मृदुला गर्ग जीवन परिचय

  1. मृदुला गर्ग का जीवन परिचय एवं रचनाएं
  2. आलेख : मृदुला गर्ग के उपन्यासों में अभिव्यक्त स्त्री संघर्ष / श्रुति ओझा
  3. कमलेश्वर
  4. चित्तकोबरा : मृदुला गर्ग
  5. मृदुला गर्ग की कहानियों में नारी विमर्श
  6. मृदुला गर्ग: जन्मदिन विशेष
  7. Mridula Garg ki Yadgari Kahaniyan
  8. मेरे संग की औरतें का सारांश, प्रश्न उत्तर और अन्य प्रश्न क्लास 9
  9. सुभद्रा कुमारी चौहान
  10. Vanshaj


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मृदुला गर्ग का जीवन परिचय एवं रचनाएं

मृदुला गर्ग का जीवन परिचयमृदुला गर्ग का जन्म 25 अक्टूबर, 1938 में कोलकाता शहर के समृद्ध परिवार में हुआ था। मृदुला गर्ग के पिता का नाम श्री बिरेन्द्र प्रसाद जैन तथा माता का नाम रविकांता था। मृदुला गर्ग के लेखकीय व्यक्तित्व में उनके पिता जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके पिता बेहद खुले विचारों वाले व्यक्ति थे। उन्होंने अपने किसी भी बच्चे पर कभी किसी भी की रोक-टोक (प्रतिबंध) नही की। श्री बिरेन्द्र प्रसाद जेन और रविकांता की कुल पाँच बेटियाँ और एक पुत्र है।‘‘बड़ी बहन मंजुला भगत जो हिंदी साहित्य में लिखती हैं। दूसरी अचला बंसल जो अंग्रेजी साहित्य में लेखिका है। तीसरी चित्र और चौथी रेणु। राजीव जेन इनके भाई हैं।” मृदुला जी की सभी बहनों और भाई में एक दोस्त के समान हँसी-खुशी का माहौल सदेव बना रहता। मृदुला जी जब मात्र तीन-चार वर्ष की थी तभी पिता जी का तबादला दिल्ली हो गया था। इसलिए उनकी पूरी शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में ही हुई। स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण मृदुला जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही की। उनकी बड़ी बहनें, माता-पिता उनको शिक्षा देते। प्रखर विवेक के कारण वह सब कुछ जल्दी सीख लिया करती थी। मृदुला जी ने कम उम्र में ही महान साहित्यकारों रचनाओं को पढ़ना आरंभ कर दिया था। इन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकनोमिक्स से सन् 1960 में‘अर्थशास्त्र’ में एम.ए. उत्तीर्ण किया। कथाकार मृदुला जैन का 1963 में श्री आनंद प्रकाश गर्ग के साथ विवाह हुआ। आनंद प्रकाश गर्ग पेशे से एक इंजीनियर थे। विवाह के उपरांत नवविवाहिता मृदुला जी अपने पति के साथ दिल्ली छोड़कर बिहार के डालमिया नगर आ बसी। फिर मृदुला जी क्रमश: दुर्गापुर व बागलकोट से अपने जीवन की डोर बाँधती गई। मृदुला और आनन्द प्रकाश गर्ग के दाम्पत्य जीवन की धर...

