नरसी मेहता .......... भक्ति साहित्य के श्रेष्ठतम कवि थे।

  1. संत नरसी (नरसिंह) मेहता – Pravesh Shinde – Sahityapedia
  2. भक्ति काल
  3. गुजराती संत व कवि नरसी मेहता जयंती,
  4. नरसी मेहता
  5. गुजराती संत व कवि नरसी मेहता जयंती आज
  6. Narsinh Mehta Jayanti: आध्यात्मिक एवं धार्मिक जगत के भक्त एवं भजन सम्राट
  7. नरसी मेहता की कथा हिंदी में


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संत नरसी (नरसिंह) मेहता – Pravesh Shinde – Sahityapedia

गुजराती साहित्य के आदि कवि संत नरसी मेहता का जन्म 1414 ई. में जूनागढ़ के निकट तलाजा ग्राम में एक नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। माता-पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था। इसलिए अपने चचेरे भाई के साथ रहते थे। ज्यादातर वे संतों की मंडलियों के साथ ही घूमा करते थे। 15-16 वर्ष की उम्र में उनका विवाह हो गया था। कोई काम न करने पर भाभी उन पर बहुत कटाक्ष करती थी। एक दिन उसकी फटकार से व्यथित नरसिंह ‘गोपेश्वर’ के शिव मंदिर में जाकर तपस्या करने लगे। मान्यता है कि सात दिन के बाद उन्हें शिवजी के दर्शन हुए और उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति और रासलीला के दर्शनों का वरदान मांगा। इस पर द्वारका जाकर रासलीला के दर्शन हो गए। अब नरसिंह का जीवन पूरी तरह बदल गया। भाई का घर छोड़कर वे जूनागढ़ में अलग रहने लगे। उनका निवास स्थान आज भी ‘नरसिंह मेहता का चौरा’ के नाम से प्रसिद्ध है। वे हर समय कृष्णभक्ति में तल्लीन रहते थे। उनके लिए सब बराबर थे। छुआछूत वे नहीं मानते थे और हरिजनों की बस्ती में जाकर उनके साथ कीर्तन किया करते थे। इससे बिरादरी ने उनका बहिष्कार तक कर दिया, पर वे अपने मत से डिगे नहीं। पिता के श्राद्ध के समय और विवाहित पुत्री के ससुराल, उसकी गर्भावस्था में सामग्री भेजते समय भी उन्हें दैवी सफलता मिली थी। जब उनके पुत्र का विवाह बड़े नगर के राजा के वजीर की पुत्री के साथ तय हो गया। तब भी नरसिंह मेहता ने द्वारका जाकर प्रभु को बारात में चलने का निमंत्रण दिया। प्रभु श्यामल शाह सेठ के रूप में बारात में गए और ‘निर्धन’ नरसिंह के बेटे की बारात के ठाठ देखकर लोग चकित रह गए। हरिजनों के साथ उनके संपर्क की बात सुनकर जब जूनागढ़ के राजा ने उनकी परीक्षा लेनी चाही तो कीर्तन में लीन मेहता के गले में आकाश से फूलों की...

भक्ति काल

भक्ति काल महत्वपूर्ण स्थान रखता है। स्वर्णकाल, श्यामसुन्दर दास ने स्वर्णयुग, लोक जागरण कहा। सम्पूर्ण साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएं इसी में प्राप्त होती हैं। दक्षिण में जाति-पांति पूछे नहिं कोई। हरि को भजै सो हरि का होई।। रामानंद ने महाप्रभु इसके उपरांत माध्व तथा निंबार्क संप्रदायों का भी जन-समाज पर प्रभाव पड़ा है। साधना-क्षेत्र में दो अन्य संप्रदाय भी उस समय विद्यमान थे। नाथों के योग-मार्ग से प्रभावित संत संप्रदाय चला जिसमें प्रमुख व्यक्तित्व संत कबीरदास का है। मुसलमान कवियों का सूफीवाद हिंदुओं के विशिष्टाद्वैतवाद से बहुत भिन्न नहीं है। कुछ भावुक मुसलमान कवियों द्वारा सूफीवाद से रंगी हुई उत्तम रचनाएं लिखी गईं। संक्षेप में भक्ति-युग की • ज्ञानाश्रयी शाखा • प्रेमाश्रयी शाखा अनुक्रम • 1 परिचय • 2 कृष्णाश्रयी शाखा • 2.1 कृष्ण-काव्य-धारा की विशेषताएँ • 3 रामाश्रयी शाखा • 3.1 रामभक्ति शाखा की प्रवृत्तियाँ • 4 ज्ञानाश्रयी मार्गी • 5 प्रेमाश्रयी शाखा • 6 इन्हें भी देखें • 7 बाहरी कड़ियाँ परिचय [ ] 13वीं सदी तक धर्म के क्षेत्र में बड़ी अस्तव्यस्तता आ गई। जनता में भक्ति आंदोलन का आरंभ दक्षिण के आलवार संतों द्वारा 10वीं सदी के लगभग हुआ। वहाँ यद्यपि भक्ति का स्रोत दक्षिण से आया तथापि उत्तर भारत की नई परिस्थितियों में उसने एक नया रूप भी ग्रहण किया। मुसलमानों के इस देश में बस जाने पर एक ऐसे भक्तिमार्ग की आवश्यकता थी जो हिंदू और मुसलमान दोनों को ग्राह्य हो। इसके अतिरिक्त निम्न वर्ग के लिए भी अधिक मान्य मत वही हो सकता था जो उन्हीं के वर्ग के पुरुष द्वारा प्रवर्तित हो। महाराष्ट्र के संत नामदेव ने १४वीं शताब्दी में इसी प्रकार के भक्तिमत का सामान्य जनता में प्रचार किया जिसमें भगवान्...

