मृत्यु के बाद कर्मकांड

  1. भगवत गीता: मृत्यु के बाद क्या होता है
  2. Garuda Purana : मृत्यु के बाद क्यों की जाती है तेरहवीं, जानिए क्या कहता है गरुड़ पुराण
  3. मृत्यु के बाद व्यक्ति के मृत शरीर को घर से बाहर क्यो कर दिया जाता है।
  4. मरने के बाद क्या होता है
  5. World Eye Donation Day 2023: अपनी आंखें दान कर आप भी ला सकते हैं किसी की जिंदगी में उजाला, मृत्यु के बाद कैसे होता है नेत्रदान, जानें कौन कर सकता है और कौन नहीं
  6. गरुड़ पुराण
  7. मृत्यु के बाद क्यों किया जाता है अस्थि विसर्जन, जानें क्या है कारण
  8. मृत्यु के बाद का कर्मकांड और गरुड़ पुराण भी पहली बार ऑनलाइन, वीडियो कॉल से पूरी हो रही सारी विधि
  9. मृत्यु के बाद के कर्मकांड


Download: मृत्यु के बाद कर्मकांड
Size: 69.39 MB

भगवत गीता: मृत्यु के बाद क्या होता है

भगवत गीता-मृत्यु के बाद क्या होता है | भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता का ज्ञान दे रहे हैं। अर्जुन पूछता है – हे त्रिलोकीनाथ! आप आवागमन अर्थात पुनर्जन्म के बारे में कह रहे हैं, इस सम्बन्ध में मेरा ज्ञान पूर्ण नहीं है। यदि आप पुनर्जन्म की व्याख्या करें तो कृपा होगी। कृष्ण बताते हैं – इस सृष्टि के प्राणियों को मृत्यु के पश्चात् अपने-अपने कर्मों के अनुसार पहले तो उन्हें परलोक में जाकर कुछ समय बिताना होता है जहाँ वो पिछले जन्मों में किये हुए पुण्यकर्मों अथवा पापकर्म का फल भोगते हैं। फिर जब उनके पुण्यों और पापों के अनुसार सुख दुःख को भोगने का हिसाब खत्म हो जाता है तब वो इस मृत्युलोक में फिर से जन्म लेते हैं। इस मृत्युलोकको कर्मलोक भी कहा जाता है। क्योंकि इसी लोक में प्राणी को वो कर्म करने का अधिकार है जिससे उसकी प्रारब्ध बनती है। अर्जुन पूछते हैं– हे केशव! हमारी धरती को मृत्युलोक क्यों कहा जाता है? कृष्ण बताते हैं – क्योंकि हे अर्जुन, केवल इसी धरती पर ही प्राणी जन्म और मृत्यु की पीड़ा सहते हैं। अर्जुन पूछता है – अर्थात दूसरे लोकों में प्राणी का जन्म और मृत्यु नहीं होती? कृष्ण बताते हैं – नहीं अर्जुन! उन लोकों में न प्राणी का जन्म होता है और न मृत्यु। क्योंकि मैंने तुम्हें पहले ही बताया था कि मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा की नहीं। आत्मा तो न जन्म लेती है और न मरती है। अर्जुन फिर पूछते हैं – तुमने तो ये भी कहा था कि आत्मा को सुख-दुःख भी नहीं होते। परन्तु अब ये कह रहे हो कि मृत्यु के पश्चात आत्मा को सुख भोगने के लिए स्वर्ग आदि में अथवा दुःख भोगने के लिए नरक आदि में जाना पड़ता है। तुम्हारा मतलब ये है कि आत्मा को केवल पृथ्वी पर ही सुख दुःख नहीं होते, स्वर्ग अथवा नरक में आत्मा क...

