मार्कंडेय महादेव की कहानी

  1. मार्कंडेय महादेव मंदिर जहां से यम को लौटना पड़ा था उलटे पांव, सावन में पूजा से मिलता है लंबी उम्र का वरदान
  2. Markandey Mahadev Varanasi
  3. मार्कण्डेय ऋषि की कहानी
  4. Markandey Mahadev Varanasi
  5. मार्कंडेय महादेव मंदिर जहां से यम को लौटना पड़ा था उलटे पांव, सावन में पूजा से मिलता है लंबी उम्र का वरदान
  6. मार्कण्डेय ऋषि की कहानी


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मार्कंडेय महादेव मंदिर जहां से यम को लौटना पड़ा था उलटे पांव, सावन में पूजा से मिलता है लंबी उम्र का वरदान

सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा अत्यंत शुभ और शीघ्र फल प्रदान करने वाली मानी गई है. यही कारण है कि इस पावन श्रावण मास में देश के शिवालय में शिवभक्तों की भारी भीड़ दर्शन और पूजन के लिए पहुंचती है. शिव के प्रमुख पावन धाम में से एक है मार्कंडेय महोदव मंदिर, जो कि बाबा विश्वनाथ की नगरी से महज 30 किमी की दूरी पर कैथी में स्थित है. आइए भगवान शिव के इस पावन और चमत्कारी धाम में श्रावण मास में की जाने वाली पूजा का फल और इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं. मार्कंडेय महादेव की पौराणिक कथा मान्यता है कि एक बार नि:संतान मृकण्ड ऋषि तथा उनकी पत्नि मरन्धती को किसी ने व्यंग्य करके अपमानित किया कि बगैर पुत्र के उनका वंश नहीं बढ़ पाएगा तो उन्होंने संतान की कामना से पहले ब्रह्मा जी की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने बताया कि उनके भाग्य को सिर्फ भगवान शिव बदल सकते हैं, फिर उन्होंने महादेव की कठिन तपस्या की और उनसे पुत्र प्राप्ति का वरदान पाया, लेकिन भगवान शिव ने साथ में यह भी कहा कि उनका पुत्र सिर्फ 12 साल तक ही जीवित रहेगा. इसके बाद उनके यहां मार्कंडेय नाम से संतान हुई. कुछ साल बीतने के बाद जब मार्कंडेय को अपनी अल्पायु के बारे में पता चला तो उसने उन्हीं महादेव के लिए तप करना शुरु किया जिनके आशीर्वाद से उनका जन्म हुआ था. फिर भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दीर्घायु प्रदान की और यमराज को 12 साल की उम्र पूरी होने पर बगैर उनके प्राण लिए ही लौट जाना पड़ा. पूजा से पूरी हेाती है संतान सुख की कामना मां गंगा और गोमती के तट पर स्थित मार्कंडेय महादेव मंदिर के बारे में मान्यता है कि कभी इसी स्थान पर राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति के लिए श्रृंगी ऋषि ने पुत...

Markandey Mahadev Varanasi

मार्कंडेय महादेव मंदिर भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर है जोकि उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 30km दूर कैथी गाँव में स्थित है, वाराणसी से ग़ाज़ीपुर हाई वे पर कैथी एक छोटा सा गाँव है. यह मंदिर पूरी तरह शिवजी को समर्पित है, मार्कंडेय महादेव धाम पुर्वांचल के प्रमुख्य देवताओं में से एक है, और यह धाम द्वादश ज्योतिर्लिंग के बराबर महत्व रखता है,जिसका उल्लेख मार्कंडेय पुराण में हुआ है. यहाँ लोग जगह जगह से अपनी मन्नतें लेकर आते हैं. इस मार्कंडेय महादेव मंदिर को महामृत्युंजय मंदिर से भी जानते हैं. इसकी महत्ता और यहाँ श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए मार्कंडेय महादेव मंदिर के विकास के कार्य की मोदी सरकार द्वारा योजना बनाई गई है, इस परियोजना के अंतर्गत मंदिर से लेकर गोमती और गंगा के संगम तक एक नया घाट बनाया गया है, और यातायात में आसानी के लिए सड़कों का चौडीकरण भी करा गया है, और इस मंदिर को स्वर्णिकरण किया गया है, जिससे इसका शिखर और मुख्य द्वार पर 18 गेज के 2000 किलो तांबे पर गोल्ड प्लेटेड किया गया है. अब मार्कंडेय महादेव मंदिर भारत का तीसरा स्वर्ण शिवजी का मंदिर बन गया है. इस मंदिर के पीछे ऐसी मान्यता है कि एक साधु मरीकंदु और उसकी मरुद्वती शिवजी के भक्त थे उनकी खूब सेवा और उपासना किया करते थे परन्तु उनकी कोई संतान नहीं थी, एक दिन उनकी भक्ति से खुश होकर शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने साधु और उसकी पत्नी को संतान प्राप्ति का वरदान दिया परंतु शर्त रखी की अगर वह साधारण संतान चाहते है तो उसकी दीर्घ आयु होगी और असाधारण संतान चाहते है तो उसकी आयु कम होगी. दंपति ने असाधारण संतान की कामना करी, दंपति के यहाँ संतान हुई जिसका नाम मार्कंडेय रखा, और यह भी शिवजी का भक्त था महामृत्युंजय मंत्र में इसे महारत थी, ...

