नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित

  1. शिव चालीसा (shiv chalisa in hindi written)
  2. शिव रूद्राष्टकम
  3. Bipin Savaliya: नमामि शमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश...
  4. नमामि शमीशान निर्वाण रूपं : शिव रुद्राष्टकम
  5. नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित
  6. [PDF] नमामि शमीशान
  7. नमामि शमीशान निर्वाण रूपं : शिव रुद्राष्टकम
  8. Bipin Savaliya: नमामि शमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश...
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शिव चालीसा (shiv chalisa in hindi written)

हमारे हिन्दू धर्म में प्रत्येक देवी-देवताओं की चालीसा लिखी गयीं हैं तथा उनके पाठ का विशेष महत्व बताया गया है। यहाँ “चालीसा” शब्द से अभिप्राय 40 से है अर्थात जिसमें 40 छंद /चौपाइ होती हो। shiv ji ki chalisa भगवान् शिव की स्तुति में लिखी गयी 40 चौपाइयों का संग्रह है, जिसकी रचना संत अयोध्यादास जी ने की थी। Shiv Chalisa भगवान शिव की स्तुति है। शिव चालीसा (shiv parvati chalisa) को भगवान शिव की सभी स्तुतियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसमें भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव के उपासको द्वारा पाठ किया जाता है। पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि वैसे तो भोलेनाथ केवल सच्चे मन से याद करने पर भी भक्तों की पुकार सुन लेते हैं, परंतु जो भी भक्त नियमित रूप से Shiv Chalisa का पाठ करता है, उस पर भगवान शिव की विशेष कृपा होती है। शिव चालीसा का पाठ करना महादेव शिव की आराधना करने का एक बहुत ही उत्तम माध्यम है। Shiv Chalisa के माध्यम से आप अपने आराध्य भगवान् शंकर को बड़े हीं आसानी से प्रसन्न कर सकते हैं। इस वेबसाइट पर आपको शिव चालीसा hindi mein likhit और pdf में उपलब्ध कराई गई है, जिसका आप रोजाना पाठ (shiv chalisa ka paath) online मोबाइल या टेबलेट से कर सकते हो।Shiv chalisa padhne wala हमेशा मनोवांछित फल पाता है। ||दोहा|| जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥ ||चौपाई|| जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के ॥ अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ मैना मातु की हवे दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य...

शिव रूद्राष्टकम

Shiv Rudrashtakam is a devotional Sanskrit composition on Shiva or Rudra by saint Tulsidas ji. It appears in the Uttara Kanda (after 107) of the Ramcharit Manas. Rudrashtakam consists of eight stanzas of hymns that narrate the many qualities and deeds of Shiva such as the destruction of Tripura, and the annihilation of Kamadeva. Namami Shamishan Nirvan Roopam नमामीशमिशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरुपम् । निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश मकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥ निराकामोंकारमूलं तुरीयं गिरा ध्यान गोतीतमीशं गिरिशम । करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोअहम ॥ तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् । स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा लासद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा ॥ चलत्कुण्डलं शुभ नेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकंठ दयालम । मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ प्रचण्डं प्रकष्ठं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम । त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम ॥ कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सच्चीनान्द दाता पुरारी । चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ न यावद् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम । न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥ न जानामि योगं जपं पूजा न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् । जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥ रुद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषा शंभो प्रसीदति ॥ ॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥ Speaking Bharat is a community site for the indian...

Bipin Savaliya: नमामि शमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश...

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश माकाश वासं भजेयम निराकार मोंकार मूलं तुरीयं गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसार पारं नतोहं तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं . मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं स्फुरंमौली कल्लो लीनिचार गंगा लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं प्रियम कंकरम सर्व नाथं भजामि प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी चिदानंद संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी न यावत उमानाथ पादार विन्दम भजंतीह लोके परे वा नाराणं न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो। from Tumblr http://ift.tt/1AG4vVI via नमामि शमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं॥1॥ निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं। करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोहं॥2॥ तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं। स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥ चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं। मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥ प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्। त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेहं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥ कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी। चिदानन्द संदो...

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं : शिव रुद्राष्टकम

रुद्राष्टकम भगवान शिव की अभिव्यक्ति को समर्पित एक अष्टकम या अष्टक (आठ छंदों वाली प्रार्थना) है. इस महान मंत्र की रचना स्वामी तुलसीदास द्वारा 15वीं शताब्दी में की गई थी. रुद्र को भगवान शिव की भयावह अभिव्यक्ति के रूप में पूजा जाता है, जिनसे हमेशा भयभीत रहना चाहिए. भगवान महाकाल को प्रसन्न करने के लिए स्तुति का यह आठ गुना भजन गाया गया था. जो भी इसका पाठ करेगा, उस पर भगवान शिव अति प्रसन्न होंगे. रुद्राष्टकम की उत्पत्ति भगवान शिव के पवित्र शहर वाराणसी में गोस्वामी तुलसीदास (16 वीं शताब्दी ई.) द्वारा लिखित महान संस्कृत महाकाव्य रामायण में हुई है. तुलसीदासजी वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में रामचरितमानस लिख रहे थे, जब शिव की महिमा गाते इस भजन की रचना भगवान शिव की कृपा से हो सकी. शिव रुद्राष्टकम (Shiv Rudrashtakam Mantra) नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं॥1॥ अर्थ – मैं ब्रह्मांड के राजा को नमन करता हूं, जिसका स्वरूप मुक्ति, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी ब्रह्म है, जो वेदों के रूप में प्रकट होता है. मैं भगवान शंकर की पूजा करता हूं, अपनी महिमा में चमकते हुए, बिना भौतिक गुणों के, अविभाज्य, इच्छा रहित, चेतना के सभी व्यापक आकाश और स्वयं गगन को उनके वस्त्र के रूप में धारण करते हैं. निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं। करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो हं॥2॥ अर्थ – मैं सर्वोच्च भगवान को दंडवत करता हूं, जो “ओम्” के निराकार स्रोत हैं, सभी का स्व, सभी स्थितियों और अवस्थाओं को पार करते हुए, वाणी, समझ और इंद्रियबोध से परे, विस्मयकारी, लेकिन कृपालु, कैलाश के शासक, मृत्यु के भक्षक, सभी ...

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विंभुं ब्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरींह। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।। निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।। करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं।। तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।। स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा।। चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।। मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।। प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।। त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं।। कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनान्ददाता पुरारी।। चिदानंदसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।। न यावद् उमानाथ पादारविन्दं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।। न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं।। न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं।। जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो।। श्लोक-रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये। ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति।।

[PDF] नमामि शमीशान

शीर्षक नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ । निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥ निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌ । करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌ ॥ तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌ । स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥ चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्‌ । मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌ । त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्‌ ॥ कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी। चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्‌ । न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥ न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्‌ । जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥ रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।। ॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं : शिव रुद्राष्टकम

रुद्राष्टकम भगवान शिव की अभिव्यक्ति को समर्पित एक अष्टकम या अष्टक (आठ छंदों वाली प्रार्थना) है. इस महान मंत्र की रचना स्वामी तुलसीदास द्वारा 15वीं शताब्दी में की गई थी. रुद्र को भगवान शिव की भयावह अभिव्यक्ति के रूप में पूजा जाता है, जिनसे हमेशा भयभीत रहना चाहिए. भगवान महाकाल को प्रसन्न करने के लिए स्तुति का यह आठ गुना भजन गाया गया था. जो भी इसका पाठ करेगा, उस पर भगवान शिव अति प्रसन्न होंगे. रुद्राष्टकम की उत्पत्ति भगवान शिव के पवित्र शहर वाराणसी में गोस्वामी तुलसीदास (16 वीं शताब्दी ई.) द्वारा लिखित महान संस्कृत महाकाव्य रामायण में हुई है. तुलसीदासजी वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में रामचरितमानस लिख रहे थे, जब शिव की महिमा गाते इस भजन की रचना भगवान शिव की कृपा से हो सकी. शिव रुद्राष्टकम (Shiv Rudrashtakam Mantra) नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं॥1॥ अर्थ – मैं ब्रह्मांड के राजा को नमन करता हूं, जिसका स्वरूप मुक्ति, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी ब्रह्म है, जो वेदों के रूप में प्रकट होता है. मैं भगवान शंकर की पूजा करता हूं, अपनी महिमा में चमकते हुए, बिना भौतिक गुणों के, अविभाज्य, इच्छा रहित, चेतना के सभी व्यापक आकाश और स्वयं गगन को उनके वस्त्र के रूप में धारण करते हैं. निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं। करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो हं॥2॥ अर्थ – मैं सर्वोच्च भगवान को दंडवत करता हूं, जो “ओम्” के निराकार स्रोत हैं, सभी का स्व, सभी स्थितियों और अवस्थाओं को पार करते हुए, वाणी, समझ और इंद्रियबोध से परे, विस्मयकारी, लेकिन कृपालु, कैलाश के शासक, मृत्यु के भक्षक, सभी ...

Bipin Savaliya: नमामि शमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश...

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश माकाश वासं भजेयम निराकार मोंकार मूलं तुरीयं गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसार पारं नतोहं तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं . मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं स्फुरंमौली कल्लो लीनिचार गंगा लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं प्रियम कंकरम सर्व नाथं भजामि प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी चिदानंद संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी न यावत उमानाथ पादार विन्दम भजंतीह लोके परे वा नाराणं न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो। from Tumblr http://ift.tt/1AG4vVI via नमामि शमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं॥1॥ निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं। करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोहं॥2॥ तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं। स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥ चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं। मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥ प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्। त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेहं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥ कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी। चिदानन्द संदो...

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विंभुं ब्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरींह। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।। निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।। करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं।। तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।। स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा।। चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।। मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।। प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।। त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं।। कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनान्ददाता पुरारी।। चिदानंदसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।। न यावद् उमानाथ पादारविन्दं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।। न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं।। न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं।। जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो।। श्लोक-रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये। ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति।।

शिव रूद्राष्टकम

Shiv Rudrashtakam is a devotional Sanskrit composition on Shiva or Rudra by saint Tulsidas ji. It appears in the Uttara Kanda (after 107) of the Ramcharit Manas. Rudrashtakam consists of eight stanzas of hymns that narrate the many qualities and deeds of Shiva such as the destruction of Tripura, and the annihilation of Kamadeva. Namami Shamishan Nirvan Roopam नमामीशमिशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरुपम् । निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश मकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥ निराकामोंकारमूलं तुरीयं गिरा ध्यान गोतीतमीशं गिरिशम । करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोअहम ॥ तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् । स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा लासद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा ॥ चलत्कुण्डलं शुभ नेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकंठ दयालम । मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ प्रचण्डं प्रकष्ठं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम । त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम ॥ कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सच्चीनान्द दाता पुरारी । चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ न यावद् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम । न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥ न जानामि योगं जपं पूजा न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् । जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥ रुद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषा शंभो प्रसीदति ॥ ॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥ Speaking Bharat is a community site for the indian...