पानीपत का प्रथम, द्वितीय तृतीय युद्ध

  1. पानीपत का तृतीय युद्ध कारण, घटनाएं, परिणाम
  2. पानीपत का तृतीय युद्ध
  3. पानीपत का प्रथम, द्वितीय तृतीय युद्ध कब हुआ
  4. Panipat ki ladai
  5. पानीपत का प्रथम युद्ध : कारण, घटनाएँ, परिणाम
  6. पानीपत का प्रथम युद्ध
  7. पानीपत का युद्ध (प्रथम, द्वितीय, तृतीय) The Battle of Panipat 1, 2, 3 in Hindi
  8. पानीपत का तृतीय युद्ध के कारण एवं परिणाम
  9. पानीपत युद्ध तृतीय
  10. तराइन के प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय युद्धों का वर्णन


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पानीपत का तृतीय युद्ध कारण, घटनाएं, परिणाम

प्रश्न. पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की हार के कारण। अथवा पानीपत के तीसरे युद्ध के कारण, परिणाम एवं इस युद्ध मे मराठों की पराजय (असफलता) के कारणों का वर्णन किजिए। अथवा पानीपत के तृतीय युद्ध के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये। अथवा 'पानीपत के युद्ध ने दो शक्तियों का अवसान किया और शक्ति के उत्थान को संभव बनाया।' विवेचन किजिये। अथवा पानीपत के तृतीय युद्ध के बारे मे आप क्या जानते है? अथवा पानीपत के तृतीय युद्ध के कारणों की समीक्षा कीजिए। अथवा पानीपत के तृतीय युद्ध मे मराठों की पराजय के क्या कारण थे? अथवा पानीपत के तृतीय युद्ध के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों का वर्णन कीजिए। अथवा पानीपत के तृतीय युद्ध के राजनीतिक परिणामों की समग्र व्याख्या कीजिए। अथवा पानीपत के तृतीय युद्ध के कारणों एवं परिणामों का उल्लेख कीजिए। पानीपत के तृतीय युद्ध के कारण (panipat ke tritiya yudh ke karan) 1. धर्मान्ध मुस्लिम राज्य द्वारा अत्याचार भारत मे कट्टर इस्लामी 2. मराठों की विस्तार नीति दिल्ली का मुगल सम्राट निर्बल था। फिर भी उसने अपने सूबेदारों को मराठों के खिलाफ भड़काया। परिणाम स्वरूप नादिरशाह ने मुगल सम्राट पर 1739 मे आक्रमण किया था। उसने सम्राट की सैनिक, आर्थिक और राजनैतिक शक्ति को और जनता को रोंदकर रख दिया था। विचित्र बात तो यह थी कि कहीं-कहीं मुगल सूबेदार सम्राट से अधिक शक्तिशाली थे। इसी कारण मराठों ने भी सम्राट को अपने आधीन करने का प्रयत्न किया। 4. मराठा राजपूत शत्रुता मराठों ने जब दिल्ली को पराजित किया तो उसके बाद उन्होंने 5. पंजाब की समस्या मराठों ने 1759-60 मे पंजाब को जीत लिया था और अहमदशाह ने मुगल सम्राट की 1748 मे मृत्यु के बाद उसके बजीर और रूहेली मे संघर्ष छिड़ गया। वजीर ने मराठों ...

