मानवीकरण अलंकार की परिभाषा

  1. अलंकार की परिभाषा, प्रकार तथा उदाहरण
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अलंकार की परिभाषा, प्रकार तथा उदाहरण

• अलंकार का अर्थ होता है – आभूषण या श्रंगार चांदी के आभूषण अर्थात सौंदर्यवर्धक गुण अलंकार कहलाते हैं | अलंकार स्वयं सौंदर्य नहीं होते, वे काव्य के सौंदर्य को बढ़ाने वाले सहायक तत्व होते हैं | अलंकारों के योग से काव्य मनोहारी बन जाता है | अलंकारों के भेद • काव्य में शब्द और अर्थ दोनों की बराबर सत्ता रहती है | शब्द प्रयोग के कारण काव्य सौंदर्य उत्पन्न होता है, कहीं अर्थ चमत्कार के कारण | • जहां शब्द के कारण चमत्कार उत्पन्न होता है वहां शब्दालंकार होते हैं इसके विपरीत जहां अर्थ के कारण काव्य में आकर्षण आता है वहां अर्थालंकार होते हैं | शब्दालंकार • अनुप्रास अलंकार जहां व्यंजनों की आवृत्ति के कारण काव्य में चमत्कार होता है वहां अनुप्रास अलंकार होता है | जैसे – काल कानन कुंडल मोरपखा, उर पे बनमाल विराजति है | • क व्यंजन की आवृत्ति | • विमल वाणी ने वीणा ली | (‘व’ की आवृत्ति) • सुरभित सुंदर सुखद सुमन तुझ पर खिलते हैं | (‘स’ की आवृत्ति) • मधुर-मधुर मुस्कान मनोहर मनोज देश का उजियाला | (‘म’ की आवृत्ति) 2. यमक अलंकार जहां यह शब्द बार-बार आए किंतु उसका अर्थ बदल जाए वहां पर यमक अलंकार होता है | जैसे – • काली घटा का घमंड घटा | (घटा – बादल, घटा – कम हुआ) • तौ पर वारौ उरबसी, सुनि राधिके सुजान | • तू मोहन के उरबसी, छवै उर्वशी समान | (उर्वशी – हृदय में बसी, उर्वशी – एक अप्सरा) • जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं | (तारे – उद्धार किया, तारे – सितारे) • कहे कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराई लीनी | (बेनी – कवि का नाम, बैनी – चोटी) 3. श्लेष अलंकार जहां एक शब्द के एक से अधिक अर्थ निकले, वहां श्लेष अलंकार होता है | जैसे – • जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोई | बारे उजियारों करें, बढ़े अंधेरों होई ...

अलंकार

अलंकार - अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण, alankar - alankar ki paribhasha, alankar ke udaharan, alankar ke bhed, alankar in hindi अलंकार की परिभाषा :- काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं- जो इस प्रकार है:-- • शब्दालंकार, • अर्थालंकार, • उभयालंकार और • पाश्चात्य अलंकार। शब्दालंकार:- काव्य में शब्दों में होने वाले चमत्कार को शब्दालंकार कहते हैं। शब्दालंकार की मुख्य रुप से सात संख्या होती हैं, जो निम्न प्रकार हैं-अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश, पुनरुक्तिवदाभास और वीप्सा आदि। 1. अनुप्रास अलंकार :-- एक या एक से अनेक वर्गों की पास-पास तथा क्रमानुसार आवृत्ति (बार बार) को‘अनुप्रास अलंकार’ कहते हैं। इसके पाँच भेद हैं- जो इस प्रकार हैं;-- (i) छेकानुप्रास उसे कहते है| जहाँ एक या एक से अनेक वर्णों की एक ही क्रम में एक बार आवृत्ति हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है; जैसे- “इस करुणा कलित हृदय में, अब विकल रागिनी बजती” यहाँ करुणा कलित में छेकानुप्रास है। (ii) वृत्यानुप्रास काव्य में पाँच वृत्तियाँ बताई जाती हैं-मधुरा, ललिता, प्रौढ़ा, परुषा और भद्रा। कुछ विद्वानों के द्वारा तीन वृत्तियों को ही मान्यता दी है-उपनागरिका, परुषा और कोमला। इन वृत्तियों के अनुकूल वर्ण साम्य को वृत्यानुप्रास बोला जाता हैं; जैसे- ‘कंकन, किंकिनि, नूपुर, धुनि, सुनि’ यहाँ पर आपने देखा कि‘न’ की आवृत्ति पाँच बार हुई है और कोमला या मधुरा वृत्ति का पोषण हुआ है। इसीलिए यहाँ वृत्यानुप्रास है। (iii) श्रुत्यनुप्रास जहाँ पर एक ही उच्चारण स्थान से बोले जाने वाले वर्णों की आवृत्ति बार बार होती है, वहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार होता है; जैसे- तुलसीदास सीदति निसिदिन देखत तुम्...