Garuda Purana : मृत्यु के बाद क्यों की जाती है तेरहवीं, जानिए क्या कहता है गरुड़ पुराण

Garuda Purana : मृत्यु के बाद क्यों की जाती है तेरहवीं, जानिए क्या कहता है गरुड़ पुराण गरुड़ पुराण में बताया गया है कि तेरहवीं तक आत्मा अपनों के बीच ही रहती है. इसके बाद उसकी यात्रा दूसरे लोक के लिए शुरू होती है और उसके कर्मों का हिसाब किया जाता है. जानिए तेरहवीं को लेकर गरुड़ पुराण में क्या कहा गया है. हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार किया जाता है, इसके बाद 13 दिनों तक मृतक के निमित्त पिंडदान किए जाते हैं और आखिरी में 13वें दिन उसकी तेहरवीं होती है. गरुड़ पुराण में बताया गया है कि तेरहवीं तक आत्मा अपनों के बीच ही रहती है. इसके बाद उसकी यात्रा दूसरे लोक के लिए शुरू होती है और उसके कर्मों का हिसाब किया जाता है. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर तेरहवीं क्यों की जाती है और इससे उस मृत व्यक्ति आत्मा को क्या लाभ मिलता है ? अगर आपको इसकी जानकारी नहीं है, तो यहां जानिए इस बारे में गरुड़ पुराण में क्या बताया गया है. गरुड़ पुराण के मुताबिक जब किसी व्यक्ति के प्राण निकलते हैं तो यमदूत उसकी आत्मा को यमलोक ले जाते हैं और वहां उसे वो सब दिखाया जाता है, जो उसने अपने जीवन में किया है. इस दौरान करीब 24 घंटे तक आत्मा यमलोक में ही रहती है. इसके बाद यमदूत उसे उसके परिजनों के बीच छोड़ जाते हैं. इसके बाद मृतक व्यक्ति की आत्मा अपने परिवार वालों के आसपास ही भटकती रहती है क्योंकि उसमें इतना बल नहीं होता कि मृत्यु लोक से यमलोक की यात्रा तय कर सकें. इस बीच परिजन मृतक की आत्मा के लिए नियमित रूप से पिंडदान करते हैं. गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद 10 दिनों तक जो पिंडदान किए जाते हैं, उससे मृत आत्मा के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है. 11वें और 12वें दिन के पिंडदान से शरीर पर मांस और ...

मृत्यु के बाद व्यक्ति के मृत शरीर को घर से बाहर क्यो कर दिया जाता है।

• • • • • • • मृत्यु- दोस्तो जैसा कि आप सभी को पता है कि जब बच्चा इस धरती पर जन्म लेता है तो उसी समय जन्म, मरण, यश, अपयश, लाभ, हानि यह सबकुछ उस विधाता के द्वारा निर्धारित कर दिया जाता है। शरीर मे मौजूद आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है क्योंकि हमारी यह आत्मा उस परमात्मा का ही अंश है। जब तब हमारे शरीर मे यह आत्मा है तब तक हमारे इस शरीर का मोल है जब हमारे शरीर से आत्मा निकल जाती है अर्थात जब व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो शरीर को अपवित्र माना जाता है और उसे तुरंत घर के बाहर कर दिया जाता है। आज के इस पोस्ट मे हम आपको विस्तार से बतायेगें कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसे तुरंत घर से बाहर क्यो कर दिया जाता है। मृत्यु के बाद व्यक्ति के मृत शरीर को घर से बाहर क्यो कर दिया जाता है- दोस्तो हमारे हिंदू धर्म शास्त्र मे पवित्र ग्रंथ गुरूण पुराण मे सबकुछ विस्तार पूर्वक लिखा गया है कि मनुष्य के मृत्यु के बाद उसे घर से बाहर क्यो करना चाहिये, उसका कर्मकांड करना क्यो आवश्यक है, तेरही करना क्यो आवश्यक है। मनुष्य के मृत्यु के पश्चात किस कर्म की कौन सी सजा निर्धारित है यह सबकुछ गरूण पुराण मे लिखा गया है। दोस्तो ऐसा कहा जाता है कि मानो तो देव नही तो पत्थर अर्थात विश्वास ही सबकुछ होता है यदि आपको ईश्वर मे आस्था है और आप उस परमेश्वर को मानते है तो उसके दर्शन आपको एक बेजान पत्थर मे भी हो जायेंगे। उसी तरह से यदि आप हमारे हिंदू धर्म शास्त्र मे मौजूद पुराणों पर विश्वास करते है तो आपको उसमे लिखी हुई बातो पर विश्वास होगा वरना नही होगा। दोस्तो हमारे हिंदू धर्म शास्त्र गरूण पुराण के अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसका शरीर अपवित्र हो जाता है जब तक उसके शरीर मे प्राण थे तभी तक उसके...

