न्यायालय

  1. न्यायालय
  2. Rs. 2000 Note बदलने के RBI के फैसले पर तत्काल सुनवाई से न्यायालय का इनकार
  3. Supreme Court of India
  4. भारताचे सर्वोच्च न्यायालय
  5. प्रथम दृष्टया तथ्य होने पर ही आपराधिक कार्यवाही : कर्नाटक उच्च न्यायालय – ThePrint Hindi


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न्यायालय

अनुक्रम • 1 भारत में न्यायालय का इतिहास • 2 न्यायालयों के भेद • 3 इन्हें भी देखें • 4 संदर्भ • 5 बाहरी कड़ियाँ भारत में न्यायालय का इतिहास [ ] भारतीय न्यायालयों की वर्तमान प्रणाली किसी विशेष प्राचीन परंपरा से संबद्ध नहीं है। मुगल काल में दो प्रमुख न्यायालयों का उल्लेख मिलता हैः सदर दीवानी अदालत तथा सदर निजाम-ए-अदालत, जहाँ क्रमशः व्यवहारवाद तथा आपराधिक मामलों की सुनवाई होती थी। सन् 1857 ई. के असफल स्वातंत्र्ययुद्ध के पश्चात् अंग्रेजी न्याय-प्रशासन-प्रणाली के आधार पर विभिन्न न्यायालयों की सृष्टि हुई। इंग्लैंड में स्थित प्रिवी काउंसिल भारत की सर्वोच्च न्यायालय थी। सन् 1947 ई. में देश स्वतंत्र हुआ और तत्पश्चात् न्यायालयों के भेद [ ] न्यायालयों को उनके भेदानुसार विभिन्न वर्गों में बाँटा जा सकता है, जैसे उच्च तथा निम्न न्यायालय, अभिलेख न्यायालय तथा वे जो अभिलेख न्यायालय नहीं है, व्यावहारिक, राजस्व तथा दंड न्यायालय, प्रथम न्यायालय तथा अपील न्यायालय और सैनिक तथा अन्यान्य न्यायालय। अन्य न्यायालय कार्यक्षेत्रानुसार इस प्रकार हैः (1) व्यावहारिक न्यायालय, जैसे सिविल जज तथा मुंसिफ के न्यायालय और लघुवाद न्यायालय (कोर्ट ऑव स्माल काजे़ज़), (2) दंड न्यायालय, जैसे (3) राजस्व न्यायालय, जैसे जिलाधीश (कलक्टर) तथा आयुक्त (कमिश्नर) के न्यायालय। इन्हें भी देखें [ ] • संदर्भ [ ] बाहरी कड़ियाँ [ ] • • pib.gov.in . अभिगमन तिथि 2020-05-28. • • አማርኛ • العربية • ܐܪܡܝܐ • Asturianu • Azərbaycanca • تۆرکجه • Башҡортса • Беларуская • Беларуская (тарашкевіца) • Български • Brezhoneg • Bosanski • Català • ᏣᎳᎩ • کوردی • Čeština • Словѣньскъ / ⰔⰎⰑⰂⰡⰐⰠⰔⰍⰟ • Чӑвашла • Cymraeg • Dansk • Deutsch • Zazaki • Ελληνικ...

Rs. 2000 Note बदलने के RBI के फैसले पर तत्काल सुनवाई से न्यायालय का इनकार

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Supreme Court of India

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भारताचे सर्वोच्च न्यायालय

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प्रथम दृष्टया तथ्य होने पर ही आपराधिक कार्यवाही : कर्नाटक उच्च न्यायालय – ThePrint Hindi

बेंगलुरु, 13 जून (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए प्रथम दृष्टया तथ्य अवश्य होने चाहिए अन्यथा यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के सांगली के किसान विपुल प्रकाश पाटिल के खिलाफ एक आपराधिक मामले को खारिज करते हुए अपने हालिया आदेश में कहा, ‘‘इस अदालत का मानना है कि किसी भी प्रथम दृष्टया दस्तावेजी सबूत के अभाव में कथित धोखाधड़ी में याचिकाकर्ता को फंसाने के लिए उसके खिलाफ शिकायत का पंजीकरण ही अनावश्यक है और इसके परिणामस्वरूप न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग हुआ है।’ चिक्कोडी पुलिस ने पाटिल के खिलाफ शिवानंद मगाडुमा नामक एक व्यक्ति द्वारा ‘कर्नाटक वित्तीय प्रतिष्ठान में ब्याज जमाकर्ताओं का संरक्षण अधिनियम, 2004’ (केपीआईडी एक्ट) की धारा नौ तथा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 406 और 420 के तहत दर्ज शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया था। यह आरोप लगाया गया था कि पाटिल और तीन अन्य ने एक लाख रुपये का निवेश करने पर 15,000 रुपये की 10 किस्त वापस करने का वादा किया था। न्यायमूर्ति श्रीशानंद की पीठ ने 30 मई को अपने फैसले में कहा, ‘‘किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए, शिकायतकर्ता या अभियोजन एजेंसी को प्रथम दृष्टया ऐसा मामला दिखाना होता है, जहां कथित अपराध और उस व्यक्ति के बीच संबंध स्थापित हो सके। यदि ऐसी सामग्री उपलब्ध नहीं है, तो उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज करना निश्चित रूप से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित नागरिक के अधिकार को प्रभावित करेगा।’’ भाषा सुरेश अविनाश अविनाश यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वा...