पंच परमेश्वर कहानी के लेखक हैं

  1. मुंशी प्रेमचंद की कहानी : पंच परमेश्वर
  2. कहानी: 'पंच परमेश्वर'
  3. 'पंच परमेश्वर' कहानी के लेखक कौन हैं?
  4. Panch Parmeshwar Munshi Premchand Ki Kahani
  5. पंच परमेश्वर: मुंशी प्रेमचंद की कहानी
  6. पंच परमेश्वर


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मुंशी प्रेमचंद की कहानी : पंच परमेश्वर

जुम्मन शेख और अलगू चौधरी दो पक्के दोस्त थे। वो हिस्सेदारी में खेती करते थे, यहां तक कि उनका कुछ लेन-देन भी एक साथ होता था। दोनों एक दूसरे पर पूरा विश्वास करते थे। जुम्मन जब हज पर गया, तो अलगू पर अपने घर की जिम्मेदारी छोड़ गया था और जब अलगू बाहर किसी काम से जाता, तो जुम्मन को अपने घर की जिम्मेदारी दे दिया करता था। अलग-अलग धर्म के होने के बावजूद दोनों के बीच भाइयों जैसा प्यार था और यही उनकी दोस्ती का मूल मंत्र भी था। जुम्मन शेख की एक बूढ़ी मौसी (खाला) थी, जिनके पास थोड़ी बहुत जमीन थी। जुम्मन के अलावा उसका कोई नहीं था। जुम्मन ने किसी तरीके से वो जमीन अपने नाम करवा ली थी। जमीन की रजिस्ट्री जुम्मन के नाम न होने तक मौसी का खूब ख्याल रखा गया। अच्छा खाना, अच्छा व्यवहार व आदर सब मिलता था, लेकिन एक बार जब रजिस्ट्री हुई, तो ये सब भी जाता रहा। जुम्मन की बीवी रोटियों के साथ मौसी को ताने देने लगी। जुम्मन शेख भी कुछ नहीं कहता। जुम्मन की मौसी को उसकी बहू ताने मारती, “दो-तीन बीघा जमीन क्या दे दी, मानो मोल ही ले लिया हो।” मौसी ने कुछ दिन तक तो ये सहा, लेकिन जब उससे रहा नहीं गया, तो उसने इसकी शिकायत जुम्मन से कर दी, लेकिन जुम्मन ने औरतों के मामले में दखल देना सही नहीं समझा। कुछ दिन तक तो ये सब यूं ही चलता रहा, लेकिन जब मौसी से ये सब सहा नहीं गया, तो उसने जुम्मन से कहा, “बेटा अब मेरा तुम्हारे साथ निभ नहीं पाएगा। एक काम करो, मुझे हर महीने पैसे दे दिया करो, मैं अपना गुजारा कर लूंगी।” जुम्मन ने बड़े ही रूखेपन से जवाब देते हुए कहा, “पैसे क्या पेड़ पर लगते हैं?” मौसी ने बड़े ही नम्र भाव से कहा, “मेरे पास रोजी-रोटी के लिए कुछ तो होना चाहिए?” पर जुम्मन मुकर गया। इस पर मौसी गुस्सा हो गई और उसने पंचाय...

कहानी: 'पंच परमेश्वर'

‘Panch Parmeshwar’, a story by Premchand जुम्मन शेख और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी साझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गये थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गये थे, और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ देते थे। उनमें न खान-पान का व्यवहार था, न धर्म का नाता, केवल विचार मिलते थे। मित्रता का मूलमंत्र भी यही है। इस मित्रता का जन्म उसी समय हुआ, जब दोनों मित्र बालक ही थे, और जुम्मन के पूज्य पिता, जुमराती, उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे। अलगू ने गुरु जी की बहुत सेवा की थी, खूब रकाबियाँ माँजी, खूब प्याले धोये। उनका हुक्का एक क्षण के लिए भी विश्राम न लेने पाता था, क्योंकि प्रत्येक चिलम अलगू को आध घंटे तक किताबों से अलग कर देती थी। अलगू के पिता पुराने विचारों के मनुष्य थे। उन्हें शिक्षा की अपेक्षा गुरु की सेवा-शुश्रूषा पर अधिक विश्वास था। वह कहते थे कि विद्या पढ़ने से नहीं आती; जो कुछ होता है, गुरु के आशीर्वाद से। बस, गुरु जी की कृपा-दृष्टि चाहिए। अतएव यदि अलगू पर जुमराती शेख के आशीर्वाद अथवा सत्संग का कुछ फल न हुआ, तो यह मानकर संतोष कर लेगा कि विद्योपार्जन में उसने यथाशक्ति कोई बात उठा नहीं रखी, विद्या उसके भाग्य ही में न थी, तो कैसे आती? मगर जुमराती शेख स्वयं आशीर्वाद के कायल न थे। उन्हें अपने सोटे पर अधिक भरोसा था, और उसी सोटे के प्रताप से आज आस-पास के गाँवों में जुम्मन की पूजा होती थी। उनके लिखे हुए रेहननामे या बैनामे पर कचहरी का मुहर्रिर भी कलम न उठा सकता था। हलके का डाकिया, कांस्टेबिल और तहसील का चपरासी- सब उनकी कृपा की आकांक्षा रखते थे। अतएव अलगू का मान उनके धन के कारण था, तो जुम्मन शेख अपनी अनमोल विद...