मरने के बाद क्या होता है

यदि हम मृत्यु के बारे में बात करते हैं, तो हमें बहुत समय लग जाएगा यह जानने के लिए कि मृत्यु क्या है। उस समय क्या होता है, यह कहना आसान नहीं है। तो इसका एक उत्तर आसान और निर्विवाद है: मृत्यु जीवन के विपरीत है। अधिक सटीक रूप से, यह जीवन का अंत है। इसलिए कोई चीज मर जाती है जब वह जीवित रहना बंद कर देती है, वही मृत्यु है। इसके दो महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं। पहला, जीवन और मृत्यु अनन्य हैं: कुछ भी एक साथ जीवित और मृत दोनों नहीं हो सकता। दूसरा, जीवन और मृत्यु संपूर्ण नहीं हैं: कुछ चीजें न तो जीवित हैं और न ही मृत। मृत्यु केवल जीवन की अनुपस्थिति नहीं है, और मृत होना निर्जीव होने के समान नहीं है। जीवन और मृत्यु हरे और लाल की तरह हैं: तुम एक साथ दोनों नहीं हो सकते। तो हम जानते हैं कि मृत्यु जीवन का अंत है। यह मृत्यु को एक नकारात्मक अवधारणा बनाता है। मृत्यु क्या है, यह जानने के लिए हमें यह जानना होगा कि इसका अंत क्या है। हमें यह जानने की जरूरत है कि जिंदा रहना क्या है। जीवन और मृत्यु विपरीत हैं, लेकिन जीवन अधिक मौलिक अवधारणा है: मृत्यु को जीवन के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है, लेकिन इसके विपरीत नहीं। फिर जीवन क्या है? आपके और मेरे बारे में ऐसा क्या है जो हमें जीवित करता है? पत्थर या लाश के बारे में ऐसा क्या है जो इसे जीवित नहीं बनाता है? • • • • • • • • मृत्यु की जैविक अवधारणा एक आकर्षक उत्तर यह है कि जीवन एक प्रकार की शारीरिक प्रक्रिया या गतिविधि है। जो चीज सजीवों को निर्जीवों से अलग करती है, वह यह है कि वे नए पदार्थ हैं, उस पदार्थ पर जीव की एक जटिल रूप विशेषता थोपते हैं, और फिर उसे कम क्रमबद्ध रूप में बाहर निकाल देते हैं। ये गतिविधियाँ काफी हद तक समन्वित हैं। यह समन्वय पूरे जीव के ...

World Eye Donation Day 2023: अपनी आंखें दान कर आप भी ला सकते हैं किसी की जिंदगी में उजाला, मृत्यु के बाद कैसे होता है नेत्रदान, जानें कौन कर सकता है और कौन नहीं

