महाजन पदावली ......... के पदों का संग्रह है?

  1. पदावली (Padavali) Meaning In English Padavali in English इंग्लिश
  2. महाजनपद
  3. kabir sakhiyan class 9
  4. Vidhyapati
  5. Vidyapati Padavali
  6. श्री जी सेवा में अष्टयाम के पद


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पदावली (Padavali) Meaning In English Padavali in English इंग्लिश

पदावली का अन्ग्रेजी में अर्थ पदावली (Padavali) = पदावली संज्ञा स्त्रीलिंग 1. शब्दों या वाक्यों की श्रेणी । 2. भजनों का संग्रह । पदों का संग्रह । पदावली विद्यापति द्वारा चौदहवीं सदी में रचा गया काव्य है। यह भक्ति और श्रृंगार का अनूठा संगम है। निराला ने पदावली की मादकता को नागिन की लहर कहा है। इसमें राधा और कृष्ण के प्रेम तथा उनके अपूर्व सौंदर्य चित्रों की भरमार है। Hindi Dictionary. Devnagari to roman Dictionary. हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा शब्दकोष। देवनागरी और रोमन लिपि में। एक लाख शब्दों का संकलन। स्थानीय और सरल भाषा में व्याख्या। पदावली से सम्बंधित प्रश्न Padavali meaning in Gujarati: શબ્દસમૂહશાસ્ત્ર Translate શબ્દસમૂહશાસ્ત્ર Padavali meaning in Marathi: वाक्प्रचार Translate वाक्प्रचार Padavali meaning in Bengali: শব্দগুচ্ছ Translate শব্দগুচ্ছ Padavali meaning in Telugu: పదజాలం Translate పదజాలం Padavali meaning in Tamil: சொற்றொடர் Translate சொற்றொடர் Padavali के पर्यायवाची: पदबंध, पदविन्यास, Tags: Padavali, Padavali meaning in English. Padavali in english. Padavali in english language. What is meaning of Padavali in English dictionary? Padavali ka matalab english me kya hai (Padavali का अंग्रेजी में मतलब ). Padavali अंग्रेजी मे मीनिंग. English definition of Padavali. English meaning of Padavali. Padavali का मतलब (मीनिंग) अंग्रेजी में जाने। Padavali kaun hai? Padavali kahan hai? Padavali kya hai? Padavali kaa arth. Hindi to english dictionary(शब्दकोश).पदावली को अंग्रेजी में क्या कहते हैं. इस श्रेणी से मिलते जुलते शब्द: ये शब्द भी देखें: synonyms of Padavali in Hindi Padavali...

महाजनपद

अनुक्रम • 1 इतिहास • 1.1 महाजनपदों का उदय • 1.2 श्रमण परम्पराओं का उदय • 1.3 गणना और स्थिति • 1.4 सत्ता संघर्ष • 1.5 महाजनपद काल का अंत और साम्राज्यों का उदय • 1.6 कृषि व्यवस्था • 2 महाजनपदों का संक्षिप्त परिचय • 2.1 अवन्ति • 2.2 अश्मक या अस्सक • 2.3 अंग • 2.4 कम्बोज • 2.5 काशी • 2.6 कुरु • 2.7 कोशल • 2.8 गांधार • 2.9 चेदि • 2.10 वज्जि या वृजि • 2.11 वत्स या वंश • 2.12 पांचाल • 2.13 मगध • 2.14 मत्स्य या मच्छ • 2.15 मल्ल • 2.16 सुरसेन या शूरसेन • 3 इन्हें भी देखें • 4 सन्दर्भ • 5 बाहरी कड़ियाँ इतिहास [ ] महाजनपदों का उदय [ ] ईसापूर्व छठी सदी में जिन चार महत्वपूर्ण राज्यों ने प्रसिद्धि प्राप्त की उनके नाम हैं– ईसापूर्व छठी सदी में अवंति के राजा प्रद्योत ने ईसापूर्व पाँचवी सदी में पौरव और प्रद्योत सत्तालोलुप नहीं रहे और हर्यंको तथा इक्ष्वांकुओं ने राजनीतिक मंच पर मोर्चा सम्हाल लिया। प्रसेनजित तथा अजातशत्रु के बीच संघर्ष चलता रहा। इसका हंलांकि कोई परिणाम नहीं निकला और अंततोगत्वा मगध के हर्यंकों को जात मिली। इसके बाद मगध उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया। 461 ई.पू में अजातशत्रु की मृत्यु के बाद उसके पुत्र उदयिन तथा उसके उत्तराधिकारी प्रशासन तथा राजकाज में निकम्मे रहे तथा इसके बाद 413 ई.पू में महाजनपद काल का अंत और साम्राज्यों का उदय [ ] • Afrikaans • العربية • भोजपुरी • বাংলা • Català • Нохчийн • Čeština • English • Esperanto • Español • فارسی • Suomi • Français • Magyar • Bahasa Indonesia • Italiano • 日本語 • ქართული • ಕನ್ನಡ • 한국어 • Lietuvių • മലയാളം • मराठी • Bahasa Melayu • မြန်မာဘာသာ • مازِرونی • नेपाली • नेपाल भाषा • Nederlands • Norsk nynorsk • ਪੰਜਾਬੀ • पालि • Polsk...

