लोहितांग कौन था

  1. लोहितांग
  2. हर्षवर्धन
  3. Mahabharat Mahabharata Who Was Shikhandi The Cause Of Death Of Bhishma Pitamah Was Made In The War Of Mahabharata
  4. who was jarasandha
  5. जानिए मुग़ल साम्राज्य से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी
  6. गुप्त राजवंश
  7. NCERT Solutions For Class 9 Sparsh Hindi Chapter 2
  8. रबीन्द्रनाथ ठाकुर
  9. Karn KonTha


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लोहितांग

चर्चित शब्द (संज्ञा) राजा जनक की पुत्री तथा राम की पत्नी। (संज्ञा) सेना का प्रधान और सबसे बड़ा अधिकारी। (संज्ञा) वह रोग जिसमें भोजन नहीं पचता। (विशेषण) जिसे बुद्धि न हो या बहुत कम हो या जो मूर्खतापूर्ण आचरण करता हो। (विशेषण) जो किसी क्रिया में लगा हुआ हो। (विशेषण) जो किसी वस्तु, स्थान आदि के मध्य या बीच में स्थित हो। (विशेषण) जो प्रशंसा के योग्य हो। (विशेषण) कहीं-कहीं पर होने वाला। (विशेषण) अच्छे चरित्रवाली। (संज्ञा) भोजन, वस्त्र आदि देकर जीवन रक्षा करने की क्रिया।

हर्षवर्धन

हर्षवर्धन (590-647 ई.) जब हर्ष का शासन अपने चरमोत्कर्ष पर था तब उत्तरी और उत्तरी-पश्चिमी भारत का अधिकांश भाग उसके राज्य के अन्तर्गत आता था। उसका राज्य पूरब में वह अंतिम बौद्ध सम्राट् था जिसने उसके पिता का नाम 'प्रभाकरवर्धन' था। राजवर्धन उसका बड़ा भाई और राज्यश्री उसकी बड़ी बहन थी। ६०५ ई. में प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के पश्चात् राजवर्धन राजा हुआ पर मालव नरेश देवगुप्त और गौड़ नरेश शंशांक की दुरभिसंधि वश मारा गया। हर्षवर्धन 606 में गद्दी पर बैठा। हर्षवर्धन ने बहन राज्यश्री का विंध्याटवी से उद्धार किया, थानेश्वर और कन्नौज राज्यों का एकीकरण किया। देवगुप्त से मालवा छीन लिया। शंशाक गोर को भगा दिया। दक्षिण पर अभियान किया। [ उसने साम्राज्य को अच्छा शासन दिया। [ चतुःसमुद्राधिपति एवं सर्वचक्रवर्तिनाम धीरयेः आदि उपाधियों से अलंकृत किया। हर्ष कवि और नाटककार भी था। उसके लिखे गए दो नाटक हर्ष का जन्म [ अनुक्रम • 1 शासन प्रबन्ध • 2 इतिहास • 3 इन्हेंभीदेखें • 4 बाहरीकड़ियाँ • 5 सन्दर्भ शासन प्रबन्ध हर्ष स्वयं प्रशासनिक व्यवस्था में व्यक्तिगत रूप से रुचि लेता था। सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् गठित की गई थी। बाणभट्ट के अनुसार 'अवन्ति' युद्ध और शान्ति का सर्वोच्च मंत्री था। 'सिंहनाद' हर्ष का महासेनापति था। बाणभट्ट ने हर्षचरित में इन पदों की व्याख्या इस प्रकार की है- अवन्ति - युद्ध और शान्ति का मंत्री सिंहनाद - हर्ष की सेना का महासेनापति कुन्तल - अश्वसेना का मुख्य अधिकारी स्कन्दगुप्त - हस्तिसेना का मुख्य अधिकारी भंंडी- प्रधान सचिव लोकपाल- प्रान्तीय शासक इतिहास • हर्षवर्धन भारत के आखिरी महान राजाओं में एक थे। चौथी शताब्दी से लेकर 6 वीं शताब्दी तक मगध पर से भारत पर राज करने वाले गुप्त वंश...

Mahabharat Mahabharata Who Was Shikhandi The Cause Of Death Of Bhishma Pitamah Was Made In The War Of Mahabharata