'पंच परमेश्वर' कहानी के लेखक कौन हैं?

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Panch Parmeshwar Munshi Premchand Ki Kahani

जुम्मन शेख अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी साझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गये थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गये थे, और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ देते थे। उनमें न खाना-पाना का व्यवहार था, न धर्म का नाता; केवल विचार मिलते थे। मित्रता का मूलमंत्र भी यही है। इस मित्रता का जन्म उसी समय हुआ, जब दोनों मित्र बालक ही थे, और जुम्मन के पूज्य पिता, जुमराती, उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे। अलगू ने गुरूजी की बहुत सेवा की थी, खूब प्याले धोये। उनका हुक्का एक क्षण के लिए भी विश्राम न लेने पाता था, क्योंकि प्रत्येक चिलम अलगू को आध घंटे तक किताबों से अलग कर देती थी। अलगू के पिता पुराने विचारों के मनुष्य थे। उन्हें शिक्षा की अपेक्षा गुरु की सेवा-सुश्रूषा पर अधिक विश्वास था। वह कहते थे कि विद्या पढ़ने ने नहीं आती; जो कुछ होता है, गुरु के आशीर्वाद से। बस, गुरुजी की कृपा-दृष्टि चाहिए। अतएव यदि अलगू पर जुमराती शेख के आशीर्वाद अथवा सत्संग का कुछ फल न हुआ, तो यह मानकर संतोष कर लेना कि विद्योपार्जन में मैंने यथाशक्ति कोई बात उठा नहीं रखी, विद्या उसके भाग्य ही में न थी, तो कैसे आती? मगर जुमराती शेख स्वयं आशीर्वाद के कायल न थे। उन्हें अपने सोटे पर अधिक भरोसा था, और उसी सोटे के प्रताप से आज-पास के गाँवों में जुम्मन की पूजा होती थी। उनके लिखे हुए रेहननामे या बैनामे पर कचहरी का मुहर्रिर भी कदम न उठा सकता था। हल्के का डाकिया, कांस्टेबिल और तहसील का चपरासी – सब उनकी कृपा की आकांक्षा रखते थे। अतएव अलगू का मान उनके धन के कारण था, तो जुम्मन शेख अपनी अनमोल विद्या से ही सबके आदरपात्र बने थे। (२) जुम्मन शेख की एक बूढ़ी ख़ाला ...

पंच परमेश्वर: मुंशी प्रेमचंद की कहानी

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पंच परमेश्वर

Panch Parmeshwar Munshi Premchand ki kahani Panch Parmeshwar जुम्मन शेख और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी साझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गये थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गये थे, और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ देते थे। उनमें न खान-पान का व्यवहार था, न धर्म का नाता; केवल विचार मिलते थे। मित्रता का मूलमंत्र भी यही है। इस मित्रता का जन्म उसी समय हुआ, जब दोनों मित्र बालक ही थे; और जुम्मन के पूज्य पिता, जुमराती, उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे। अलगू ने गुरु जी की बहुत सेवा की थी, खूब रकाबियाँ माँजी, खूब प्याले धोये। उनका हुक्का एक क्षण के लिए भी विश्राम न लेने पाता था; क्योंकि प्रत्येक चिलम अलगू को आध घंटे तक किताबों से अलग कर देती थी। यहाँ पढ़ें : अलगू के पिता पुराने विचारों के मनुष्य थे। उन्हें शिक्षा की अपेक्षा गुरु की सेवा-शुश्रूषा पर अधिक विश्वास था। वह कहते थे कि विद्या पढ़ने से नहीं आती; जो कुछ होता है, गुरु के आशीर्वाद से। बस, गुरु जी की कृपा-दृष्टि चाहिए। अतएव यदि अलगू पर जुमराती शेख के आशीर्वाद अथवा सत्संग का कुछ फल न हुआ, तो यह मानकर संतोष कर लेगा कि विद्योपार्जन में उसने यथाशक्ति कोई बात उठा नहीं रखी, विद्या उसके भाग्य ही में न थी, तो कैसे आती ? मगर जुमराती शेख स्वयं आशीर्वाद के कायल न थे। उन्हें अपने सोटे पर अधिक भरोसा था, और उसी सोटे के प्रताप से आज आस-पास के गाँवों में जुम्मन की पूजा होती थी। उनके लिखे हुए रेहननामे या बैनामे पर कचहरी का मुहर्रिर भी कलम न उठा सकता था। हलके का डाकिया, कांस्टेबिल और तहसील का चपरासी-सब उनकी कृपा की आकांक्षा रखते थे। अतएव अलगू का मान उनके धन के कारण...