मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व

  1. जानिए मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व
  2. धर्म के साथ Makar Sankranti का क्या है वैज्ञानिक महत्व? जानिए रोचक तथ्य
  3. मकर संक्रांति का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व
  4. Makar Sankranti 2023: जानें मकर संक्रांति का क्या है वैज्ञानिक महत्व, इस दिन कौन सा काम न करें, makar sankranti 2023 today know importance of makar sankranti festival
  5. मकर संक्रांति
  6. मकर संक्रांति का वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व
  7. Makar Sankranti 2020


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जानिए मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व

• वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहां प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं छोड़े, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है।

धर्म के साथ Makar Sankranti का क्या है वैज्ञानिक महत्व? जानिए रोचक तथ्य

धर्म के साथ Makar Sankranti का क्या है वैज्ञानिक महत्व? जानिए रोचक तथ्य मकर संक्रांति (Makar Sankranti) हिन्दूओं को एक प्रमुख त्योहार है। मकर संक्रांति हर वर्ष 14 जनवरी को मनाई जाती है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जबकि उत्तरी गोलार्ध सूय की ओर मुड़ जाता है। मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। Makar Sankranti : हिंदू त्यौहारों की गणना ज्यादातर चंद्रमा पर आधारित पंचांग के द्वारा ही की जाती है, लेकिन मकर संक्रांति (Makar Sankranti) पर्व सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना से मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शरद ऋतु क्षीण होने लगती है और बसंत का आगमन शुरू हो जाता है। इसके फलस्वरूप दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है। मकर संक्रान्ति मुहूर्त (Makar Sankranti Muhurat) पुण्य काल मुहूर्त : 07:15:13 से 12:30:00 तक May 17, 2023 अवधि : 5 घंटे 14 मिनट महापुण्य काल मुहूर्त : 07:15:13 से 09:15:13 तक अवधि : 2 घंटे 0 मिनट संक्रांति पल : 20:21:45 14, जनवरी को मकर संक्रांति का महत्व (Makar Sankranti Importance) पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है। लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है। एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा। मकर संक्रांति क...

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व

भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। ललित कौशिक भारत उत्सवों का देश है। वैसे तो अपने पवित्र सनातन धर्म में हर दिन उत्सव होता है, लेकिन कुछ उत्सवों का वैज्ञानिक कारण होता है। उनमें से एक है मकर संक्रान्ति। संक्रान्ति का अर्थ है, 'सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना। पौष मास में सूर्य का धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति रूप में जाना जाता है। भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है और इसे सम्पूर्ण भारत और पूरी दूनिया में जहां-जहां हिंदू रहता है, वहां किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस पर्व को 'मकर सक्रान्ति, पंजाब में लोहडी, गढ़वाल में खिचड़ी संक्रान्ति, गुजरात में उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति कहते हैं। सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छह-छह माह के अन्तराल पर होती है। सर्वविदित है कि पृथ्वी की धुरी 23.5 अंश झुकी होने के कारण सूर्य छह माह पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध के निकट होता है और शेष छह माह दक्षिणी गोलार्द्ध के निकट होता है। सूर्यदेव की आराधना कर कृतज्ञता प्रकट करने का दिन मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध के निकट होता है अर्थात् उत्तरी गोलार्ध से अपेक्षाकृत दूर होता है जिससे उत्त...

Makar Sankranti 2023: जानें मकर संक्रांति का क्या है वैज्ञानिक महत्व, इस दिन कौन सा काम न करें, makar sankranti 2023 today know importance of makar sankranti festival

ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया मकर संक्रांति का महत्व वाराणसी: पूरे देश में मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा है. आम तौर पर मकर संक्रांति के पर्व पर स्नान, दान व ध्यान का खासा महत्व माना जाता है. इस दिन तिल, गुड़, खिचड़ी और दान देने के साथ पतंग उड़ाने की भी परंपरा है. लोग इसे धार्मिक महत्व का विषय मानते हैं. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इसका धार्मिक के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है. इसके साथ ही कुछ ऐसे कार्य हैं, जिन्हें नहीं करना चाहिए. जी हां पतंग उड़ाना, तिल, गुड़, खिचड़ी का सेवन करना इस पर्व में उल्लास का विषय माना जाता है. लेकिन, उल्लास के साथ इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है. कहा जाता है कि इन समानों के सेवन से व्यक्ति को खासा लाभ मिलता है. मकर संक्रांति के कृत्य की क्या वैज्ञानिक मान्यता है. इस दिन क्या नहीं करना चाहिए. इसको लेकर ईटीवी भारत ने ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी से खास बातचीत की. संक्रांति की पौराणिक ही नहीं बल्कि होती है वैज्ञानिक मान्यता बातचीत में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि मकर संक्रांति का त्योहार प्रकृति का त्योहार होता है. इसका मन, मस्तिष्क और विचारों पर भी असर पड़ता है. इसलिए त्योहारों पर दान व स्नान का विशेष महत्व है. ऐसे में मकर संक्रांति पर स्नान-दान का विशेष महत्व है. यदि पौराणिक मान्यताओं की मानें तो इस दिन स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. वहीं, दूसरी ओर वैज्ञानिक दृष्टि से मानें तो मकर संक्रांति पर सूर्य से निकलने वाली ऊष्मा शरीर के लिए बेहद लाभदायक मानी जाती है. यही वजह है कि लोग बहते जल में स्नान करते हैं, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है. तिल गुड़ खाने से शरीर रहता है स्वस्थ उन्होंने बताया कि मकर...