Mahabharat story: महाभारत का युद्ध सबसे विनाशकारी युद्धों में से एक माना जाता है. इस युद्ध में कौरवों का सब कुछ नष्ट हो गया. धतृराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों को जान गंवानी पड़ी. महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला. महाभारत के युद्ध में जब कौरवों की सेना पांडवों की सेना पर भारी पड़ने लगी तो पांडवों को हार जाने का डर सताने लगा क्योंकि भीष्म पितामह पांडवों की सेना पर लगातार भारी पड़ते जा रहे थे. श्रीकृष्ण के मन में तब एक युक्ति आई और उन्होंने भीष्म पितामह को परास्त करने के लिए शिखंडी का सहारा लिया. शिखंडी महाभारत में एक रहस्मय पात्र के रूप में नजर आता है. शिखंडी पुर्नजन्म में स्त्री था. अगले जन्म में भी शिखंडी स्त्री के रूप में जन्म लेता है, लेकिन वह पुरूष बन जाता है. शिखंडी कौन था भीष्म पितामह ने शिखंडी के बारे में दुर्योधन को बताया था कि जिस समय हस्तिनापुर के राजा उनके छोटे भाई विचित्रवीर्य थे. उस समय उनके विवाह के लिए मैं काशीराज की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका को हर लाया था. लेकिन जब पता चला कि अंबा राजा शाल्व को प्यार करती है, तब अंबा को पूरे सम्मान के साथ राजा शाल्व के पास भेज दिया. वहीं राजा शाल्व ने अंबा को अपनाने से इनकार कर दिया. इसके बाद अंबा ने भीष्म से बदला लेने की ठान ली. अंबा की स्थिति के बारे में जब नाना राजर्षि होत्रवाहन को पता चला तो उन्होंने अंबा को परशुरामजी से मिलने के लिए कहा. अंबा ने अपने साथ हुई घटना की पूरी जानकारी परशुराम को बताई. तब परशुरामजी ने भीष्म को अंबा से विवाह करने के लिए कहा लेकिन भीष्म ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. परशुराम को यह बात बहुत खराब लगी और इसके बाद उन्होंने भीष्म से युद्ध किया लेकिन वे भीष्म से पराजित गए. उधर युद्ध समाप्त ...

who was jarasandha

कहते हैं कि जरासंध ने अपने पराक्रम से 86 राजाओं को बंदी बना लिया था। बंदी राजाओं को उसने पहाड़ी किले में कैद कर लिया था। यह भी कहा जाता है कि जरासंध 100 राजाओं को बंदी बनाकर किसी विशेष दिन उनकी बलि देना चाहता था जिससे कि वह चक्रवर्ती सम्राट बन सके। ऐसे कई कारण है जिसके चलते जरासंध की पुराणों में बहुत चर्चा होती है। मगथ सम्राट जरासंध : महाभारत काल के सबसे शक्तिशाली राज्य मगथ का सम्राट था जरासंध। वह बृहद्रथ नाम के राजा का पुत्र था। उसके पास सबसे विशाल सेना थी। वह अत्यंत ही क्रूर और अत्याचारी था। हरिवंशपुराण के अनुसार उसने काशी, कोशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, पांडय, सौबिर, मद्र, कश्मीर और गांधार के राजाओं को परास्त कर सभी को अपने अधीन बना लिया था। जरासंध के मित्र राजा : चेदि के यादव वंशी राजा शिशुपाल को भी जरासंध ने अपना गहरा मित्र बना लिया। जरासंध के कारण पूर्वोत्तर की ओर असम के राजा भगदन्त से भी उसने मित्रता जोड़ रखी थी। मद्र देश के राजा शल्य भी उसका घनिष्ट मित्र था। यवनदेश का राजा कालयवन भी उसका खास मित्र था। कामरूप का राजा दंतवक, कलिंगपति पौंड्र, भीष्मक पुत्र रूक्मी, काध अंशुमान तथा अंग, बंग कोसल, दषार्ण, भद्र, त्रिगर्त आदि के राजा भी उसके मित्र थे। इनके अतिरिक्त शाल्वराज, पवन देश का राजा भगदत्त, सौवीरराज गंधार का राजा सुबल, नग्नजीत का मीर का राजा गोभर्द, दरद देश का राजा आदि सभी उसके मित्र होने के कारण उसका संपूर्ण भारत पर बहुत ही दबदबा था। कालयवन : जरासंध का मित्र था कालयवन। जरासंध ने कालयवन के साथ मिलकर मथुरा पर हमला कर दिया था, तब श्रीकृष्‍ण की युक्ति से यह तय हुआ कि सेना आपस में नहीं लड़ेगी। हम दोनों ही लड़कर फैसला कर लेंगे। कालयवन ये शर्त मान गया, क्योंकि...