आलेख : मृदुला गर्ग के उपन्यासों में अभिव्यक्त स्त्री संघर्ष / श्रुति ओझा

मानव सभ्यता की विकास-यात्रा के समानांतर स्त्री का संघर्ष भी अपनी निरंतरता में आरम्भ से ही समाज में विद्यमान रहा है। देश-काल के साथ इस संघर्ष के सिर्फ स्वरूप बदलता रहा है। मूल स्वर में सामंती युग से लेकर आज के आधुनिक युग तक एकतानता है। हमारे समाज में स्त्री को कभी रीति-रिवाज के नाम पर तो कभी पितृसत्तात्मक अधिकार भावना के कारण, कभी पुरुष की अहम् भावना के कारण तो कभी शिक्षित होने एवं आत्मनिर्भर होने के कारण सदैव कदम-कदम पर शोषण का शिकार होना पड़ा है। इस शोषण और उसके विरुद्ध स्त्री के नितांत निजी संघर्षों की लंबी एवं करूण कहानी है। उसे न केवल बाह्य समाज बल्कि स्वयं अपने परिवार से और यहाँ तक कि ख़ुद से भी निरंतर संघर्ष करना पड़ा है। इसी संघर्ष को सिमोन द बउआर ने अपनी पुस्तक ‘द सेकंड सेक्स’ में बताया था कि“स्त्री पैदा नही होती , उसे बना दिया जाता है” [1] यह कथन देश-विदेश की सभी स्त्रियों के संघर्ष को पूर्णतया बयां करता है। भारतीय समाज में तो स्त्री को हमेशा से एक वस्तु के रूप में देखा जाता रहा है। रेखा कास्तकार स्त्री विमर्श के सरोकार पर बात करते हुए कहती हैं कि“स्त्री विमर्श का सरोकार जीवन और साहित्य में स्त्री मुक्ति के प्रयासों से है। स्त्री की स्थिति की पड़ताल उसके संघर्ष एवं उसकी पीड़ा की अभिव्यक्ति के साथ-साथ बदलते सामजिक संदर्भों में उसकी भूमिका, तलाशे गये रास्तों के कारण जन्में नयें प्रश्नों के टकराने के साथ-साथ आज भी स्त्री की मुक्ति का मूल उसके मनुष्य के रूप में स्वीकारे जाने का प्रश्न है।” [2] इसी स्वीकारोक्ति की तलाश करते हुए प्रभा खेतान जी ने जब सिमोन द बोउआर की पुस्तक ‘ द सेकंड सेक्स ’ का हिंदी में अनुवाद किया तब उन्होंने उसकी भूमिका में लिखा है कि- “हम भारतीय कई तहों म...

कमलेश्वर

कमलेश्वर जन्म कमलेश्वर प्रशाद सक्सेना 06 जनवरी 1932 मृत्यु जनवरी 27, 2007 ( 2007-01-27) (उम्र74) उपनाम कमलेश्वर अवधि/काल 1954–2006 विधा साहित्यिक आन्दोलन नई कहानी उल्लेखनीय कार्य कितने पाकिस्तान (2004) उल्लेखनीय सम्मान कमलेश्वर ( कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को 2005 में कमलेश्वर को ' कमलेश्वर की अंतिम अधूरी रचना अंतिम सफर उपन्यास है, जिसे कमलेश्वर की पत्नी गायत्री कमलेश्वर के अनुरोध पर तेजपाल सिंह धामा ने पूरा किया और हिन्द पाकेट बुक्स ने उसे प्रकाशित किया और बेस्ट सेलर रहा। अनुक्रम • 1 कृतियाँ • 2 इन्हें भी देखें • 3 सन्दर्भ • 4 बाहरी कड़ियाँ कृतियाँ [ ] उपन्यास - • • • • • • • • • • • • • अंतिम सफर पटकथा एवं संवाद कमलेश्वर ने ९९ फ़िल्मों के संवाद, कहानी या पटकथा लेखन का काम किया। कुछ प्रसिद्ध फ़िल्मों के नाम हैं- १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. संपादन अपने जीवनकाल में अलग-अलग समय पर उन्होंने सात पत्रिकाओं का संपादन किया - अखबारों में भूमिका वे हिन्दी दैनिक ` कहानियाँ कमलेश्वर ने तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ हैं - राजा निरबंसिया नीली झील नाटक उन्होंने तीन नाटक लिखे - • • • इन्हें भी देखें [ ] सन्दर्भ [ ]