हिन्दू धर्मग्रंथों में नेत्रदान को महादान की संज्ञा दी गई है. हर साल 10 जून को विश्व नेत्रदान दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों में नेत्रदान के प्रति जागरूकता को फैलाना और लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने की शपथ लेने के लिए प्रेरित करना है. सिर्फ ट्रांसप्लांट टीश्यू ही लिए जाते हैं नेत्रदान का मतलब है मृत्यु के बाद किसी को आंखों की रोशनी देना. यह एक तरह से आंखों का दान होता है, जिससे मृत्यु के बाद किसी दूसरे नेत्रहीन व्यक्ति को देखने में मदद मिलती है. जैसा लोग मानते हैं कि यह आंखों का ट्रांसप्लांट होता है, लेकिन ऐसा नहीं होता है. यह एक कोर्निया का दान होता है. इसमें पूरी आंख को नहीं निकाला जाता है यानी आंख की बॉल को नहीं निकाला जाता है, इसमें सिर्फ ट्रांसप्लांट टीश्यू ही लिए जाते हैं. यह किसी भी डोनर की मृत्यु के बाद ही होता है. ये कर सकते हैं नेत्रदान अधिकतर मामलों में हर कोई नेत्रदान कर सकता है. इसमें ब्लड ग्रुप, आंखों के रंग, आई साइट, साइज, उम्र, लिंग आदि से कोई फर्क नहीं पड़ता है. डोनर की उम्र, लिंग, ब्लड ग्रुप को कॉर्नियल टीश्यू लेने वाले व्यक्ति से मैच करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है. जिन रोगियों ने मोतियाबिंद, कालापानी या अन्य आंखों का ऑपरेशन करवाया है, वे भी नेत्रदान कर सकते हैं. नजर का चश्मा पहनने वाले, मधुमेह, अस्थमा, उच्च रक्तचाप और अन्य शारीरिक विकारों जैसे सांस फूलना, हृदय रोग, क्षय रोग आदि के रोगी भी नेत्रदान कर सकते हैं. कौन नहीं कर सकता नेत्रदान कई सारे गंभीर रोगों से पीड़ित व्यक्ति नेत्रदान नहीं कर सकते हैं. जैसे एड्स, हैपेटैटिस, पीलिया, ब्लड केन्सर, रेबीज (कुत्ते का काटा), सेप्टीसिमिया, गैंगरीन, ब्रेन टयूमर, आंख के आगे की क...

गरुड़ पुराण

हर इंसान की जिंदगी में कई तरह समय आते हैं. लेकिन ये अटल सत्य है कि हर किसी का एक दिन मरना तय है. अब सवाल यहां ये है कि आखिर इंसान की मृत्यु के बाद क्या होता है? इस बात को लेकर हर किसी में अलग-अलग धारणाएं बनी हुई है लेकिन मृत्यु के बाद क्या होता है इसकी सच्चाई बहुत पहले हीं बताई जा चुकी है, जिससे कि हर कोई इस सच्चाई को जान सके. गरुड़ पुराण में इंसान की मृत्यु के बाद आत्मा के बारे में सारी बातें विस्तृत रूप से बताई गई है. सबसे पहले तो हम ये जान लें कि आखिर गरुड़ पुराण है क्या ? शायद आपको इस बात की जानकारी हो कि गरुड़ पुराण के अधिष्ठाता स्वयं भगवान विष्णु जी हैं. और इसी पुराण में मृत्यु के बाद के बारे में सारी बातें बताई गई है. जब किसी भी जीव-जंतु की मृत्यु होती है तो उसके बाद आत्मा का क्या होता है और नर्क के बारे में सारी बातें विस्तृत रूप से बताई गई है. गरुड़ पुराण दो भागों में है. पहले भाग में 19,000 श्लोक थे. लेकिन अब सिर्फ 7,000 श्लोक हीं बचे हुए हैं जिसमें भगवान श्री विष्णु जी की भक्ति और उनके रूपों का वर्णन विस्तृत रुप से किया गया है. और प्रेत कल्प और कई तरह के नर्क को विस्तृत रुप से बताया गया है. साथ हीं मुक्ति के मार्ग के बारे में और मुक्ति कैसे पाई जाए, पिंड दान और श्राद्ध किस तरह से किया जाना चाहिए, इस बारे में पूरी जानकारी गरुड़ पुराण में दी गई है. गरुण पुराण में बताया गया है कि जिस समय किसी की मृत्यु होती है उस समय यमलोक से दो यमदूत आते हैं और मरने वाले के शरीर से आत्मा को निकाल कर उसके गले में पाश बांधकर उस आत्मा को अपने साथ यमलोक लेकर जाते हैं. आत्मा को यमलोक ले जाने के बाद पापी को काफी यातनाएं झेलनी पड़ती है. इसके बाद यमराज के कहे अनुसार उसे आकाश मार्ग से घर प...

