Narayan kavach in hindi pdf

  1. Narayan Kavach in Hindi or Sanskrit
  2. [PDF] श्री नारायण कवच
  3. Shri Narayan Kavach
  4. Lakshmi Narayan Kavach (लक्ष्मी नारायण कवच)
  5. [PDF] શ્રી નારાયણ કવચ
  6. नारायण कवच गीता प्रेस
  7. श्री नारायण कवच


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Narayan Kavach in Hindi or Sanskrit

WhatsApp Telegram Facebook Twitter LinkedIn Narayan Kavach or Narayana Kavacham literally means “Armour of Lord Narayana”. It is said that Narayan Kavach protects like an armour from all enemies. When Raja Parikshith asked his Guru to teach him a way to protect himself from his enemies, Saga Shuka (Guru of Parikshith) preached him Narayan Kavach. It is believed that regular chanting of Narayana kavacham makes your soul very pure and holy, and Lord Vishnu himself will protect you in his various avatars. Get Narayan Kavach in Hindi lyrics or sanskrit here and chant it with utmost faith and devotion. Narayan Kavach in Hindi – नारायण कवच राजोवाच यया गुप्तः सहस्त्राक्षः सवाहान् रिपुसैनिकान्। क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम्॥1॥ भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम्। यथास्स्ततायिनः शत्रून् येन गुप्तोस्जयन्मृधे॥2॥ श्री शुक उवाच वृतः पुरोहितोस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते। नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु॥3॥ विश्वरूप उवाच धौताङ्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ् मुखः। कृतस्वाङ्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः॥4॥ नारायणमयं वर्म संनह्येद् भय आगते। पादयोर्जानुनोरूर्वोरूदरे हृद्यथोरसि॥5॥ मुखे शिरस्यानुपूर्व्यादोङ्कारादीनि विन्यसेत्। ॐ नमो नारायणायेति विपर्ययमथापि वा॥6॥ करन्यासं ततः कुर्याद् द्वादशाक्षरविद्यया। प्रणवादियकारन्तमङ्गुल्यङ्गुष्ठपर्वसु॥7॥ न्यसेद् हृदय ओङ्कारं विकारमनु मूर्धनि। षकारं तु भ्रुवोर्मध्ये णकारं शिखया दिशेत्॥8॥ वेकारं नेत्रयोर्युञ्ज्यान्नकारं सर्वसन्धिषु। मकारमस्त्रमुद्दिश्य मन्त्रमूर्तिर्भवेद् बुधः॥9॥ सविसर्गं फडन्तं तत् सर्वदिक्षु विनिर्दिशेत्। ...

[PDF] श्री नारायण कवच

श्री नारायण कवच श्लोक (Narayan Kavach Lyrics With Meaning) नारायण कवचम भगवद पुराण के छठे स्कंद के अध्याय आठ में आता है। यह देखा और अनदेखी हमारे दुश्मनों से खुद को बचाने के लिए एक कवच है। नारायण कवच एक बहुत ही संक्षिप्त स्तोत्र है जिसमें केवल 24 श्लोक हैं। इसे दिन में एक बार पढ़ना है। मुश्किल से 10 मिनट लगते हैं। इस प्रक्रिया को अंग-न्य और कर-न्यास कहा जाता है। श्रीमद्भागवत के अध्याय आठ में नारायण कवच के संबंध में न्यास व कवच पाठ हेतु बताया गया है कि भगवान श्री हरि गरुड़ की पीठ पर अपने चरण-कमल रखे हुए हैं। अणिमादि आठों सिद्धियाँ उनकी सेवा कर रही हैं। राजोवाच यया गुप्तः सहस्त्राक्षः सवाहान् रिपुसैनिकान्। क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम् ॥१॥ भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम्। यथाSSततायिनः शत्रून् येन गुप्तोSजयन्मृधे॥२॥ अर्थ:-राजा परिक्षित ने पूछा – भगवन्! देवराज इंद्र ने जिससे सुरक्षित होकर शत्रुओं की चतुरङ्गिणी सेना को खेल खेल में अनायास ही जीतकर त्रिलोकी की राज लक्ष्मी का उपभोग किया, आप उस नारायण कवच को सुनाइये और यह भी बतलाईये कि उन्होंने उससे सुरक्षित होकर रणभूमि में किस प्रकार आक्रमणकारी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की॥१-२॥ श्री शुक्र उवाच वृतः पुरोहितोस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते। नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु ॥३॥ अर्थ:-श्री शुक्रदेव जी ने कहा- परीक्षित्! जब देवताओं ने विश्वरूप को पुरोहित बना लिया, तब देवराज इन्द्र के प्रश्न करने पर विश्वरूप ने नारायण कवच का उपदेश दिया तुम एकाग्र चित्त होकर उसका श्रवण करो॥३॥ विश्वरूप उवाच धौताङ्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ् मुखः। कृतस्वाङ्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः॥४॥ नारायणमयं वर्म संनह्येद् भय आगते। पा...

