लोकतंत्र की सफलता के लिए गोविंद बल्लभ पंत ने क्या विचार दिया

  1. गोविंद बल्लभ पंत
  2. 5. लोकतंत्र की चुनौतियाँ ( लघु उत्तरीय प्रश्न )
  3. लोकतंत्र पर निबंध सभी कक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए
  4. 26 जनवरी गणतंत्र दिवस विशेष:लोकतंत्र में त्याग और बलिदान से ही देश और समाज चलता है.!
  5. anecdotes of govind ballabh pant, the first cm of up in independent india
  6. इमरान की वापसी लोकतंत्र की जीत और पाकिस्तान के लिए आपदा क्यों साबित हो सकती है


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गोविंद बल्लभ पंत

पूरा नाम गोविंद बल्लभ पंत जन्म जन्म भूमि मृत्यु अभिभावक श्री मनोरथ पंत पति/पत्नी श्रीमती गंगा देवी नागरिकता भारतीय पार्टी पद कार्य काल मुख्यमंत्री- गृहमंत्री- शिक्षा वकालत विद्यालय 'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज', भाषा जेल यात्रा सन पुरस्कार-उपाधि रचनाएँ वरमाला, 'राजमुकुट' और 'अंगूर की बेटी' अन्य जानकारी गोविन्द बल्लभ पंत का मुक़दमा लड़ने का ढंग निराला था, जो मुवक़्क़िल अपने मुक़दमों के बारे में सही जानकारी नहीं देते थे, पंत जी उनका मुक़दमा नहीं लेते थे। काशीपुर में एक बार वे धोती, कुर्ता तथा गाँधी टोपी पहनकर कोर्ट चले गये। वहां अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने आपत्ति की। गोविंद बल्लभ पंत ( Govind Ballabh Pant, जन्म: विषय सूची • 1 जीवन परिचय • 1.1 आरम्भिक जीवन • 2 कार्यक्षेत्र • 2.1 वकालत का अंदाज़ • 3 संक्षिप्त जीवन परिचय • 4 नाटककार और लेखक • 5 भारत रत्न • 6 टीका टिप्पणी और संदर्भ • 7 बाहरी कड़ियाँ • 8 संबंधित लेख जीवन परिचय अपने संकल्प और साहस के मशहूर पंत जी का जन्म 10 सितम्बर, 1887 ई. वर्तमान आरम्भिक जीवन गोविन्द बल्लभ पंत के पिता का नाम श्री 'मनोरथ पन्त' था। श्री मनोरथ पंत गोविन्द के जन्म से तीन वर्ष के भीतर अपनी पत्नी के साथ कार्यक्षेत्र • 1909 में गोविन्द बल्लभ पंत को क़ानून की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम आने पर 'लम्सडैन' स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। • 1910 में गोविन्द बल्लभ पंत ने अल्मोड़ा में वकालत आरम्भ की। अल्मोड़ा के बाद पंत जी ने कुछ महीने • सन 1912-13 में पंतजी काशीपुर आये उस समय उनके पिता जी 'रेवेन्यू कलक्टर' थे। श्री 'कुंजबिहारी लाल' जो काशीपुर के वयोवृद्ध प्रतिष्ठित नागरिक थे, का मुक़दमा पंत' जी द्वारा लिये गये सबसे 'पहले मुक़दमों' में से एक था। इसकी फ़ीस उन्हें ...

5. लोकतंत्र की चुनौतियाँ ( लघु उत्तरीय प्रश्न )