चित्तकोबरा : मृदुला गर्ग

चित्तकोबरा मृदुला जी द्वारा रचित एक बहुचर्चित एवं विवादास्पद उपन्यास है | इस उपन्यास की कथा का मूल आधार प्रेम विवाह तथा सेक्स की समस्या है | उपन्यास की नायिका मनु दाम्पत्य सम्बन्ध एवं दाम्पत्येत्तर सम्बन्ध के कारण निरन्तर तनाव तथा द्वन्द्व की स्थिति महसूस करती है | उपन्यास में सेक्स सम्बन्ध को बड़ी बेबाकी से वर्णित किया गया है, जिसके सम्बंध में लोगों का मानना है कि- “चित्तकोबरा अमेरिकी वेस्ट पेलेस में मिलने वाले सक्रिय सेक्स चित्रों के अनुरूप और उनकी परंपरा में गढ़ा गया उपन्यास है |“ चित्तकोबरा का कथ्य नवीन जीवन मूल्यों को प्रस्तुत करता है | इस उपन्यास में नारी मन की कुंठाओं का चित्रण हुआ है | नारी की यह कुंठा शारीरिक ही नहीं अपितु मानसिक भी है | उपन्यास में नारी के परिवर्तित अनुभव जगत का चित्रण किया गया है | उपन्यास का नाम (Novel Name) चित्तकोबरा (Chitkobra) लेखक (Author) मृदुला गर्ग (Mridula Garg) भाषा (Language) हिन्दी (Hindi) प्रकाशन वर्ष (Year of Publication) 1979 • • • • चित्तकोबरा उपन्यास की कथा वस्तु चित्तकोबरा उपन्यास की कथा के केन्द्र में नायिका ‘मनु’ है जो एक विवाहिता स्त्री और दो बच्चों की माँ भी है | ‘मनु’ का पति महेश एक लघु उद्योगपति एवं व्यवहारिक पुरुष है | मनु और महेश को लोग आदर्श दम्पत्ति के रूप में जानते है | मनु की दृष्टि में प्रेम का स्वरूप उदार है | एक गृहिणी के रूप में मनु के मन में यह प्रश्न बार-बार उठता है कि क्या महेश उससे प्रेम करता है ? महेश मनु से प्रेम नहीं करता, वह तो केवल वैवाहिक जीवन को अपना कर्तव्य मानकर किसी तरह निभा रहा है | मनु प्रथम बार जब एक थियेटर ग्रुप से जुड़कर पादरी रिचर्ड के सम्पर्क में आती है, तब उसे एहसास होता है कि प्रेम क्या ह...

मृदुला गर्ग की कहानियों में नारी विमर्श

कहानीकार मृदुलागर्ग ने अपनी रचनाओं में कई आयामों को चित्रित करने का सफल प्रयास किया है जीवन के यथार्थ धरातल पर आधारित होने के कारण मृदुला की कहानियां अनेक समस्याओं से जुड़ी हुई हैं। मृदुला गर्ग का जन्म 25 अक्टूबर 1938ई. में कोलकत्ता (पश्चिम बंगाल) में हुआ। माता-पिता दोनों ही ग•ाब के साहित्य प्रेमी थे। छोटी आयु से ही महान साहित्यकारों को पढऩा और समझना उनकी विशेष रुचि रही,यही कारण था कि साहित्य उनकी चेतना का अंग बन गया। बचपन में ही उनके पिता जी ने उनसे कहा कि- वे लोगों को यह नहीं बताएगी कि मैं उनकी बेटी हूं बल्कि लोग यह कहकर उनका परिचय दें कि वे मृदुला गर्ग के पिता हैं। अपने पिता की इस शर्त को मृदुला जी ने पूर्ण किया। 1963 ई. में मृदुला जी का विवाह श्री आनन्द प्रकाश गर्ग के साथ हुआ। उन्होंने विवाहोपरान्त लेखन और परिवार दोनों का ही बखूबी निर्वाह किया। देश में होने वाली घटनाओं और दुर्घटनाओं पर उनकी कड़ी नजर रहती है। इसी कारण वह साहित्य समाज की राजनीति, संस्कृति की अन्र्तव्यवस्था पर बेबाक और गहरी टिप्पणी करती हैं। साहित्य, क्या, क्यों और कैसे ? नारी चेतना, सत्ता और स्त्री और फेमिनिस्ट आदि आलेख इसके सम्यक उदाहरण है। उन्होंने नारीवाद की नई परिभाषा गढ़ी है जिसके जरिये वे‘प्रखर महिला प्रवक्ता के रूप में हमारे समक्ष आती है। मृदुला गर्ग आठवें दशक में प्रतिनिधि महिला साहित्यकार हैं’। उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं पर लेखनी उठाई है परन्तु उनकी लेखन प्रक्रिया का शुभारंभ कहानी से ही हुआ। उनकी कहानियों में आधुनिक नारी का आन्तरिक द्वन्द दिखाई देता है। मृदुला जी के स्वच्छन्द नारी पात्र अपनी कामभावनाओं की तृप्ति के लिए पति के पास होने पर भी किसी और से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं। उन्हों...