पानीपत का तृतीय युद्ध

तिथि १४ जनवरी १७६१ स्थान पानीपत, हरियाणा, भारत परिणाम अफ़गानों की जीत, मराठों का उत्तरी भारत से प्रशासन उठा क्षेत्रीय बदलाव मुग़ल शासन योद्धा मराठा साम्राज्य अफ़गान साम्राज्य सेनानायक सदाशिवराव भाऊ अहमद शाह अब्दाली मृत्यु एवं हानि ३०,००० २०,००० क़रीब ४०,००० से ६०,००० ग़ैर-लड़ाका लड़ाई के बाद निष्पादित किये गये क़रीब ५०,००० का ग़ुलामिकरण अनुक्रम • 1 पृष्ठभूमि • 2 अफ़गानों की कुंजपुरा में हार • 3 युद्ध • 4 युद्ध के बाद हुआ नरसंहार • 5 मराठों का पुनरुत्थान • 6 आधुनिक इतिहास की दृष्टि से • 7 मराठों की पराजय के कारण • 8 प्रभाव • 9 सन्दर्भ पृष्ठभूमि [ ] मुग़ल साम्राज्य का अंत (1737 - 1857) में शुरु हो गया था, जब मुगलों के ज्यादातर भू भागों पर मराठों का आधिपत्य हो गया था। 1739 में अहमद शाह दुर्रानी जो कि उस वक्त सदाशिव राव भाऊ जो की पानीपत के युद्ध के नायक थे, उदगीर में थे जहाँ पर उन्होंने 1759 में निजाम की सेनाओं को हराया था जिसके बाद उनके ऐश्वर्य में काफी वृद्धि हुई और वह मराठा साम्राज्य की सबसे ताकतवर सेनापति में गिने जाने लगे। इसलिए अफ़गानों की कुंजपुरा में हार [ ] सदाशिवराव भाऊ अपनी समस्त सेना को उदगीर से लेकर सीधे दिल्ली की ओर रवाना हो गए जहाँ वे लोग 1760 ईस्वी में दिल्ली पहुंचे। उस वक्त अहमद शाह अब्दाली दिल्ली पार करके अनूप शहर यानी दोआब में पहुँच चुका था और वहाँ पर उसने अवध के नवाब सुजाउदौला और रोहिल्ला सरदार नजीबउद्दौला ने उसको रसद पहुंचाने का काम किया। इधर जब मराठे दिल्ली में पहुंचे तो उन्होंने लाल किला जीत लिया जिसके बाद उन्होंने कुंजपुरा के किले पर हमला कर दिया । कुंजपुरा में अफगान को पूरी तरह तबाह करके उनसे सभी सामान और खाने-पीने की आपूर्ति मराठों को हो गई । मराठों न...

पानीपत का प्रथम, द्वितीय तृतीय युद्ध कब हुआ

Table of Contents Show • • • • • • • • नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ पानीपत में तीन ऐतिहासिक लड़ाईयां हुईं: • पानीपत का प्रथम युद्ध - 21 अप्रैल (1526) बाबर एवं इब्राहिम लोदी के बीच • पानीपत का द्वितीय युद्ध - 5 नवम्बर (1556) बैरम ख़ाँ (अकबर का सेनापति) एवं हेमू (शेर शाह सूरी का सेनापति) • पानीपत का तृतीय युद्ध - 14 जनवरी (1761) मराठा एवं अहमदशाह अब्दाली यह एक बहुविकल्पी शब्द का पृष्ठ है: यानि समान शीर्षक वाले लेखो की सूची। यदि आप यहां किसी विकिपीडिया की कड़ी के द्वारा भेजे गए है, तो कृपया उसे सुधार कर सीधे ही सम्बन्धित लेख से जोड़े, ताकि पाठक अगली बार सही पृष्ठ पर जा सकें। "https://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=पानीपत_के_युद्ध&oldid=5671718" से प्राप्त श्रेणियाँ: • बहुविकल्पी शब्द • पानीपत के युद्ध मुग़ल साम्राज्य दिल्ली सल्तनत सेनानायक बाबर सुल्तान इब्राहिम लोदी† शक्ति/क्षमता 12,000-25,000 मुग़ल एवं अफ़ग़ान,[1] सम्बद्ध भारतीय सैनिक,[1] 24 मैदानी तोपें 50,000-100,000 सैनिक,[1] 300 युद्ध हाथी[2] मृत्यु एवं हानि कम 20,000 पानीपत का पहला युद्ध, उत्तरी भारत में लड़ा गया था और इसने इस इलाके में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी। यह उन पहली लड़ाइयों में से एक थी जिसमें बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को लड़ाई में शामिल किया गया था। सन् 1526 में, काबुल के तैमूरी शासक ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर की सेना ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी, की एक ज्यादा बड़ी सेना को युद्ध में परास्त किया। युद्ध को 21 अप्रैल को पानीपत नामक एक छोटे से गाँव के निकट लड़ा गया था जो वर्तमान भारतीय राज्य हरियाणा में स्थित है। पानीपत वो स्थान है जहाँ बारहवीं शताब्दी के बाद से उत्तर भारत के नियंत्रण को ल...