1. बिहार में लोकतंत्र की चुनौतियाँ कौन-सी हैं ? उत्तर- हमारे प्रान्त में लोकतंत्र के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं। इनमें सबसे अधिक अशिक्षा, जातिवाद तथा निर्धनता है। इन सबकी वजह से बिहार में जागृति नहीं आ पा रही है और लोकतंत्र का विस्तार रुक गया है। 2. गठबंधन की सरकार से आपका क्या अभिप्राय है ? उत्तर- जब किसी चुनाव में किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त । नहीं होता, तब वह कई क्षेत्रीय या राष्ट्रीय दलों के साथ समझौता के तहत बहुमत प्राप्त करता है। इस प्रकार बनी सरकारें गठबंधन सरकार कहलाती हैं। 3. संप्रदायवाद लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती हैं, कैसे ? उत्तर- संप्रदायवाद के कारण विभिन्न धर्मों के लोग परस्पर दूसरे धर्म के प्रति द्वेष का भाव रखने लगते हैं जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय एकता को खतरा होता है। यह गृहयुद्ध की स्थिति पैदा कर सकता है। अत: यह लोकतंत्र के लिए एक बड़ी `चुनौती है। 4. अमेरिकी संविधान निर्माता अलेक्जेन्डर हैमिल्टन ने क्या कहा था ? उत्तर- उन्होंने सरकार के विभिन्न अंगों के विषय में यह कहा था कि “कार्यपालिका में ऊर्जा होनी चाहिए तो विधायिका में दूरदर्शिता जबकि न्यायपालिका में सत्य के प्रति निष्ठा एवं संयम होना चाहिए। 5. लोकतंत्र की सफलता के लिए शिक्षा का प्रसार क्यों जरूरी है ? उत्तर- शिक्षा से लोगों के भीतर चेतना पैदा होती है। लोग अपने कर्तव्यों के रे में जागरूक होते हैं। अपने लिए योग्य प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं जो सरकार जाते हैं। इस प्रकार शासन में भी अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित कर पाते हैं। यही ” कि लोकतंत्र की सफलता के लिए शिक्षा का प्रसार बहुत जरूरी है। 6. भारतीय लोकतंत्र के तीन महत्त्वपूर्ण अंग कौन-कौन से हैं ? उत्तर- भारत में लोकतांत्रिक सरकार के तीन...

लोकतंत्र पर निबंध सभी कक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए

लोकतंत्र यानि कि डेमोक्रेसी का अर्थ यह है कि जब भी कभी किसी राष्ट्र में सरकार का चयन होता है तो वह लोगों के द्वारा लोगों के लिए चुनी जाती है। किसी भी राष्ट्र में लोकतंत्र का गठन उसके संविधान के स्थापना के दौरान ही कर दी जाती है। लोकतंत्र को दुनियाभर में सबसे अच्छे शासन प्रणाली में शुमार है और इसी कारणवस लोकतान्त्रिक व्यवस्था आज अधिकतम देशों में लागू है। जब किसी भी देश में वहां के निवासी अर्थात जनता को वोट देने और अपने प्रत्याशी का सही चुनाव करने को मिल जाए तो ऐसे में उस देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था लागू हुई होती है।लोकतंत्र पर निबंध लिखने से पहले हमें यह जानना होगा कि लोकतंत्र का इतिहास, वर्तमान एवं भविष्य जान लेते हैं। The Blog Includes: • • • • • • लोकतंत्र क्या है? मूलतः लोकतन्त्र भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों के मिश्रण बनता हैै।अब्राहम लिंकन के अनुसार लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है। लोकतंत्र में ऐसी व्यवस्था रहती है कि जनता अपनी मर्जी से विधायिका चुन सकती है। लोकतंत्र एक प्रकार की शासन व्यवस्था है, जिसमें सभी व्यक्तियों को समान अधिकार होता हैं। लेकिन अलग-अलग देश में इसके अलग-अलग अर्थ निकलते हैं। लोकतंत्र पर निबंध (100 words) आज सारे विश्व भी मे लोक तंत्र की अपनी अलग परिभाषा है इनमे सबसे सटीक और जटिल परिभाषा पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकलन द्वारा दी गयी लोकतंत्र की परिभाषा सबसे मान्य मालूम जान पड़ती है। लिंकलन के अनुसार जनता के द्वारा, जनता का शासन एवं जनता के लिए शासन ही प्रजातंत्र है। प्राचीन काल में शासन व्यवस्था काफी अधीन हुआ करती थी क्युंकि राजतंत्र होने के कारण जनता की भागीदारी ना बराबर थी और साथ ही साथ जनता को कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं थे। स...