Shri Narayan Kavach

श्री नारायण कवच श्री नारायण कवच न्यास न्यासः- सर्वप्रथम श्रीगणेश जी तथा भगवान नारायण को नमस्कार करके नीचे लिखे प्रकार से न्यास करें। अंगन्यासः ॐ ॐ नमः — पादयोः ( दाहिने हाँथ की तर्जनी व अंगुष्ठ — इन दोनों को मिलाकर दोनों पैरों का स्पर्श करें) । ॐ नं नमः — जानुनोः ( दाहिने हाँथ की तर्जनी व अंगुष्ठ — इन दोनों को मिलाकर दोनों घुटनों का स्पर्श करें )। ॐ मों नमः — ऊर्वोः (दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुष्ठ — इन दोनों को मिलाकर दोनों पैरों की जाँघ का स्पर्श करें)। ॐ नां नमः — उदरे ( दाहिने हाथ की तर्जनी तथा अंगुठा — इन दोनों को मिलाकर पेट का स्पर्श करें ) ॐ रां नमः — हृदि ( मध्यमा-अनामिका-तर्जनी से हृदय का स्पर्श करें ) ॐ यं नमः – उरसि ( मध्यमा- अनामिका-तर्जनी से छाती का स्पर्श करें ) ॐ णां नमः — मुखे ( तर्जनी – अँगुठे के संयोग से मुख का स्पर्श करें) ॐ यं नमः — शिरसि ( तर्जनी -मध्यमा के संयोग से सिर का स्पर्श करें ) करन्यासः ॐ ॐ नमः — दक्षिणतर्जन्याम् ( दाहिने अँगुठे से दाहिने तर्जनी के सिरे का स्पर्श करें ) ॐ नं नमः — दक्षिणमध्यमायाम् ( दाहिने अँगुठे से दाहिने हाथ की मध्यमा अँगुली का ऊपर वाला पोर स्पर्श करें ) ॐ मों नमः —दक्षिणानामिकायाम् ( दहिने अँगुठे से दाहिने हाथ की अनामिका का ऊपरवाला पोर स्पर्श करें ) ॐ भं नमः — दक्षिणकनिष्ठिकायाम् (दाहिने अँगुठे से हाथ की कनिष्ठिका का ऊपर वाला पोर स्पर्श करें ) ॐ गं नमः — वामकनिष्ठिकायाम् ( बाँये अँगुठे से बाँये हाथ की कनिष्ठिका का ऊपर वाला पोर स्पर्श करें) ॐ वं नमः —-वामानिकायाम् ( बाँये अँगुठे से बाँये हाँथ की अनामिका का ऊपरवाला पोर स्पर्श करें ) ॐ तें नमः —-वाममध्यमायाम् ( बाँये अँगुठे से बाये हाथ की मध्यमा का ऊपरवाला पोर स्पर्श करें ) ॐ वां...