kabir sakhiyan class 9

कबीर दास की साखियाँ एवं सबद (पद) | Kabir Das ki Sakhi in Hindi Class 9 क्षितिज भाग 1 कक्षा 9 पाठ 9 (NCERT Solution for class 9 kshitij bhag 1 chapter 9) कबीर दास की साखियाँ एवं सबद (पद) काव्य खंड (Kabir Das ki Sakhi and Sabad) के पठन व लेखन से सम्बंधित समस्त अध्ययन सामग्री का संग्रहण एवं प्रस्तुतिकरण - इसके अलावा पाठ में कवि के दो सबद (पदों) का संकलन है . जिसमें पहले सबद में बाह्य आडम्बरों का विरोध तथा अपने भीतर ही ईश्वर की व्याप्ति का संकेत है. दूसरे सबद में ज्ञान की आंधी रूपक के सहारे ज्ञान के महत्व का वर्णन किया गया है .कवि का मानना है कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी सभी दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त कर सकता है . कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं अपने अहंकार में भरा हुआ ईश्वर भक्त बनकर ईश्वर भक्तों को ढूंढ रहा था तो मुझे कोई नहीं मिला लेकिन जब मैंने अपने अहंकार को त्याग दिया और सच्चा ईश्वर भक्त बना तो मुझे सच्चा ईश्वर भक्त मिला और मेरे मन की बुराइयां बदल कर अच्छाइयां बन गईं . मेरा मन प्रभु भक्ति के आनंद में डूब गया. कवि ज्ञान प्राप्ति में लगे साधकों को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम ज्ञान रूपी हाथी पर सहज समाधि रूपी आसन (कालीन) बिछाकर अपने मार्ग पर निश्चिंत होकर चलते रहो. यह संसार कुत्ते के समान है जो हाथी को आगे चलता हुआ देखकर पीछे से बिना किसी उद्येश्य के भौंकता रहता है अर्थात् साधक को ज्ञान प्राप्ति में लीन देखकर दुनियावाले अनेक तरह की उल्टी-सीधी बातें करते हैं परंतु उसे लोगों द्वारा की जाने वाली निंदा की परवाह नहीं करनी चाहिए. कबीरदास जी कहते हैं कि मैं जब राम-रहीम, हिंदू-मुसलमान के भेद से ऊपर उठ गया तो मेरे लिए काशी तथा काबा में कोई अंतर नहीं रह गया. मन के मैल के कारण ...

Vidhyapati

विद्यापति महान मैथिली कवि विद्यापति श्रृंगार रस के कवि विद्यापति हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ उपरोक्त विवरण से यह तो स्पष्ट है कि विद्यापति को आदि काल की ही परिधि में रखना समीचीन होगा। विद्यापति के पदों में मधुरता और गेयता का गुण अद्वितीय है। विद्यापति ने संस्कृत, अवहट्ठ, एवं मैथिली में कविता रची। इसके इलावा भूपरिक्रमा, पुरुषपरीक्षा, लिखनावली आदि अनेक रचनाएँ साहित्य को दीं।कीर्तिलता और कीर्तिपताका नामक रचनाएं अवहट्ठ में लिखी हैं। पदावली उनकी हिन्दी-रचना है और वही उनकी प्रसि़द्धि का कारण हैं। पदावली में कृष्ण-राधा विषयक श्रृंगार के पद हैं। इनके आधार पर इन्हें हिन्दी में राधा-कृष्ण-विषयक श्रृंगारी काव्य के जन्म दाता के रूप में जाना जाता है। विद्यापति के श्रृंगारी कवि होने का कारण बिल्कुल स्पष्ट है। वे दरबारी कवि थे और उनके प्रत्येक पद पर दरबारी वातावरण की छाप दिखाई देती है।पदावली में कृष्ण के कामी स्वरूप को चित्रित किया गया है। यहां कृष्ण जिस रूप में चित्रित हैं वैसा चित्रण करने का दुस्साहस कोई भक्त कवि नहीं कर सकता। इसके इलावा राधा जी का भी चित्रण मुग्धा नायिका के रूप मे किया गया है। विद्यापति वास्तव में कवि थे, उनसे भक्त के समान अपेक्षा करना ठीक नहीं होगा। उन्होंने नायिका के वक्षस्थल पर पड़ी हुई मोतियों की माला का जो वर्णन किया है उससे उनके कवि हृदय की भावुकता एवं सौंदर्य अनुभूति का अनुमान लगाया जा सकता है।एक उदाहरण देखिए- कत न वेदन मोहि देसि मरदाना। हट नहिं बला , मोहि जुबति जना। भनई विद्यापति , तनु देव कामा। एक भए दूखन नाम मोरा बामा। गिरिवर गरुअपयोधर परसित। गिय गय मौतिक हारा। काम कम्बु भरि कनक संभुपरि। ढारत सेरसरि धारा। विद्यापति की कविता श्रृंगार और विलास की वस्तु है, उपास...