मृदुला गर्ग: जन्मदिन विशेष

सामान्य परिचय साहित्य की दुनिया में ख्याति प्राप्त मृदुला गर्ग 25 अक्टूबर 1938 को कलकत्ता में जन्मीं। शुरुआती तीन वर्षों तक उनका बचपन कलकत्ता में बीता, इसके पश्चात उनका परिवार दिल्ली आकर बस गया। मृदुला गर्ग का बचपन कुछ शारीरिक पीड़ा में बीता जिसके कारण उन्हें आरंभिक वर्षों तक विद्यालय के बजाय घर पर ही शिक्षा ग्रहण करनी पड़ी। आगे चलकर उन्होंने अपनी रुचि अर्थशास्त्र में बढ़ाई और दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से परास्नातक किया। मृदुला गर्ग को बचपन से ही साहित्य अध्ययन में रुचि रही, उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में इस बात की पुष्टि करते हुए कहा भी है कि- “साहित्य पठन से मेरा लम्बा लगाव रहा, बचपन से … साहित्य ही मेरा एक मात्र आसरा था। वह मेरे खून में समा गया, मेरे दिलो-दिमाग का हिस्सा बन गया। चूँकि उसने मेरे जीवन में बहुत जल्द प्रवेश कर लिया था, इसलिए बड़े नामों से मुझे डर नहीं लगता था।” साहित्य की दुनिया से जितनी जल्दी राब्ता हो जाए, आगे चलकर वह दुनिया उतनी ही जल्दी खुलने लगती है। साहित्य से लगाव ही उन्हें बचपन में नाटकों में अभिनय के क़रीब लाया। अपने विद्यालय में नाटकों में वे अभिनय भी किया करती थीं। स्कूल में नाटक और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में वे भाग लिया करती थीं और जीतती भी थीं | साहित्य से बचपन में लगाव के कारण ही अल्पावधि में उनका परिचय परिपक्व साहित्य से हो चुका था। जिस समय उनकी उम्र लगभग 32 वर्ष की थी, उस समय उन्होंने साहित्य लेखन प्रारंभ किया। उन्होंने अपने आरम्भिक वर्षों में दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य भी किया। साहित्यिक लेखन अध्यापन कार्य के साथ-साथ ही उन्होंने साहित्य लेखन में भी कदम रखा। उन्होंने उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक, निबंध, व्यंग्य इत्यादि विधाओं पर अप...

