्थान में प्रवेश किया जाता है। जहाँ आठ फ़ीट मोटा तथा क़रीब एक फ़ीट ऊँचा ग्रेनाइट पत्थर का स्वयंभू लिंग स्थित है। अन्य प्रसिद्ध मन्दिर [ ] यहाँ से पूरब की ओर ब्रह्मेश्वर, भास्करेश्वर समुदाय के मन्दिर हैं। यहीं पर राजा-रानी का सुप्रसिद्ध कलात्मक मन्दिर है, जिसका निर्माण सम्भवतः सातवीं सदी में हुआ था। किन्तु मुख्यमन्दिर में प्रतिमा ध्वस्त कर दी गई थी, अतः पूजा अर्चना नहीं होती है। इसके पास ही मन्दिरों का सिद्धारण्य क्षेत्र है, जिसमें मुक्तेश्वर, केदारेश्वर, सिद्धेश्वर तथा परशुरामेश्वर मन्दिर सबसे प्राचीन माना जाता है। ये मन्दिर कलिंग और द्रविड़ स्थापत्यकला के बेजोड़ नमूने हैं, जिन पर जगह-जगह पर बौद्धकला का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। भुवनेश्वर के प्राचीन मन्दिरों के समूह में बैतालमन्दिर का विशेष स्थान है। चामुण्डादेवी और महिषमर्दिनी ...

बृहदीश्वर मन्दिर

बृहदीश्वर मन्दिर (भारत) मानचित्र दिखाएँ भारत 10°46′58″N 79°07′54″E / 10.78278°N 79.13167°E / 10.78278; 79.13167 10°46′58″N 79°07′54″E / 10.78278°N 79.13167°E / 10.78278; 79.13167 वास्तु विवरण शैली द्रविड़ शैली निर्माता निर्माण पूर्ण 1010 AD अभिलेख तमिल और ग्रन्थ लिपियाँ अवस्थिति ऊँचाई 66मी॰ (217फीट) आधिकारिकनाम बृहदीश्वर मन्दिर प्रांगण, तंजावुर भाग Great Living Chola Temples सांस्कृतिक:(ii), (iii) सन्दर्भ शिलालेख 1987 (11वाँ खतरे वर्ष 2004 क्षेत्र 18.07हे॰ (44.7 एकड़) मध्यवर्ती क्षेत्र 9.58हे॰ (23.7 एकड़) बृहदीश्वर (या वृहदीश्वर) मन्दिर या राजराजेश्वरम् पेरुवुटैयार कोविल भी कहते हैं। यह मंदिर पूरी तरह से इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया जाता है। यह अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था। इसके तेरह (13) मंजिलें भवन (सभी हिंदू अधिस्थापनाओं में मंजिलो की संख्या विषम होती है।) की ऊँचाई लगभग 66 मीटर है। मंदिर भगवान यह कला की प्रत्येक शाखा - एक ही पाषाण से बना है। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य मंदिर में प्रवेश करने पर • العربية • مصرى • अवधी • Azərbaycanca • Български • বাংলা • Čeština • Deutsch • English • Esperanto • Español • فارسی • Français • עברית • Hrvatski • Magyar • Bahasa Indonesia • 日本語 • ქართული • ಕನ್ನಡ • 한국어 • Lietuvių • मैथिली • മലയാളം • मराठी • नेपाली • नेपाल भाषा • Nederlands • Norsk nynorsk • ଓଡ଼ିଆ • پنجابی • Português • Română • Русский • संस्कृतम् • Srpskohrvatski / српскохрватски • Simple English • Српски / srpski • Svenska • தமிழ் • తెలుగు • ไทย • Українська • اردو • 中文 • 粵語