Lakshmi Narayan Kavach (लक्ष्मी नारायण कवच)

लक्ष्मी नारायण कवच/Lakshmi Narayan Kavach ( ।।पूर्व-पीठिका-श्रीभैरव उवाच।। अधुना देवि ! वक्ष्यामि, लक्ष्मी-नारायणस्य ते । कवचं मन्त्र-गर्भं च, वज्र-पञ्जरकाख्यया ।।1 श्रीवज्र-पञ्जरं नाम, कवचं परमाद्भुतम । रहस्यं सर्व-देवानां, साधकानां विशेषतः ।।2 यं धृत्वा भगवान् देवः, प्रसीदति परः पुमान् । यस्य धारण-मात्रेण, ब्रह्मा लोक-पितामहः ।।3 ईश्वरोऽहं शिवो भीमो, वासवोऽपि दिवस्पतिः । सूर्यस्तेजो-निधिर्देवि ! चन्द्रमास्तारकेश्वरः ।।4 वायुश्च बलवांल्लोके, वरुणो यादसांपतिः । कुबेरोऽपि धनाध्यक्षो, धर्मराजो यमः स्मृतः ।।5 यं धृत्वा सहसा विष्णुः, संहरिष्यति दानवान् । जघान रावणादींश्च, किं वक्ष्येऽहमतः परम् ।।6 कवचस्यास्य सुभगे ! कथितोऽयं मुनिः शिवः । त्रिष्टुप् छन्दो देवता च, लक्ष्मी-नारायणो मतः ।।7 रमा बीजं परा शक्तिस्तारं कीलकमीश्वरि ! । भोगापवर्ग-सिद्धयर्थं, विनियोग इति स्मृतः ।।8 सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे। विनियोगः- ॐ अस्य श्रीलक्ष्मी-नारायण-कवचस्य शिव ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, श्रीलक्ष्मी-नारायण देवता, श्रीं बीजं, ह्रीं शक्तिः, ॐ कीलकं, भोगापवर्ग-सिद्धयर्थं कवच-पाठे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यासः श्रीशिव ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीलक्ष्मी-नारायण देवतायै नमः हृदि, श्रीं बीजाय नमः गुह्ये, ह्रीं शक्तये नमः नाभौ, ॐ कीलकाय नमः पादयो, भोगापवर्ग-सिद्धयर्थं कवच-पाठे विनियोगाय नमः अञ्जलौ। ध्यानः पूर्णेन्दु-वदनं पीत-वसनं कमलासनम् । लक्ष्म्याश्रितं चतुर्बाहुं, लक्ष्मी-नारायणं भजे ।। ‘मानस-पूजन’ कर ‘कवच-पाठ‘ करे । ।।मूल कवच-पाठ।। ॐ वासुदेवोऽवतु मे, मस्तकं सशिरोरुहम् । ह्रीं ललाटं सदा पातु, लक्ष्मी-विष्णुः समन्ततः ।।1 हसौः नेत्रेऽवताल्लक्ष्मी-गोविन्दो जगतां प...