मकर संक्रांति

हिंदुओं का प्रमुख त्योहारमकर संक्रांति पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पौष मास के इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। यूं तो हर साल ये त्योहार १४ जनवरी को मनाया जाता है, लेकिन इस बार साल २०१९ में मकर संक्रांति का पर्व १५ जनवरी को मनाया जा रहा है। कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी मकर संक्रांति के दिन से ही शुरू होती है। इस दिन से ही प्रयागराज में शुरू होने वाले कुंभ महोत्सव का पहला शाही स्नान शुरू होगा। मकर संक्रांति का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व • धार्मिक महत्व स्नान, दान जैसे धार्मिक क्रियाकलापों वाले इस पर्व का अपना अलग ही धार्मिक महत्व है। यह एक ऐसा त्योहार है जो देश के हर राज्यों में वहां की परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड में मकर संक्रांति के पर्व को खिचड़ी भी कहा जाता है। गुजरात, राजस्थान में पतंग उत्सव का आयोजन कर इसे उत्तरायण पर्व के रुप में मनाते हैं। तमिलनाडु में किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है, तो वहीं असम में भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि और उतरायण के छह महिने को दिन कहा जाता है। ऐसे में मकर संक्राति को सूर्य के उत्तरायण होने से गरम मौसम की शुरुआत हो जाती है। इस दिन दान करने का भी अपना अलग महत्व है। कहते हैं कि इस दिन दिया गया दान कई गुना बढ़कर फल देता है। इस दिन स्नान कर के दान देने से मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। मकर संक्रान्ति के शुभ समय पर हरिद्वार, काशी आदि तीर्थों पर स्नानादि का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन सूर्य देव की पूजा-उपासना भी की जाती है। आज के दिन खिचड...

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व

Scientific and Cultural Importance of Makar Sankranti विज्ञान से लेकर धर्म तक, मकर संक्रान्ति हर मायने में महत्वपूर्ण है| हमारे देश के प्रमुख त्योहारों में से एक त्योहार है मकर संक्रांति| सभी प्रान्तों में अलग-अलग नाम व तरह-तरह के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाने वाला पर्व। मकर संक्रान्ति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। इसलिए मकर संक्रान्ति के त्यौहार को फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। Happy Makar Sakranti सांस्कृतिक महत्व – इस एक त्यौहार को देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है | State wise names of Makar Sankranti भारत में इस पर्व को विभिन्न नामों से जाना जाता है। छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक में सुग्गी हब्बा, केरल में इसे ओणम , मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू में इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। Lady celebrating Pongal तमिलनाडु में ताइ पोंगल, गुजरात व उत्तराखंड में उत्तरायण, हरयाणा व हिमाचल प्रदेश में माघी , असम में भोगाली बिहु, कश्मीर घाटी में शिशुर सेंक्रात, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में खिचड़ी, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रान्ति, कर्नाटक में मकर संक्रमण और पंजाब में इसे लोहड़ी कहते हैं। Onam Festival मकर संक्रांति का यह त्योहार भारत के साथ अन्य कई देशों में भी मनाया जाता है । हर देश में इस पर्व को अलग नाम से जाना जाता है। बांग्लादेश में इसे पौष संक्रान्ति कहते है। नेपाल में माघी स...

Makar Sankranti 2020

सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करने को संक्रांति कहते हैं। वर्ष में 12 संक्रांतियां होती है जिसमें से 4 संक्रांति ही महत्वपूर्ण हैं जिनमें मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति प्रमुख हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्राति के दिन से ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगता है। 1. उत्तरायण प्रारंभ : सौर मास के दो हिस्से है उत्तरायण और दक्षिणायम। सूर्य के मकर राशी में जाने से उत्तरायण प्रारंभ होता है और कर्क में जाने पर दक्षिणायन प्रारंभ होता है। इस बीच तुला संक्रांति होती है। उत्तरायन अर्थात उस समय से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है। इसे सोम्यायन भी कहते हैं। 6 माह सूर्य उत्तरायन रहता है और 6 माह दक्षिणायन। अत: यह पर्व 'उत्तरायन' के नाम से भी जाना जाता है। मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 मास के समयांतराल को उत्तरायन कहते हैं। इस दिन से दिन धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है। 2.देवताओं का दिन प्रारंभ : हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है। अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्‍य का एक वर्ष होता है। मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है। उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है। 3. गीता में महत्व : भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होत...