Panipat ki ladai

- Advertisement - भारत में इतिहास में अनेकों युद्ध हुए हैं, परंतु Panipat ka Yudh इतिहास में हुए युद्धों में एक विशेष स्थान रखता है। Panipat में 3 बार panipat ki ladai हुई हैं, जो panipat ka pratham yuddh, Panipat ki dusri ladai और panipat ki teesri ladai हैं। पानीपत का युद्ध – Panipat ki Ladai kab hui thi Panipat ki Ladai ने ही भारत में मुगलों की नींव रखी थी। Panipat ki Ladai नहीं हुई होती तो आज भारत में अकबर जैसे शासक का नाम सुनने को मिलता, और ना भारत में लाल किला होता और ना ही ताजमहल। पानीपत की लड़ाई शुरू होने से पहले एक तरफ भारत में इब्राहीम लोदी दिल्ली की गद्दी पर आसीन था। और दूसरी तरफ जहिरुद्दीन मोहम्मद बाबर जिसने काबुल को फ़तह किया था। भारत में इब्राहीम लोदी का भाई सिकंदर लोदी जो की बहुत महत्वकांक्षी के दिल्ली की गद्दी पर बैठना चाहता था, उसने अपने कुछ राजपूत सहयोगी मित्रों के साथ मिलकर इब्राहीम लोदी के विरूद्ध जंग छेड़ दी। इस वजह से इब्राहीम लोदी अपने भाई सिकंदर लोदी पर क्रोधित हुआ और उसको हरा दिया, जिसके बाद सिकंदर लोदी दिल्ली से भाग गया। बाबर जो की महज 13 वर्ष की आयु में उसके पिता के मरने के बाद फरगना जो की उज्बेकिस्तान में है का शासक बना। लेकिन उसके बाद भी बाबर को फरगना पर क़ब्ज़ा करने के लिए कई लड़ाइयाँ लड़नी पड़ी, क्योंकि उसके पिता के भाइयों को भी फरगना पर क़ब्ज़ा करना था जिसके लिए वो बार बार बाबर के साथ जंग छेड़ देते थे। - Advertisement - आखिरकार 1504 में बाबर काबुल पर क़ब्ज़ा करने में सफल हो गया। लेकिन काबुल पर क़ब्ज़ा करके वो संतुष्ट नहीं था। 1523 में इब्राहीम लोदी के भाई सिकंदर लोदी ने बाबर को भारत आने का न्योता दिया जिससे बाबर की नजर भारत पर पड़ी और उसकी महत्वाक...