[PDF] શ્રી નારાયણ કવચ

નારાયણ કવચ શ્લોક અર્થ સહીત ॥રાજોવાચ॥ યયા ગુપ્તઃ સહસ્ત્રાક્ષઃ સવાહાન્ રિપુસૈનિકાન્। ક્રીડન્નિવ વિનિર્જિત્ય ત્રિલોક્યા બુભુજે શ્રિયમ્॥1॥ ભગવંસ્તન્મમાખ્યાહિ વર્મ નારાયણાત્મકમ્। યથાસ્સ્તતાયિનઃ શત્રૂન્ યેન ગુપ્તોસ્જયન્મૃધે॥2॥ પરીક્ષિત રાજાએ કહ્યું : હે મહારાજ – વિદ્યાથી રક્ષણ પામેલા ઇન્દ્ર દેવે રમત માત્રમાં સર્વસ્વનું હરણ કરનારા શત્રુઓની સેનાને યુદ્ધમાં જીતી લીધી અને ત્રેલોક્યનું રાજ્ય ભોગવ્યું તે ‘ નારાયણ કવચ ‘ રૂપ વિદ્યા મને કહો. સાથે એ પણ બતાવો કે તેને તેનાથી સુરક્ષિત થઈને રણભૂમિમાં કેવી રીતે આક્રમણકારી શત્રુઓ ઉપર વિજય મેળવ્યો. (1)(2) ॥શ્રીશુક ઉવાચ॥ વૃતઃ પુરોહિતોસ્ત્વાષ્ટ્રો મહેંદ્રાયાનુપૃચ્છતે। નારાયણાખ્યં વર્માહ તદિહૈકમનાઃ શૃણુ॥3॥ શ્રી શુકદેવજીએ કહ્યું : પુરોહિત બનેલા વિશ્વરૂપે પ્રશ્ન પૂછનાર ઇન્દ્ર દેવને જે નારાયણ કવચ કહેલું તર હવે એકાગ્ર મનથી સાંભળો. વિશ્વરૂપ ઉવાચધૌતાંઘ્રિપાણિરાચમ્ય સપવિત્ર ઉદઙ્ મુખઃ। કૃતસ્વાંગકરન્યાસો મંત્રાભ્યાં વાગ્યતઃ શુચિઃ॥4॥ નારાયણમયં વર્મ સંનહ્યેદ્ ભય આગતે। પાદયોર્જાનુનોરૂર્વોરૂદરે હૃદ્યથોરસિ॥5॥ મુખે શિરસ્યાનુપૂર્વ્યાદોંકારાદીનિ વિન્યસેત્। ઓં નમો નારાયણાયેતિ વિપર્યયમથાપિ વા॥6॥ વિશ્વરૂપે કહ્યું : હે દેવરાજ ઇન્દ્ર ! ભયનો પ્રસંગ આવી પડે ત્યારે નારાયણ કવચ ધારણ કરી પોતાના શરીરની રક્ષા કરી લેવી જોઈએ. એની વિધિ આ પ્રમાણે છે કે પહેલા હાથ પગ ધોઈ આચમન કરવું.પછી હાથમાં કુશની વીંટી ધારણ કરી ઉત્તર તરફ મુખ રાખી બેસી જવું. પછી કવચ ધારણ પર્યંત બીજું કાંઈ પણ ન બોલવાનો નિશ્ચય કરી પવિત્રતાથી ” ૐ નમો નારાયાણાય ” અને ” ૐ નમો ભગવતે વાસુદેવાય ” આ મંત્રો દ્વારા હૃદયાદી અંગ ન્યાસ તથા અંગૂષ્ઠાદિકર ન્યાસ કરવા. પહેલા ” ૐ નામો નારાયાણાય ” આ અષ્ટાક્ષર મંત્રના ૐ વગેરે આઠ અક્ષરોના...

नारायण कवच गीता प्रेस

नारायण कवच गीता प्रेस | Narayan Kavach Gita Press PDF Hindi नारायण कवच गीता प्रेस | Narayan Kavach Gita Press Hindi PDF Download Download PDF of नारायण कवच गीता प्रेस | Narayan Kavach Gita Press in Hindi from the link available below in the article, Hindi नारायण कवच गीता प्रेस | Narayan Kavach Gita Press PDF free or read online using the direct link given at the bottom of content. नारायण कवच गीता प्रेस | Narayan Kavach Gita Press Hindi नारायण कवच गीता प्रेस | Narayan Kavach Gita Press हिन्दी PDF डाउनलोड करें इस लेख में नीचे दिए गए लिंक से। अगर आप नारायण कवच गीता प्रेस | Narayan Kavach Gita Press हिन्दी पीडीएफ़ डाउनलोड करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। इस लेख में हम आपको दे रहे हैं नारायण कवच गीता प्रेस | Narayan Kavach Gita Press के बारे में सम्पूर्ण जानकारी और पीडीएफ़ का direct डाउनलोड लिंक। नारायण कवच भगवान् श्री हरी विष्णु जी को समर्पित एक दिव्य कवच है जिसके माध्यम से आप भगवान् श्री हरी विष्णु जी को सरलता से प्रसन्न करके उनकी अन्नय भक्ति एवं कृपा प्राप्त कर सकते हैं। नारायण कवच गीता प्रेस PDF एक बहुत ही संक्षिप्त स्तोत्र है जिसमें केवल 42 श्लोक हैं।ऐसा माना जाता है की जो यह कवच का जाप”निष्ठा और भक्ति”के साथ करता वह लाभान्वित होता है।मैं इसके पाठ से खुद लाभवंतित हुआ हूँ।आप सभी आस्था के साथ इस पाठ का जाप नियमित रूप से करें और अपनी मनोकामना के तरफ कर्म करते रहे। इस पाठ से सारे व्यवधान दूर हो जाते हैं। भगवान् श्री हरी विष्णु जी अत्यंत दयालु व कृपा निधान हैं वह अपने भक्तों को समस्त प्रकार के कष्टों से बचाते हुए उसकी हर परिस्थिति में रक्षा करते हैं। विष्णु जी हिन्दू ...

