मणिकर्णिका घाट का इतिहास

  1. मणिकर्णिका घाट का इतिहास, जहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती
  2. वाराणसी का मणिकर्णिका घाट । इसके रहस्यों के बारे में कितना जानते हैं आप
  3. मणिकर्णिका घाट
  4. मणिकर्णिका घाट: यहां साल भर जलती हैं लाशें...सेक्स वर्कर करती है पूरी रात डांस
  5. काशी के मणिकर्ण‍िका घाट पर क्या कहता है न्यूज़ीलैंड का रिसर्च?
  6. काशी के मणिकर्ण‍िका घाट पर क्या कहता है न्यूज़ीलैंड का रिसर्च?
  7. वाराणसी का मणिकर्णिका घाट । इसके रहस्यों के बारे में कितना जानते हैं आप
  8. मणिकर्णिका घाट: यहां साल भर जलती हैं लाशें...सेक्स वर्कर करती है पूरी रात डांस
  9. मणिकर्णिका घाट
  10. मणिकर्णिका घाट का इतिहास, जहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती


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मणिकर्णिका घाट का इतिहास, जहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती

Manikarnika काशी में स्थित मणिकर्णिका घाट शमशान घाटों में से एक है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस घाट को पवित्र नदियों का पवित्र घाटा माना जता है। इस घाट में स्नान करना पुण्य का काम मना गया है। इस घाट का इतिहास बहुत पुराना है। कहते है कि इस घाट पर चिता की आग कभी शांत नहीं होती। आय दिन इस घाट पर 300 चिंताएं जलती है। हिंदू मान्यता के मुताबिक ऐसी मान्यता है कि यहां पर जलाए गए इंसान को मौक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही आत्मा को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। भगवान भोलेनाथ को समर्पित, काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है।इश्वर पर आस्था रखने वाले लोगों की ये इच्छा रहती है कि मृत्यु के बाद उनकी लाश को इस घाट पर जलाया जाए इस घाट का निर्माण मगध के राजा ने करवाया था। इस घाट से जुड़ी कथा - इस स्थान से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक शक्ति स्वरूपा पार्वती के कान की बाली का गिरना है। कहा जाता है जब पिता से आक्रोशित होकर आदि शक्ति सती हुईं तब उनके कान की बाली इस स्थान पर गिर गई थी। जिसके बाद इस श्मशान का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा। ऐसी भी मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती के स्नान के लिए यहां विष्णु जी ने कुआं खोदा था, जिसे लोग अब मणिकर्णिका कुंड के नाम से भी जानते हैं। जब शिव इस कुंड में स्नान कर रहे थे, तब उनका एक कुंडल कुएं में गिर गया तब से इस जगह को मणिकर्णिका घाट कहा जाने लगा। कहा जाता है कि भगवान शिव ने मणिकर्णिका घाट को अनंत शांति का वरदान दिया है। लोगों का यह भी मानना है कि यहां हजारों साल तक भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना की थी और ये प्रार्थना की थी कि सृष्टि के विनाश के समय भी काशी (जिसे पहले वाराणसी कहा जाता था) को नष्ट न किया जाए। श्री विष्णु की ...