पानीपत का प्रथम युद्ध : कारण, घटनाएँ, परिणाम

बाबर की महत्वाकांक्षा बाबर एक महत्वाकांक्षी एवं पराक्रमी शासक था। वह विशाल साम्राज्य स्थापित करना चाहता था। भारत की राजनैतिक अवस्था भारत की राजनैतिक अवस्था ने भी बाबर को इस देश पर आक्रमण करने का प्रलोभदन दिया। उस समय भारत की राजनीतिक दशा शोचनीय थी। देशों में राजनीतिक एकता का अभाव था। आक्रमण करने के लिए निमंत्रण मिलना बाबर को दिल्ली की सल्तनत पर आक्रमण करने के लिए दौलत खां, आलम खां, राणा सांगा आदि व्यक्तियों ने निमंत्रण भेजा था। भारत की धन दौलत पानीपत का प्रथम युद्ध का एक कारण यह भी था की, बाबर ने भारत की अपार धन संपत्ति के बारे में सुन रखा था। इसलिए यह देश उसके लिए विशेष आकर्षण रखता था। इब्राहीम लोदी का बदनाम होना दिल्ली का सुल्तान इब्राहीम लोदी अत्याचारी होने के कारण अपनी प्रजा और संबंधियों में बहुत बदनाम था। बाबर को भारत पर आक्रमण करने की प्रेरणा देना एक वृद्ध महिला से भारत पर तैमूर के आक्रमण की कहानी सुनकर बाबर को यह प्रेरणा मिली कि उसे भी अपने पूर्वजों की भांति भारत पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। पानीपत के प्रथम युद्ध की घटनाएँ पानीपत का प्रथम युद्ध की घटना – भारत को विजय करने का दृढ निश्चय करके बाबर नवंबर, 1526 ई. को काबुल से चल पङा। पंजाब में दोलत खां लोदी ने कोई 40,000 सैनकों के साथ उसका विरोध किया परंतु हार हुई और उसे बंदी बना लिया गया। इस प्रकार बाबर का लाहौर पर अधिकार हो गया। लाहौर में कुछ समय विश्राम करने तथा अपनी सेना को एक बार फिर से सुव्यवस्थित करने के बाद बाबर ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। बाबर के पास उस समय 12,000 सैनिक तथा बहुत सी तोपें थी। उधर जब इब्राहीम लोदी को इसका समाचार मिला तो वह 1,00,000 सैनिकों, हाथियों तथा अनेक हथियारों आदि को अपने साथ लेकर बाबर के...

पानीपत का प्रथम युद्ध

तिथि 21 अप्रैल 1526 स्थान परिणाम मुग़लों की निर्णायक विजय क्षेत्रीय बदलाव योद्धा सेनानायक सुल्तान शक्ति/क्षमता 12,000-25,000 मुग़ल एवं सम्बद्ध भारतीय सैनिक, 24 50,000-100,000 सैनिक, 300 मृत्यु एवं हानि कम 20,000 पानीपत का पहला युद्ध, उत्तरी भारत में लड़ा गया था,और इसने इस इलाके में सन् 1526 में, युद्ध को एक अनुमान के मुताबिक बाबर की सेना में 12,000-25,000 के करीब सैनिक और 20 मैदानी तोपें थीं। लोदी का सेनाबल 130000 के आसपास था, हालांकि इस संख्या में शिविर अनुयायियों की संख्या शामिल है, जबकि लड़ाकू सैनिकों की संख्या कुल 100000 से 110000 के आसपास थी, इसके साथ कम से कम 300 युद्ध हाथियों ने भी युद्ध में भाग लिया था। क्षेत्र के हिंदू राजा-राजपूतों इस युद्ध में तटस्थ रहे थे, लेकिन ग्वालियर के कुछ तोमर राजपूत इब्राहिम लोदी की ओर से लड़े थे। इस युद्ध में बाबर ने बाबर के द्वारा इस युद्ध में उस्मानी विधि ( तोप सज़ाने की विधि) का भी प्रयोग किया गया। ये इसने तुर्को से सीखी थी। पानीपत के इस युद्ध मे इब्राहिम लोधी युद्ध भूमि मे मारा गया।। इस तरह बाबर की विजय हुई। बाबर ने कबूल की जनता को चांदी के सिक्के दिए। इस उपरांत बाबर को कलंदर की उपाधि दी गई। इन्हें भी देखें [ ] • • सन्दर्भ [ ] • العربية • تۆرکجه • Беларуская • বাংলা • Català • Čeština • Deutsch • English • Español • فارسی • Suomi • Français • ગુજરાતી • Bahasa Indonesia • Italiano • 日本語 • ქართული • ಕನ್ನಡ • മലയാളം • मराठी • Bahasa Melayu • नेपाली • Nederlands • Norsk bokmål • ਪੰਜਾਬੀ • Polski • پنجابی • پښتو • Português • Русский • Simple English • Српски / srpski • Svenska • தமிழ் • తెలుగు • Українська • اردو • Oʻzbekcha / ўзбекча • T...