श्री नारायण कवच

ॐ श्रीगणेशाय नमः । ॐ नमो नारायणाय । अङ्गन्यासः ॐ ॐ नमः पादयोः । ॐ नं नमः जानुनोः । ॐ मों नमः ऊर्वोः । ॐ नां नमः उदरे । ॐ रां नमः हृदि । ॐ यं नमः उरसि । ॐ णां नमः मुखे । ॐ यं नमः शिरसि ॥ करन्यासः ॐ ॐ नमः दक्षिणतर्जन्याम् । ॐ नं नमः दक्षिणमध्यमायाम् । ॐ मों नमः दक्षिणानामिकायाम् । ॐ भं नमः दक्षिणकनिष्ठिकायाम् । ॐ गं नमः वामकनिष्ठिकायाम् । ॐ वं नमः वामानामिकायाम् । ॐ तें नमः वाममध्यमायाम् । ॐ वां नमः वामतर्जन्याम् । ॐ सुं नमः दक्षिणांगुष्ठोर्ध्वपर्वणि । ॐ दें नमः दक्षिणांगुष्ठाय पर्वणि । ॐ वां नमः वामांगुष्ठोर्ध्वपर्वणि । ॐ यं नमः वामांगुष्ठाय पर्वणि ॥ विष्णुषडक्षरन्यासः ॐ ॐ नमः हृदये । ॐ विं नमः मूर्धनि । ॐ षं नमः भ्रुवोर्मध्ये । ॐ णं नमः शिखायाम् । ॐ वें नमः नेत्रयोः । ॐ नं नमः सर्वसन्धिषु । ॐ मः अस्त्राय फट् प्राच्याम् । ॐ मः अस्त्राय फट् आग्नेयाम् । ॐ मः अस्त्राय फट् दक्षिणस्याम् । ॐ मः अस्त्राय फट् नैरृत्ये । ॐ मः अस्त्राय फट् प्रतीच्याम् । ॐ मः अस्त्राय फट् वायव्ये । ॐ मः अस्त्राय फट् उदीच्याम् । ॐ मः अस्त्राय फट् ऐशान्याम् । ॐ मः अस्त्राय फट् ऊर्ध्वायाम् । ॐ मः अस्त्राय फट् अधरायाम् ॥ अथ श्रीनारायणकवचम् । राजोवाच । यया गुप्तः सहस्राक्षः सवाहान्रिपुसैनिकान् । क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम् ॥ १॥ भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम् । यथाऽऽततायिनः शत्रून् येन गुप्तोऽजयन्मृधे ॥ २॥ श्रीशुक उवाच । वृतः पुरोहितस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते । नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु ॥ ३॥ विश्वरूप उवाच । धौताण्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदण्मुखः । कृतस्वाण्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः ॥ ४॥ नारायणमयं वर्म सन्नह्येद्भय आगते । पादयोर्जानुनोरूर्वोरुदरे हृद्यथोर...