ओंगल गाय

  1. ओंगल नस्ल की गाय रिकार्ड 13 करोड़ में बिकी, पूरा मामला जानकर रह जाएंगे दंग
  2. ओंगल नस्ल की गाय रिकार्ड 13 करोड़ में बिकी, पूरा मामला जानकर रह जाएंगे दंग
  3. भारतीय गाय इस धरती पर सभी गायो मे सर्वश्रेष्ठ क्यों है ?
  4. नेल्लूर गाय
  5. वर्ग:Articles with 'species' microformats
  6. ओंगल गाय
  7. गाय
  8. भारतीय गाय इस धरती पर सभी गायो मे सर्वश्रेष्ठ क्यों है ?
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ओंगल नस्ल की गाय रिकार्ड 13 करोड़ में बिकी, पूरा मामला जानकर रह जाएंगे दंग

ओंगल नस्ल की गाय रिकार्ड 13 करोड़ में बिकी, पूरा मामला जानकर... • • • • • ओंगल नस्ल की गाय रिकार्ड 13 करोड़ में बिकी, पूरा मामला जानकर रह जाएंगे दंग चौंकिये मत! भारतीय नस्ल की एक गाय रिकार्ड 13 करोड़ रुपये में बिकी है। केंद्रीय पशु पालन, मत्स्य पालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रुपाला ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ब्राजील में भारतीय ओंगल नस्ल की एक गाय 13 करोड़ रुपये में बिकी है, जो चौकाने वाली है। नई दिल्ली। चौंकिये मत! भारतीय नस्ल की एक गाय रिकार्ड 13 करोड़ रुपये में बिकी है। केंद्रीय पशु पालन, मत्स्य पालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रुपाला ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ब्राजील में भारतीय ओंगल नस्ल की एक गाय 13 करोड़ रुपये में बिकी है, जो चौकाने वाली है। उन्होंने कहा कि इसी सप्ताह गाय की बिक्री हुयी है। शाहीवाल कांकरेज और कई अन्य नस्लों की गाय विदेशों में है जो भारी मात्रा में दूध देती है। रुपाला ने कहा कि भारतीय नस्ल की दुधारु पशुओं की विशेषताओं को लेकर किसानों तथा पशु पालकों को जागरुक किये जाने की जरुरत है। उन्होंनें कहा कि भारतीय नस्लों के पशुओं में नस्ल सुघार के लिए अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं और इनमें से कई के बेहतर परिणाम भी सामने आने लगे हैं। ओंगल नस्ल की गाय मूल रुप से आन्ध्रप्रदेश के प्रकाशम जिले की है। यह नस्ल ‘मुंह पक खूर पक’ और ‘मैड काऊ’ रोग प्रतिरोधी है जिसके कारण दुनिया भर में इसकी लोकप्रियता है। शक्तिशाली और आक्रामक गुणों के कारण इस नस्ल का उपयोग पूर्वी अफ्रीका और मैक्सिको ‘बुलफाइट’ में भी किया जाता है। अमेरिका, नीदरलैंड, मलेशिया, ब्राजील, कोलम्बिया, पुर्तगाल, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, फिजी, मारिशस तथा कई अन्य देशों में ओंगल नस्ल की गायें...

ओंगल नस्ल की गाय रिकार्ड 13 करोड़ में बिकी, पूरा मामला जानकर रह जाएंगे दंग

ओंगल नस्ल की गाय रिकार्ड 13 करोड़ में बिकी, पूरा मामला जानकर रह जाएंगे दंग चौंकिये मत! भारतीय नस्ल की एक गाय रिकार्ड 13 करोड़ रुपये में बिकी है। केंद्रीय पशु पालन, मत्स्य पालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रुपाला ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ब्राजील में भारतीय ओंगल नस्ल की एक गाय 13 करोड़ रुपये में बिकी है, जो चौकाने वाली है। नई दिल्ली। चौंकिये मत! भारतीय नस्ल की एक गाय रिकार्ड 13 करोड़ रुपये में बिकी है। केंद्रीय पशु पालन, मत्स्य पालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रुपाला ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ब्राजील में भारतीय ओंगल नस्ल की एक गाय 13 करोड़ रुपये में बिकी है, जो चौकाने वाली है। ये भी पढ़ेंः उन्होंने कहा कि इसी सप्ताह गाय की बिक्री हुयी है। शाहीवाल कांकरेज और कई अन्य नस्लों की गाय विदेशों में है जो भारी मात्रा में दूध देती है। रुपाला ने कहा कि भारतीय नस्ल की दुधारु पशुओं की विशेषताओं को लेकर किसानों तथा पशु पालकों को जागरुक किये जाने की जरुरत है। उन्होंनें कहा कि भारतीय नस्लों के पशुओं में नस्ल सुघार के लिए अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं और इनमें से कई के बेहतर परिणाम भी सामने आने लगे हैं। ये भी पढ़ेंः ओंगल नस्ल की गाय मूल रुप से आन्ध्रप्रदेश के प्रकाशम जिले की है। यह नस्ल 'मुंह पक खूर पक' और 'मैड काऊ' रोग प्रतिरोधी है जिसके कारण दुनिया भर में इसकी लोकप्रियता है। शक्तिशाली और आक्रामक गुणों के कारण इस नस्ल का उपयोग पूर्वी अफ्रीका और मैक्सिको 'बुलफाइट' में भी किया जाता है। अमेरिका, नीदरलैंड, मलेशिया, ब्राजील, कोलम्बिया, पुर्तगाल, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, फिजी, मारिशस तथा कई अन्य देशों में ओंगल नस्ल की गायें पायी जाती है। • गर्मियों में त्वचा की देखभाल के...