पानीपत का युद्ध (प्रथम, द्वितीय, तृतीय) The Battle of Panipat 1, 2, 3 in Hindi

Table of Content • • • • • • • पानीपत का युद्ध किसके बीच हुआ था? Between whom did the battle of Panipat take place? इतिहास के अनुसार पानीपत का युद्ध 3 बार लड़ा गया था। इसे भारतीय इतिहास का एक मुख्य भाग माना जाता है- • पानीपत का प्रथम युद्ध 1526 में बाबर और इब्राहिम लोदी की सेना के बीच लड़ा गया था। • पानीपत का द्वितीय युद्ध 1556 में • पानीपत का तृतीय युद्ध 1761 में दुरानी साम्राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच हुआ था। 1. पानीपत का प्रथम युद्ध (1526) First Battle of Panipat पानीपत की पहली लड़ाई में मुगलों का उदय हुआ, जिसमे लड़ाई दो बड़ी-शक्तियों, बाबर, तत्कालीन काबुल के शासक और दिल्ली सल्तनत के राजा इब्राहिम लोधी के बीच हुई थी। यह पानीपत (वर्तमान दिन हरियाणा) के पास लड़ा गया था। यद्यपि बाबर के पास 8,000 सैनिकों की लड़ाकू सेना थी और लोदी के पास लगभग 40000 सैनिक के साथ 400 युद्ध 1st पानीपत युद्ध का परिणाम पुरुषों से लड़ने और पराजित करने के अलावा, हाथियों को डराने के लिए तोपें एक शक्तिशाली और उनके बीच तबाही का कारण था। अंत में, यह बाबर की विजयी हुई और उसने मुगल साम्राज्य की स्थापना की, जबकि इब्राहिम लोदी युद्ध में मारे गए। 2. पानीपत का द्विताय युद्ध (1556) Second Battle of Panipat पानीपत की दूसरी लड़ाई में भारत में 1556 में, अकबर ने अपने पिता का सिंहासन सफलतापूर्वक संभाला, उस समय मुगल काबुल, कंधार और दिल्ली और पंजाब के कुछ हिस्सों में फैले थे। हेमू (हेमचन्द्र विक्रमादित्य) उस समय अफगान सुल्तान मोहम्मद आदिल शाह के सेना प्रमुख थे, जो चुनार के शासक थे। आदिल शाह भारत से हुमायूं की मौत का फायदा उठाने से वह बिना किसी कठिनाई के आगरा और दिल्ली के शासन पर कब्जा करने में सफल रहे पर यह लड़ाई का ...