जानिए मुग़ल साम्राज्य से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

मुग़ल जब हिंदुस्तान आए थे तो यह कोई नहीं जानता था कि वह 300 वर्षों तक राज करेंगे। उससे पहले भारत पर बाहर से आए कईलुटेरों ने हमला किया था और भारत के वीर योद्धाओं ने उन्हें हराया भी था। मुग़लों ने वीर भारतीय योद्धाओं और उनके साम्राज्यों को हराया और उनकी सत्ता और पूरे भारत पर कब्ज़ा किया। Mughal History in Hindi में विस्तार से जानिए, कैसे मुग़लों ने कायम किया भारत में अपना वर्चस्व। साम्राज्यवंश का नाम मुगल वंश शासन काल 1526-1857 प्रमुख सत्ताकेंद्र स्थान दिल्ली, औरंगाबाद, आगरा प्रमुख शक्तिशाली शासक बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहां, औरंगजेब मुग़ल काल की प्रमुख इमारतें ताजमहाल, लाल किला, जामा मस्जिद, बीबी का मकबरा, लाहोर मस्जिद, मोती मस्जिद, तक्ख्त-ए- ताउस आदि। प्रथम शासक बाबर अंतिम शासक बहादूर शाह जफर साम्राज्य का कुल शासनकाल लगभग 331 साल This Blog Includes: • • • • • • • • • • • • • • • मुगल वंश के शासकों की लिस्ट Mughal History in Hindi शार्ट में जानिए नीचे दी गई टेबल के द्वारा- शासक का नाम शासनकाल बाबर 30 अप्रैल 1526-26 दिसम्बर 1530 हुमायूं 26 दिसम्बर 1530-17 मई 1540 अकबर 27 जनवरी 1556-27 अक्टूबर 1605 जहांगीर 27 अक्टूबर 1605-8 नवम्बर 1627 शाहजहाँ 8 नवम्बर 1627-31 जुलाई 1658 औरंगजेब 31 जुलाई 1658-3 मार्च 1707 बहादुरशाह 19 जून 1707-27 फ़रवरी 1712 जहांदार शाह 27 फ़रवरी 1712-11 फ़रवरी 1713 फर्रुख्शियार 11 जनवरी 1713-28 फ़रवरी 1719 मोहम्मद शाह 27 सितम्बर 1719-26 अप्रैल 1748 अहमद शाह बहादुर 26 अप्रैल 1748-2 जून 1754 आलमगीर द्वितीय 2 जून 1754-29 नवम्बर 1759 शाह आलम द्वितीय 24 दिसम्बर 1760-19 नवम्बर 1806 अकबर शाह द्वितीय 19 नवम्बर 1806-28 सितम्बर 1837 बहादुर शाह द्वितीय 28 सितम्बर ...

गुप्त राजवंश

अनुक्रम • 1 गुप्त वंश की उत्पत्ति • 2 घटोत्कच • 3 चंद्रगुप्त प्रथम • 4 समुद्रगुप्त • 5 रामगुप्त • 6 चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य • 7 कुमारगुप्त प्रथम • 8 नालंदा विश्वविद्यालय • 9 स्कन्दगुप्त • 10 पतन • 10.1 पुरुगुप्त • 10.2 कुमारगुप्त द्वितीय • 10.3 बुधगुप्त • 10.4 नरसिंहगुप्त बालादित्य • 10.5 कुमारगुप्त तृतीय • 10.6 दामोदरगुप्त • 10.7 महासेनगुप्त • 10.8 देवगुप्त • 10.9 माधवगुप्त • 10.10 उत्तर गुप्त राजवंश • 11 गुप्तकालीन स्थापत्य • 11.1 गुप्तकालीन मंदिरों की विशेषताएँ • 12 शासकों की सूची • 13 इन्हेंभीदेखें • 14 सन्दर्भ • 15 बाहरी कड़ियाँ गुप्त वंश की उत्पत्ति गुप्‍त सामाज्‍य का उदय तीसरी शताब्‍दी के अन्‍त में हालाँकि, नेपाल और दक्कन में हाल की खुदाई से पता चला है कि गुप्त प्रत्यय घटोत्कच श्रीगुप्त के बाद उसका पुत्र घटोत्कच गद्दी पर बैठा। २८० ई. से 320 ई. तक गुप्त साम्राज्य का शासक बना रहा। वह शाही परिवार का वंशज रहा हो सकता है, प्रभावती गुप्ता के पूना एवं रिद्धपुर ताम्रपत्र अभिलेखों में घटोत्कच को गुप्त वंश का प्रथम राजा बताया गया है,इसका राज्य सम्भवतः मगध के आस-पास तक ही सीमित था। चंद्रगुप्त प्रथम सन् ३२० में महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी। चंद्रगुप्त ने में पुराणों तथा समुद्रगुप्त मुख्य लेख: श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने बोधगया में एक बौध्द विहार के निर्माण की अनुमति पाने हेतू अपना राजदूत समुद्रगुप्त के पास भेजा। समुद्रगुप्त एक असाधारण सैनिक योग्यता वाला महान विजित सम्राट था। समुद्रगुप्त एक अच्छा राजा होने के अतिरिक्त एक अच्छा समुद्रगुप्त का साम्राज्य– समुद्रगुप्त ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया जो उत्तर में समुद्रगुप्त के काल में सदियों के राजनीतिक विकेन्द्र...