मृत्यु के बाद क्यों किया जाता है अस्थि विसर्जन, जानें क्या है कारण

मृत्यु के बाद क्यों किया जाता है अस्थि विसर्जन, जानें क्या है कारण मृत्यु के बाद क्यों किया जाता है अस्थि विसर्जन, जानें क्या है कारण By March 9, 2018 04:27 PM 2018-03-09T16:27:43+5:30 2018-03-09T16:27:43+5:30 हाल ही में बॉलीवुड अभिनेत्री श्रीदेवी का निधन हो गया था जिनकी अस्थियां हरिद्वार में गंगा नदी में बहाई गई हैं। धरती पर जिस किसी चीज का जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। इसलिए धरती पर मृत्यु केवल एकमात्र सत्य है, बाकी सब मिथ्य। शरीर में जब तक सांस है तब तक हमारा वजूद है, जिस दिन शरीर से सांस का आवागमन थम जाता है, शरीर से आत्मा निकल जाती है और हमारा अस्तित्व खत्म हो जाता है। हिन्दू पुराणों में भी मनुष्य के शरीर की महत्व नाम मात्र बताया गया है, यदि कुछ महत्वपूर्ण है तो वह है आत्मा। हिंदू धर्म में मृत्यु पश्चात दाह संस्कार किया जाता है। मृत्यु से लेकर डाह संस्कार और फिर उसके बाद भी कई सारे रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। मृत शरीर को पूरे पारंपरिक ढंग से विदा किया जाता है। हिंदू धर्म में अक्सर लोगों का दाह संस्कार किसी पवित्र नदी के किनारे या घाट पर करते हैं। ताकि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके। हिंदू पंरपरा के मुताबिक इंसान की मृत्यु के बाद कई दिनों तक कर्मकांड का सिलसिला चलता रहता है। परंपरा के मुताबिक हर दिन कोई न कोई कर्मकांड आयोजित किए जाते हैं। ऐसा इसलिए ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके। इंसान की मृत्यु के बाद ऐसा ही एक कर्मकांड अस्थियों का विसर्जन करने का है। जिसे गंगा नदी या किसी भी अन्य पवित्र नदी में किया जाता है। क्या होती है अस्थियां? मृत्यु के बाद जब पार्थिव शरीर को जलाया जाता है, तो जलने के बाद उसके शरीर की बची हुई राख अस्थियां कहलाती है। जिसे पूरे विधि...

मृत्यु के बाद का कर्मकांड और गरुड़ पुराण भी पहली बार ऑनलाइन, वीडियो कॉल से पूरी हो रही सारी विधि