भारतीय गाय इस धरती पर सभी गायो मे सर्वश्रेष्ठ क्यों है ?

यह जानकार आपको शायद झटका लगेगा की हमने अपनी देशी गायों को गली-गली आवारा घूमने के लिए छोड़ दिया है । क्यूंकी वे दूध कम देती हैं । इसलिए उनका आर्थिक मोल कम है , लेकिन ब्राज़ील हमारी इन देशी गायो की नस्ल का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है । जबकि भारत अमेरिका और यूरोप से घरेलू दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए विदेशी प्रजाती की गायों का आयात करता है । वास्तव मे 3 महत्वपूर्ण भारतीय प्रजाती गिर, कंकरेज , व ओंगल की गाय जर्सी गाय से भी अधिक दूध देती हैं । यंहा तक की भारतीय प्रजाती की गाये होलेस्टेन फ्राइजीयन जैसी विदेशी प्रजाती की गाय से भी ज्यादा दूध देती है । और भारत विदेशी प्रजाती की गाय का आयात करता है जिनकी रोगो से लड़ने की क्षमता ( वर्ण संकर जाती के कारण ) भी बहुत कम होती है । हाल ही मे ब्राज़ील मे दुग्ध उत्पादन की प्रतियोगिता हुई थी जिसमे भारतीय प्रजाती की गिर ने गाय एक दिन मे 48 लीटर दूध दिया । तीन दिन तक चली इस प्रतियोगिता मे दूसरा स्थान भी भारतीय प्राजाती की गाय गिर को ही प्राप्त हुआ । इस गाय ने एक दिन मे 45 लीटर दूध दिया । तीसरा स्थान भी आंध्रप्रदेश के ओंगल नस्ल की गाय ( जिसे ब्राज़ील मे नेरोल कहा जाता है ) को मिला उसने भी एक दिन मे 45 लीटर दूध दिया । केवल ज्यादा दुग्ध उत्पादन की ही बात क्यूँ करे ? भारतीय नस्ल की गाय स्थानीय महोल मे अच्छी तरह ढली हुई हैं वे भीषण गर्मी भी सह सकती हैं । उन्हे कम पानी चाहिए , वे दूर तक चल सकती हैं । वे अनेक संक्रामक रोगो का मुक़ाबला कर सकती हैं । अगर उन्हे सही खुराक और सही परिवेश मिले तो वे उच्च उत्पादक भी बन सकती हैं । हमारी देशी गयो मे ओमेगा -6 फेटी एसीड्स होता है जो केंसर नियंत्रण मे सहायक होता है । विडम्बना देखिए ओमेगा -6 के लिए एक बड़ा उद्योग ...

नेल्लूर गाय

• • Hybrid Bos (primigenius) taurus/indicus Close ▲ त्याकाळी ओंगल गोवंश हा • काटक, निरोगी आणि भरल्या अंगाचा गोवंश. • थंडी वगळता, उष्ण, दमट, कोरडे किंवा इतर प्रतिकूल वातावरणात सहज टिकणारा गोवंश. • ८ मिलिमीटर पेक्षा अधिक जाड कातडे, त्यामुळे रक्तशोषक किडींना न बाधणारा गोवंश. • उत्तर पचनक्षमता, त्यामुळे खास विशिष्ट खुराक नाही दिला तरी चालतो. • उत्तम चविष्ट मांस. • उत्तम प्रजोत्पादन क्षमता. • शांत, लाजाळू आणि वात्सल्यपूर्ण स्वभाव. [1] [2] या गोवंशाचा वापर अमेरिकेतील [3] आज ब्राझील मधून हा गोवंश [4]