गुजराती संत व कवि नरसी मेहता जयंती,

जयपुर से राजेंद्र गुप्त नरसी मेहता जयंती को नरसिंह मेहता (नरसी भगत) की याद में मनाया जाता है, जो महान गुजराती संत-कवि थे। नरसी मेहता का जीवनकाल 1414 से 1481 तक रहा था। उनके जीवनकाल को कुछ इतिहासकारों द्वारा 1409-1488 के रूप में भी माना जाता है। यह वह समय था जब भक्ति आंदोलन दक्षिण भारतीय संतों द्वारा अग्रणी था। नरसी मेहता वैष्णव कविता के एक प्रस्तावक थे और गुजराती साहित्य (पहले कवि) यानी आदि कवि ’के रूप में उन्हें माना जाता है। इस साल नरसी मेहता जयंती 30 नवम्बर को पड़ रही है। नरसी मेहता का परिचय नरसी मेहता 14-15 वीं शताब्दी ईस्वी के एक भक्ति संत थे, जो तलजा, गुजरात से थे। जब वह लगभग 5 साल का थे तभी बचपन में उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था उनका पालन उनकी दादी ने किया था। इतिहास में यह है कि वह आठ साल की उम्र तक बोलने में सक्षम नहीं थे। भगवान कृष्ण के लिए अपनी अत्यधिक भक्ति और प्रेम के साथ, उन्हें कई अवसरों पर अपनी दृष्टि बताने का सौभाग्य मिला। अन्य भक्ति संतों की तरह, भावुक होने के कारण, वे परमानंद में गाते थे और नृत्य करते थे, प्रभु की भक्ति में लीन रहते थे। एक बार, जब वह घर पर स्वंय को अपमानित महसूस कर रहे थे तो वह वह एक जंगल में चले गए और एक सप्ताह तक एक अलग शिवलिंग के पास बैठकर ध्यान करते रहे। इतिहास के अनुसार, शिव उनके सामने प्रकट हुए और कवि के अनुरोध पर उन्हें वृंदावन ले गए और उन्हें भगवान कृष्ण और गोपियों के ’रासलीला’ का वर्णन करने की अनुमति दी। दृष्टि मिलते ही कवि शाश्वत आनंद में तल्लीन हो गए। भगवान कृष्ण की आज्ञा पर, उन्होंने अपनी प्रशंसा और ’ रस ’के उत्साहपूर्ण अनुभव को गाना शुरू कर दिया। नरसी मेहता-महत्व के स्थान नरसिंह मठ चोरा एक महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नर...