पानीपत का तृतीय युद्ध के कारण एवं परिणाम

पानीपत का तृतीय युद्ध के कारण एवं परिणाम – अहमदशाह अब्दाली का भारतीय राजनीति में प्रवेश – ईरान के शासक अहमदशाह अब्दाली के भारत पर आक्रमण करने के उद्देश्य निम्नलिखित थे – • वह • भारत से धन प्राप्त करना, • लूटमार के द्वारा अपने अफगान सैनिकों को संतुष्ट करना • नवीन विजयों द्वारा अपनी प्रतिष्ठा एवं शक्ति को बढाना। उसे भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करने का शीघ्र ही बहाना मिल गया। 1748 ई. में पंजाब के सूबेदार जकरियाखाँ की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों – यहियाखाँ और शाहनवाजखाँ में उत्तराधिकार का संघर्ष छिङ गया। मुगल सम्राट के वजीर ने यहियाखाँ का पक्ष लिया। अतः शाहनवाजखाँ ने अब्दाली को सहयोग के लिए आमंत्रित किया। 1748 ई. में अब्दाली पंजाब में आ पहुँचा। इसी बीच मुगल वजीर ने शाहनवाजखाँ को अपने पक्ष में कर लिया। अतः अब्दाली ने पहले शाहनवाजखाँ को परास्त किया, फिर लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसी समय मुगल वजीर के नेतृत्व में दिल्ली से शाही सेना आ गयी, जिसने भानपुर के युद्ध में अब्दाली को परास्त किया। अतः अब्दाली वापिस लौट गया, किन्तु 1752 ई. में उसने पुनः आक्रमण किया। विवश होकर मुगल सम्राट ने पंजाब और मुल्तान अब्दाली को सौंप दिये।अब्दाली, मुइन-उल-मुल्क को पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर वापिस अफगानिस्तान लौट गया। मराठों का दिल्ली की राजनीति में हस्तक्षेप 1748 ई. में मुगल सम्राट अहमदशाह नया सम्राट बना, जिसने सफदरजंग को अपना वजीर बनाया। अवध के पङौस में रोहिलखंड के रोहिल्लों ने धीरे-धीरे अपना राज्य बढाना आरंभ किया और अवध के इलाकों में लूटमार करने लगे। सफदरजंग ने मराठों की सहायता से रोहिल्लों को कई बार परास्त किया। परास्त रोहिल्लों ने अब्दाली से सहायता माँगी। अतः 1752 ई. के आरंभ में अब्दाली के संभावित...

पानीपत युद्ध तृतीय

विषय सूची • 1 मल्हारराव की कायरता • 2 मराठा पराजय के कारण • 3 इतिहासकारों के मत • 4 विश्लेषण • 5 संबंधित लेख मल्हारराव की कायरता ' पानीपत की लड़ाई में भाग लेने आए सदाशिवराम राजा भाऊ की सेना ने इन्हें भी देखें: मराठा पराजय के कारण पानीपत के इस युद्ध में मराठों की पराजय के महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार थे- • • उत्तर • इस युद्ध के पूर्व में मराठों ने • मराठा सरदारों के आपसी मतभेद भी काफ़ी हद तक बढ़ चुके थे। • मराठों के सैनिक शिविर में अकाल की स्थिति थी। सैनिकों के लिए पर्याप्त रसद का इंतजाम नहीं था। • सैनिक संगठन की दृष्टि से अब्दाली पूरी तरह से श्रेष्ठ संगठनकर्ता था। इतिहासकारों के मत पानीपत के तृतीय युद्ध के प्रभाव के बारे में जहाँ एक तरफ़ मराठा इतिहासकारों का मानना है कि, केवल 75,000 सैनिकों की हानि के अतिरिक्त मराठों ने कुछ भी नहीं खोया, वहीं दूसरी ओर 'जी.एस. सरदेसाई' का मानना है कि, ‘पानीपत का युद्ध मराठों की अभूतपूर्ण क्षति है।’ पानीपत के तृतीय युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी 'काशीराज पंडित' के शब्दों में- 'पानीपत का तृतीय युद्ध मराठों के लिए प्रलयकारी सिद्ध हुआ। विश्लेषण वस्तुतः पानीपत के इस युद्ध ने यह निर्णय नहीं दिया, कि पन्ने की प्रगति अवस्था संबंधित लेख · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · ...

तराइन के प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय युद्धों का वर्णन

12 वीं शता. में गजनी का इन तीनों युद्धों का विवरण निम्नलिखित है- तराइन का प्रथम युद्ध मुईज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम था। यह युद्ध 1191 ईस्वी में लङा गया था। तराइन का क्षेत्र वर्तमान में हरियाणा के करनाल जिले में और थानेश्वर (कुरुक्षेत्र) के बीच स्थित था। म्लेच्छों (मुसलमानों) को पराजित कर अपनी वीरता का परिचय दिया था।