Mridula Garg ki Yadgari Kahaniyan

लोगों की राय • चौकड़िया सागर Yes Arvind Yadav • सम्पूर्ण आल्ह खण्ड Rakesh Gurjar • हनुमन्नाटक Dhnyavad is gyan vardhak pustak ke liye, Pata hi nai tha ki Ramayan Ji ke ek aur rachiyeta Shri Hanuman Ji bhi hain, is pustak ka prachar krne ke liye dhanyavad Pratiyush T • क़ाफी मग " कॉफ़ी मग " हल्का फुल्का मन को गुदगुदाने वाला काव्य संग्रह है ! " कॉफ़ी मग " लेखक का प्रथम काव्य संग्रह है ! इसका शीर्षक पुस्तक के प्रति जिज्ञासा जगाता है और इसका कवर पेज भी काफी आकर्षक है ! इसकी शुरुआत लेखक ने अपने पिताजी को श्रद्धांजलि के साथ आरम्भ की है और अपने पिता का जो जीवंत ख़ाका खींचा है वो मनोहर है ! कवि के हाइकु का अच्छा संग्रह पुस्तक में है ! और कई हाइकू जैसे चांदनी रात , अंतस मन , ढलता दिन ,गृहस्थी मित्र , नरम धूप, टीवी खबरे , व्यवसाई नेता व्यापारी, दिए जलाये , आदि काफी प्रासंगिक व भावपूर्ण है ! कविताओं में शीर्षक कविता " कॉफ़ी मग " व चाय एक बहाना उत्कृष्ट है ! ग़ज़लों में हंसी अरमां व अक्सर बड़ी मनभावन रचनाये है ! खूबसूरत मंजर हर युवा जोड़े की शादी पूर्व अनुभूति का सटीक चित्रण है व लेखक से उम्मीद करूँगा की वह शादी पश्चात की व्यथा अपनी किसी आगामी कविता में बया करेंगे ! लेखक ने बड़ी ईमानदारी व खूबसूरती से जिंदगी के अनुभवों, अनुभूतियों को इस पुस्तक में साकार किया है व यह एक मन को छूने वाली हल्की फुल्की कविताओं का मनोरम संग्रह है ! इस पुस्तक को कॉफी मग के अलावा मसाला चाय की चुस्की के साथ भी आनंद ले Vineet Saxena • आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास Bhuta Kumar • पांव तले भविष्य 1 VIJAY KUMAR • कारगिल Priyanshu Singh Chauhan • सोलह संस्कार kapil thapak • सोलह संस्कार kapil thapak • कामसूत्रकालीन समाज एव...

मेरे संग की औरतें का सारांश, प्रश्न उत्तर और अन्य प्रश्न क्लास 9

लेखिका के स्मृति पटल पर सर्वप्रथम अपनी नानी का चित्र उभरता है। वे कम पढ़ी-लिखी पर्दानशी औरत थीं उन्होंने अपने पति अर्थात् हमारे नाना से भी जो विलायत में पढ़े लिखे थे कभी मुँह खोलकर बात नहीं के थी, लेकिन मरते समय उन्हें अपनी इकलौती बेटी अर्थात् मेरी माँ की शादी की इतनी चिन्ता हुई कि वे सभी लिहाज़ और पर्दा छोड़कर हमारे नाना के मित्र प्यारेलाल शर्मा से बातचीत करने की इच्छा प्रकट करने लगीं। प्यारेलाल एक स्वतंत्रता-सेनानी थे। मेरी नानी ने प्यारेलाल शर्मा से कहा कि मेरी बेटी के लिए वर आप खोजिएगा। लेकिन वह साहब न हो वरन् आज़ादी का सिपाही हो। उनकी इच्छानुसार मेरे माँ की शादी ऐसे युवक से हुई जिसे आई.सी.एस. की परीक्षा में बैठने से इसलिए रोक दिया गया क्योंकि वह गांधीवादी था। और उन्हीं के कारण मेरी माँ को भी खादी की भारी भरकम साड़ी पहनने का अभ्यास करना पड़ा। अर्थात् मेरे माँ की गांधीवादी विचारधारा वाले घर में हुई। मेरे संग की औरते पाठ में लेखिका ने अपनी माँ के महत्व का वर्णन किया है कि वे शरीर से दुबली पतली ज़़रूर किन्तु खूबसूरत और ठोस निर्णय लेने वाली महिला थीं। इसीलिए मेरे माँ की राय घर के हर कामों में ली जाती थी। लेखिका (मृदुला गर्ग) के अनुसार मेरी माँ में भी आज़ादी का जुनून था लेकिन मैंने अपनी माँ को भारतीय माँ की तरह कभी नहीं पाया वे घर का कोई कार्य नहीं करती थीं, यहाँ तक कि उन्हें अपने ही बच्चों को दुलार देने की फुर्सत भी नहीं थी। हमेशा पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ती रहती थीं मेरी समझ से साहिबी वाले खानदान से ताल्लुक रखने के कारण के अलावा वे ईमानदार और मितभाषी थीं। अर्थात् ईमानदारी के साथ-साथ वह कम बोलने वाली थी। मेरे संग की औरतें पाठ में लेखिका(मृदुला गर्ग) ने यह स्पष्ट किया है कि ईमानदार...