मार्कण्डेय ऋषि की कहानी

सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है आप लोगों ने कई ऋषियों और महर्षियों के नाम सुने होंगे। हमें उनके जीवन से एक प्रेरणा मिलती है। उनका जीवन ऐसे पड़ाव से गुजरता है जिसमें उन्हें इतना संघर्ष करना पड़ता है कि वो एक महान व्यक्तित्व बन जाते हैं।ऐसे ही एक महर्षि थे मार्कण्डेय ऋषि। मार्कण्डेय ऋषि सोलह वर्ष कि आयु भाग्य में लेकर जन्मे थे। लेकिन अपनी भक्ति और श्रद्धा के बल पर वे चिरंजीवी हो गए। आइये पढ़ते हैं मार्कण्डेय ऋषि की कहानी :- मार्कण्डेय ऋषि की कहानी मृगश्रृंग नाम के एक ब्रह्मचारी थे। उनका विवाह सुवृता के संग संपन्न हुआ। मृगश्रृंग और सुवृता के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। उनके पुत्र हमेशा अपना शरीर खुजलाते रहते थे। इसलिए मृगश्रृंग ने उनका नाम मृकण्डु रख दिया। मृकण्डु में समस्त श्रेष्ठ गुण थे। उनके शरीर में तेज का वास था। पिता के पास रह कर उन्होंने मार्कंडेय ऋषि का जन्म मृकण्डु जी का वैवाहिक जीवन शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत हो रहा था। लेकिन बहुत समय तक उनके घर किसी संतान ने जन्म ना लिया। इस कारण उन्होंने और उनकी पत्नी ने कठोर तप किया। उन्होंने तप कर के भगवन शिव को प्रसन्न कर लिया। भगवान् शिव ने मुनि से कहा कि, “हे मुनि, हम तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हैं मांगो क्या वरदान मांगते हो”? तब मुनि मृकण्डु ने कहा, “प्रभु यदि आप सच में मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे संतान के रूप में एक पुत्र प्रदान करें”। भगवन शंकर ने तब मुनि मृकण्डु से कहा की, “हे मुनि, तुम्हें दीर्घ आयु वाला गुणरहित पुत्र चाहिए। या सोलह वर्ष की आयु वाला गुणवान पुत्र चाहते हो?” इस पर मुनि बोले, “भगवन मुझे ऐसा पुत्र चाहिए जो गुणों की...

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मार्कंडेय महादेव मंदिर भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर है जोकि उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 30km दूर कैथी गाँव में स्थित है, वाराणसी से ग़ाज़ीपुर हाई वे पर कैथी एक छोटा सा गाँव है. यह मंदिर पूरी तरह शिवजी को समर्पित है, मार्कंडेय महादेव धाम पुर्वांचल के प्रमुख्य देवताओं में से एक है, और यह धाम द्वादश ज्योतिर्लिंग के बराबर महत्व रखता है,जिसका उल्लेख मार्कंडेय पुराण में हुआ है. यहाँ लोग जगह जगह से अपनी मन्नतें लेकर आते हैं. इस मार्कंडेय महादेव मंदिर को महामृत्युंजय मंदिर से भी जानते हैं. इसकी महत्ता और यहाँ श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए मार्कंडेय महादेव मंदिर के विकास के कार्य की मोदी सरकार द्वारा योजना बनाई गई है, इस परियोजना के अंतर्गत मंदिर से लेकर गोमती और गंगा के संगम तक एक नया घाट बनाया गया है, और यातायात में आसानी के लिए सड़कों का चौडीकरण भी करा गया है, और इस मंदिर को स्वर्णिकरण किया गया है, जिससे इसका शिखर और मुख्य द्वार पर 18 गेज के 2000 किलो तांबे पर गोल्ड प्लेटेड किया गया है. अब मार्कंडेय महादेव मंदिर भारत का तीसरा स्वर्ण शिवजी का मंदिर बन गया है. इस मंदिर के पीछे ऐसी मान्यता है कि एक साधु मरीकंदु और उसकी मरुद्वती शिवजी के भक्त थे उनकी खूब सेवा और उपासना किया करते थे परन्तु उनकी कोई संतान नहीं थी, एक दिन उनकी भक्ति से खुश होकर शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने साधु और उसकी पत्नी को संतान प्राप्ति का वरदान दिया परंतु शर्त रखी की अगर वह साधारण संतान चाहते है तो उसकी दीर्घ आयु होगी और असाधारण संतान चाहते है तो उसकी आयु कम होगी. दंपति ने असाधारण संतान की कामना करी, दंपति के यहाँ संतान हुई जिसका नाम मार्कंडेय रखा, और यह भी शिवजी का भक्त था महामृत्युंजय मंत्र में इसे महारत थी, ...