वाराणसी का मणिकर्णिका घाट । इसके रहस्यों के बारे में कितना जानते हैं आप

वाराणसी का मणिकर्णिका घाट । मणिकर्णिका घाट वाराणसी शहर के 84 घाटों में से प्रमुख है, इस स्थान पर चिता की आग कभी नहीं बुझती। जानिए इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य। वाराणसी शहर कई चीजों के लिए प्रसिद्ध है – मंदिरों, संकरी गलियों और गंगा आरती से लेकर प्रसिद्ध घाटों तक, यह शहर कई विविधताओं के साथ सदियों से हमारी संस्कृति का गवाह बना हुआ है। इस शहर के बीचोबीच सबसे पवित्र नदी गंगा बहती है, इसलिए इसके तट पर स्थित घाट अपनी एक अलग ही कहानी कहते हैं। मणिकर्णिका घाट गंगा के तट पर स्थित इन्हीं घाटों में से एक है। यह घाट अध्यात्म का एक अजीब नमूना प्रस्तुत करता है जिसके अंदर कई रहस्य दबे हुए हैं। इस घाट में जहां एक तरफ कभी चिता की आग नहीं बुझती, वहां कितनी ही रहस्यमयी घटनाएं घटती हैं। इतने सारे विचित्रताओं के कारण इस घाट में ऐसा क्या खास है जो इसे अन्य घाटों से अलग और अजीब बनाता है। आइए जानते हैं वाराणसी का मणिकर्णिका घाट से जुड़े कुछ रहस्यों और अजीबो-गरीब तथ्यों के बारे में। मणिकर्णिका घाट का इतिहास – History of Manikarnika Ghat मणिकर्णिका घाट वाराणसी के सबसे पुराने घाटों में से एक है और हिंदू धर्म में पवित्र शास्त्रों द्वारा अन्य घाटों में इसे सर्वोच्च स्थान दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति का यहां अंतिम संस्कार किया जाता है, तो उसे तुरंत मोक्ष की प्राप्ति होती है, यानी इस स्थान पर अंतिम संस्कार करने पर व्यक्ति सीधे स्वर्ग जाता है। पुराणों में यह भी बताया गया है कि इस स्थान पर आकर मृत्यु भी पीड़ारहित हो जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि इस स्थान पर जो भी मरता है उसे कोई दर्द नहीं होता है। यह सिंधिया घाट और दशाश्वमेध घाट दोनों के बीच स्थित है। इतिहास की बात करें तो यह शहर के सबसे ...

मणिकर्णिका घाट

हिंदुओं के बेहद मांगलिक एवं पावन घाटों में से एक मणिकर्णिका घाट का अंत्येष्टि के लिए बहुत महत्व है। यह दशाश्वमेध घाट एवं सिंधिया घाट के मध्य में स्थित है। मणिकर्णिका घाट के निकट एक जलकुंड है, ऐसा माना जाता है कि इसे भगवान विष्णु ने बनाया था ताकि भगवान शिव एवं देवी पार्वती (शक्ति) स्नान कर सकें। इस तालाब के निकट पैर का निशान बना हुआ है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु का है जो तब अंकित हुआ था जब वह वाराणसी में ध्यान लगाने आए थे। कोई जब सीढ़ियां चढ़कर घाट के ऊपर जाता है तब उसे मणिकर्णिका नामक प्रतिष्ठित जलकुंड देखने को मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार देवी पार्वती ने यहां पर अपने कान का कुंडल गिरा दिया था, जिसे खोजने के लिए भगवान शिव ने तालाब खोद दिया था। ऐसा कहते हैं कि उनके पसीने से यह कुंड भर गया था। इस घाट का उल्लेख 5वीं सदी में रचित कुछ साहित्य में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि देवी शक्ति ने अपने पिता के यज्ञ में अपने शरीर की आहुति दे दी। इस कारण से उनके पति भगवान शिव शोकग्रस्त तथा क्रोधित हो गए। उन्होंने उनका शव अपने कंधों पर रखा और पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाया। इस बात से भयभीत कि कहीं शिव तांडव करके समस्त ब्रह्मांड का सर्वनाश न कर दें, उन्होंने सुदर्शनचक्र से शक्ति के शरीर को अलग कर दिया। जिस स्थान पर पार्वती के कान का कुंडल गिरा, वह मणिकर्णिका कहलाया। और पढ़े

मणिकर्णिका घाट: यहां साल भर जलती हैं लाशें...सेक्स वर्कर करती है पूरी रात डांस

हमारे देश भारत में कई जगह कौतुहल का विषय है..जिसके बारे में हम सभी जानने और समझने की कोशिश करते हैं।इसी क्रम मै आज आपको अपने लेख के जरिये एक ऐसे श्मशान के बारे बताने जा रहीं हूं, जिसके बारे में जानकर आप आश्चर्यचकित रह जायेंगे। वाराणसी" title="Latest:तो यहां है असली बाहुबली की महिष्मती.. दरअसल, मै बात कर रहीं हूं दरअसल, मै बात कर रहीं हूं इस मंदिर में आने वाले भक्त की होती है हर मनोकामना पूरी.... इसके अलावा मणिकर्णिका घाट की कई विशेषताएं है जो भारत के किसी अन्य श्मशान घाट में नहीं है। ऐसी ही दो विशेषताओं के बारे में हम अब तक आप सब को बता चुके है। कोणार्क : सूर्य देव का वो मंदिर जिसको आज भी है अपनी पूजा का इंतेजार पहली यह की मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच चिता भस्म से खेली जाती है होली और दूसरी चैत्र नवरात्री अष्टमी को मणिकर्णिका घाट पर,जलती चिताओं के बीच, मोक्ष की आशा में सेक्स वर्कर करती है पूरी रात डांस। मणिकर्णिका घाट दूसरी कथा के अनुसार भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नही मिल पाती थी। देवी पार्वती इससे परेशान हुईं, और शिवजी को रोके रखने हेतु अपने कान की मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढने को कहा। शिवजी उसे ढूंढ नही पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि उस घाट पर की जाती है, वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है? PC:Dennis Jarvis मणिकर्णिका घाट बहुत से लोग भारत की इस प्राचीन परंपरा से अनभिज्ञ हैं लेकिन ये सच है कि सदियों से बनारस के इस श्मशान घाट पर चैत्र माह में आने वाले नवरात्रों की सप्तमी की रात पैरों में घुंघरू बांधी हुई वेश्याओं का जमावड़ा लगता है। एक तरफ जलती चिता के शोले आसमान में उड़ते हैं तो दूसरी ओर घुंघरू और तबले की आवाज पर नाचती वेश्याएं दि...

काशी के मणिकर्ण‍िका घाट पर क्या कहता है न्यूज़ीलैंड का रिसर्च?

मणिकर्णिका घाट का इतिहास यह घाट काशी के सबसे पुराने घाटों में से एक है। हिन्‍दू धर्म में अन्‍य घाटों की तुलना में इसे सर्वोच्च स्थान दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि अगर इस घाट पर किसी का अंतिम संस्कार किया जाता है तो उसे तुरंत मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों में इस बात का जिक्र है कि इस स्थान पर आकर मौत भी दर्दहीन हो जाती है। यानि कि जिस व्यक्ति की मृत्यु इस स्थान पर होती है उसे किसी भी प्रकार के दर्द की अनुभूति नहीं होती है। यह घाट सिंधिया घाट और दशाश्‍वमेध घाट के बीच स्थित है। बहुत कम लोग जानते हैं कि मणिकर्णिका घाट का उल्लेख पांचवीं शताब्दि के एक गुप्‍त अभिलेख में मिलता है। मणिकर्णिका घाट की पौराणिक कथा- कैसे पड़ा इस घाट का नाम पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी आदिशक्ति ने जब देवी सती के रूप में अवतरण लिया था, तब अपने पिता के अपमान के चलते अग्नि में कूद गई थीं। उस समय उनके जलते शरीर को भगवान शिव हिमालय तक ले गए। उस समय भगवान विष्‍णु ने अपना सुदर्शन चक्र देवी आदिशक्ति के जलते हुए शरीर पर फेंका जिससे उनके शरीर के 51 टुकड़े हो गए। वो सभी टुकड़े जहां-जहां गिरे उन्‍हें शक्तिपीठ घोषित किया गया था। उसी समय मणिकर्णिका घाट पर माता सती की कान की बालियां गिरीं। और उसी के बाद से इस स्थान को शक्तिपीठ घोषित कर दिया गया। दरअसल कान की बाली को संस्कृत में मणिकर्ण‍िका कहते हैं, इसलिए इस घाट का नाम भी मणिकर्ण‍िका घाट पड़ा। तब से यह स्थान विशेष महत्व रखता है। मणिकर्णिका घाट पर कुएं का रहस्य इस घाट पर एक कुआं है, जिसे मणिकर्णिका कुंड के नाम से जाना जाता है, इसे भगवान विष्‍णु ने बनवाया था। हिन्‍दू पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान शिव जब माता पारवती के साथ एक बार काशी आये थे। भगवान ने दैव दंपत्...

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वाराणसी का मणिकर्णिका घाट । मणिकर्णिका घाट वाराणसी शहर के 84 घाटों में से प्रमुख है, इस स्थान पर चिता की आग कभी नहीं बुझती। जानिए इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य। वाराणसी शहर कई चीजों के लिए प्रसिद्ध है – मंदिरों, संकरी गलियों और गंगा आरती से लेकर प्रसिद्ध घाटों तक, यह शहर कई विविधताओं के साथ सदियों से हमारी संस्कृति का गवाह बना हुआ है। इस शहर के बीचोबीच सबसे पवित्र नदी गंगा बहती है, इसलिए इसके तट पर स्थित घाट अपनी एक अलग ही कहानी कहते हैं। मणिकर्णिका घाट गंगा के तट पर स्थित इन्हीं घाटों में से एक है। यह घाट अध्यात्म का एक अजीब नमूना प्रस्तुत करता है जिसके अंदर कई रहस्य दबे हुए हैं। इस घाट में जहां एक तरफ कभी चिता की आग नहीं बुझती, वहां कितनी ही रहस्यमयी घटनाएं घटती हैं। इतने सारे विचित्रताओं के कारण इस घाट में ऐसा क्या खास है जो इसे अन्य घाटों से अलग और अजीब बनाता है। आइए जानते हैं वाराणसी का मणिकर्णिका घाट से जुड़े कुछ रहस्यों और अजीबो-गरीब तथ्यों के बारे में। मणिकर्णिका घाट का इतिहास – History of Manikarnika Ghat मणिकर्णिका घाट वाराणसी के सबसे पुराने घाटों में से एक है और हिंदू धर्म में पवित्र शास्त्रों द्वारा अन्य घाटों में इसे सर्वोच्च स्थान दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति का यहां अंतिम संस्कार किया जाता है, तो उसे तुरंत मोक्ष की प्राप्ति होती है, यानी इस स्थान पर अंतिम संस्कार करने पर व्यक्ति सीधे स्वर्ग जाता है। पुराणों में यह भी बताया गया है कि इस स्थान पर आकर मृत्यु भी पीड़ारहित हो जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि इस स्थान पर जो भी मरता है उसे कोई दर्द नहीं होता है। यह सिंधिया घाट और दशाश्वमेध घाट दोनों के बीच स्थित है। इतिहास की बात करें तो यह शहर के सबसे ...

मणिकर्णिका घाट: यहां साल भर जलती हैं लाशें...सेक्स वर्कर करती है पूरी रात डांस

हमारे देश भारत में कई जगह कौतुहल का विषय है..जिसके बारे में हम सभी जानने और समझने की कोशिश करते हैं।इसी क्रम मै आज आपको अपने लेख के जरिये एक ऐसे श्मशान के बारे बताने जा रहीं हूं, जिसके बारे में जानकर आप आश्चर्यचकित रह जायेंगे। वाराणसी" title="Latest:तो यहां है असली बाहुबली की महिष्मती.. दरअसल, मै बात कर रहीं हूं दरअसल, मै बात कर रहीं हूं इस मंदिर में आने वाले भक्त की होती है हर मनोकामना पूरी.... इसके अलावा मणिकर्णिका घाट की कई विशेषताएं है जो भारत के किसी अन्य श्मशान घाट में नहीं है। ऐसी ही दो विशेषताओं के बारे में हम अब तक आप सब को बता चुके है। कोणार्क : सूर्य देव का वो मंदिर जिसको आज भी है अपनी पूजा का इंतेजार पहली यह की मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच चिता भस्म से खेली जाती है होली और दूसरी चैत्र नवरात्री अष्टमी को मणिकर्णिका घाट पर,जलती चिताओं के बीच, मोक्ष की आशा में सेक्स वर्कर करती है पूरी रात डांस। मणिकर्णिका घाट दूसरी कथा के अनुसार भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नही मिल पाती थी। देवी पार्वती इससे परेशान हुईं, और शिवजी को रोके रखने हेतु अपने कान की मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढने को कहा। शिवजी उसे ढूंढ नही पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि उस घाट पर की जाती है, वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है? PC:Dennis Jarvis मणिकर्णिका घाट बहुत से लोग भारत की इस प्राचीन परंपरा से अनभिज्ञ हैं लेकिन ये सच है कि सदियों से बनारस के इस श्मशान घाट पर चैत्र माह में आने वाले नवरात्रों की सप्तमी की रात पैरों में घुंघरू बांधी हुई वेश्याओं का जमावड़ा लगता है। एक तरफ जलती चिता के शोले आसमान में उड़ते हैं तो दूसरी ओर घुंघरू और तबले की आवाज पर नाचती वेश्याएं दि...

मणिकर्णिका घाट

हिंदुओं के बेहद मांगलिक एवं पावन घाटों में से एक मणिकर्णिका घाट का अंत्येष्टि के लिए बहुत महत्व है। यह दशाश्वमेध घाट एवं सिंधिया घाट के मध्य में स्थित है। मणिकर्णिका घाट के निकट एक जलकुंड है, ऐसा माना जाता है कि इसे भगवान विष्णु ने बनाया था ताकि भगवान शिव एवं देवी पार्वती (शक्ति) स्नान कर सकें। इस तालाब के निकट पैर का निशान बना हुआ है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु का है जो तब अंकित हुआ था जब वह वाराणसी में ध्यान लगाने आए थे। कोई जब सीढ़ियां चढ़कर घाट के ऊपर जाता है तब उसे मणिकर्णिका नामक प्रतिष्ठित जलकुंड देखने को मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार देवी पार्वती ने यहां पर अपने कान का कुंडल गिरा दिया था, जिसे खोजने के लिए भगवान शिव ने तालाब खोद दिया था। ऐसा कहते हैं कि उनके पसीने से यह कुंड भर गया था। इस घाट का उल्लेख 5वीं सदी में रचित कुछ साहित्य में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि देवी शक्ति ने अपने पिता के यज्ञ में अपने शरीर की आहुति दे दी। इस कारण से उनके पति भगवान शिव शोकग्रस्त तथा क्रोधित हो गए। उन्होंने उनका शव अपने कंधों पर रखा और पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाया। इस बात से भयभीत कि कहीं शिव तांडव करके समस्त ब्रह्मांड का सर्वनाश न कर दें, उन्होंने सुदर्शनचक्र से शक्ति के शरीर को अलग कर दिया। जिस स्थान पर पार्वती के कान का कुंडल गिरा, वह मणिकर्णिका कहलाया। और पढ़े

मणिकर्णिका घाट का इतिहास, जहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती

Manikarnika काशी में स्थित मणिकर्णिका घाट शमशान घाटों में से एक है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस घाट को पवित्र नदियों का पवित्र घाटा माना जता है। इस घाट में स्नान करना पुण्य का काम मना गया है। इस घाट का इतिहास बहुत पुराना है। कहते है कि इस घाट पर चिता की आग कभी शांत नहीं होती। आय दिन इस घाट पर 300 चिंताएं जलती है। हिंदू मान्यता के मुताबिक ऐसी मान्यता है कि यहां पर जलाए गए इंसान को मौक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही आत्मा को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। भगवान भोलेनाथ को समर्पित, काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है।इश्वर पर आस्था रखने वाले लोगों की ये इच्छा रहती है कि मृत्यु के बाद उनकी लाश को इस घाट पर जलाया जाए इस घाट का निर्माण मगध के राजा ने करवाया था। इस घाट से जुड़ी कथा - इस स्थान से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक शक्ति स्वरूपा पार्वती के कान की बाली का गिरना है। कहा जाता है जब पिता से आक्रोशित होकर आदि शक्ति सती हुईं तब उनके कान की बाली इस स्थान पर गिर गई थी। जिसके बाद इस श्मशान का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा। ऐसी भी मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती के स्नान के लिए यहां विष्णु जी ने कुआं खोदा था, जिसे लोग अब मणिकर्णिका कुंड के नाम से भी जानते हैं। जब शिव इस कुंड में स्नान कर रहे थे, तब उनका एक कुंडल कुएं में गिर गया तब से इस जगह को मणिकर्णिका घाट कहा जाने लगा। कहा जाता है कि भगवान शिव ने मणिकर्णिका घाट को अनंत शांति का वरदान दिया है। लोगों का यह भी मानना है कि यहां हजारों साल तक भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना की थी और ये प्रार्थना की थी कि सृष्टि के विनाश के समय भी काशी (जिसे पहले वाराणसी कहा जाता था) को नष्ट न किया जाए। श्री विष्णु की ...