सुभद्रा कुमारी चौहान

अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 2 कथा साहित्य • 3 सम्मान • 4 कृतियाँ • 4.1 कहानी संग्रह • 4.2 कविता संग्रह • 4.2.1 बाल-साहित्य • 4.3 सुभद्रा जी पर केन्द्रित साहित्य • 5 प्रसिद्ध पंक्तियाँ • 6 इन्हें भी देखें • 7 सन्दर्भ • 8 बाहरी कड़ियाँ जीवन परिचय उनका जन्म कथा साहित्य ' वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है। सम्मान • • सेकसरिया पारितोषिक (१९३२) 'बिखरे मोती' (कहानी-संग्रह) के लिए (दूसरी बार) • भारतीय डाकतार विभाग ने • भारतीय तटरक्षक सेना ने कृतियाँ कहानी संग्रह • बिखरे मोती -१९३२ • उन्मादिनी -१९३४ • सीधे-साधे चित्र -१९४७ • सीधे-साधे चित्र -१९८३ (पूर्व प्रकाशित एवं संकलित-असंकलित समस्त कहानियों का संग्रह; हंस प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित।) कविता संग्रह • मुकुल • त्रिधारा • मुकुल तथा अन्य कविताएँ - (बाल कविताओं को छोड़कर पूर्व प्रकाशित एवं संकलित-असंकलित समस्त कविताओं का संग्रह; हंस प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित।) बाल-साहित्य • झाँसी की रानी • कदम्ब का पेड़ • सभा का खेल सुभद्रा जी पर केन्द्रित साहित्य • मिला तेज से तेज (सुधा चौहान लिखित लक्ष्मण सिंह एवं सुभद्रा कुमारी चौहान की संयुक्त जीवनी; हंस प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित।) प्रसिद्ध पंक्तियाँ • यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥ • सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। • मुझे छोड़ कर तुम्हें प्राणधन सुख या शान्ति नहीं होगी यही बात तुम भी कहते थे सोचो, भ्रान्ति नहीं होगी। • आ रही हिमाचल से पुका...

Vanshaj

लोगों की राय • रत्न कैसे बदलता है आपका भाग्य Ganesh Choudhary • वात्स्यायन का कामसूत्र Abhay kumar bajpai B ABHAY • कामसूत्रम भाग 1 Abhay kumar bajpai B ABHAY • देवकांता संतति भाग 7 Bhatat Kankhara • देवकांता संतति भाग 7 Bhatat Kankhara • देवकांता संतति भाग 7 Dev kantt santii8 Bhatat Kankhara • देवकांता संतति भाग 7 Dec kantt santii 8 Bhatat Kankhara • देवकांता संतति भाग 5 Dec kantt santii6 Bhatat Kankhara • श्रीमद् भागवत कथा तर्ज राधेश्याम कथावाचक बरेली Nitesh sastri Nitesh • श्रीमद् भागवत कथा तर्ज राधेश्याम कथावाचक बरेली Nitesh sastri Nitesh • श्रीमद् भागवत कथा तर्ज राधेश्याम कथावाचक बरेली Nitesh sastri Nitesh • श्रीमद् भागवत कथा तर्ज राधेश्याम कथावाचक बरेली Mandra suman Bisalpur Pilibhit Nitesh sastri Nitesh • श्रीमद् भागवत कथा तर्ज राधेश्याम कथावाचक बरेली Nitesh sastri Nitesh • यूरोपा (अंग्रेजी) Maneesh Tiwari • ... और मेघ बरसते रहे This is awesome to read by everyone. Amit Tripathi • प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) prem pachisi rajkumar rajkumar • प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) prem pchisi rajkumar rajkumar • प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) rajkumar rajkumar • आध्यात्मिक प्रश्नोत्तरी BHARAT DABRAL • किन्नर कथा SANOJ P R • खामोश नियति NICE rohit verma • टेढ़े मेढ़े रास्ते पहला परिच्छेद samir papade • भगवती चरण वर्मा की सम्पूर्ण कहानियाँ प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश samir papade • एक नदी दो पाट Nagesh Patrawale • गंगा और देव Reviews shanku bhakat • गजेन्द्रमोक्ष Good Book samir papade • अमेरिकी यायावर मनोरंजक कहानी। पढ़ने में मजा आया Anju yadav • अमेरिकी यायावर how much scholarship ...