26 जनवरी गणतंत्र दिवस विशेष:लोकतंत्र में त्याग और बलिदान से ही देश और समाज चलता है.!

26 जनवरी गणतंत्र दिवस विशेष: लोकतंत्र में त्याग और बलिदान से ही देश और समाज चलता है.! विस्तार पश्चिमी देशों की तथाकथित आधुनिकता ने बीसवीं शताब्दी में सारे विश्व को दूर तक प्रभावित किया और समाज की शासन-व्यवस्था के लिए राजतंत्र के स्थान पर लोकतंत्र का नया विचार दिया। यद्यपि भारत सहित अनेक देशों में गणतांत्रिक व्यवस्था प्राचीन एवं मध्यकालीन राज्यों में भी सफलतापूर्वक संचालित होती रही है। ब्रिटिश दासता का शिकार रहे विश्व के अनेक देशों ने उसके उपनिवेशवाद से मुक्ति पाने पर उसके द्वारा स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्था के स्वरूप को अपनी परिस्थितियों पर विचार किए बिना स्वीकार कर लिया। संविधान और व्यवस्था यूरोप के ठंडे देशों के लिए उपयुक्त कंबल भारतवर्ष की गर्म जलवायु में भी आधुनिकता के नाम पर ओढ़ लिया गया और आज पसीने से तरबतर हो कर भी हमारे नेतागण उसे उतारने तथा भारतीय जनहित के अनुरूप उसे नया स्वरूप देने, परिवर्तित-परिष्कृत करने के लिए उद्यत नहीं हैं क्योंकि विगत् सात दशकों से स्थापित लोकतंत्र के इसी आवरण में उन्हें अपनी राजतंत्रीय सामंतवादी दुरभिलाषाओं की पूर्ति सुरक्षित दिखाई देती है। वंशवाद, परिवारवाद और अपार भ्रष्टाचार करने के बाद भी राजनीति में सक्रिय रहना और पुनः सत्ता में आने का सपना साकार कर पाना इसी लोकतांत्रिक-व्यवस्था में संभव है, जहां विधायिका अपनी सुविधा के लिए कार्यपालिका पर दबाव बनाए रखती है और कभी-कभी न्यायपालिका का भी मनमाना उपयोग कर लेती है। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आपातकाल के अठारह महीने इस कड़वे सच के साक्षी हैं। आज का अनेक समूहों में बंटा, अशांत और परस्पर संघर्षरत भारतीय लोकतंत्र के खोल में पल रही सामंतवादी दूषित मानसिकता का ही दुष्परिणाम है। लोकतंत्र निश्चय ही...