Vidyapati Padavali

यह ‘विद्यापति पदावली’ इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसका संग्रह बेनीपुरी जी ने किया है। हिन्दी के प्रसिद्ध ललित निबन्धकार बेनीपुरी कवि, कहानीकार ही नहीं ग़रीबों, पीड़ितों और शोषितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। ऐसे लेखक के द्वारा विद्यापति की पदावली का सम्पादन प्रतीकात्मक अर्थ रखता है। पुस्तक के प्रारम्भ में बेनीपुरी जी द्वारा लिखी गई भूमिका केवल विश्लेषण और सूचना की दृष्टि से नहीं, बल्कि नई अर्थ-मीमांसा की दृष्टि से नई है। इससे विद्यापति को हम पहले से कुछ अधिक जानने लगते हैं। विद्यापति की यह पदावली शब्दों के अर्थ की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। बेनीपुरी जी शब्द पारखी थे। उन्होंने इस पदावली में शब्दों के सांकेतिक अर्थ को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है जो अन्यत्र दुर्लभ है। विद्यापति के पदों को गाते हुए चैतन्य महाप्रभु समाधिस्थ हो जाते थे। आनन्द कुमार स्वामी को पदावली काव्य-कला की दृष्टि से बहुत प्रिय थी। उन्होंने लिखा भी है। उस पदावली का यह प्रस्तुतीकरण अत्यन्त उपयोगी है। बेनीपुरी जी विद्यापति को ‘हिन्दी का जयदेव’ और ‘मैथिल कोकिल’ कहते थे। उनकी वाणी का बेनीपुरी द्वारा भावित यह संस्करण लोगों को अवश्य रुचेगा। भूमिका में बेनीपुरी ने अपनी चिर-परिचित शैली में पदों की भाषा और कविता माधुरी का जो वर्णन किया है, वह तो अन्यत्र दुर्लभ है ही। ‘राजा की गगनचुम्बी अट्टालिका’ से लेकर ग़रीबों की टूटी हुई फूस की झोंपड़ी तक में विद्यापति के पदों का जो सम्मान है; भूतनाथ के मन्दिर और कोहबर घर में पदों की जो प्रतिष्ठा है, उसको ध्यान में रखते हुए ही यह पुस्तक बेनीपुरी जी ने सम्पादित की है। इससे विद्यापति और उनकी पदावली की नई अर्थवत्ता और चमक उजागर होती है। पाठ्यक्रम की दृष्टि से यह सर्वोत्तम है। Autho...

श्री जी सेवा में अष्टयाम के पद

निज कर-कमलों से कर जहाँ एक ओर प्रगट सेवा के महत्त्व को दर्शाया, वहीं दूसरी ओर सेवा कुंज की सघन निकुञ्जों में स्वेष्ट की सेवा-भावना में संलग्न रह मानसी-सेवा के महत्त्व को प्रगट किया, महत्त्व क्या प्रगट किया वह तो उनका नित्य चिन्तनीय विषय है, उसके बिना तो वह रह ही नहीं सकते । वास्तव में सेवक वही है, जो सेवा के बिना रह न पाये । यदि जिसे हम प्रियतम कहते हैं, उसका सतत् स्मरण न बना रहे तो हम कैसे प्रेमी ? श्री हिताचार्य जी बात तो क्या कहें । उनके ग्रन्थों में युगल के रसमय लीला-विलास के बहुत भाँति से वर्णन मिलते हैं । नित्य सिद्ध बपुधारी होते हुए भी उन्होंने श्री राधा-सुधा निधि जी में एक साधक की भाँति अनेकानेक रसमयी अभिलाषाओं का चित्रन किया है । सम्प्रदायों के अन्यान्य अनेकों रसिक महानुभावों ने इस रसखेत वृन्दाविपिन में सतत् कीड़ा-पारायण हित दम्पति की अष्ट प्रहरीय सेवा परिचर्या का वर्णन अपनी वाणियों में किया है । समय-समय श्री राधावल्लभ लाल की अष्याम सेवा सम्बन्धी प्रकाशन होते रहे हैं । वृन्दावन रसोपासना में श्रीहित मूर्ति युगल-किशोर की अष्टयाम (आठ प्रहर) सेवा का विशेष महत्व है। श्रीहित राधावल्लभ सम्प्रदाय के अनेक आचार्य एवं रसिक सन्तों ने विविध अष्टयाम ग्रन्थ लिखे हैं। परवर्ती काल में उन्हीं ‘अष्टयाम’ ग्रन्थों से समय समय की सेवा-भावना के पदों का संकलन करके कई अष्टयाम (सेवा भावना पदावली) के लघुकाय ग्रन्थ प्रकाशित होते रहे हैं। प्रस्तुत संग्रहीत अष्टयाम भी उसी परम्परा का एक क्रम है। इस संस्करण में शयन के पदों का विपुल संग्रह किया गया है। साथ ही श्रीराधावल्लभ जी का व्याहुला एवं रसिक नामावलि भी संग्रहीत कर दी गई है जो रसिक भक्तों के लिए अधिक उपयोगी है। सायंकालीन सन्ध्या आरती के पश्चात...