नवग्रह स्तोत्र संस्कृत

  1. NavaGraha Stotram . नवग्रह स्तोत्रम्
  2. अथ नवग्रह स्तोत्र / navagraha stotram lyrics main
  3. Navagraha Stotram in Sanskrit
  4. Navagraha Stotram with Meaning
  5. Navgrah Stotra in Hindi


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NavaGraha Stotram . नवग्रह स्तोत्रम्

Image by google संस्कृत भाषा में धर्म शास्त्र कई हैं, जैसे कि मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, वैष्णव धर्मशास्त्र, शिव धर्मशास्त्र, बौद्ध धर्मशास्त्र आदि। संस्कृत साहित्य में व्याकरण भी एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है। पाणिनि का अष्टाध्यायी संस्कृत व्याकरण का मूल ग्रंथ है। संस्कृत न्याय शास्त्र भी महत्वपूर्ण है, जो कि तर्कशास्त्र के रूप में जाना जाता है। न्याय सूत्रों, न्यायवैशेषिक और मीमांसा शास्त्र भी संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसके अतिरिक्त, आधुनिक संस्कृत साहित्य में अनेक उपन्यास, कहानियां, कविताएं, नाटक, विज्ञान, इतिहास, धर्म, समाज और संस्कृति से संबंधित अन्य विषयों पर भी लेखन उपलब्ध है। अधिकतम शब्द सीमा के लिए, यह बताया जा सकता है कि संस्कृत साहित्य में अनेक विषयों पर लगभग २०,००० से भी अधिक पुस्तकें उपलब्ध होती हैं।

अथ नवग्रह स्तोत्र / navagraha stotram lyrics main

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम् I तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम् II १ II दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम् I नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् II २ II धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् I कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् II ३ II प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम् I सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् II ४ II देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम् I बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् II ५ II हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् I सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् II ६ II नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् I छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् II ७ II अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् I सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् II ८ II पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम् I रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् II ९ II इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः I दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति II १० II नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् I ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् II ११ II ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः I ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः II १२ II II इति श्रीव्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं II [ स्तोत्र संग्रह ] यहां पर उपयोगी स्तोत्रों की लिस्ट दी जा रही है जो भी स्तोत्र पड़ना हो आप उस पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। इस वेबसाइट पर आने के लिए आप गूगल में टाइप करें - और इस वेबसाइट में आकर धार्मिक ज्ञानप्राप्त करें। सनातन धर्म को जानें। • • अथ नवग्रह स्तोत्र • • • • • • अच्युताष्टकम् • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • •

Navagraha Stotram in Sanskrit

Navagraha Stotram in Sanskrit Lyrics || नवग्रह स्तोत्र || अथ नवग्रह स्तोत्र || श्री गणेशाय नमः || जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम् | तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम् || १ || दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम् | नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् || २ || धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् | कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् || ३ || प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम् | सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् || ४ || देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम् | बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् || ५ || हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् | सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् || ६ || नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् | छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् || ७ || अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् | सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् || ८ || पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम् | रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् || ९ || इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः | दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति || १० || नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् | ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् || ११ || ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः | ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः || १२ || || इति श्रीव्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं ||

Navagraha Stotram with Meaning

नवग्रह स्तोत्र पाठ (Navagraha Stotram) करने से सभी ग्रहो की शांति स्वतः ही हो जाती हे हिन्दू धर्म में ग्रहो को देवता माना जाता हे नवग्रह स्तोत्र पाठ के अतिरिक्त भी शान्ति के अलग-अलग तरीके हैं जिनका उपयोग लोग ग्रहों के उपाय के रूप में अपने जीवन को संतुलित करने के लिए करते हैं। अत्यधिक विश्वास और समर्पण के साथ प्रार्थना के समय नवग्रह स्तोत्र का जप करें। Navagraha Stotram Details: नवग्रह स्तोत्र पाठ नवग्रह स्तोत्र की रचना किसने की? महर्षि वेदव्यास जी संबंधित देवता भाषा संस्कृत और हिंदी सूत्र रवि : सूर्य स्तोत्र इन हिंदी | Sun : Surya Stotra In Hindi and English जपाकुसुमसंकाशं काश्र्यपेयं महाद्युतिम् तमोरिं सर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम् हिंदी में अर्थ : सूर्य देव की कांति जपा के कुसुम के समान हैं, वे कश्यप ऋषि की संतान हैं, वे अंधकार का नाश करते हैं, जो सभी पाप को नष्ट कर देते हैं, ऐसे सूर्य भगवान को मैं नमन करता हूँ। सूर्य गायत्री मंत्र: ॐ भास्कराय विद्मिहे महातेजाय धीमहि। तन्नो: सूर्य: प्रचोदयात।। Japakusuma Samkasham Kashyapeyam Mahadyutim Tamorim Sarva Papagnam Pranatosmi Diwakaram Meaning in English (I Pray To The Sun, The Day-Maker, Destroyer Of All Sins, The Enemy Of Darkness, Of Great Brilliance, The Descendent Of Kaashyapa, The One Who Shines Like The Japaa Flower.) One who looks like the Hibiscus flower, Son of Kashyapa, full of radiance, Foe of darkness and the one who dispells all sins, I prostrate that Surya. चंद्र स्तोत्र इन हिंदी | Moon : Chandra Stotra In Hindi and English दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदर्णवसम्भवम् नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुट्भूषणम् हिंदी में अर्थ...