anecdotes of govind ballabh pant, the first cm of up in independent india

आजाद भारत में उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री होना हमेशा ही खुफियापंथी की ओर इशारा करेगा. क्योंकि यहां की राजनीति हमेशा से ही घाघ रही है. आजादी के वक्त भी यूपी में कई धड़े थे. बनारस के नेता यूपी की राजनीति में छाए हुए थे. ऐसे में पहाड़ों में जन्मे गोविंद बल्लभ पंत गोविंद बल्लभ पंत (10 सितंबर 1887- 7 मार्च 1961) का पहला मुख्यमंत्री बनना अपने आप में सरप्राइजिंग है था. गोविंद बल्लभ पंत अल्मोड़ा में जन्मे थे. पर महाराष्ट्रियन मूल के थे. मां का नाम गोविंदी बाई था. उनके नाम से ही नाम मिला था. पापा सरकारी नौकरी में थे. उनके ट्रांसफर होते रहते थे. तो नाना के पास पले. बचपन में बहुत मोटे थे. कोई खेल नहीं खेलते थे. एक ही जगह बैठे रहते. घर वाले इसी वजह से इनको थपुवा कहते थे. पर पढ़ाई में होशियार थे. एक बार की बात है. छोटे थे उस वक्त. मास्टर ने क्लास में पूछा कि 30 गज के कपड़े को रोज एक मीटर कर के काटा जाए तो यह कितने दिन में कट जाएगा. सबने कहा 30 दिन. पंत ने कहा 29. स्मार्टनेस की बात है. बता दिये. इसमें कौन सा दौड़ना था. अंग्रेज जज से कह दिया- तुम्हारी अदालत में नहीं आऊंगा बाद में पढ़ाई कर के वकील बने. इनके बारे में फेमस था कि सिर्फ सच्चे केस लेते थे. झूठ बोलने पर केस छोड़ देते. वो दौर ही था मोरलिस्ट लोगों का. बाद में कुली बेगार के खिलाफ लड़े. कुली बेगार कानून में था कि लोकल लोगों को अंग्रेज अफसरों का सामान फ्री में ढोना होता था. पंत इसके विरोधी थे. बढ़िया वकील माने जाते थे. काकोरी कांड में बिस्मिल और खान का केस लड़ा था. वकालत शुरू करने से पहले ही पंत के पहले बेटे और पत्नी गंगादेवी की मौत हो गई थी. वो उदास रहने लगे थे. पूरा वक्त कानून और राजनीति में देने लगे. 1912 में परिवार के दबाव ...

इमरान की वापसी लोकतंत्र की जीत और पाकिस्तान के लिए आपदा क्यों साबित हो सकती है

आप इमरान के समर्थक हैं या विरोधी? यह सवाल हम दो अलग-अलग तरीके से पूछ सकते हैं. एक तरह से यह सवाल हो सकता है कि अगर आज पाकिस्तान में साफ-सुथरे ढंग से चुनाव हो तो इमरान जीतेंगे या नहीं? और दूसरी तरह से सवाल यह हो सकता है कि उनकी जीत पाकिस्तान के लिए शुभ होगी या आपदा? पहले सवाल का जवाब तो बेशक यही है कि चुनाव में उनकी जीत होगी. पूरी जनता का आज उन्हें जिस तरह समर्थन हासिल है वैसा लंबे समय से किसी पाकिस्तानी नेता को नहीं हासिल हुआ. नवाज़ शरीफ को भी नहीं हासिल हुआ था जब वे अपने शिखर पर थे और बड़ी जीत हासिल कर सकते थे. या उन्हें उस तरह फटाफट और गलत तरीके से गद्दी से न हटाया गया होता. उनके समर्थक भी इतने ही मुखर और उग्र थे, लेकिन उन्होंने कभी फौज की ताकत को चुनौती नहीं दी थी. इमरान की लोकप्रियता ने उस ऊंचाई को छू लिया है जैसा पाकिस्तान में पहले नहीं देखा गया. उनके प्रतिद्वंद्वियों, दुश्मनों और फौजी हुक्मरान समेत तमाम आलोचकों को पूरा यकीन है कि वे चुनाव आसानी से जीत जाएंगे, इसलिए फिलहाल तो वे चुनाव नहीं कराने जा रहे हैं. या मौका मिले तो अक्टूबर में तय समय तक भी तब तक चुनाव नहीं कराएंगे जब तक कि वे इमरान को चुनाव लड़ने के लिए संवैधानिक रूप से अयोग्य नहीं ठहरा देंगे. दूसरे सवाल का जवाब और आसान है, कि अगर वे बड़े जनादेश के साथ चुनाव जीत गए तो यह पाकिस्तान के लिए एक आपदा साबित होगी. इसकी वजह यह है कि वे जिन चीजों— अति लोकलुभावनवाद, उग्र व प्रतिशोधी राजनीति, इस्लामवाद, पश्चिम का विरोध (जो पाकिस्तानी नजरिए से महत्वपूर्ण है), भारत के प्रति अतिवादी नजरिया और आधुनिक अर्थनीति के प्रति असहिष्णुता— के पक्ष में हैं, वे पाकिस्तान को और गर्त में धकेल देंगी. अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में...