नरसी मेहता

नरसी मेहता ( નરસિંહ મહેતા; 15वीं शती ई.) वैष्णव जन तो तैणे कहिए जे पीड पराई जाणे रे' पंक्ति से आरंभ होनेवाला सुविख्यात पद नरसी मेहता का ही है। नरसी ने इसमें वैष्णव धर्म के सारतत्वों का संकलन करके अपनी अंतर्दृष्टि एवं सहज मानवीयता का परिचय दिया है। नरसी की इस उदार वैष्णव भक्ति का प्रभाव गुजरात में आज तक लक्षित होता है। अनुक्रम • 1 जीवनवृत्त • 1.1 सांवल शाह की घटना • 1.2 नरसीला जी की ध्योती की शादी की घटना • 2 रचनाएँ • 3 Further reading • 4 बाहरी कड़ियाँ जीवनवृत्त [ ] ऐतिहासिक दृष्टि से नरसी मेहता के जीवनकाल का निश्चय एक समस्या रही है। उनकी "हारमाला" नामक कृति में दी गई तिथि सं. 1512 तथा वर्णित घटना से सिद्ध रा मांडलिक (सं. 1414 से 1480) की समकालीनता के आधार पर कुछ इतिहासकारों ने उन्हें 15वीं शती ई. में रखा और बहुत काल तक "वृद्धमान्य समय" (1414-81 ई.) निर्विवाद स्वीकृत किया जाता रहा परंतु; क.मा. मुंशी ने अनेक तर्क वितर्कों द्वारा उसे अतिशय विवादास्पद बना दिया। उनके अनुसार चैतन्य के प्रभाव के कारण नरसी मेहता का समय 1500-1580 ई. से पूर्व नहीं माना जा सकता। यद्यपि गुजराती के अनेकानेक मान्य विद्वानों ने इस विवाद में भाग लिया है तथापि वह अब भी प्राय: अनिर्णीत ही है। उनकी रचनाओं में जयदेव, नामदेव, रामानंद और मीरा का उल्लेख मिलता है। नरसी मेहता का जन्म भावनगर के समीपवर्ती "तलाजा" नामक ग्राम में हुआ था और उनके पिता कृष्णदामोदर वडनगर के नागर थे। उनका अवसान हो जाने पर बाल्यकाल से ही नरसी को कष्टमय जीवन व्यतीत करना पड़ा। एक कथा के अनुसार वे आठ वर्ष तक गूंगे रहे और किसी कृष्णभक्त साधु की कृपा से उन्हें वाणी का वरदान प्राप्त हुआ। साधु संग उनका व्यसन था। उद्यमहीनता के कारण उन्हें भाभी की ...

गुजराती संत व कवि नरसी मेहता जयंती आज

राजेन्द्र गुप्तानरसी मेहता जयंती को नरसिंह मेहता (नरसी भगत) की याद में मनाया जाता है, जो महान गुजराती संत-कवि थे। नरसी मेहता का जीवनकाल 1414 से 1481 तक रहा था। उनके जीवनकाल को कुछ इतिहासकारों द्वारा 1409-1488 के रूप में भी माना जाता है। यह वह समय था जब भक्ति आंदोलन दक्षिण भारतीय संतों द्वारा अग्रणी था। श्री नरसी मेहता वैष्णव कविता के एक प्रस्तावक थे और गुजराती साहित्य (पहले कवि) यानी आदि कवि ’के रूप में उन्हें माना जाता है। इस साल नरसी मेहता जयंती 10 दिसंबर को पड़ रही है। नरसी मेहता का परिचय =============== नरसी मेहता 14-15 वीं शताब्दी ईस्वी के एक भक्ति संत थे, जो तलजा, गुजरात से थे। जब वह लगभग 5 साल का थे तभी बचपन में उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था उनका पालन उनकी दादी ने किया था। इतिहास में यह है कि वह 8 साल की उम्र तक बोलने में सक्षम नहीं थे। भगवान कृष्ण के लिए अपनी अत्यधिक भक्ति और प्रेम के साथ, उन्हें कई अवसरों पर अपनी दृष्टि बताने का सौभाग्य मिला। अन्य भक्ति संतों की तरह, भावुक होने के कारण, वे परमानंद में गाते थे और नृत्य करते थे, प्रभु की भक्ति में लीन रहते थे। एक बार, जब वह घर पर स्वंय को अपमानित महसूस कर रहे थे तो वह वह एक जंगल में चले गए और एक सप्ताह तक एक अलग शिवलिंग के पास बैठकर ध्यान करते रहे। इतिहास के अनुसार, शिव उनके सामने प्रकट हुए और कवि के अनुरोध पर उन्हें वृंदावन ले गए और उन्हें भगवान कृष्ण और गोपियों के ’रासलीला’ का वर्णन करने की अनुमति दी। दृष्टि मिलते ही कवि शाश्वत आनंद में तल्लीन हो गए। भगवान कृष्ण की आज्ञा पर, उन्होंने अपनी प्रशंसा और ’ रस ’के उत्साहपूर्ण अनुभव को गाना शुरू कर दिया। नरसी मेहता – महत्व के स्थान नरसिंह मठ चोरा एक महत्वपूर्ण स्...

