महाभारत अभिमन्यु का वध

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अभिमन्यु वध

महाभारत का अभिमन्यु वध, कैसे दुष्ट लोग अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, इसका एक उदाहरण है। यह धोखे और युद्ध के नियमों के घोर उल्लंघन की कहानी है। क्या कौरवों को लगता था कि वे अधार्मिक हैं? नहीं। इसके विपरीत, उन्होंने सोचा कि वे ही धर्म के पक्ष में हैं। दुर्योधन ने सोचा कि क्षत्रिय धर्म के अनुसार, पराक्रमी को भूमि पर शासन करना चाहिए। लेकिन कौरवों ने पांडवों को परास्त करके उनका राज्य प्राप्त नहीं किया। यहां तक कि द्यूत क्रीडा द्वारा राज्य जीतने की भी अनुमति थी धर्म शास्त्र में। लेकिन उसमें भी कौरवों ने धोखा ही दिया। कौरव फले-फूले, लेकिन उनकी प्रगति झूठ और छल पर आधारित थी। अभिमन्यु की हत्या इसका स्पष्ट उदाहरण थी। जैसा कि धृतराष्ट्र ने स्वयं युद्ध के बाद संजय से कहा था - जिस प्रकार मेरे पुत्रों ने उस बालक का वध किया, मुझे विश्वास हो गया था कि हम युद्ध हारने वाले हैं। चक्रव्यूह क्या था? कुरुक्षेत्र युद्ध के तेरहवें दिन, द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह के गठन का आदेश दिया। चक्रव्यूह का घूमने वाले पहिये का आकार था। द्रोणाचार्य को छोड़कर कौरव पक्ष के सभी दिग्गज व्यूह के अंदर मौजूद थे। द्रोणाचार्य बाहर से उसकी रक्षा कर रहे थे। अंदर हजारों घोड़े, हाथी और रथ थे। चक्रव्यूह घातक था। यह अपने रास्ते में आने वाली किसी भी चीज़ को निगल और खत्म कर सकता था। चक्रव्यूह को तोड़ना लगभग असंभव था। अभिमन्यु को चक्रव्यूह के अंदर क्यों जाना पड़ा? अभिमन्यु सिर्फ सोलह वर्ष के थे। युधिष्ठिर ने अभिमन्यु से चक्रव्यूह तोडने के लिए कहा। यह इसलिए था क्योंकि केवल चार लोग ही चक्रव्यूह को तोड़ना जानते थे - कृष्ण, प्रद्युम्न, अर्जुन और अभिमन्यु। उस समय, अर्जुन कृष्ण के साथ संशप्तकों से लड़ने में ...

अभिमन्यु का वध

युधिष्ठिर ने अभिमन्यु को बुलाकर कहा—“पुत्र! द्रोणाचार्य के रचे चक्रव्यूह को तोड़ना केवल अर्जुन जानता है, परंतु इस समय वह संशप्तकों के साथ युद्ध में उलझा हुआ है। उसने एक दिन बताया था कि तुम भी इस चक्रव्यूह को तोड़ सकते हो?" “तायाश्री! चक्रव्यूह में प्रवेश करना तो मुझे आता है, परंतु इससे बाहर निकलना मुझे नहीं आता।" अभिमन्यु ने उत्साह से भरकर उत्तर दिया। तब तय किया गया कि अभिमन्यु चक्रव्यूह को तोड़कर भीतर घुसेगा और भीम तथा धृष्टद्युम्न, सात्यकि, आदि उसके पीछे-पीछे चलेंगे, ताकि अभिमन्यु की सहायता की जा सके। तत्काल अभिमन्यु ने चक्रव्यूह का प्रवेश द्वारा तोड़ा और सैकड़ों कौरवों को यमलोक पहुंचाता हुआ सेना के बीच में धंसता चला गया। द्रोणाचार्य के देखते-देखते उनका बनाया चक्रव्यूह टूट गया। कौरव वीर एक-एक करके अभिमन्यु का सामना करने आते रहे और मरते रहे। अभिमन्यु द्वारा किए गए सर्वनाश को देखकर दुर्योधन क्रोधित हो उठा। उसने धर्म-अधर्म के सारे नियमों को ताक पर रख दिया। तब द्रोण, कर्ण, दुःशासन, अश्वत्थामा, शकुनि, कृपाचार्य और दुर्योधन आदि सात महारथियों ने अकेले अभिमन्यु को चक्रव्यूह में घेर लिया और उस अकेले पर सातों ने भयानक आक्रमण कर दिया। उधर पाण्डवों की सेना अभिमन्यु के पीछे-पीछे जैसे ही चक्रव्यूह में घुसी, वैसे ही सिंधु देश के पराक्रमी राजा जयद्रथ ने, जो धृतराष्ट्र का दामाद और दुर्योधन का बहनोई था, पाण्डव सेना को रोका और उन पर टूट पड़ा। व्यूह के द्वार पर युधिष्ठिर, मीमसेन और जयद्रथ के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया। जयद्रथ ने उन्हें आगे बढ़ने नहीं दिया। चक्रव्यूह के भीतर घिरे अभिमन्यु की सहायता के लिए वे नहीं पहुंच सके, परंतु अभिमन्यु ने अकेले ही सातों महारथियों के छक्के छुड़ा दिए। अभिमन्...