Navgrah Stotra in Hindi

WhatsApp Telegram Facebook Twitter LinkedIn Navgrah Stotra or Navgrah Mantra was written by Rishi Veda Vyasa. It comprises a set of hymns for worshipping the Navagrahas or the nine planets. The Navagrahas are highly powerful and influential forces of the universe that coordinate the life of people on the earth. Each of these nine planets has been ascribed with certain qualities that they bestow on all of us. Depending on the position of the planets and their interactions with other planets in the horoscope, individuals face beneficial or malefic results in their lives. Get Navgrah Stotra in Hindi lyrics here and chant the Navgrah mantra daily during prayer time with utmost faith and dedication. Worshipping these nine planets with Navgrah stotram can invite their blessings and their presence can have benevolent effect on the worshipper and his activities. नवग्रह स्तोत्र वेद व्यास लिखा था। इसमें नव ग्रहों या नौ ग्रहों की पूजा करने वाले छंद शामिल हैं। ब्रह्माण्ड में नवग्रह सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली बल हैं, जो पृथ्वी पर लोगों के जीवन का समन्वय करते हैं। इन नौ ग्रहों में से प्रत्येक को कुछ विशेषताओं के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, जो हम सभी के लिए सर्वोत्तम है। कुंडली में ग्रहों की स्थिति और अन्य ग्रहों के साथ उनकी बातचीत के आधार पर, व्यक्ति अपने जीवन में लाभकारी या हानिकारक परिणाम का अनुभव कर सकते हैं। अत्यधिक विश्वास और समर्पण के साथ प्रार्थना के समय नवग्रह स्तोत्र का जप करें। इन नौ ग्रहों की पूजा करने से उनके आशीर्वाद को आमंत्रित किया जा सकता है और उनकी उपस्थिति उपासक और...

नवग्रह

भक्तामर - प्रणत - मौलि - मणि -प्रभाणा- मुद्योतकं दलित - पाप - तमो - वितानम्। सम्यक् -प्रणम्य जिन - पाद - युगं युगादा- वालम्बनं भव - जले पततां जनानाम्।। 1॥ य: संस्तुत: सकल - वाङ् मय - तत्त्व-बोधा- दुद्भूत-बुद्धि - पटुभि: सुर - लोक - नाथै:। स्तोत्रैर्जगत्- त्रितय - चित्त - हरैरुदारै:, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥ 2॥ बुद्ध्या विनापि विबुधार्चित - पाद - पीठ! स्तोतुं समुद्यत - मतिर्विगत - त्रपोऽहम्। बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब- मन्य: क इच्छति जन: सहसा ग्रहीतुम्॥ 3॥ वक्तुं गुणान्गुण -समुद्र ! शशाङ्क-कान्तान्, कस्ते क्षम: सुर - गुरु-प्रतिमोऽपि बुद्ध्या। कल्पान्त -काल - पवनोद्धत- नक्र- चक्रं , को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम्॥ 4॥ सोऽहं तथापि तव भक्ति - वशान्मुनीश! कर्तुं स्तवं विगत - शक्ति - रपि प्रवृत्त:। प्रीत्यात्म - वीर्य - मविचार्य मृगी मृगेन्द्रम् नाभ्येति किं निज-शिशो: परिपालनार्थम्॥ 5॥ अल्प- श्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्-भक्तिरेव मुखरी-कुरुते बलान्माम्। यत्कोकिल: किल मधौ मधुरं विरौति, तच्चाम्र -चार कल्याण-मन्दिरमुदारमवद्यभेदि , भीता-भयप्रदमनिन्दितमङ्-धिपद्मम्। संसार-सागर-निमज्जदशेषजंतु - पोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य॥ 1॥ यस्य स्वयं सुरगुरुर्गरिमाम्बुराशे:, स्तोत्रं सुविस्तृतमतिर्न विभुर्विधातुम्। तीर्थेश्वरस्य कमठस्मयधूमकेतोस् तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये॥ 2॥ सामान्यतोऽपि तव वर्णयितुं स्वरूप- मस्मादृशा: कथमधीश भवन्त्यधीशा:। धृष्टोऽपि कौशिकशिशुर्यदि वा दिवान्धो रूपं प्ररूपयति किं किल घर्मरश्मे: ॥ 3॥ मोहक्षयादनु-भवन्नपि नाथ मत्र्यो नूनं गुणान्गणयितुं न तव क्षमेत। कल्पान्तवान्तपयस: प्रकटोऽपि यस्मान् मीयेत केन जलधेर्ननु रत्नराशि:॥ 4॥ अभ्युद्यतोऽस्मि त...