NCERT Solutions For Class 9 Sparsh Hindi Chapter 2

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रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रबीन्द्रनाथ टैगोर (१९२५) स्थानीय नाम রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর जन्म 07 मई 1861 मृत्यु 07 अगस्त 1941 कलकत्ता, ब्रिटिश भारत व्यवसाय लेखक, कवि, नाटककार, संगीतकार, चित्रकार भाषा राष्ट्रीयता नागरिकता शिक्षा साहित्यिक आन्दोलन उल्लेखनीय सम्मान साहित्य के लिए जीवनसाथी मृणालिनी देवी (१ मार्च १८७४–२३ नवंबर १९०२) सन्तान ५ (जिनमें से दो का बाल्यावस्था में निधन हो गया) सम्बन्धी टैगोर परिवार हस्ताक्षर • रबीन्द्रनाथ ठाकुर ( রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর) ( गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। रबीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म ७ मई १८६१ को टैगोर की माता का निधन उनके बचपन में हो गया था और उनके पिता व्यापक रूप से यात्रा करने वाले व्यक्ति थे, अतः उनका लालन-पालन अधिकांशतः नौकरों द्वारा ही किया गया था। टैगोर परिवार इसके बाद टैगोर ने बड़े पैमाने पर विद्यालयी कक्षा की पढ़ाई से परहेज किया और मैरर या पास के ग्यारह वर्ष की आयु में उनके उपनयन (आने वाला आजीवन) संस्कार के बाद, टैगोर और उनके पिता कई महीनों के लिए मेरी यादों में उल्लेख किया जो १९१२ में प्रकाशित हुई थी। साहित्यिक जीवन [ ] बचपन से ही उनकी कविता, टैगोर ने अपने जीवनकाल में कई टैगोर के १५० वें जन्मदिन के अवसर पर उनके कार्यों का एक ( कालनुक्रोमिक रबीन्द्र रचनाबली) नामक एक संकलन वर्तमान में द एसेंटियल टैगोर, को प्रकाशित करने के लिए सहयोग किया है यह फकराल आलम और राधा चक्रवर्ती द्वारा संपादित की गयी थी और टैगोर के जन्म की १५० वीं वर्षगांठ की निशानी हैं। रचनाएँ [ ] मुख्य लेख: टैगोर ने लगभग 2,230 गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बाँग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी अधिकतर रचनाएँ तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। ...

Karn KonTha

कर्ण की कथा - कुंती पुत्र कर्ण का जन्म कैसे हुआ कर्ण का जन्म एक सामान्य इंसानी जन्म नहीं था। उनकी माता कुंती ने एक बार दुर्वासा ऋषि की सेवा की थी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने वरदान में एक मन्त्र दिया था। उस मंत्र से कुंती ने सूर्य देव का आह्वान किया था और सूर्य देव और कुंती के मिलन से कर्ण का जन्म हुआ था। कर्ण कौन था? बचपन में कुंती ने एक बार दुर्वासा ऋषि का बहुत अच्छे तरीके से अतिथि सत्कार किया था। इससे प्रसन्न होकर, दुर्वासा ने कुंती को एक मन्त्र दिया, जिसके द्वारा वो किसी भी देवता को बुला सकती थी। एक दिन कुंती के मन में उस मन्त्र को आजमाने का खयाल आया। वह बाहर निकली तो देखा कि सूर्य अपनी पूरी भव्यता में चमक रहे थे। उनकी भव्यता देखकर वह बोल पड़ी – ‘में चाहती हूं, कि सूर्य देव आ जाएं।’ सूर्य देव आए और कुंती गर्भवती हो गयी, और एक बालक का जन्म हुआ। वो सिर्फ चौदह साल की अविवाहित स्त्री थी। उसे समझ नहीं आया कि ऐसे में सामाजिक स्थितियों से कैसे निपटा जाएगा। उसने बच्चे को एक लकड़ी के डिब्बे में रख दिया, और बिना उस बच्चे के भविष्य के बारे में सोचे, उसे नदी में बहा दिया। उसे ऐसा करने में थोड़ी हिचकिचाहट हुई, पर वो कोई भी कार्य पक्के उद्देश्य से करती थी। एक बार वो अगर मन में ठान लेतीं, तो वो कुछ भी कर सकती थी। उसका हृदय करुणा-शून्य था। अधिरथ को मिला नन्हा कर्ण धृतराष्ट्र के महल में कम करने वाला सारथी, अधिरथ, उस समय नदी के किनारे पर ही मौजूद था। उसकी नजर इस सुंदर डिब्बे पर पड़ी तो उसने उसको खोलकर देखा। एक नन्हें से बच्चे को देख कर वो आनंदित हो उठा, क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं थी। उसे लगा कि ये बच्चा भगवान की ओर से एक भेंट है। वो इस डिब्बे और बच्चे को अपनी पत्नी राधा के पास ले गया। दोनों...