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ओंगल गाय

• • Bos (primigenius) indicus ओंगल गाय हा शुद्ध भारतीय गोवंश असून, याचे मूळ आंध्रप्रदेशातील शारीरिक रचना [ ] हा गोवंश भरलेल्या अंगकाठीचा असून या बैलाचे वजन बऱ्याच वेळा ५०० किलोपर्यंत भरते. हा गोवंश पांढऱ्या रंगाचा असून बैल व सांड हे गाईपेक्षा मोठे व रुबाबदार असतात. या गोवंशाची मान आखूड, राखाडी रंगाची असून डोके मोठे आणि त्रिकोणी असते. या गोवंशातील गाईंचे कपाळ मोठे रुंद आणि भरीव असून त्यांचे डोळे मोठे आणि काळेभोर असतात. या गोवंशाचे कान मोठे असून टोकदार व आतून गडद राखाडी असतात. या गोवंशाचे शिंग मध्यम ते आखूड असून मुळाशी जाड असतात. शिंगांचा आकार मागे बाहेर वळलेला असून शेवटी टोकदार असतात. गायीचे शिंग थोडे पातळ असून बऱ्याचदा टोकाशी थोडे बाहेरून आत वळलेले असतात. शिंगांचा रंग काळा असतो. या गोवंशाचे लांब मजबूत आणि मांसल पाय असून खूर आणि खुराभोवतालचा आणि पुढे सांध्यापर्यंतचा भाग गडद काळपट असतो. त्याचप्रमाणे गुढघेसुद्धा काळ्या रंगाचे असतात. पाठीवर मोठे मांसल कमनीय वशिंड असून वशिंडाचा रंग राखाडी असतो. शेपटी मध्यम लांबीची असून शेपुटगोंडा लांब, काळा आणि झुपकेदार असतो. वैशिष्ट्य [ ] आखूड मान, मोजक्या लांबीचे शिंग, डोळे, मान, कानाचा आतील भाग राखाडी रंगाचा आणि रुबाबदार चाल हे या गोवंशाचे वैशिष्ट्य आहे. हा गोवंश भारताबाहेर राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्डाच्या (NDDB) निकषानुसार हा दुहेरी हेतूचा गोवंश म्हणून ओळखला जातो हा गोवंश भारताबाहेर

गाय

अनुक्रम • 1 गाय राठी गर्भ से संबन्धित जानकारी21,4,2021 • 2 भारतीय गाय • 2.1 साहीवाल जाति • 2.2 सिंधी • 2.3 काँकरेज • 2.4 मालवी • 2.5 नागौरी • 2.6 थारपारकर • 2.7 पवाँर • 2.8 भगनाड़ी • 2.9 दज्जल • 2.10 गावलाव • 2.11 हरियाना • 2.12 अंगोल या नीलोर • 2.13 राठी • 3 विदेशी नस्ल की गाय की उत्पति • 4 प्रमुख देशों में गायों की संख्या • 5 सन्दर्भ • 6 इन्हें भी देखें • 7 बाहरी कड़ियाँ गाय राठी गर्भ से संबन्धित जानकारी21,4,2021 [ ] • सम्भोग काल - वर्षभर, तथा गर्मिओं में अधिक • वर्ष में गर्मी के आने का समय - हर 18 से 21 दिन (गर्भ न ठहरने पर); 30 से 60 दिन में (व्याने के बाद) • गर्मी की अवधि - 20 से 36 घंटे तक • कृत्रिम गर्भधान व वीर्य डालने का समय - मदकाल आरम्भ होने के 12 से 18 घंटे बाद • गर्भ जांच करवाने का समय - कृत्रिम गर्भधान का टीका कराने के 60 से 90 दिनों में • गर्भकाल - गाय 275 से 280 दिन; भैंस 308 दिन भारतीय गाय [ ] वैदिक गाय (गौमाता) ऋषि को दी गई ताकि उसके दिव्य अमृत • भारतीय गाय की मुख्य २ विशेषताएँ हैं- • (१) सुन्दर कूबड़ (HUMP) • (२) उनकी पीठ पर और गर्दन के नीचे त्वचा का झुकाव है: गलकंबल (DEWLAP) लोकोपयोगी दृष्टि में भारतीय गाय को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। पहले वर्ग में वे गाएँ आती हैं जो दूध तो खूब देती हैं, लेकिन उनकी पुंसंतान अकर्मण्य अत: कृषि में अनुपयोगी होती है। इस प्रकार की गाएँ दुग्धप्रधान एकांगी नस्ल की हैं। दूसरी गाएँ वे हैं जो दूध कम देती हैं किंतु उनके बछड़े कृषि और गाड़ी खींचने के काम आते हैं। इन्हें वत्सप्रधान एकांगी नस्ल कहते हैं। कुछ गाएँ दूध भी प्रचुर देती हैं और उनके बछड़े भी कर्मठ होते हैं। ऐसी गायों को सर्वांगी नस्ल की गाय कहते हैं। भारत की ...

भारतीय गाय इस धरती पर सभी गायो मे सर्वश्रेष्ठ क्यों है ?