Narsinh Mehta Jayanti: आध्यात्मिक एवं धार्मिक जगत के भक्त एवं भजन सम्राट

भगवान श्रीकृष्ण भक्ति में सराबोर भक्तों की लम्बी श्रृंखला में नरसी मेहता का नाम सर्वोपरि है। उनकी निश्छल और चरम भक्ति इतनी प्रभावी रही है कि श्रीकृष्ण से सीधे सम्पर्क में रहे, उनका उनके साथ सीधा संवाद होता था। उनके भक्ति रस से आप्लावित भजन आज भी जनमानस को ढांढस बंधाते हैं, धर्म का पाठ पढ़ाते हैं और जीवन को पवित्र बनाने की प्रेरणा देते हैं। उनके भजनों में जीवंत सत्यों का दर्शन होता है। जिस प्रकार किसी फूल की महक को शब्दों में बयां करना कठिन है, उसी प्रकार गुजराती के इस शिखर संतकवि और श्रीकृष्ण-भक्त का वर्णन करना भी मुश्किल है। उनकी भक्ति इतनी सशक्त, सरल एवं पवित्र थी कि श्रीकृष्ण को अनेक बार साक्षात प्रकट होकर अपने इस प्रिय भक्त की सहायता करनी पड़ी। नरसी मेहता की भक्ति के अनेक चमत्कारी किस्से हैं। महान् संतकवि नरसी का जन्म 15वीं शताब्दी में सौराष्ट्र के एक नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। प्रतिवर्ष 19 दिसम्बर को उनके भक्त उनका जन्मदिन भव्य एवं भक्तिमय तरीके से मनाते हैं। उनके पिता का नाम कृष्णदास और माता का नाम दयाकुंवर था। बचपन में ही माँ बाप स्वर्गवासी हो गये थे। बालक नरसी आरंभ में गूंगे थे। आठ वर्ष के नरसी को उनकी दादी एक सिद्ध महात्मा के पास लेकर गई। महात्मा ने बालक को देखते ही भविष्यवाणी की कि भविष्य में यह बालक बहुत बड़ा भक्त होगा। जब दादी ने बालक के गूंगे होने कि बात बताई तो महात्मा ने बालक के कान में कहा कि बच्चा! कहो ‘राधा-कृष्ण’ और देखते ही देखते नरसी ‘राधा-कृष्ण’ का उच्चारण करने लगा। बालक नरसी बचपन से ही साधु-संतों की सेवा किया करते थे और जहां कहीं भजन-कीर्तन होता था, वहीं जा पहुंचते थे। रात को भजन-कीर्तन में जाते तो उन्हें समय का ख्याल न रहता। रात को देर से घर लौटत...

नरसी मेहता की कथा हिंदी में

एक दिन इनकी भौजाई ने इन्हें ताना मारते हुए कहा कि ऐसी भक्ति उमड़ी है तो भगवान से मिलकर क्यों नहीं आते? इस ताने ने नरसी पर जादू का कार्य किया। ये उसी क्षण घर छोड़कर निकल पड़े और जूनागढ़ से कुछ दूर एक पुराने भगवान शिव के मन्दिर में बैठकर दिन-रात भजन-कीर्तन में लगे रहने और भरण पोषण के लिये कोई कार्य न करने के कारण नरसी मेहता जी के परिवार में उपवास की स्थिति आ जाती थी। इनकी पत्नी ने इनसे बहुत बार कुछ कार्य करने के लिये कहा, किन्तु इनका विश्वास था कि इनके भरण-पोषण की सारी व्यवस्था भगवान स्वयं करेंगे। कहते हैं इनकी पुत्री के विवाह की सम्पूर्ण व्यवस्था भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं की थी। इसी प्रकार इनके पुत्र का विवाह भी भगवत्कृपा से ही सम्पन्न हुआ। नरसी मेहता की कथा के अनुसार एक बार इनकी जाति के लोगों ने कहा कि तुम अपने पिता का श्राद्ध करके सबको भोजन कराओ। नरसी जी ने नरसीजी ने कहा, “भाग्यवान्! तुम धन्य हो। वह मैं नहीं था, भगवान् श्रीकृष्ण थे। तुमने प्रभु का साक्षात् दर्शन किया है। मैं तो साधु-मण्डली में कीर्तन कर रहा था। कीर्तन बन्द हो जाने पर घी लाने की याद आयी और इसे लेकर आया हूँ।” यह सुनकर नरसीजी की पत्नी आश्चर्यसागर में डूब गयीं। इस प्रकार की भगवान की अहेतुकी कृपा की अनेक घटनाएँ नरसी जी के जीवन काल में हुईं। कुछ वर्ष बाद इनकी पत्नी और पुत्र का देहान्त हो गया और ये अपना सम्पूर्ण समय भगवद्भजन में बिताने लगे। परम भक्त नरसी मेहता संसार के असंख्य प्राणियों को भगवत्कृपा एवं भगवद्भक्ति का कल्याणमय पथ दिखाकर अन्त में गोलोकवासी हुए। • ← निंबार्क आचार्य का जीवन परिचय • → सन्दीप शाह सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत...