मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?

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प्रश्न 1-4: उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया? उत्तर 1-4: गोपियाँ श्रीकृष्ण के आगमन की आशा में बैचैन थीं। वे एक-एक दिन गिन रही थी और अपने तन-मन की व्यथा को चुपचाप सहती हुई कृष्ण के प्रेम रस में डूबी हुई थीं। परन्तु कृष्ण ने स्वयं ना आकर योग का संदेश देने के लिए उद्धव को भेज दिया। विरह की अग्नि में जलती हुई गोपियों को जब उद्धव ने कृष्ण को भूल जाने और योग-साधना करने का उपदेश देना प्रारम्भ किया, तब गोपियों की विरह वेदना और भी बढ़ गयी । इस प्रकार उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया। प्रश्न 1-5: 'मरजादा न लही' के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है? उत्तर 1-5: 'मरजादा न लही' के माध्यम से प्रेम की मर्यादा न रहने की बात की जा रही है। कृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ उनके वियोग में जल रही थीं। कृष्ण के आने पर ही उनकी विरह-वेदना मिट सकती थी, परन्तु कृष्ण ने स्वयं न आकर उद्धव को योग संदेश के साथ भेज दिया जिसने गोपियों के उनकी मर्यादा का त्याग करने पर आतुर कर दिया है। प्रश्न 1-6: कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ? उत्तर 1-6: गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को विभिन्न प्रकार से दिखाया है- • गोपियों ने अपनी तुलना उन चीटियों के साथ की है जो गुड़ (श्रीकृष्ण भक्ति) पर आसक्त होकर उससे चिपट जाती है और फिर स्वयं को छुड़ा न पाने के कारण वहीं प्राण त्याग देती है। • उन्होंने खुद को हारिल पक्षी व श्रीकृष्ण को लकड़ी की भाँति बताया है। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदैव अपने पंजे में कोई लकड़ी अथवा तिनका पकड़े रहता है, उसे किसी भी दशा में नहीं छोड़...

'मरजादा न लही' के माध्यम से कौन

गोपियों ने अपने प्रेम को कभी किसी के सम्मुख प्रकट नहीं किया था। वह शांत भाव से श्री कृष्ण के लौटने की प्रतीक्षा कर रही थीं। कोई भी उनके दु:ख को समझ नहीं पा रहा था। वह चुप्पी लगाए अपनी मर्यादाओं में लिपटी हुई इस वियोग को सहन कर रही थीं कि वे श्री कृष्ण से प्रेम करती हैं। परन्तु इस उद्धव के योग संदेश ने उनको उनकी मर्यादा छोड़कर बोलने पर मजबूर कर दिया है। अर्थात् जो बात सिर्फ़ वही जानती थीं आज सबको पता चल जाएगी।

Surdas ke Pad Class 10 Question Answer

Here we have provided Surdas Ke Pad Class 10 Question Answer. These solutions will help you in understanding the chapter better & will make you with the types of questions that can be framed for your exam. Surdas ke Pad Class 10 Question Answer 1. गोपियों के द्वारा उद्धव को भाग्यवान बुलाये जाने पर क्या वयङग हो सकता है? उत्तर: उद्धव को गोपियों ने वयङन में अिसलिये भाग्यवान कहा क्योंकि गोपियों के अनुसार उद्धव बहुत हि दुर्भाग्यशालि है जो कृष्ण के साथ रेहते हुये भि अूनके प्रेम को नहि समझ सके।कृष्ण का तो रुप हि अैसा है सकत हृदय वाला वय़कित के मन में कृष्ण के पृति प्यार कि भावना आ जाये। गोपियों के कहने का तातपय़ृ यह है कि जिस व्यक्ति ने कभी प्यार अथवा प्रेम का अृथ नहीं समझा वही इनसान कृष्ण से दूर है। 2. किससे उद्धव कि तुलना कि जा रही है? उत्तर: गोपियों ने उद्धव के व्यवहार कि तुलना दो तरह के कि है: • ऐक तेल का पात्र जो जल में रखा है जिसपे जल कि ऐक बुङद का भी कोयि असर नहीं पड़ता। • जल में रहते हुऐ भी कमल के पत्तों में कीचड़ नहीं लगता जबकि तालाब में केवल कीचड़ है। 3) गोपियों ने किन कारणों का इसतमाल किया उद्धव को अूलाहने के लिये? उत्तर: निम्नलिखित उदाहरण है जो ऐसा दरशाते है : • जिस परकार जल के अन्दर रहने वाला कमल पानी व कीचड़ से बचा रहता है बिलकुल वैसे हि उद्धव कृष्ण के सम्पर्क में होने के बावजूद उनके प्रेम से वंचित रहे। • गोपियों की कृष्ण से आशा रहती कि वे भी उनके प्रेम का जवाब प्रेम से ही देंगे। 4) उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया? उत्तर- श्रीकृष्ण के मथुरा रवाना हो जाने पर गोपियाँ पहले से विरह अग्नि में व्याकुल हो जल रही थीं। वे श्री...

‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन

उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल की मटकी से की गई है। कमल का पला पानी में डूबा रहता है पर उस पर पानी की एक बूंद भी दाग नहीं लगा पाती, उस पर पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती। तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर एक बूंद भी नहीं ठहरती। उद्धव भी पूरी तरह से अनासक्त था। वह श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त था। गोपियों को श्रीकृष्ण के वियोग की अग्नि सदा जलाती रहती थी। वे हर समय उन्हें याद करती थीं; तड़पती थीं पर फिर भी उनके मन में एक आशा थी। उन्हें पूरी तरह से यह उम्मीद थी कि श्रीकृष्ण जब मथुरा से वापिस ब्रज क्षेत्र में आएंगे तब उन्हें उनका खोया हुआ प्रेम वापिस मिल जाएगा। वे अपने हृदय की पीड़ा उनके सामने प्रकट कर सकेंगी पर जब श्रीकृष्ण की जगह उद्धव उनकी योग-साधना का संदेश लेकर गोपियों के पास आ पहुँचा तो गोपियों की सहनशक्ति जवाब दे गई। उन्होंने श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे जाने वाले ऐसे योग संदेश की कभी कल्पना भी नहीं की थी। इससे उन का विशवास टूट गया था। विरह-अग्नि में जलता हुआ उनका हृदय योग के वचनों से दहक उठा था। योग के संदेशों ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया था। इसीलिए उन्होंने उद्धव को सामने और श्रीकृष्ण की पीठ पर मनचाही जली-कटी सुनाई थी। गोपियों ने उद्धव को अनेक उदाहरणों के माध्यम से उलाहने दिए थे। उन्होंने उसे ‘बड़भागी’ कह कर प्रेम से रहित माना था जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम का अर्थ नहीं समझ पाया था। उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग के संदेशों के कारण वे वियोग में जलने लगी थीं। विरह के सागर में डूबती गोपियो को पहले तो आशा थी कि वे कभी-न-कभी तो श्रीकृष्ण से मिल ही जाएंगी पर उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग साधना के संदेश के...

M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1

M.P. Board solutions for Class 10 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 2 – काव्य खंड क्षितिज काव्य खंड Chapter 1- पद पाठ 1 पद – सूरदास कठिन शब्दार्थ बड़भागी = भाग्यवान। अपरस = अलिप्त, नीरस, अछूता। तगा = धागा, बंधन। पुरइनि पात = कमल का पत्ता। दागी = दाग, धब्बा। प्रीति– नदी = प्रेम की नदी। पाउँ = पैर। बोस्यौ = डुबोया। परागी = मुग्ध होना (मोहित हो जाना)। गुर चाँटी ज्यौं पागी = जिस प्रकार चींटी गुड़ में लिपटती है, उसी प्रकार हम भी कृष्ण के प्रेम में अनुरक्त हैं। अवधि = समय। अधार = आधार। आवन = आगमन। बिथा = व्यथा, कष्ट। बिरहिनि= वियोग में जीने वाली। बिरह दही = विरह की आग में जल रही हैं। हुती= थीं। गुहारि = रक्षा के लिए पुकारना । जितहिं तैं = जहाँ से। उत = उधर, वहाँ। धार = योग की प्रबल धारा। धीर = धैर्य (धीरता)। मरजादा = मर्यादा, प्रतिष्ठा। न लही = नहीं रही, नहीं रखी। हारिल = हारिल एक पक्षी है जो अपने पैरों में सदैव एक लकड़ी लिए रहता है, उसे छोड़ता नहीं है। नंद-नंदन उर……….. पकरी = नंद के नंदन कृष्ण को हमने भी अपने हृदय में बसाकर कसकर में पकड़ा हुआ है। जक री = रटती रहती हैं, पुकारती रहती हैं। सु = वह। ब्याधि = रोग, पीड़ा पहुँचाने वाली वस्तु, बीमारी। करी = भोगा। तिनहि = उनको। मन चकरी = जिनका मन स्थिर नहीं रहता। मधुकर = भौंरा, उद्धव के लिए गोपियों द्वारा प्रयुक्त संबोधन। हुत = थे। पठाए = भेजा। आगे के = पहले के लोग, प्राचीनकालीन जन। पर हित = दूसरों के हित के लिए। डोलत धाए = घूमते-फिरते थे। पाइहैं = पा लेंगी। अनीति = अन्याय। राज धरम = राजा का धर्म, राजा का कर्त्तव्य। पद्यांशों की व्याख्या (1) ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी। अपरस रहते सनेह तगा तें, नाहिन मन अनुरागी। पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न द...