यह जानकार आपको शायद झटका लगेगा की हमने अपनी देशी गायों को गली-गली आवारा घूमने के लिए छोड़ दिया है । क्यूंकी वे दूध कम देती हैं । इसलिए उनका आर्थिक मोल कम है , लेकिन ब्राज़ील हमारी इन देशी गायो की नस्ल का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है । जबकि भारत अमेरिका और यूरोप से घरेलू दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए विदेशी प्रजाती की गायों का आयात करता है । वास्तव मे 3 महत्वपूर्ण भारतीय प्रजाती गिर, कंकरेज , व ओंगल की गाय जर्सी गाय से भी अधिक दूध देती हैं । यंहा तक की भारतीय प्रजाती की गाये होलेस्टेन फ्राइजीयन जैसी विदेशी प्रजाती की गाय से भी ज्यादा दूध देती है । और भारत विदेशी प्रजाती की गाय का आयात करता है जिनकी रोगो से लड़ने की क्षमता ( वर्ण संकर जाती के कारण ) भी बहुत कम होती है । हाल ही मे ब्राज़ील मे दुग्ध उत्पादन की प्रतियोगिता हुई थी जिसमे भारतीय प्रजाती की गिर ने गाय एक दिन मे 48 लीटर दूध दिया । तीन दिन तक चली इस प्रतियोगिता मे दूसरा स्थान भी भारतीय प्राजाती की गाय गिर को ही प्राप्त हुआ । इस गाय ने एक दिन मे 45 लीटर दूध दिया । तीसरा स्थान भी आंध्रप्रदेश के ओंगल नस्ल की गाय ( जिसे ब्राज़ील मे नेरोल कहा जाता है ) को मिला उसने भी एक दिन मे 45 लीटर दूध दिया । केवल ज्यादा दुग्ध उत्पादन की ही बात क्यूँ करे ? भारतीय नस्ल की गाय स्थानीय महोल मे अच्छी तरह ढली हुई हैं वे भीषण गर्मी भी सह सकती हैं । उन्हे कम पानी चाहिए , वे दूर तक चल सकती हैं । वे अनेक संक्रामक रोगो का मुक़ाबला कर सकती हैं । अगर उन्हे सही खुराक और सही परिवेश मिले तो वे उच्च उत्पादक भी बन सकती हैं । हमारी देशी गयो मे ओमेगा -6 फेटी एसीड्स होता है जो केंसर नियंत्रण मे सहायक होता है । विडम्बना देखिए ओमेगा -6 के लिए एक बड़ा उद्योग ...

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ओंगल गाय

• • Bos (primigenius) indicus ओंगल गाय हा शुद्ध भारतीय गोवंश असून, याचे मूळ आंध्रप्रदेशातील शारीरिक रचना [ ] हा गोवंश भरलेल्या अंगकाठीचा असून या बैलाचे वजन बऱ्याच वेळा ५०० किलोपर्यंत भरते. हा गोवंश पांढऱ्या रंगाचा असून बैल व सांड हे गाईपेक्षा मोठे व रुबाबदार असतात. या गोवंशाची मान आखूड, राखाडी रंगाची असून डोके मोठे आणि त्रिकोणी असते. या गोवंशातील गाईंचे कपाळ मोठे रुंद आणि भरीव असून त्यांचे डोळे मोठे आणि काळेभोर असतात. या गोवंशाचे कान मोठे असून टोकदार व आतून गडद राखाडी असतात. या गोवंशाचे शिंग मध्यम ते आखूड असून मुळाशी जाड असतात. शिंगांचा आकार मागे बाहेर वळलेला असून शेवटी टोकदार असतात. गायीचे शिंग थोडे पातळ असून बऱ्याचदा टोकाशी थोडे बाहेरून आत वळलेले असतात. शिंगांचा रंग काळा असतो. या गोवंशाचे लांब मजबूत आणि मांसल पाय असून खूर आणि खुराभोवतालचा आणि पुढे सांध्यापर्यंतचा भाग गडद काळपट असतो. त्याचप्रमाणे गुढघेसुद्धा काळ्या रंगाचे असतात. पाठीवर मोठे मांसल कमनीय वशिंड असून वशिंडाचा रंग राखाडी असतो. शेपटी मध्यम लांबीची असून शेपुटगोंडा लांब, काळा आणि झुपकेदार असतो. वैशिष्ट्य [ ] आखूड मान, मोजक्या लांबीचे शिंग, डोळे, मान, कानाचा आतील भाग राखाडी रंगाचा आणि रुबाबदार चाल हे या गोवंशाचे वैशिष्ट्य आहे. हा गोवंश भारताबाहेर राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्डाच्या (NDDB) निकषानुसार हा दुहेरी हेतूचा गोवंश म्हणून ओळखला जातो हा गोवंश भारताबाहेर