मार्कंडेय महादेव मंदिर जहां से यम को लौटना पड़ा था उलटे पांव, सावन में पूजा से मिलता है लंबी उम्र का वरदान

सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा अत्यंत शुभ और शीघ्र फल प्रदान करने वाली मानी गई है. यही कारण है कि इस पावन श्रावण मास में देश के शिवालय में शिवभक्तों की भारी भीड़ दर्शन और पूजन के लिए पहुंचती है. शिव के प्रमुख पावन धाम में से एक है मार्कंडेय महोदव मंदिर, जो कि बाबा विश्वनाथ की नगरी से महज 30 किमी की दूरी पर कैथी में स्थित है. आइए भगवान शिव के इस पावन और चमत्कारी धाम में श्रावण मास में की जाने वाली पूजा का फल और इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं. मार्कंडेय महादेव की पौराणिक कथा मान्यता है कि एक बार नि:संतान मृकण्ड ऋषि तथा उनकी पत्नि मरन्धती को किसी ने व्यंग्य करके अपमानित किया कि बगैर पुत्र के उनका वंश नहीं बढ़ पाएगा तो उन्होंने संतान की कामना से पहले ब्रह्मा जी की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने बताया कि उनके भाग्य को सिर्फ भगवान शिव बदल सकते हैं, फिर उन्होंने महादेव की कठिन तपस्या की और उनसे पुत्र प्राप्ति का वरदान पाया, लेकिन भगवान शिव ने साथ में यह भी कहा कि उनका पुत्र सिर्फ 12 साल तक ही जीवित रहेगा. इसके बाद उनके यहां मार्कंडेय नाम से संतान हुई. कुछ साल बीतने के बाद जब मार्कंडेय को अपनी अल्पायु के बारे में पता चला तो उसने उन्हीं महादेव के लिए तप करना शुरु किया जिनके आशीर्वाद से उनका जन्म हुआ था. फिर भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दीर्घायु प्रदान की और यमराज को 12 साल की उम्र पूरी होने पर बगैर उनके प्राण लिए ही लौट जाना पड़ा. पूजा से पूरी हेाती है संतान सुख की कामना मां गंगा और गोमती के तट पर स्थित मार्कंडेय महादेव मंदिर के बारे में मान्यता है कि कभी इसी स्थान पर राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति के लिए श्रृंगी ऋषि ने पुत...

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सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है आप लोगों ने कई ऋषियों और महर्षियों के नाम सुने होंगे। हमें उनके जीवन से एक प्रेरणा मिलती है। उनका जीवन ऐसे पड़ाव से गुजरता है जिसमें उन्हें इतना संघर्ष करना पड़ता है कि वो एक महान व्यक्तित्व बन जाते हैं।ऐसे ही एक महर्षि थे मार्कण्डेय ऋषि। मार्कण्डेय ऋषि सोलह वर्ष कि आयु भाग्य में लेकर जन्मे थे। लेकिन अपनी भक्ति और श्रद्धा के बल पर वे चिरंजीवी हो गए। आइये पढ़ते हैं मार्कण्डेय ऋषि की कहानी :- मार्कण्डेय ऋषि की कहानी मृगश्रृंग नाम के एक ब्रह्मचारी थे। उनका विवाह सुवृता के संग संपन्न हुआ। मृगश्रृंग और सुवृता के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। उनके पुत्र हमेशा अपना शरीर खुजलाते रहते थे। इसलिए मृगश्रृंग ने उनका नाम मृकण्डु रख दिया। मृकण्डु में समस्त श्रेष्ठ गुण थे। उनके शरीर में तेज का वास था। पिता के पास रह कर उन्होंने मार्कंडेय ऋषि का जन्म मृकण्डु जी का वैवाहिक जीवन शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत हो रहा था। लेकिन बहुत समय तक उनके घर किसी संतान ने जन्म ना लिया। इस कारण उन्होंने और उनकी पत्नी ने कठोर तप किया। उन्होंने तप कर के भगवन शिव को प्रसन्न कर लिया। भगवान् शिव ने मुनि से कहा कि, “हे मुनि, हम तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हैं मांगो क्या वरदान मांगते हो”? तब मुनि मृकण्डु ने कहा, “प्रभु यदि आप सच में मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे संतान के रूप में एक पुत्र प्रदान करें”। भगवन शंकर ने तब मुनि मृकण्डु से कहा की, “हे मुनि, तुम्हें दीर्घ आयु वाला गुणरहित पुत्र चाहिए। या सोलह वर्ष की आयु वाला गुणवान पुत्र चाहते हो?” इस पर मुनि बोले, “भगवन मुझे ऐसा पुत्र चाहिए जो गुणों की...