कोराेना ने सबकुछ बदल दिया है। पहली बार दिवंगतों की आत्मशांति, मुक्ति और मोक्ष के लिए होने वाला कर्मकांड व गरुड़ पुराण भी ऑनलाइन किया जा रहा है। इसके दो कारण हैं, पहला संक्रमण का डर और दूसरा लॉकडाउन। उज्जैन में शिप्रा तट पर हर तरह के पूजन-पाठ पर पाबंदी है। ऐसे में देशभर से लोग कॉल कर सारी विधियां वीडियो कॉल पर करवा रहे हैं। इन लोगों के सवा लाख महामृत्युंजय जाप की पूर्णाहुति होने पर ऑनलाइन दक्षिणा ली जा रही है। पं. अमर त्रिवेदी डब्बावाला ने बताया कि अप्रैल के पहले जहां प्रतिदिन एक या कभी एक भी फोन नहीं आते थे, अप्रैल माह से अब तक रोज 5 से 7 फोन कर्मकांड व महामृत्युंजय जाप के लिए आ रहे हैं। मार्च में जहां 19 फोन आए तो अप्रैल में लगभग 138 फोन आए। इस तरह अप्रैल में करीब सात गुना काम बढ़ गया है। ऑक्सीजन व वेंटिलेटर पर होने पर कई परिजन मरीज की पत्रिका वाट्सएप व ई-मेल कर स्वास्थ्य की जानकारी भी ले रहे हैं। नासिक के साथ नर्मदा घाट पर भी करवा रहे कर्मकांड पं. मीतेश पांडे ने बताया कि उज्जैन, नासिक के साथ ही नर्मदा के घाट पर भी कर्मकांड करवाया जा रहा है। उज्जैन से कसरावद पहुंचा तो यहां रोज ही 10-20 व्यक्ति कर्मकांड का पूछने आ रहे थे। उन्हें स्थानीय पंडितों से करवाने की सलाह पर उन्होंने कहा कि यहां के पंडित सभी व्यस्त चल रहे हैं। महामृत्युंजय के लिए भी पुणे, दिल्ली, मुंबई, गुजरात सहित इंदौर-भोपाल से लगभग रोज ही फोन आ रहे हैं। इसमें 4-5 गुना बढ़ोतरी हुई है। घर में पाठ; दक्षिणा भी ऑनलाइन ले रहे फिलहाल मंदिरों में पूजन, जाप आदि बंद हैं। इसके लिए कई ब्राह्मणों से उनके घर या उनके आसपास के छोटे मंदिरों में महामृत्युंजय जाप करवाया जा रहा है। पं. सुधीर पंड्या के मुताबिक मेरे सान्निध्य में जाप कर...

मृत्यु के बाद के कर्मकांड

जीवन का अंतिम संस्कार है मृत्यु । जतास्य हि ध्रुवो मृत्यु: जन्म मृत्यु ध्रुवस्च। जन्म लेने वाले की मृत्यु सुनिश्चित है चाहे राजा हो या रंक। मृतक के शरीर की अंतिम क्रिया विभिन्न संप्रदायों, मजहबों में अलग अलग ढंग से की जाती है जिनका मुख्य संबंध सामाजिक रीति रिवाजों से अधिक है। कोई जलाए या दफनाए या और रीति अपनाए वह केवल मृतक शरीर की क्रिया है न कि उसको छोड़ने वाले जीव की। जो अनीश्वरवादी धर्म व दर्शन हैं वे मृत्यु को सत्य मान कर किसी आत्मा की कल्पना नहीं करते हैं। मृत्यु के पश्चात मृतक के परिवार को शांति और सद्भाव प्रदान कर कर्मकांड की इतिश्री कर लेते हैं। जबकि ईश्वरवादी जैसे हिन्दू , ईसाई मुस्लिम आदि कुछ और कर्मकांड करते हैं। हिन्दुओं और सनातनियों में कर्मकांडो की लंबी श्रृंखला है। मृतक को घर से ले जाने, अर्थी सजाने, चिता लगाने और उसके पश्चात मृतक की राख या पुष्प एकत्रित करने, नदियों में प्रवाहित करने तक ही नहीं अपितु दिन और तेरहवीं करने की लंबी परंपरा है। यहां तक कि अनेकों परिवार एक वर्ष बाद वर्षी भी करते हैं। ये परंपराएं धार्मिक कम सामाजिक ज्यादा हैं और इनमें समाज ने स्थानीय स्तर पर भी और अलग अलग जातिगत स्तर पर भी परिवर्तन किए हैं। यहां मृत्यु के समय दो पक्ष हैं एक मृतक का परिवार और बंधु बांधव तथा दूसरा पक्ष मृत व्यक्ति। मृत्यु के पश्चात मृतक के परिवार को सांत्वना देना, ढांढस देना और सहयोग देना मानवीय है और सामाजिक भी है। मृतक के परिवार को हुई क्षति को कम करने को सारे उपाय जो मृतक के परिवार पर ही बोझ न बन जाएं , जरूर करें। किए भी जाने चाहिए लेकिन मृत्यु भोज तथा श्राद्ध के नाम पर दान आदि की बात उचित नहीं ,इससे हम मृतक के परिवार को कष्ट ही पहुंचाते हैं। शोक सभा कर के विराम द...